उइगर मुसलमानों की नजरबंदी को लेकर चीन बना अन्तर्राष्ट्रीय आलोचना का केन्द्र

Edited By Pardeep,Updated: 14 Sep, 2018 04:10 AM

china is the center of international criticism against uyghur muslims detention

चीन द्वारा नजरबंदी शिविरों में लाखों की संख्या में जातीय उइगरों तथा अन्य अल्पसंख्यक मुसलमानों को हिरासत में रखने के लिए अमरीकी ट्रम्प प्रशासन चीन के वरिष्ठ अधिकारियों तथा कम्पनियों पर दंडात्मक कार्रवाई के तौर पर प्रतिबंध लगाने पर विचार कर रहा है। यह...

चीन द्वारा नजरबंदी शिविरों में लाखों की संख्या में जातीय उइगरों तथा अन्य अल्पसंख्यक मुसलमानों को हिरासत में रखने के लिए अमरीकी ट्रम्प प्रशासन चीन के वरिष्ठ अधिकारियों तथा कम्पनियों पर दंडात्मक कार्रवाई के तौर पर प्रतिबंध लगाने पर विचार कर रहा है। यह जानकारी अमरीका के वर्तमान तथा पूर्व अधिकारियों ने दी है। 

मानवाधिकार उल्लंघनों के कारण चीन के खिलाफ कार्रवाई के रूप में ट्रम्प प्रशासन द्वारा लगाए जाने वाले अार्थिक दंड सम्भवत: अपनी तरह के पहले होंगे। अमरीकी अधिकारी निगरानी तकनीक की अमरीकी बिक्री को भी सीमित करना चाहते हैं जिसका इस्तेमाल चीनी सुरक्षा एजैंसियां तथा कम्पनियां उत्तर-पश्चिमी चीन में उइगरों की गतिविधियों पर नजर रखने के लिए कर रही हैं।

व्हाइट हाऊस, अमरीकी ट्रैजरी तथा गृह विभागों के अधिकारियों के बीच चीन द्वारा इसके अल्पसंख्यक मुसलमानों के खिलाफ व्यवहार के लिए फटकार लगाने हेतु चर्चाएं काफी महीनों से चल रही हैं मगर 2 सप्ताह पूर्व उन्हें इसकी अत्यावश्यकता तब महसूस हुई जब कांग्रेस के सदस्यों ने विदेश मंत्री माइक पोम्पिओ तथा खजाना मंत्री स्टीवन म्नुचिन से 7 चीनी अधिकारियों पर प्रतिबंध लागू करने को कहा। अभी तक राष्ट्रपति ट्रम्प मुख्य तौर पर चीन को उसके मानवाधिकारों संबंधी रिकार्ड के लिए दंडित करने और यहां तक कि इसके व्यापक उल्लंघन के लिए आलोचना करने से बचते रहे हैं। यदि स्वीकृति मिल जाती है तो दंडात्मक कार्रवाई से व्यापार को लेकर पेइचिंग के साथ पहले से ही चल रही कड़वाहट के लिए यह आग में घी का काम करेगी और उत्तर कोरिया के परमाणु कार्यक्रम पर दबाव बढ़ाएगी। 

ह्यूमन राइट्स वॉच द्वारा रविवार को जारी रिपोर्ट में यह कहा गया है कि जिस तरह के मानवाधिकार उल्लंघन किए जा रहे हैं वैसे 1966-1976 की सांस्कृतिक क्रांति के बाद से चीन में उतने बड़े पैमाने पर नहीं देखे गए थे। रिपोर्ट के अनुसार चीन ने धर्म के ’अराजक’ तथा गैर-कानूनी ऑनलाइन प्रसार के खिलाफ धरपकड़ के लिए नई मार्गदशर््िाका तैयार की है, जो धार्मिक पूजा-पाठ को नियंत्रित करने के लिए देश के कड़े अभियान का एक हिस्सा है। ग्लोबल टाइम्स की मंगलवार की रिपोर्ट में सोमवार को जारी नीति दस्तावेजों के हवाले से कहा गया है कि धार्मिक सूचनाओं का ऑनलाइन प्रसार करने वाले सभी संगठनों को प्रांतीय धार्मिक मामलों के विभागों को लाइसैंसों के लिए आवेदन करना होगा। जहां लाइसैंस उन्हें ‘उपदेश तथा धार्मिक प्रशिक्षण देने’ की शक्ति देगा, वहीं उन्हें धार्मिक गतिविधियों के सजीव प्रसारण की इजाजत नहीं होगी। 

अपने खुद के इंटरनैट प्लेटफाम्र्स के अतिरिक्त किसी भी अन्य मंच से धार्मिक सूचना फैलाने को भी प्रतिबंधित किया गया है। शिनजिआंग के 58 पूर्व निवासियों से साक्षात्कार के आधार पर यह प्रस्ताव किया गया कि अन्य देश चीनी अधिकारियों पर लक्षित प्रतिबंध लगाएं, वीजा को रोक लें तथा तकनीक के निर्यात को नियंत्रित करें, जिसका प्रताडऩा के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। हालांकि चीनी अधिकारियों ने स्वीकार नहीं किया है कि इतनी बड़ी संख्या में मुसलमानों को हिरासत में लिया जा रहा है।

हालांकि एक अन्य रिपोर्ट चीन के दावों की पोल खोलती है। इसमें पश्चिमी चीन में रेगिस्तान के एक छोर पर एक बाड़ के पीछे खड़ी इमारत का जिक्र किया गया है, जिस पर कांटेदार तार लगाई गई है। इस पर बड़े-बड़े लाल अक्षरों में लोगों को चीनी सीखने, कानून का अध्ययन करने तथा रोजगार कौशल प्राप्त करने हेतु प्रेरित करने बारे लिखा गया है। वहां तैनात सुरक्षा कर्मी यह सुनिश्चित करते हैं कि आगंतुकों का स्वागत नहीं किया जाए। भीतर सैंकड़ों की संख्या में जातीय उइगर मुसलमान अत्यंत दबाव वाले भावनात्मक कार्यक्रम में अपने दिन गुजार रहे हैं, जहां उन्हें भाषणों को सुनने, चीनी साम्यवादी पार्टी की प्रशंसा में गुणगान करने तथा अपनी ‘आत्म आलोचना’ में निबंध लिखने को मजबूर किया जाता है। यह खुलासा वहां से छोड़े गए बंधकों ने किया है। इसका उद्देश्य इस्लाम के प्रति किसी भी तरह की निष्ठा को समाप्त करना है। 

अब्दुस्लाम मुहेमेत (41) ने बताया कि पुलिस ने उसे एक जनाजे में कुरान की आयतें पढऩे के लिए गिरफ्तार किया था। एक कैम्प में दो महीने बिताने के बाद उसे तथा 30 से अधिक अन्य लोगों को उनके अतीत के जीवन को भुलाने का आदेश दिया गया। उसने बताया कि वह आतंकवाद से छुटकारा पाने का स्थान नहीं था। यह वह स्थान था जो प्रतिशोधी भावनाओं को जन्म देता है तथा उइगुर पहचान को समाप्त करता है। होटानिस के बाहर स्थित यह कैम्प चीनियों द्वारा गत कुछ वर्षों के दौरान बनाए गए सैंकड़ों कैम्पों में से एक है। यह एक अभियान का हिस्सा है जिसने हफ्तों और यहां तक कि महीनों के लिए लाखों की संख्या में चीनी मुसलमानों को अंगीकार किया है, जिसे आलोचक जबरदस्ती मत अथवा मन परिवर्तन (ब्रेनवाशिंग) का नाम देते हैं, जो सामान्यत: बिना किसी आपराधिक आरोपों के किया जाता है। यद्यपि यह शिनजिआंग तक सीमित है, माओ युग के बाद से यह देश का सबसे बड़ा नजरबंदी कार्यक्रम है और अंतर्राष्ट्रीय आलोचना का केन्द्र बना हुआ है। चीन दशकों से शिनजिआंग में इस्लाम की प्रथा को प्रतिबंधित करने तथा क्षेत्र पर अपनी फौलादी पकड़ बनाना चाहता है, जहां की 2.40 करोड़ की आबादी का आधे से भी अधिक हिस्सा मुस्लिम जातीय अल्पसंख्यक समूहों से संबंधित है, जिनमें से अधिकतर उइगुर हैं। 

2014 में सरकार विरोधी हिंसक हमलों के चरम पर पहुंचने के बाद कम्युनिस्ट पार्टी के प्रमुख शी जिनपिंग ने धरपकड़ में तेजी ला दी और जातीय उइगरों तथा अन्य मुस्लिम अल्पसंख्यकों को वफादार नागरिकों तथा पार्टी के समर्थक बनाने के लिए माफी न देने का अभियान चलाया। गत वर्ष राज्य के समाचार मीडिया में आई रिपोर्ट्स के अनुसार शी ने अधिकारियों से कहा कि शिनजिआंग आतंकवादी गतिविधियों के सक्रिय काल में है और इसका उपचार करने के लिए 3 अलगाववादियों के खिलाफ तीव्र संघर्ष तथा पीड़ादायक दखल की जरूरत है। बड़े पैमाने पर हिरासतों के अतिरिक्त अधिकारियों ने भेदियों का इस्तेमाल और तेज कर दिया तथा पुलिस की निगरानी बढ़ा दी। यहां तक कि कुछ लोगों के घरों में तो कैमरे तक लगा दिए गए। 

आस्ट्रेलियन नैशनल यूनिवर्सिटी में शिनजिआंग के मामलों के विशेषज्ञ माइकल क्लार्क ने बताया कि वहां के लोगों के रोजमर्रा के जीवन में अब दखलंदाजी एक पूर्ण तथा आम बात बन गई है। चीन ने शिनजिआंग में लोगों की प्रताडऩा की रिपोटर््स से इंकार किया है। गत माह जिनेवा में संयुक्त राष्ट्र पैनल की एक बैठक में चीन ने कहा कि वह पुनॢशक्षण कैम्पों का संचालन नहीं करता और जिन संस्थानों पर प्रश्र उठाए गए हैं उनके बारे में उसने कहा कि वे नौकरियों के लिए प्रशिक्षण देने वाले सामान्य स्तर के सुधारात्मक संस्थान हैं। शिनजिआंग संबंधी नीति में दखल रखने वाले एक अधिकारी हू लिआन्हे ने संयुक्त राष्ट्र के पैनल को बताया कि वहां किसी को तानाशाहीपूर्ण तरीके से हिरासत में नहीं लिया गया। 

गत वर्ष प्रकाशित किए गए एक अध्ययन में बताया गया है कि कुछ स्थानों पर अधिकारी बिना किसी भेदभाव के जातीय उइगरों को कैम्पों में भेज रहे हैं ताकि सांख्यिकी समीकरण पूरे किए जा सकें। होतान में पार्टी अधिकारियों द्वारा जारी एक दस्तावेज में कहा गया है कि जो कोई भी किसी विचारधारा के ‘विषाणु’ से ग्रस्त है उसे आवश्यक तौर पर बीमारी बढऩे से पहले तुरंत शिक्षण कक्षाओं के माध्यम से बदलाव के लिए ‘आवासीय देख-रेख’ में भेजा जाना चाहिए।-एडवर्ड वोंग/क्रिस बकले

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