सरकारी चंगुल में ‘चीनी मीडिया’

Edited By ,Updated: 24 Sep, 2020 02:18 AM

chinese media  in official clutches

चीन में मीडिया हमेशा से सरकारी चंगुल में रहा है, यानी चीन में मीडिया पर सैंसरशिप बहुत सख्त है और पूरी दुनिया में यहां कठोरतम नियम मीडिया पर लागू किए जाते हैं। फिर चाहे वे समाचार पत्र हों, टैलीविजन पर दिखाए जाने वाले समाचार

चीन में मीडिया हमेशा से सरकारी चंगुल में रहा है, यानी चीन में मीडिया पर सैंसरशिप बहुत सख्त है और पूरी दुनिया में यहां कठोरतम नियम मीडिया पर लागू किए जाते हैं। फिर चाहे वे समाचार पत्र हों, टैलीविजन पर दिखाए जाने वाले समाचार हों, ऑनलाइन और सोशल मीडिया हो, सब कुछ सरकार के सख्त नियंत्रण में रहता है। 

चीन सरकार नहीं चाहती कि कोई भी ऐसी जानकारी आम जनता तक पहुंचे जिसे वह दुनिया से छुपाकर रखना चाहती है। अगर कोई भी सरकारी नियम का उल्लंघन करता है तो सरकार उस पर शिकंजा कसने के लिए मानहानि, मुकद्दमे और गिरफ्तारियों जैसे साधनों का प्रयोग करती है। रॉयटर्स की एक रिपोर्ट के आधार पर चीन में वर्ष 2017 में 18 पत्रकारों को चीन में कैद किया गया था। इन सभी पत्रकारों को चीन के मुस्लिम बहुल प्रांत शिनजियांग में मुस्लिमों को नजरबंद करने के लिए बनाए गए शिविरों में भेजा गया था, वहीं पिछले वर्ष यानी 2019 में 48 पत्रकारों को जेल भेजा गया था। 

‘‘एमनैस्टी इंटरनैशनल’’ की रिपोर्ट के अनुसार दुनिया में सबसे ज्यादा पत्रकारों को अगर किसी देश में जेल में भेजा गया है तो वह देश चीन है। ‘‘रिपोर्टर्स विदआऊट बॉर्डर’’ ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि नेटिजन्स के लिए चीन दुनिया की सबसे बड़ी जेल है। 

चीन की दोमुंही नीतियां 
चीन में गूगल, फेसबुक, इंस्टाग्राम, व्हाट्सएप, यू-ट्यूब सहित बहुत सारी विदेशी वैबसाइट और मोबाइल एप्लीकेशन बंद हैं, लेकिन चीनी जनता ने तथाकथित ‘ग्रेट फायरवॉल’ को लांघने के तरीके ढूंढ लिए हैं, इन वैबसाइट्स पर जाने के लिए चीनी जनता वी.पी.एन. यानी वर्चुअल प्राइवेट नैटवर्क का सहारा लेती है, ये वी.पी.एन. चीन की इंटरनैट की चारदीवारी में सेंधमारी कर विदेशी वैबसाइटों तक लोगों की पहुंच बनाता है। 

एक तरफ चीन में इन वैबसाइट्स पर प्रतिबंध लगा हुआ है तो वहीं दूसरी तरफ चीन की कई सरकारी और प्राइवेट संस्थाओं ने फेसबुक, यूट्यूब, व्हाट्सएप और गूगल पर वैबपेज और वीडियो बनाकर पोस्ट किया है जिससे बाहरी दुनिया को उनके बारे में जानकारी मिले और वे बाहरी दुनिया के साथ व्यापार कर सकें, इसमें चीन सरकार भी लुके-छिपे तरीके से इन कम्पनियों की मदद करती है। इसका मूल मंत्र है वैश्विक स्तर पर चीन इन विदेशी वैबसाइट्स का इस्तेमाल कर भारी मुनाफा कमाना चाहता है। 

खबरों पर सैंसरशिप 
चीन में जितने भी मीडिया संस्थान हैं, चाहे वे सरकारी हों या फिर निजी सभी पर सख्त नियंत्रण सरकार का रहता है। इसके साथ ही खबरें भी सरकार ही देती है और हर खबर लोगों तक पहुंचाने से पहले उसकी एक प्रति सरकार को भेजनी पड़ती है, जिस पर सरकार अपनी मुहर लगाती है तभी जाकर वह खबर लोगों तक पहुंचती है। मीडिया पर नियंत्रण करने के दो कारण हैं, पहला देश के अंदर बाहर से ऐसी खबरें न दिखाई जाएं जिससे चीन के समाज में सत्ता के खिलाफ किसी तरह का विद्रोह हो, दूसरा कारण तिब्बत, शिनजियांग, ताईवान, हांगकांग और मकाओ को लेकर किसी तरह की कोई खबर देश से बाहर न जाने पाए। इन उपायों से चीन ने एक हद तक अपने देश के अंदर सत्ता को मजबूत बनाने में सफलता पाई है। 

बड़े आयोजनों से पहले इंटरनैट पर रोक
चीन में जब भी कोई बड़ा आयोजन होता है, उदाहरण के लिए सी.सी.सी.पी.सी. की वाॢषक मीटिंग (फरवरी) के दौरान, 1 से 7 अक्तूबर चीनी राष्ट्रीय दिवस और बसंतोत्सव के दौरान इंटरनैट पर शिकंजा और कस जाता है, इसके अलावा जब भी चीन में कोई बड़ा हादसा होता है तो चीनी प्रशासन इंटरनैट पर पूर्ण रूप से प्रतिबंध लगा देता है। वर्ष 2009 में शिनजियांग की राजधानी उरुमुछी में हुए दंगों के दौरान चीन ने पूरे शिनजियांग में जुलाई 2009 से मई 2010 तक पूर्णत: पाबंदी लगा दी थी, इसके अलावा वर्ष 1989 वाले तिनानमिन आंदोलन 4 जून  से एक सप्ताह पहले से ही इंटरनैट पर रोक लगा दी। इसके साथ ही सीना वीबो वैबसाइट पर जलती हुई मोमबत्ती वाला लोगो लगाने पर उसे कुछ समय के लिए ब्लॉक कर दिया जाता है जिससे कि इस आंदोलन की बरसी न मनाई जा सके। 

सवाल यह उठता है कि आखिर चीन इन प्रतिबंधों से हासिल क्या करना चाहता है और एक प्रतिबंधित समाज कैसे तरक्की करेगा, तो इसका जवाब यह है कि चीनी कम्युनिस्ट पार्टी ये सारे प्रतिबंध अपने शासन की पकड़ को देशभर में मजबूती देने के लिए लगाती है, हालांकि यह आने वाला समय बताएगा कि चीन प्रतिबंधित समाज के साथ आगे बढ़ता रहेगा या फिर उसका हश्र कुछ और होगा।

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