चित्रा : एक मिशन पर पत्रकार

Edited By Updated: 03 Oct, 2025 05:33 AM

chitra journalist on a mission

80 के दशक के अंत में भारतीय रक्षा बलों को तोपें (हॉवित्जर) बेचने वाली स्वीडिश हथियार निर्माता कम्पनी का नाम बोफोर्स था। 80 और 90 के दशक में भारत में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार के लिए बोफोर्स एक जाना-पहचाना नाम बन गया था जो 1989 में राजीव गांधी की...

80 के दशक के अंत में भारतीय रक्षा बलों को तोपें (हॉवित्जर) बेचने वाली स्वीडिश हथियार निर्माता कम्पनी का नाम बोफोर्स था। 80 और 90 के दशक में भारत में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार के लिए बोफोर्स एक जाना-पहचाना नाम बन गया था जो 1989 में राजीव गांधी की सरकार के पतन का कारण बना।

बोफोर्स से जुड़े घोटाले ने कांग्रेस पार्टी की पकड़ का भी अंत कर दिया, जिसने हमारे देश को आजादी मिलने के बाद पूरे 4 दशकों तक देश पर राज किया। कांग्रेस पार्टी के प्रतीक नेहरू-गांधी परिवार को ग्रहण लग गया। यह सर्वविदित है कि बोफोर्स तोप उन पतनों का उत्प्रेरक थी लेकिन जिस महिला ने उस हथियार खरीद से जुड़ी रिश्वतखोरी और भ्रष्टाचार का पर्दाफाश करने में सबसे बड़ी भूमिका निभाई, उसका नाम आम आदमी की यादों में नहीं बस पाया। जब मुझे चित्रा सुब्रमण्यम की किताब ‘बोफोर्स गेट-अ जर्नलिस्ट्स परस्यूट ऑफ ट्रूथ’ दी गई तो मुझे उनकी पहचान जानने के लिए अपनी याद्दाश्त को खंगालना पड़ा। एक स्पष्ट कारण यह था कि यह नाटक उस समय सुर्खियों में आया जब मैं 4 साल के लिए विदेश में रोमानिया में था।  बेशक, भारत में प्रकाशित अखबारों में बोफोर्स के बारे में खूब लिखा गया था  लेकिन सच्चाई की पूरी तरह से तलाश करने और लंदन स्थित हिंदुजा बंधुओं और ऑक्टावियो क्वात्रोची को बेनकाब करने वाले दस्तावेजों को हासिल करने वाली खोजी पत्रकार का नाम, जिसे चित्रा द्वारा उजागर किए गए पत्राचार में बोफोर्स कम्पनी के एक शीर्ष अधिकारी ने ‘क्यू’ और एक बार ‘गांधी ट्रस्टी वकील’ कहा था, उतना ध्यान (और प्रशंसा) नहीं मिला जितना वह हकदार थीं।

इस किताब को पढऩे के बाद जो मेरे कई दोस्तों और देशवासियों को रुचिकर लगेगी, मुझे खुद यह पता चला है कि राजीव गांधी के प्रति मेरा जीवन भर का सम्मान  जो मैंने उनसे मिलने के दिन से ही संजोया था (जो उनके प्रधानमंत्री बनने से पहले की बात है), अब खत्म हो गया है। ए.ई. सॢवसिज को दिए गए 7 मिलियन अमरीकी डॉलर के वितरण और ऑक्टावियो क्वात्रोची द्वारा स्विस बैंक के उस खाते से तुरंत निकाले जाने के बारे में कोई जानकारी नहीं है। मुझे लगा था कि 2014 में जब नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार सत्ता में आएगी  तो ये पिटारे खुल जाएंगे। 2019 में, शक्तिशाली गृह मंत्री अमित शाह ने सी.बी.आई. और अन्य जांच एजैंसियों का कार्यभार संभाला। फिर भी, उन्होंने कोई कार्रवाई क्यों नहीं की? यह सचमुच एक रहस्य है। चित्रा द्वारा उल्लिखित कई कारनामों, जिनमें हमारी प्राचीन भूमि का राजनीतिक नेतृत्व, यहां की नौकरशाही और जांच एजैंसियां शामिल हैं, मेरे देशवासियों को अच्छी तरह से पता हैं। हम भारतीय ऐसे खेलों को बहुत सहजता से स्वीकार करते हैं। हम इन्हें अपनी राजनीतिक संस्कृति का हिस्सा मान लेते हैं। मुझे समझ नहीं आ रहा है कि भाजपा जो एक विचारधारा से प्रेरित पार्टी है, इस धारा के साथ क्यों बह गई?

चित्रा सुब्रमण्यम का जन्म भारत में एक तमिल ब्राह्मण परिवार में हुआ था। सर सी.वी. रमन, जिन्हें दशकों पहले विज्ञान के लिए नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था, उनके पूर्वजों में से हैं। बोफोर्स द्वारा दी गई रिश्वत के बारे में सच्चाई उजागर करने के उनके अथक प्रयास, अपने जन्म स्थान और अपने पैतृक परिवार के मूल के प्रति उनके अटूट प्रेम से प्रेरित थे। उन्हें विश्वास नहीं हो रहा था कि राजीव गांधी, जिनकी वह प्रशंसा करती थीं और जिन्हें वह ऐसे व्यक्ति के रूप में मानती थीं जो देश को अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाएंगे, उन्हें इतना निराश कर सकते हैं। बोफोर्स द्वारा बिचौलियों को धन दिए जाने का पहला संकेत, अनुबंध की शर्तों के बावजूद, किसी भी भारतीय एजैंट को बातचीत में हस्तक्षेप करने से रोकता था, अप्रैल 1987 में मिला, जब स्वीडिश स्टेट रेडियो ने भारतीय राजनेताओं पर गुप्त स्विस बैंक खातों के माध्यम से बोफोर्स से रिश्वत लेने का आरोप लगाया। प्रसारण में आरोप लगाया गया था कि 1987 के आखिरी दो महीनों में स्विस बैंकों के गुप्त खातों में 32 मिलियन स्वीडिश क्राऊन जमा किए गए थे। राजीव गांधी ने संसद में तुरंत इस बात से इंकार किया कि कोई रिश्वत दी गई थी या कोई बिचौलिया इसमें शामिल था।  

चित्रा कहती हैं कि बोफोर्स का दिल्ली स्थित एजैंट विन चड्ढा एक महीने बाद दुबई के रास्ते न्यूयॉर्क भाग गया। जून 1987 में स्वीडिश नैशनल ऑडिट ब्यूरो ने पुष्टि की कि विन चड्ढा की कम्पनी स्वेन्स्का को कुछ कमीशन भुगतान किया गया था। स्वीडिश जांचकत्र्ताओं द्वारा की गई यह जांच शुरू होने के तुरंत बाद ही रहस्यमय तरीके से बंद कर दी गई! अगस्त में लोकसभा ने रिश्वतखोरी के आरोपों की जांच के लिए एक संयुक्त संसदीय समिति (जे.पी.सी.) का गठन किया। यह कार्रवाई भी एक निराशाजनक परिणाम के रूप में समाप्त हुई। सी.बी.आई. ने न केवल भारत में बल्कि स्वीडन और स्विट्जरलैंड में भी अपनी जांच की, जहां कथित तौर पर यह धन जमा किया गया था। चित्रा के निष्कर्ष थे कि न तो भारतीय और न ही स्वीडिश अधिकारियों को सच्चाई का पता लगाने में कोई दिलचस्पी थी! चित्रा कहती है, इसके विपरीत, वे इसे छुपाने में व्यस्त थे। यहां तक कि अपने मुख्य सूत्र, जिसे वह ‘स्टिंग’ कहती हैं, का विश्वास जीतने में भी, जिसने यह दिखाने के लिए दस्तावेज हासिल किए थे कि बोफोर्स ने तीन पंजीकृत कम्पनियों को रिश्वत दी थी- वन स्वेंस्का, जिसका संचालन बोफोर्स के दिल्ली स्थित एजैंट द्वारा किया जाता है, विन चड्ढा टू मोरेस्को, एक कंपनी जिसका पता लंदन स्थित हिंदुजाओं से लगाया जा सकता है और राजीव गांधी और सोनिया गांधी के मित्र ऑक्टावियो क्वात्रोची की थ्री ए.ई. सॢवसेज। मुझे यह जानकर हमेशा आश्चर्य होता है कि हम भारतीय भ्रष्टाचार को एक बुराई के रूप में स्वीकार करते हैं।-जूलियो रिबैरो(पूर्व डी.जी.पी. पंजाब व पूर्व आई.पी.एस. अधिकारी)

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