बिहार चुनाव में गठबंधन की एक कमजोर कड़ी है कांग्रेस

Edited By Updated: 03 Nov, 2025 05:31 AM

congress is a weak link in the alliance in bihar elections

आगामी 2025 बिहार विधानसभा चुनाव में कड़ी प्रतिस्पर्धा होने की उम्मीद है, जिसका सभी संबंधित दलों पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ेगा। हालांकि जनमत सर्वेक्षण सत्तारूढ़ एन.डी.ए. (राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन) के पक्ष में है लेकिन वे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के...

आगामी 2025 बिहार विधानसभा चुनाव में कड़ी प्रतिस्पर्धा होने की उम्मीद है, जिसका सभी संबंधित दलों पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ेगा। हालांकि जनमत सर्वेक्षण सत्तारूढ़ एन.डी.ए. (राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन) के पक्ष में है लेकिन वे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के खिलाफ  प्रबल सत्ता-विरोधी भावनाओं को छिपाते हैं।  राजनीतिक विश्लेषकों का अनुमान है कि ये चुनाव  नेतृत्व, जातिगत गतिशीलता, मतदाताओं की धारणाएं, पार्टियों और उनके नेताओं से जुड़े हैं। राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के नेतृत्व वाला और कांग्रेस व छोटे दलों के साथ गठबंधन करने वाला ‘इंडिया ब्लॉक’ दो दशकों के एन.डी.ए. शासन को समाप्त करना चाहता है। मजबूत नेतृत्व और संगठन के साथ, मतदाताओं का मूड आगे एक उतार-चढ़ाव भरा चुनाव होने का संकेत देता है। यह चुनाव स्थानीय विधायकों में असंतोष, ग्रामीण क्षेत्रों में विकास और रोजगार सृजन की कमी के साथ, सत्तारूढ़ गठबंधन के समर्थन को कमजोर  करता है। हालांकि एन.डी.ए. को उच्च जातियों और वृद्ध मतदाताओं का समर्थन प्राप्त है लेकिन युवाओं और ओ.बी.सी. (अन्य पिछड़ा वर्ग)समूहों को शामिल करने में उसकी असमर्थता पार्टी के लिए चुनौतियां पेश करती है।

चुनाव के नतीजे प्रचार नेताओं से काफी प्रभावित होते हैं। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एन.डी.ए.) का नेतृत्व कर रहे हैं। उन्हें मतदाताओं, विशेषकर महिलाओं का भरपूर समर्थन प्राप्त है जो मुफ्त बिजली, स्वच्छ पानी और एक करोड़ रोजगार सृजन योजना जैसी उनकी पहलों की सराहना करती हैं। इसके अतिरिक्त, उन्होंने 25 लाख महिलाओं की सहायता के लिए एक महिला कल्याण कार्यक्रम के लिए प्रत्येक को 10,000 रुपए आबंटित किए हैं। सी-वोटर सर्वेक्षण में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की लोकप्रियता में उतार-चढ़ाव देखा गया। उत्तरदाताओं ने उन्हें अपना पसंदीदा मुख्यमंत्री चुना। एक आश्चर्यजनक दावेदार जनसुराज पार्टी के नेता प्रशांत किशोर थे  जो 16 प्रतिशत वोटों के साथ एक पसंदीदा उम्मीदवार के रूप में उभरे। एन.डी.ए. का पूरे बिहार में एक मजबूत नैटवर्क है। जिसमें भाजपा  और जद-यू दोनों के कार्यकत्र्ता शामिल हैं, साथ ही आर.एस.एस. (राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ) समूहों का भी समर्थन प्राप्त है। प्रधानमंत्री द्वारा समर्थित हालिया विकास परियोजनाओं ने एन.डी.ए. के अभियान को मजबूत करने में मदद की है।

भाजपा ने जद-यू  का समर्थन किया और भाजपा के शीर्ष नेताओं ने एन.डी.ए. के लिए प्रचार किया और वित्तपोषण कोई मुद्दा नहीं है। मोदी और अमित शाह सहित शीर्ष नेताओं ने एन.डी.ए. के लिए प्रचार किया। हालांकि, एन.डी.ए. स्थानीय स्तर पर संघर्ष कर रहा है, जहां उसे अपने विरोधियों जितनी विश्वसनीयता और जमीनी समर्थन का अभाव है। राजद के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार तेजस्वी यादव को एक बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है जबकि उनके पास लगभग 30 प्रतिशत मतदाताओं वाला एक वफादार मुस्लिम-यादव मतदाता आधार है। नवीनतम सी-वोटर सर्वेक्षण से संकेत मिलता है कि बिहार में मुख्यमंत्री पद के लिए वह शीर्ष विकल्प बने हुए हैं। लालू यादव के पुत्र तेजस्वी युवाओं के बीच लोकप्रिय हैं और उन्होंने मतदाताओं से कई लोकलुभावन उपायों का वादा किया है, जिनमें पैंशन और स्वास्थ्य सेवा जैसे सामाजिक कल्याण लाभों में वृद्धि, सरकारी  रोजगार अभियानों के माध्यम से रोजगार सृजन की पहल और छोटे व्यवसायों को समर्थन शामिल हैं।

तेजस्वी राजद का नेतृत्व करते हैं  लेकिन लालू प्रसाद यादव और परिवार के अन्य सदस्यों का अभी भी महत्वपूर्ण प्रभाव है। पारिवारिक विवाद अक्सर तेजस्वी को पार्टी की रणनीति के बजाय आंतरिक कलह को सुलझाने पर ध्यान केंद्रित करने के लिए मजबूर करते हैं। कुछ को कानूनी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है, जिनमें जमीन के बदले नौकरी घोटाले की ई.डी. जांच भी शामिल है। भाजपा नेता पहले से ही जीत का दावा कर रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दसवें चरण में घोषणा की कि भाजपा-एन.डी.ए. बिहार में व्यापक जीत दर्ज करेगी। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने पहले प्रचार नहीं किया था लेकिन अब वे कांग्रेस के वफादारों का समर्थन जुटाने के लिए रैलियां और रोड शो करने की योजना बना रहे हैं। उनकी बहन प्रियंका गांधी वाड्रा भी राज्य में सक्रिय रूप से प्रचार कर रही हैं। हालांकि, पार्टी को मजबूत स्थानीय नेताओं की कमी के कारण संघर्ष करना पड़ रहा है। कांग्रेस के लगातार खराब प्रदर्शन को गठबंधन की एक कमजोर कड़ी के रूप में देखा जा रहा है। 1995 के बिहार विधानसभा चुनावों के बाद से, कांग्रेस किसी भी चुनाव में 30 से ज्यादा सीटें जीतने में कामयाब नहीं रही है। इस बार, कांग्रेस ने 61 उम्मीदवार उतारे हैं, जिनमें से 56 सीटों पर भाजपा और जद-यू के साथ सीधा मुकाबला है। ये सीटें मुख्यत: एन.डी.ए. के नियंत्रण में हैं।

एन.डी.ए. कल्याण के क्षेत्र में नीतीश कुमार के अनुभव को रेखांकित करता है जबकि ‘इंडिया’ ब्लॉक युवा नेतृत्व और मतदाता भागीदारी बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करता है। युवाओं का वोट, कुल मतदान प्रतिशत और शासन व भ्रष्टाचार पर उनकी राय, बिहार के भविष्य को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे। वोटवाइब का नवीनतम सर्वेक्षण एक कांटे का चुनाव दर्शाता है, जिसमें महागठबंधन को 34.7 प्रतिशत और एन.डी.ए. को 34.4 प्रतिशत वोट मिले हैं। जन सुराज को 12.3 प्रतिशत समर्थन प्राप्त है और 8.4 प्रतिशत लोगों को त्रिशंकु विधानसभा की आशंका है  जो आगामी चुनाव के उत्साह को और बढ़ा देता है। कुल मिलाकर, चुनाव परिणाम कुल नेताओं के लिए मददगार साबित होंगे और कुछ के लिए चुनौतियां खड़ी करेंगे। यह एक रोमांचक अनुभव होगा।-कल्याणी शंकर
 

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