चोटी के कई नेताओं को निराश कर गया कांग्रेस का महा-अधिवेशन

Edited By Punjab Kesari,Updated: 28 Mar, 2018 04:46 AM

congresss maha session was disappointed by many top leaders

देश भर के सभी कांग्रेसियों को अखिल भारतीय कांग्रेस समिति (ए.आई.सी.सी.) के महा अधिवेशन की प्रतीक्षा थी। वे अनेकों नए बदलाव, नई आवाज, नया एजैंडा तथा स्वाभाविक रूप से नए स्वरूप की अपेक्षा कर रहे थे। देश भर से 3000 प्रतिनिधि शीर्ष कांग्रेसी नेताओं को...

देश भर के सभी कांग्रेसियों को अखिल भारतीय कांग्रेस समिति (ए.आई.सी.सी.) के महा अधिवेशन की प्रतीक्षा थी। वे अनेकों नए बदलाव, नई आवाज, नया एजैंडा तथा स्वाभाविक रूप से नए स्वरूप की अपेक्षा कर रहे थे। देश भर से 3000 प्रतिनिधि शीर्ष कांग्रेसी नेताओं को सुनने के लिए इकट्ठा हुए थे। वे बदलावों को जानने की प्रतीक्षा में थे तथा कांग्रेस कार्यकारी समिति के सदस्यों के लिए मत देना चाहते थे परंतु अंत में ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। वे स्वयं को भाजपा, जो राजनीति में ‘साम, दाम, दंड, भेद’ के फार्मूले पर विश्वास करती है, से लडऩे के लिए समर्थ कैसे बना सकते हैं एवं यही आज की राजनीति की आवश्यकता है।

कांग्रेसी जानते हैं कि पार्टी कमजोर है तथा इसे बदलाव की बहुत आवश्यकता है। अखिल भारतीय कांग्रेस समिति का अधिवेशन प्रथम दिन से ही मिश्रित भाव वाला था। ए.आई.सी.सी. सदस्यों के लिए यह अचंभा था कि वहां कोई मंच ही नहीं था तथा नेता सामने की पंक्ति में बैठे थे जोकि कार्यकत्र्ताओं की पहुंच से बहुत दूर थे। इसलिए कार्यकत्र्ता कुछ हद तक अपने नेताओं से बात न कर पाने से नाराज भी हुए।नेताओं को टैलीविजन सैटों पर देखा जा सकता था जो पूरे स्टेडियम में लगे हुए थे। उनमें से कुछेक ने तो यह टिप्पणी भी की कि ऐसा तो वे घर पर बैठ कर भी देख सकते थे। ए.आई.सी.सी. महा अधिवेशन का सम्पूर्ण प्रबंध एक इवैंट कम्पनी से करवाया गया था। यह पूरी तरह प्रियंका गांधी के निरीक्षण में ही आयोजित किया गया था। कांग्रेसियों का मानना है कि प्रियंका संगठन को संभालेंगी तथा राहुल को सहायता करेंगी। 

नवजोत सिद्धू का ड्रामे से परिपूर्ण भाषण कपिल शर्मा के हास्य शो जैसा था। राहुल गांधी का भाषण भी मिश्रित भाव वाला था जबकि उनके लिए माना जाता है कि वह खुल कर बोलते हैं परंतु उनके द्वारा कोई मार्गदर्शन नहीं किया गया। कोई नहीं जानता कि कांग्रेस में पुराने वरिष्ठ साथियों की भूमिका क्या होगी, मध्यम आयु वर्ग वाले कार्यकत्र्ता क्या करेंगे तथा युवा वर्ग कैसे कार्यरत होगा? उम्मीद है कि वह तीनों को साथ लेकर चलेंगे। इन सब में अगर किसी ने कोई छाप छोड़ी तो वह पी. चिदम्बरम थे। उन्होंने कहा कि वह स्टील से बने व्यक्ति हैं तथा प्रत्येक परिस्थिति में लड़ सकते हैं। उन्होंने देश के आर्थिक हालात पर बेहद अच्छा संबोधन किया। नि:संदेह भाजपा आज शीर्ष पर है तथा यह केवल वहां से नीचे ही आ सकती है। प्रतिदिन उतार-चढ़ाव आते रहते हैं। जो ऊपर जाता है वह एक दिन नीचे भी आता है। 

सभी राजनीतिज्ञों को यह अवश्य याद रखना चाहिए। कांग्रेस को भाजपा के नीचे आने की सबसे अधिक प्रतीक्षा है तथा यदि ऐसा होता है तभी वह ऊपर आ सकती है। चूंकि अब क्षेत्रीय पार्टियां भाजपा के वोट छीन रही हैं। भाजपा सपा-बसपा के गठजोड़ से थोड़ी-बहुत ङ्क्षचतित हो सकती है लेकिन वह कांग्रेस से कतई भी चिंतित नहीं है। मतदाता निराश होता है जब उसे मोदी के अतिरिक्त कोई अन्य नेता दिखाई नहीं देता है। इसलिए मोदी को एक और मौका मिल सकता है जबकि भाजपा सरकार की लोकप्रियता दिन-ब-दिन गिरती जा रही है। 

मेरा पूर्ण विश्वास है कि सरकार को वोट उसके गुण व अवगुणों के आधार पर दिए जाते हैं तभी दूसरी पार्टी आती है। जैसा वर्ष 2014 में हुआ। ये वोट यू.पी.ए. के विरुद्ध गए थे, केवल सरकार के विरुद्ध नहीं। तब नरेंद्र मोदी ने स्वयं सेवक संघ के मजबूत आधार, अच्छे प्रचार, कौशल एवं मजबूत अभियान से ऐसा संभव कर दिया। वर्तमान में कांग्रेस में उपरोक्त सभी बातों की कमी है। उनमें ऐसा प्रभावी प्रचार-कौशल नहीं है कि वो 2019 के लिए उपरोक्त जैसा कोई प्रबंध कर पाए तथा उनके पास अमरेंद्र सिंह सरीखे चंद राज्य स्तरीय नेता हैं जो केवल अपने व्यक्तित्व, मेहनत एवं मतदाताओं के दिलों में इज्जत के बलबूते राज्य को संभाल सकते हैं। कांग्रेस शासित राज्यों में दूसरे रैंक के नेताओं की भी कमी है। वहीं कांग्रेस ने अपने विभिन्न संगठन प्रभावी रूप से केवल इसीलिए समाप्त कर लिए कि वह केवल क्षेत्रीय पार्टियों पर आधारित हो गई। 

अब उनमें ऐसा कोई नहीं है तथा मतदाता इसे आसानी से नहीं ले सकता है। वर्ष 2019 हमें बहुत से आश्चर्य दे सकता है। कुछेक का कहना है कि ई.वी.एम. हेराफेरी होगी तथा कुछ लोगों का कहना है कि ऐसा नहीं हो सकता। हालांकि कांग्रेस दोबारा बैलेट पेपर चाहती है। यदि ई.वी.एम. मशीनों से छेड़छाड़ की जाती है तो यह भारतीय जनता एवं इस देश के लोकतंत्र का भी महा अपमान होगा। आशा करते हैं कि हम ये सब 2019 में पीछे छोड़ देंगे। चुनावों के निकट आते ही राजनीतिक पार्टियां एक-दूसरे से अथवा राजग और यू.पी.ए. के संपर्क में आएंगी तथा वर्ष 2019 में हम देखेंगे कि हमारा भविष्य किसके हाथों में होगा। जनता का यह भी मानना है कि केंद्र और राज्यों के चुनाव एक साथ होने चाहिएं। इससे सर्वाधिक धन, ऊर्जा एवं समय की बचत होगी। 

महा अधिवेशन में कई कांग्रेसी शीर्ष नेताओं को सम्मान नहीं मिला। उन्हें अंदर जाने की आज्ञा नहीं थी जिससे उन्होंने अपमानित महसूस किया। पहले यह अधिवेशन सेवा दल एवं युवा कांग्रेस मिल कर आयोजित किया करते थे परंतु समय के साथ चीजें बदलती गईं और बदलाव ने कइयों के दिल तोड़ दिए तथा कइयों ने तो दांतों तले उंगली दबा ली।-देवी चेरियन

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