‘कोविड महामारी, वैक्सीन तथा उभरते विवाद’

Edited By ,Updated: 10 Jan, 2021 02:41 AM

covid epidemic vaccine and emerging controversy

महामारी अपने रास्ते से बाहर हो रही है मगर अभी तक यह गई नहीं है। वैक्सीन अपने रास्ते पर है लेकिन अभी तक घरों तक नहीं पहुंची है। एक बात जो पूरी तरह से अनसुलझी रह गई है वह है विवाद। जैसा कि मैंने 8 जनवरी को लिखा कि कोविड-19 द्वारा

महामारी अपने रास्ते से बाहर हो रही है मगर अभी तक यह गई नहीं है। वैक्सीन अपने रास्ते पर है लेकिन अभी तक घरों तक नहीं पहुंची है। एक बात जो पूरी तरह से अनसुलझी रह गई है वह है विवाद। जैसा कि मैंने 8 जनवरी को लिखा कि कोविड-19 द्वारा फैलाए कहर के आंकड़े धुंधला देने वाले हैं। संक्रमित लोगों की गिनती 1,04,14,044 (अमरीका के बाद दूसरा स्थान); मौतों की संख्या 1,50,606 (अमरीका तथा ब्राजील के बाद तीसरा स्थान); एक्टिव मामलों की गिनती 2,22,416 है। 138 करोड़ की आबादी के साथ हम अपने आपको भाग्यशाली समझ सकते हैं मगर निश्चित तौर पर महामारी नियंत्रण  और प्रबंधन का यह एक चमकदार उदाहरण नहीं है। 

विश्व में यहां पर 6 स्वीकृत वैक्सीन हैं। हम रूसी तथा चीनी वैक्सीन के बारे में बहुत कम जानते हैं। हालांकि उन्हें संबंधित देशों में बड़े पैमाने पर वितरित और प्रशासित किया जा रहा है जहां तक मुझे पता है किसी अन्य ने स्वीकार नहीं किया कि  लम्बे समय से स्थायी नियामक ने रूसी तथा चीनी वैक्सीन के उपयोग करने की मंजूरी दी है। 

चार वैक्सीन-बड़ा अवसर
पहली फाइजर है जिसे अमरीकी एफ.डी.ए. द्वारा अनुमोदित किया गया है। वैज्ञानिक दुनिया  तथा चिकित्सीय व्यवसाय के बीच फाइजर एक गोल्ड स्टैंडर्ड है। परीक्षणों के तीन अनिवार्य चरणों में वैक्सीन की प्रतिरक्षा, सुरक्षा और प्रभावकारिता को साबित किया गया है। यहां भंडारण की स्थिति (-70 डिग्री सैल्सियस) और भारत में लागत (अनिर्धारित) का दोष है। 

फाइजर ने ड्रग्स कंट्रोल जनरल ऑफ इंडिया (डी.सी.जी.आई.) के लिए एमरजैंसी यूज अप्रूवल (ई.यू.ए.) के लिए आवेदन किया था। मगर इसने अपने मामले को विशेषज्ञ कमेटी के सामने प्रस्तुत नहीं किया। फाइजर भारत में वैक्सीन के आबंटन और इसके विपणन के लिए उत्सुक नहीं है क्योंकि इसने माना कि भारत में इसकी लागत अप्रभावी होगी और भंडारण की शर्तें पूरी नहीं होंगी क्योंकि फाइजर का टीका कई देशों और नियामकों द्वारा अनुमोदित किया गया है और इसकी मांग दुनिया भर में अधिक है इसलिए फाइजर ने अपनी प्राथमिकता के क्रम में भारत को कम रखा हो सकता है। 

दूसरी ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजैनेका जिसे सीरम इंस्टीच्यूट ऑफ इंडिया (एस.आई.आई.) के लाइसैंस के अंतर्गत इसका निर्माण किया जा रहा है। हमें गर्व हो सकता है कि कोविशील्ड के नाम के अंतर्गत एक वैक्सीन परीक्षण, विपणन तथा वितरण के लिए भारतीय शोध और सह-विपणन कम्पनी इसके लिए योग्य हुई है। तीसरी मॉडर्ना है। स्वीकृति के लिए इसने भारत में अभी तक अनुमोदन के लिए आवेदन नहीं किया है। 

अनावश्यक विवाद
चौथी बायोटैक की कोवैक्सीन है। हालांकि कम्पनी ने विदेशी शोधकत्र्ताओं और वैज्ञानिकों के काम और ज्ञान पर ध्यान आकॢषत किया हो, लेकिन कोवैक्सीन 100 प्रतिशत भारतीय उत्पाद है। यह भारत के लिए गर्व का क्षण है। 
वैक्सीन का अनुमोदन अनावश्यक विवाद में पड़ा था। डी.सी.जी.आई. तथा सरकार के प्रवक्ता (विशेषकर डा. वी.के. पाल तथा डा. बलराम भार्गव) ने शुरू से ही स्पष्ट कर दिया कि कोवैक्सीन की ई.यू.ए. वितरण के लिए तीसरे चरण के क्लीनिकल ट्रायल तथा नतीजों के लिए थी। विशेषकर प्रभाविकता के नतीजे के तौर पर यह अपने आगे के इस्तेमाल और वितरण को तय करेगी। 

यह सत्य है कि प्रतिष्ठित वैज्ञानिकों, वायरोलॉजिस्ट, माइक्रोबायोलॉजिस्ट तथा डाक्टरों ने इसकी स्वीकृति को देने की तेजी के ऊपर सवाल उठाए हैं जबकि यह अपने तीसरे चरण के क्लीनिकल परीक्षणों में थी। हताश स्थितियों में हताश उपचार की आवश्यकता हो सकती है। भारत को वैक्सीन की आवश्यकता (मात्रा के हिसाब से) इतनी बड़ी है कि न तो एस.आई.आई. की कोविशील्ड न ही निर्यात राष्ट्रव्यापी वितरण की मांग को पूरा कर सकती है। एक संभावित उम्मीदवार (एक जीवन रक्षक) को परीक्षण प्रक्रिया को जल्द से जल्द पूरा करने के लिए और आपातकालीन उपयोग के लिए बैकअप के रूप में एक वैक्सीन तैयार रखने के लिए प्रोत्साहित करना बुद्धिमानी है। मेरा व्यक्तिगत विचार है कि हमें डी.सी.जी.आई. तथा सरकार के लिए चैरीटेबल होना चाहिए। इसका कोई प्रमाण नहीं कि कोवैक्सीन हानिकारक है। अब तक के परीक्षण प्रतिरक्षा और सुरक्षा को लेकर सुरक्षित हैं।

प्रभावीकारिता पर कोई प्रतिकूल रिपोर्ट प्राप्त नहीं हुई है। हमें सामूहिक तौर पर उम्मीद करनी चाहिए कि जनवरी के अंत तक कोवैक्सीन तीसरे चरण के नैदानिक परीक्षणों को पूरा कर लेगी और मार्च तक परिणामों का मूल्यांकन किया जाएगा। इसके बाद हम दो वैक्सीनों के साथ रोल आऊट को तेज कर सकते हैं। हम विकासशील देशों को उचित मात्रा में निर्यात कर सकते हैं और उन देशों के बीच एक जगह हासिल कर सकते हैं। मुझे संदेह था कि एस.आई.आई. और बायोटैक के बीच व्यापार का एक रंग है। कृष्णा एला तथा अदार पूनावाला दोनों ने ही कुछ ही दिनों में एक साथ सहयोग तथा कार्य करने के लिए वायदा किया है।-पी. चिदम्बरम 

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