देश को दिशा दिखा गए दीनदयाल उपाध्याय

Edited By ,Updated: 25 Sep, 2022 06:23 AM

deendayal upadhyay showed the direction to the country

भारत की भूमि पर समय-समय पर ऐसे महामानव का अवतरण होता रहा है, जो स्वयं के लिए नहीं, बल्कि राष्ट्र और समाज के लिए ही जीता और मरता है।

भारत की भूमि पर समय-समय पर ऐसे महामानव का अवतरण होता रहा है, जो स्वयं के लिए नहीं, बल्कि राष्ट्र और समाज के लिए ही जीता और मरता है। उसका जीवन आने वाली पीढिय़ों के लिए आदर्श होता है, उसका चिंतन समाज के लिए मार्ग होता है और उसका कर्म देश को दिशा देने वाला होता है। ऐसे ही महामानव थे पंडित दीनदयाल उपाध्याय। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद देश को आवश्यकता थी अपनी एक ऐसी मौलिक विचारधारा की, जिसमें देश के अंतिम व्यक्ति की ङ्क्षचता करते हुए राजनीति को सेवा का साधन बनाया जा सके।

देश के गौरव की रक्षा करते हुए इसे संपन्न और समृद्ध बनाने के लिए एक ङ्क्षचतन की। भारत माता की उर्वर धरती ने पंडित दीनदयाल उपाध्याय जैसे महान सपूत को जन्म देकर एक नई दिशा दिखाने वाले को खड़ा कर दिया। अपने आदर्शों एवं विचारों के कारण भारत के लोगों के दिलो-दिमाग में स्थान बनाने वाले और एकात्म मानववाद की विचारधारा देने वाले जनसंघ के संस्थापकों में शामिल पंडित दीनदयाल उपाध्याय राजनीति के पथ प्रदर्शक, महान ङ्क्षचतक, सफल संपादक, यशस्वी लेखक और भारत माता के सच्चे सेवक के रूप में स्मरणीय रहेंगे।

25 सितम्बर 1916 उत्तर प्रदेश के मथुरा जिला के चंद्रभान में एक मध्यम वर्गीय परिवार में जन्म लेने वाले दीनदयाल उपाध्याय जी का बचपन विपत्तियों में बीता। संघर्ष ही साथी बना रहा और साहस संबल। जब उनकी आयु मात्र अढ़ाई साल की थी, तब उनके जीवन से पिता का साया उठ गया, 8 साल के हुए तो माता चल बसी। यानी पूरी तरह अनाथ हो गए। इसके बाद उनका पालन-पोषण उनके नाना के यहां होने लगा, लेकिन दुर्भाग्यवश 10 वर्ष की आयु में उनके नाना का भी देहांत हो गया। अब अल्पायु में ही इनके ऊपर छोटे भाई को संभालने की भी जिम्मेदारी। कोई भी आदमी होता तो इन विपत्तियों के सामने हार मान लेता,लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और आगे बढ़ते रहे।

1951 में डा.श्यामाप्रसाद मुखर्जी द्वारा स्थापित भारतीय जनसंघ में पहले महामंत्री बनाए गए। 1967 में जनसंघ के अध्यक्ष बने, लेकिन महज 44 दिनों तक ही कार्य कर पाए, जो देश के लिए दुखद रहा। उनकी प्रतिभा, सांगठनिक शक्ति और कार्यक्षमता को देखकर डा.श्यामा प्रसाद मुखर्जी को कहना पड़ा कि यदि मुझे ऐसे दो दीनदयाल मिल जाएं तो मैं देश का राजनीतिक मानचित्र बदल दूंगा। राष्ट्र निर्माण व जनसेवा में उनकी तल्लीनता के कारण उनका कोई व्यक्तिगत जीवन नहीं रहा। उनके पास जो कुछ भी था, वह समाज और राष्ट्र के लिए था। उनके विचारों और त्याग की भावना ने उन्हें अन्य लोगों से अलग सिद्ध कर दिया।

दीनदयाल उपाध्याय जनसंघ के राष्ट्रजीवन दर्शन के निर्माता माने जाते हैं। उनका उद्देश्य स्वतंत्रता की पुनर्रचना के प्रयासों के लिए विशुद्ध भारतीय तत्व-दृष्टि प्रदान करना था। उन्होंने भारत की सनातन विचारधारा को युगानुकूल रूप में प्रस्तुत करते हुए एकात्म मानववाद की विचारधारा दी। उनका विचार था कि आर्थिक विकास का मुख्य उद्देश्य सामान्य मानव का सुख होना चाहिए। उनका कहना था कि ‘भारत में रहने वाला, इसके प्रति ममत्व की भावना रखने वाला मानव समूह एक जन हैं। उनकी जीवन प्रणाली, कला, साहित्य, दर्शन सब भारतीय संस्कृति है। इसलिए भारतीय राष्ट्रवाद का आधार यह संस्कृति है। इस संस्कृति में निष्ठा रहे तभी भारत एकात्म रहेगा।

किसी भी व्यक्ति या समाज के गुणात्मक उत्थान के लिए आॢथक और सामाजिक पक्ष ही नहीं उसका सर्वांगीण विकास अनिवार्यता है। वर्तमान में नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में चल रही केंद्र सरकार एकात्म मानववाद को केंद्र में रखते हुए गरीब से गरीब व्यक्ति के उत्थान एवं विकास के संकल्प के साथ समाज के कमजोर और गरीब वर्ग के उत्थान के लिए कार्य कर रही है। गत 8 वर्षों से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में चल रही सरकार ने गरीब-कल्याण के अपने लक्ष्य से पंडित दीनदयाल उपाध्याय के एकात्म मानववाद के दर्शन और अंत्योदय की विचारधारा को साकार कर  दिखाया है। ‘सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास और सबका प्रयास, के लिए केंद्र सरकार लगातार काम कर रही है।-तरुण चुघ (राष्ट्रीय मंत्री, भारतीय जनता पार्टी)

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