दिल्ली दंगे भाजपा की विकास यात्रा पर ‘प्रश्रचिन्ह’

Edited By ,Updated: 05 Mar, 2020 04:31 AM

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भारत की राजनीति में जनसंघ का जन्म एक ऐतिहासिक घटना थी। 31 अक्तूबर 1951 को जनसंघ की स्थापना का कारण दो विचारधाराओं का संघर्ष था। एक विचारधारा थी राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन और पटेल की, दूसरी विचारधारा थी बंटवारे की त्रासदी में नई इमारतें बनाने की।...

भारत की राजनीति में जनसंघ का जन्म एक ऐतिहासिक घटना थी। 31 अक्तूबर 1951 को जनसंघ की स्थापना का कारण दो विचारधाराओं का संघर्ष था। एक विचारधारा थी राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन और पटेल की, दूसरी विचारधारा थी बंटवारे की त्रासदी में नई इमारतें बनाने की। पहली विचारधारा के मुख्य बिन्दू थे भारतीयता, राष्ट्रीयता और हिन्दुत्व, दूसरी विचारधारा थी भारत के आधुनिकीकरण की। एक गांधीवाद की, दूसरी विकासवाद की। टकराव में श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने जवाहर लाल नेहरू को त्यागते हुए जनसंघ जैसी एक नई राजनीतिक पार्टी को भारत के धरातल पर खड़ा कर दिया। 

जनसंघ की जन्म कुंडली तो संघर्षों भरी थी। जनसंघ का अर्थ ही था जनान्दोलन करते जाना। कभी आंदोलन छेड़ा जम्मू-कश्मीर में कि एक देश में दो विधान, दो निशान, नहीं चलेंगे, नहीं चलेंगे। चाहे इसके लिए श्यामा प्रसाद मुखर्जी, जनसंघ के संस्थापक को अपना बलिदान ही देना पड़ा, कभी रण-कच्छ के विरोध का आंदोलन, कभी महापंजाब की लड़ाई, कभी गोवा की आजादी का सत्याग्रह, कभी तिब्बत की आजादी की लड़ाई, कभी घुसपैठ का विरोध, कभी गौहत्या बंद करवाने के लिए उग्र प्रदर्शन, कभी राम मंदिर के लिए जनजागरण, कभी आजाद भारत में मुस्लिम तुष्टीकरण का विरोध तो कभी 1975 में आपातकाल के विरुद्ध-लोगों के मौलिक अधिकारों की लड़ाई, जनसंघ रुका नहीं, थका नहीं, मुका नहीं। निरंतर जनसंघ के भाग्य में आंदोलनरत रहना ही लिखा था। 

यही वह जनसंघ का धरातल था जिस पर आज की भारतीय जनता पार्टी खड़ी है। यह भी सच है कि भारतीय जनता पार्टी के इस स्वर्ण काल को लाने में जनसंघ की सोच रखने वालों की चार पीढिय़ां गर्क हो गईं। थोड़ा 1951 से 2020 के बीच के इतिहास के पन्ने मैं अपने कार्यकत्र्ताओं के जहन में लाना चाहता हूं। भारतीय जनता पार्टी की इस राजनीतिक ‘विकास यात्रा’ को जितना मुझे याद है पाठकों के सामने रखना चाहूंगा। 1952 के पहले लोकसभा चुनाव में जनसंघ ने 94 उम्मीदवार मैदान में उतारे, जीते तीन, वोट मिले 3.1 प्रतिशत, 1957 में 130 सीटें लड़ीं, चार जीतीं, वोट पड़े 6 प्रतिशत, 1962 में 196 उम्मीदवारों में से 14 जीते, वोट प्रतिशत 6 प्रतिशत ही रहा। 1967 में जनसंघ ने उम्मीदवार खड़े किए 251, सीटें मिलीं 35, वोट मिले 6.4 प्रतिशत, 1971 के चुनाव में 251 सीटें लड़ीं, प्राप्त हुईं 22, वोट पड़े 7.4 प्रतिशत, 1977 में लोकदल के चुनाव चिन्ह ‘हलधर’ पर चुनाव लड़ा 405 सीटों पर, जीतीं 295, वोट पड़े 41.3 प्रतिशत, जनता पार्टी के इस राज में जनसंघ के जीते 93 उम्मीदवार, 1980 में पुन: जनता पार्टी के साथ मिल कर 432 सीटों पर चुनाव लड़ा, सीटें मिलीं 31, वोट पड़े 19 प्रतिशत, 6 अप्रैल 1980 में भारतीय जनता पार्टी जनसंघ की राख पर खड़ी हुई। 1984 में भाजपा ने लोकसभा की 223 सीटों पर हाथ आजमाया, सीटें प्राप्त हुईं सिर्फ दो, वोट मिले 7.7 प्रतिशत, 1989 में 226 सीटों पर चुनाव लड़ा, सीटें मिलीं 86, वोट प्राप्त हुए 11.5 प्रतिशत। 2014 में भाजपा 282 सीटें हथिया ले गई और वोट मिले 31 प्रतिशत, 2019 के चुनाव में 303 सीटें और 58 प्रतिशत वोट लेकर भारतीय जनता पार्टी दोबारा नरेन्द्र भाई मोदी को प्रधानमंत्री पद देकर बेफिक्र हो गई। विकास यात्रा अभी जारी है। 

भारतीय जनता पार्टी या जनसंघ या जनता पार्टी की इस विकास यात्रा में साथी थे कार्यकत्र्ता और नेता समय-समय पर बदलते रहे। 1952 से 53 तक अध्यक्ष बने जनसंघ के संस्थापक डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी, 1954 में पंडित मौलि चन्द्र शर्मा, 1954 में ही जनसंघ के अध्यक्ष बने बापू साहिब सोहनी, 1955 में प्रेमनाथ डोगरा, 1956 से 1958 तक जनसंघ के अध्यक्ष रहे प्रो. देव प्रसाद घोष, 1960 में अध्यक्ष का ताज सजा श्री पीताम्बर दास के सिर पर, 1962 में जनसंघ के अध्यक्ष बनने का सौभाग्य मिला आचार्य रघुवीर जी को। कुछ समय बाद फिर जनसंघ का सूर्य पूर्ण रूप से उदय होने लगा और प्रधान बने पंडित दीन दयाल उपाध्याय। 2014 से 2019-20 तक चाणक्य अमित शाह पार्टी प्रधान बनाए गए। नरेन्द्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी भारतीय जनता पार्टी को एक के बाद एक जीत दिलाती चली गई। देखें 2020 में नए अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा इस पार्टी की विकास यात्रा को कहां तक ले जाते हैं? 

भूलना नहीं होगा कि भारतीय जनता पार्टी की इस विकास यात्रा में यदि किसी ने अद्भुत भूमिका निभाई है तो वह हैं दो युगपुरुष अटल बिहारी वाजपेयी और लाल कृष्ण अडवानी। सत्ता सुख यानी वाजपेयी को तीन बार प्रधानमंत्री बनने का मिला तो उसके पीछे सहयोग था लाल कृष्ण अडवानी का। 16 मई 1996 को वाजपेयी जी 13 दिन के प्रधानमंत्री हुए, 1998 में 13 महीने प्रधानमंत्री रहे और 1999 से 2004 के पांच वर्ष उन्होंने पूरी योग्यता से प्रधानमंत्री पद को संवारा। 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में अमित शाह और नरेन्द्र मोदी की जोड़ी ने भारतीय जनता पार्टी की इस विकास यात्रा को सुनहरी अक्षरों में लिख दिया। इसे भारतीय जनता पार्टी अपना ‘स्वर्ण काल’ भी कह सकती है। 

परंतु इस ‘स्वर्ण काल’ को 24-25 फरवरी के दिल्ली के साम्प्रदायिक दंगों ने ग्रहण लगा दिया। अमरीकी राष्ट्रपति के भव्य प्रोग्राम को इन दंगों ने झकझोर कर रख दिया। अब भारतीय जनता पार्टी की यह विकास यात्रा तभी फलीभूत होगी यदि दिल्ली के साम्प्रदायिक दंगों के दोषियों को मोदी सरकार न्यायालय के कटघरे में खड़ा करे। दूध का दूध और पानी का पानी करके जनता को दिखाए। देश जान ले कि जिन राजनीतिक दलों का भविष्य नरेन्द्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी ने धूल धूसरित कर दिया है वे मौकों की तलाश में हैं। वे नष्ट नहीं हुए, कन्दराओं में छुपे हैं। उनमें हिन्दू भी हैं, मुसलमान भी हैं। नरेन्द्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी इन छिपे तत्वों को उजागर करे। दिल्ली के सौहार्द और शांति को बहाल करे। 

विकास यात्रा जो 1951 में भाजपा की चली उस पर प्रश्रचिन्ह लग गया। इस प्रश्रचिन्ह का उत्तर तभी मिलेगा जब इन दंगों के दोषी कटघरे में खड़े होंगे। मोदी और अमित शाह विकास यात्रा के रथ के घोड़ों को तनिक ऐंठन तो लगाएं। अपने कार्यकत्र्ताओं के बीच की दूरी नेता दूर करें। यदि कार्यकत्र्ता संगठन की आंख-कान हैं तो ऐसी स्थिति में उनकी सुनें। कार्यकत्र्ता से प्रभावी संवाद स्थापित करें। कार्यकत्र्ता प्रशासन और समाज के अराजक तत्वों को पहचानता है। तनिक उन्हें सरकारी प्रमाण पत्र तो दें। दंगों की असलियत से धूल हटाएं और भाजपा की इस विकास यात्रा को चालू रखें। लोकतंत्र की मर्यादा के लिए विरोधी दलों के विचारों को भी सम्मान दिया जाए। यही तो लोकतंत्र का शृंगार है।-मा. मोहन लाल (पूर्व परिवहन मंत्री, पंजाब)

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