Edited By Pardeep,Updated: 27 Oct, 2018 03:38 AM
हमारी गंदी राजनीति में किसी भी दुखद घटना की जिम्मेदारी लेने से इंकार करना एक मानदंड बन गया है। फिलहाल मेरे मन में अमृतसर में दशहरा के दौरान हुई दुर्घटना है जब जालंधर-अमृतसर डीजल मल्टीपल यूनिट (डेमू) ट्रेन रेल पटरियों पर खड़े लोगों के ऊपर से गुजर गई,...
हमारी गंदी राजनीति में किसी भी दुखद घटना की जिम्मेदारी लेने से इंकार करना एक मानदंड बन गया है। फिलहाल मेरे मन में अमृतसर में दशहरा के दौरान हुई दुर्घटना है जब जालंधर-अमृतसर डीजल मल्टीपल यूनिट (डेमू) ट्रेन रेल पटरियों पर खड़े लोगों के ऊपर से गुजर गई, जो 2 किलोमीटर दूर जलते हुए रावण के पुतले के वीडियो बना रहे थे। कम से कम 61 व्यक्तियों ने अपनी कीमती जानें गंवा दीं। बड़ी संख्या में लोगों को गम्भीर चोटें आईं।
पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेन्द्र सिंह की सरकार ने इस दुर्घटना की मैजिस्ट्रेटी जांच का आदेश दिया है। हालांकि जो चीज बेचैन करती हैं, वह है अमृतसर दुर्घटना के लिए हो रही गंदी राजनीति। हम जानते हैं कि यह एक बेकार की कार्रवाई है जो संबंधित अधिकारियों द्वारा लोगों के जीवन तथा सुरक्षा के प्रति बरती गई बड़ी लापरवाही के पीछे वास्तविक मुद्दों से ध्यान भटकाने के लिए सार्वजनिक रूप से खेली जा रही है। पवित्र दशहरा की रात को झकझोर देने वाली दुर्घटना की शृंखलाबद्ध घटनाएं दर्शाती हैं कि कैसे हर कोई राजनीति कर रहा है, जिनमें राजनेता भी शामिल हैं, जो सीधे अथवा परोक्ष रूप से उस कार्यक्रम से संबंधित थे।
यहां तक कि ड्राइवर द्वारा भीड़ की ओर से पथराव करने के दावे भी प्रत्यक्षदर्शियों की बातों तथा सोशल मीडिया पर दुर्घटना के वीडियोज के मद्देनजर सही नहीं लगते। फिर भी रेलवे सुरक्षा आयुक्त द्वारा इस घटना की जांच की सम्भावना नहीं है, जो इस वर्ष की सबसे बड़ी रेल दुर्घटना है। अमृतसर नगर निगम का कहना है कि उसने मात्र दो गेटों वाले छोटे तिकोने मैदान में समारोह आयोजित करने की आयोजकों को अनुमति नहीं दी थी। इसका एक गेट मुख्य रास्ते की तरफ खुलता है जबकि दूसरा रेल लाइनों की तरफ। इसके एक कोने में खुला मंच है जिसे दशहरा समारोह के लिए दोगुना बड़ा कर दिया गया था। हर तरह से यह एक जोखिमपूर्ण घालमेल था। सम्भवत: हाईप्रोफाइल आयोजकों ने जिला प्रशासन अथवा नगर निगम से लिखित आदेश लेने की कभी परवाह ही नहीं की।
धोबी घाट मैदान एक छोटा स्थान है जिसके दो तरफ घर बने हैं, ऐसे भीड़भाड़ वाले कार्यक्रम के लिए यह सही जगह नहीं थी। यहां तक कि एक दीवार रेल पटरियों को मैदान से अलग करती थी। इस जगह पर लगभग 200 लोग समा सकते थे। इस कारण 5000 लोगों की भीड़ के पास दीवार फांद कर रेल पटरियों पर खड़े होने के अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं था। इस चीज को स्थानीय प्रशासन तथा पुलिस कर्मियों द्वारा सहज बोध से भांपा जा सकता था मगर आम लोगों की सुरक्षा की परवाह कौन करता है?
एक रिपोर्ट के अनुसार अमृतसर में आयोजित 29 दशहरा कार्यक्रमों में से 25, जिनमें धोबी घाट वाला भी शामिल है, के पास शहर के नगर निगम की ओर से जरूरी क्लीयरैंस नहीं थी। फिर भी स्थानीय अधिकारी तथा पुलिस एक-दूसरे पर उंगलियां उठा रहे हैं कि कैसे जरूरी क्लीयरैंस के बिना ऐसे कार्यक्रमों को आयोजित करने की अनुमति दी गई। यह स्थानीय स्तर पर प्रशासन की घटिया कारगुजारी बारे बहुत कुछ कहता है। जब रावण के पुतले को आग लगाई गई तब भीड़ रेल पटरियों पर जमा होनी शुरू हो गई। भारी शोर तथा सैल्फियों के बीच किसी ने भी उस समय आ रही ट्रेन की परवाह नहीं की। कम से कम आयोजक बाड़ लगाकर या मानव शृंखला बनाकर अथवा पुलिस तैनात करके सुनिश्चित करते कि रेल पटरियों पर बड़ी भीड़ एकत्र न हो।
यहां पर रेल प्रशासन की भूमिका बारे क्या कहेंगे? उनके सामने रेल पटरियों पर एकत्र भीड़ का स्पष्ट चित्र था। यह संचार तथा तुरंत कार्रवाई का एक साधारण-सा मामला था। रेल गार्ड ने कार्रवाई करते हुए उच्चाधिकारियों को सूचित क्यों नहीं किया? यहां एक बार फिर सामने आता है बीमार नौकरशाही सिस्टम जो कभी भी मानवतावादी कारकों से निर्देशित नहीं होता। यह अवश्य कहा जाना चाहिए कि आधुनिक तकनीक के इस दौर में भी हमारी रेलवे के पास पटरियों पर कोई निगरानी प्रणाली नहीं है। यदि हम यह मान भी लें कि दुर्घटना के लिए रेलवे जिम्मेदार नहीं है, जैसा कि रेल राज्य मंत्री मनोज सिन्हा दावा करते हैं, तब भी मानवीय तथा नैतिक जिम्मेदारी का क्या होगा? हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि रेलवे प्रतिदिन करोड़ों लोगों को अपने डिब्बों में यात्रा करवाती है और जो लोग पटरियों पर कब्जा करते हैं, वे अनधिकृत प्रवेशकत्र्ता हैं और उन्हें वहां से हटाया जाना चाहिए न कि दशहरा समारोह देखने वाले लोगों को ट्रेन के नीचे काट डालना।
यह समय है कि रेल प्रशासन ट्रेन आप्रेशन्स के सुरक्षा पहलुओं पर ध्यान दे। 6 वर्ष पूर्व अनिल काकोदकर की अध्यक्षता में एक समिति ने रेलवे के सुरक्षा संबंधी पहलुओं पर नजरसानी की थी मगर उनकी रिपोर्ट अवश्य रेल अधिष्ठान के किसी कोने में धूल फांक रही होगी। रेल मंत्री पीयूष गोयल को रेलवे की वैबसाइट पर प्रधानमंत्री मोदी की आदमकद फोटो प्रदर्शित करने की बजाय विभिन्न सुझावों पर आवश्यक रूप से काम करने की जरूरत है। नागरिकों की सुरक्षा के मामलों में चाटुकारिता काम नहीं आती।-हरि जयसिंह