Edited By ,Updated: 07 Nov, 2025 04:53 AM

लोकपाल और उनकी 7 सदस्यीय टीम ने अपने इस्तेमाल के लिए 7 बी.एम.डब्ल्यू. कारों की मांग की है। इस मांग से आम जनता में काफी खलबली मच गई। हालांकि इस मांग को लेकर हैरान होने की कोई बात नहीं थी। यही तो सभी नियुक्तियों की अपेक्षा होती है और ऐसा क्यों हंै, इस...
लोकपाल और उनकी 7 सदस्यीय टीम ने अपने इस्तेमाल के लिए 7 बी.एम.डब्ल्यू. कारों की मांग की है। इस मांग से आम जनता में काफी खलबली मच गई। हालांकि इस मांग को लेकर हैरान होने की कोई बात नहीं थी। यही तो सभी नियुक्तियों की अपेक्षा होती है और ऐसा क्यों है, इस पर इस लेख में आगे चर्चा की जाएगी। आलोचकों को सबसे बड़ा सवाल यह पूछना चाहिए कि वे खुद लोकपाल से क्या हासिल करने की उम्मीद करते थे? बेचारे अन्ना हजारे जो धर्मयुद्ध के लिए संघर्षरत हो गए थे उम्मीद करते थे कि अगर लोकपाल भ्रष्टाचारियों पर शिकंजा कसता रहा तो भ्रष्टाचार पूरी तरह से खत्म नहीं तो कम से कम कम जरूर हो जाएगा!
जिन लोगों ने अन्ना को इस तरह के समाधान की मांग करने के लिए प्रेरित किया जैसे अरविंद केजरीवाल और किरण बेदी, वे खुद नौकरशाह थे जिन्हें बेहतर जानकारी होनी चाहिए थी। हजारे और वह आम आदमी जिसकी उन्हें परवाह है, चाहते हैं कि छोटे-मोटे भ्रष्टाचार से लड़ा जाए, जिसकी उन्हें रोजाना जरूरत होती है। कोई भी लोकपाल ऐसा नहीं कर पाएगा! मेरे मित्र और एन.जी.ओ. पब्लिक कंसर्न फॉर गवर्नैंस ट्रस्ट (पी.सी.जी.टी.) में मेरे सहयोगी, रंगा राव, आई.बी. (इंटैलीजैंस ब्यूरो) में पुराने जानकार हैं। भ्रष्टाचार से लडऩा उनके निजी एजैंडे का एक अहम हिस्सा है। जब मैंने उनसे कहा कि अगर लोकपाल की मांग मान ली गई तो निराशा ही हाथ लगेगी तो उन्होंने अविश्वास से मेरी तरफ देखा। अब वे मानते हैं कि मैं सही था। लोकपाल के रूप में एक संभावित धर्मयोद्धा का चयन पहली बड़ी बाधा है। एक न्यायाधीश, जिन्हें मैं जानता था इस पद के लिए बिल्कुल उपयुक्त थे। बॉम्बे उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति चंद्रशेखर धर्माधिकारी जो मेरे सेवाकाल में इस पीठ की शोभा बढ़ा चुके थे, ऐसे ही एक धर्मयोद्धा थे। जब मैं रोमानिया में 4 साल बिताने के बाद मुंबई लौटा तो उस नेक न्यायाधीश ने मुझे फोन किया और अपने आवास पर मिलने के लिए आमंत्रित किया, मैं गया।
वह वरिष्ठ स्तर के भ्रष्ट पुलिस अधिकारियों और उच्च न्यायालय के भ्रष्ट न्यायाधीशों का सीधा सामना करना चाहते थे ताकि आपराधिक न्याय प्रणाली कम से कम लोगों को ज्यादा स्वीकार्य हो सके। उन्होंने सुझाव दिया कि मैं हर अडिय़ल आई.पी.एस. अधिकारी को फोन करूं और उनसे अपनी क्षमता के अनुसार काम करने का अनुरोध करूं। वह भी अपनी ओर से उनके साथ यही रास्ता अपनाएंगे! मैंने जवाब दिया कि मैं अपने कई पूर्व सहयोगियों के बीच पहले से ही अलोकप्रिय हूं और मैं नहीं चाहता कि वे सिर्फ मेरी सराहना में सिर हिलाना बंद कर दें।
लेकिन न्यायमूर्ति धर्माधिकारी जल्दी हार मानने वाले नहीं थे।
उन्होंने सिटी सिविल एवं सत्र न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश अग्नियार (जो बाद में उच्च न्यायालय के न्यायाधीश बने) से संपर्क किया और मुंबई के सभी सत्र न्यायाधीशों की एक बैठक आयोजित करने में सफल रहे, जिसे न्यायमूर्ति धर्माधिकारी और मैंने संबोधित किया। धर्मयोद्धा जैसा साहस न होने के कारण, मैं पुलिस प्रमुख से आई.पी.एस. अधिकारियों की ऐसी ही एक बैठक आयोजित करने के लिए कहने की हिम्मत नहीं जुटा पाया! आज दिल्ली में केंद्र सरकार के मुखिया के रूप में 2 ऐसे नेता हैं जो अपनी अदम्य शक्ति का परिचय देते हैं। दोनों गुजरात से हैं, जैसे महात्मा गांधी और सरदार वल्लभभाई पटेल, दोनों राष्ट्रीय नेता हैं जिन्हें सभी अच्छे भारतीय आदर्श मानते हैं। नरेंद्र मोदी और अमित शाह उच्च पदों के लिए सभी चयन करते हैं जैसा कि उन्होंने हाल ही में केंद्रीय चुनाव आयुक्तों के साथ किया था। विपक्ष के नेता को 2-1 से हराया गया। सत्तारूढ़ दल के दूसरे मंत्री के स्थान पर मुख्य न्यायाधीश को तटस्थ व्यक्ति के रूप में नियुक्त करने का एक समझदारी भरा सुझाव भी सिरे से खारिज कर दिया गया।
न्याय और निष्पक्षता की परवाह करने वालों में यह प्रबल भावना है कि प्रवर्तन अधिकारी केवल आलोचकों और विरोधियों को ही निशाना बना रहे हैं। उच्च पदों के लिए चुने गए अधिकारी और सेवानिवृत्ति के बाद नियुक्त किए जाने वाले न्यायाधीश उन लोगों में से चुने जाएंगे जो वैचारिक विभाजन को नहीं बिगाड़ेंगे,भले ही वे व्यक्तिगत रूप से किसी विचारधारा को न मानते हों। राजनीतिक इच्छाशक्ति के अभाव में, एक धर्म योद्धा को छोड़ कर कोई भी लोकपाल अन्ना हजारे के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन से जगी उम्मीदों को पूरा नहीं कर पाएगा। लोकपाल की व्यवस्था में 7 पदों का सृजन बिना किसी ठोस पारस्परिक लाभ के केवल राजकोष पर बोझ होगा । यदि राजनीति दिल से चाहती थी कि वह भ्रष्टाचार के उस खतरे से लड़े जिसने अन्ना के नेतृत्व वाले भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलनकारियों को परेशान किया था तो उसे आर.टी.आई. (सूचना का अधिकार) प्रशासन और आर.टी.एस. (सेवा का अधिकार) को मजबूत करना चाहिए था जो महाराष्ट्र सरकार द्वारा बनाया गया एक अधिनियम है जो अधिकारियों को आम नागरिकों से जुड़े मामलों का समयबद्ध तरीके से निपटारा करने के लिए बाध्य करता है।
हैरानी की बात है कि जिन अधिकारियों को निर्धारित समय-सीमा में लंबित फाइलों का निपटारा करना होता है, उन्हें भी यह नहीं पता कि ऐसा अधिनियम पिछले कुछ वर्षों से कानून की किताब में है। इस अधिनियम में दंडात्मक धाराओं को स्पष्ट रूप से पारिभाषित नहीं किया गया है जैसा कि आर.टी.आई. अधिनियम में निॢदष्ट किया गया है। लेकिन शीर्ष स्तर के सभी पद भरे जा चुके हैं! न्यायालयों में लंबित मुकद्दमों के ढेर को निपटाने के लिए न्यायाधीशों को पुन: नियुक्त करने का वर्तमान में एक बड़ा अवसर है। सेवानिवृत्त होने वाले न्यायाधीशों के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के आधार पर उन्हें 75 वर्ष की आयु तक 5 वर्षों के लिए पुन: नियुक्त किया जा सकता है और उन्हें लंबित मुकद्दमों को निपटाने का स्पष्ट आदेश दिया जाए। लोग इस खर्च पर कोई आपत्ति नहीं करेंगे क्योंकि न्यायालयों में लंबित मुकद्दमों को कम करना कानून के शासन को बनाए रखने में प्राथमिक चिंता का विषय है। हमारा ध्यान आपराधिक मामलों पर होना चाहिए क्योंकि विचाराधीन कैदी वर्षों से जेलों में सड़ रहे हैं। यह न्यायशास्त्र के सभी सिद्धांतों के विरुद्ध है।-जूलियो रिबैरो(पूर्व डी.जी.पी. पंजाब व पूर्व आई.पी.एस. अधिकारी)