‘हिन्दुत्व’ पर कांग्रेस-भाजपा में चुनावी जंग

Edited By ,Updated: 03 Apr, 2019 03:20 AM

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दो चुनावी राजनीतिक घटनाओं ने केन्द्रीय चुनावी वातावरण को उथल-पुथल कर दिया। पहली चुनावी राजनीतिक घटना नरेन्द्र मोदी द्वारा हिन्दुत्व के प्रश्न पर कांग्रेस की घेराबंदी करना, कांग्रेस को हिन्दुओं के अपमान की दोषी के रूप में खड़ा करना और दूसरी चुनावी...

दो चुनावी राजनीतिक घटनाओं ने केन्द्रीय चुनावी वातावरण को उथल-पुथल कर दिया। पहली चुनावी राजनीतिक घटना नरेन्द्र मोदी द्वारा हिन्दुत्व के प्रश्न पर कांग्रेस की घेराबंदी करना, कांग्रेस को हिन्दुओं के अपमान की दोषी के रूप में खड़ा करना और दूसरी चुनावी राजनीतिक घटना राहुल गांधी से जुड़ी हुई है। राहुल गांधी अमेठी के अलावा वायनाड से भी चुनाव लड़ेंगे। वायनाड केरल के अंदर एक अल्पसंख्यक बहुलता वाली लोकसभा सीट है। राहुल गांधी ने अल्पसंख्यक बहुल लोकसभा सीट अपने लिए क्यों चुनी, इस पर सिर्फ  भाजपा ही नहीं बल्कि सी.पी.एम. जैसी वामपंथी पार्टी भी नाराज है। भाजपा तो इसे मुस्लिम तुष्टीकरण की परिधि में लाने की पुरजोर कोशिश कर रही है। 

क्यों पड़ी हिन्दुत्व की जरूरत
केन्द्रीय चुनाव में ‘हिन्दुत्व ‘ कैसे चुनावी प्रश्न नहीं बनता? चुनावी प्रश्न तो बनना ही था, यह अलग बात है कि विलम्ब क्यों हुआ। इतनी देर से आखिर ‘हिन्दुत्व ‘ का प्रश्न कैसे सामने आया, इसके पीछे अर्थ और अनर्थ क्या है? आखिर नरेन्द्र मोदी को ‘हिन्दुत्व’ के प्रश्न को फिर से उठाने की जरूरत ही क्यों पड़ी, कांग्रेस के खिलाफ हिन्दुत्व के प्रश्न पर चुनावी आग लगाने की जरूरत क्यों पड़ी? क्या यह माना जाए कि नरेन्द्र मोदी और भाजपा को इस चुनाव में अनहोनी का डर सता रहा है, जीत की सारी योजनाओं पर नरेन्द्र मोदी और भाजपा को विश्वास नहीं रहा? 

नरेन्द्र मोदी की केन्द्रीय सत्ता तो विकास के प्रश्न पर सक्रिय और गतिमान थी। 5 सालों तक नरेन्द्र मोदी विकास पर फोकस करते रहे हैं। अपने 5 साल के शासन के दौरान उन्होंने विकास को ही अपना मूल मंत्र माना था और उनका नारा ‘सबका साथ और सबका विकास’ था? जब नरेन्द्र मोदी ने हिन्दुत्व के प्रश्न पर उसी तरह से उफान पैदा करने का कार्य किया है जो वे गुजरात के मुख्यमंत्री के तौर पर करते थे और 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान भी करते थे तब यह स्वीकार कर लिया जाना चाहिए कि भाजपा और नरेन्द्र मोदी हिन्दुत्व की चुनावी राजनीतिक शक्ति से मुक्त होना खतरे की घंटी समझते हैं। 

राममंदिर आंदोलन के बाद देश की राजनीति में हिन्दुत्व का उभार और उफान पर आया। 1989 के लोकसभा चुनाव के बाद देश की चुनावी राजनीति में हिन्दुत्व एक प्रमुख प्रश्न बन कर खड़ा हो गया। इसके साथ ही साथ यह भाजपा के सत्ता हासिल करने की सबसे आसान राजनीतिक प्रक्रिया भी बन गया। इसलिए नरेन्द्र मोदी ने जो हिन्दुत्व का प्रश्न खड़ा किया है, हिन्दुत्व को लेकर कांग्रेस की जो उन्होंने घेराबंदी की है वह अपेक्षित ही था। अभी भी हिन्दुत्व के प्रश्न में इतनी शक्ति है कि वह सत्ता का खेल बिगाड़ सकती है, भाजपा और नरेन्द्र मोदी की किस्मत चमका सकती है और  कांग्रेस की चुनावी संभावनाओं को कमजोर और शक्तिहीन कर सकती है। 

कांग्रेस पर भारी पड़ा ‘हिन्दू आतंकवाद’
मोदी के इस चुनावी महातीर से कांग्रेस कितनी हलकान होगी, यह भी एक प्रश्न है। कांग्रेस ने नरेन्द्र मोदी के आरोपों को खारिज कर दिया है। कांग्रेस के प्रवक्ता मनीष कुमार ने कहा कि उनकी पिछली सरकार ने कभी भी हिन्दुत्व को न तो अपमानित करने का काम किया है और न ही हिन्दू आतंकवाद की थ्यौरी गढ़ी थी। कांग्रेस की इस बात को कैसे स्वीकार किया जा सकता है। तथ्य तो कांग्रेस के अस्वीकार को स्वीकार नहीं करते थे। तथ्य क्या है, तथ्य कांग्रेस के खिलाफ  कितने पुख्ता हैं, कितने  नुक्सान पहुंचाने वाले हैं? तथ्य तो यही है कि कांग्रेस ने हिन्दू आतंकवाद शब्द को गढ़ा था। 

मनमोहन सिंह की पिछली दस साल की सरकार में हिन्दू आतंकवाद पर जबरदस्त फोकस था, कांग्रेस को यह खुशफहमी थी कि हिन्दू आतंकवाद का प्रश्न खड़ा कर केन्द्रीय सत्ता का स्थायीकरण संभव है, इस प्रश्न की राजनीतिक शक्ति से वर्षों-वर्षों तक केन्द्रीय सत्ता में बैठा जा सकता है और हिन्दुत्व को लेकर सत्ता हासिल करने वाली भाजपा को केन्द्रीय सत्ता से दूर किया जा सकता है। कांग्रेस ने यह भी नहीं सोचा-समझा कि इस प्रश्न का कोई नकारात्मक या फिर आत्मघाती प्रभाव भी उत्पन्न होगा? 

स्थितियां यह थीं कि हिन्दुत्व के खिलाफ आग उगलने वाले नेता कांग्रेस के अंदर बड़े नेता माने जाते थे, हिन्दुत्व के खिलाफ आग उगलने वाले कांग्रेसी नेताओं को मीडिया और कांग्रेस की राजनीति में बड़ी जगह मिलती थी। जब मीडिया में और कांग्रेस के अंदर में बड़ी जगह मिलने की गारंटी होगी तो फिर हिन्दुत्व के खिलाफ आग उगलने की राजनीतिक प्रक्रिया कैसे नहीं उफान लेगी। कांग्रेस के अंदर कोई एक नेता नहीं बल्कि दर्जनों ऐसे नेता थे जो अपनी बयानबाजी में हिन्दुत्व का अपमान करते थे और हिन्दू आतंकवाद को स्थापित करने में दिन-रात परिश्रम करते रहते थे। ऐसे कांग्रेसी नेताओं में सबसे पहला नाम पी. चिदम्बरम का था , सबसे पहले उन्होंने ही हिन्दू आतंकवाद शब्द का प्रयोग किया था। उस समय पी. चिदम्बरम गृहमंत्री थे। 

उसके बाद उस समय के गृह मंत्री सुशील शिंदे ने जयपुर में हुई कांग्रेस की कार्यकारिणी बैठक में सरेआम हिन्दू आतंकवाद शब्द का प्रयोग किया था, सिर्फ  इतना ही नहीं बल्कि सुशील शिंदे ने कहा था कि हिन्दू आतंकवाद से देश को खतरा है, हिन्दू आतंकवाद को जमींदोज किया जाएगा। दिग्विजय सिंह तो बार-बार हिन्दू आतंकवाद शब्द का प्रयोग करते थे और हिन्दुओं के खिलाफ आग उगलने वाले मुस्लिम नेताओं की पीठ थपथपाते थे। दिग्विजय सिंह ने तो बटला हाऊस एनकाऊंटर को भी फर्जी बता दिया था और कहा था कि हिन्दुओं को खुश करने के लिए मुसलमानों का उत्पीडऩ जारी है। कपिल सिब्बल, मनीष कुमार, मणिशंकर अय्यर जैसे कांग्रेसी नेता हिन्दुओं को अपमानित करने का कोई अवसर नहीं छोड़ते थे। 

रणनीतिकारों ने पहुंचाया नुक्सान
कांग्रेस के रणनीतिकारों ने राहुल गांधी की छवि को धूमिल करने और उन्हें हिन्दुओं के खिलाफ  करने के लिए रणनीति को अंजाम देने के कार्य किए थे। राहुल गांधी को यह समझा दिया गया था कि हिन्दुओं के खिलाफ  जितना आग उगलेंगे उतना ही कांग्रेस को लाभ होगा, कांग्रेस को उतनी ही राजनीतिक शक्ति मिलेगी। उस समय तक राहुल गांधी की अपनी स्वतंत्र सोच नहीं थी। राहुल गांधी अपने रणनीतिकारों और कांग्रेस के हिन्दू विरोधी नेताओं की सोच और परिधि में कैद रहते थे। ऐसी कांग्रेसी राजनीति परिधि में राहुल गांधी पर हिन्दुत्व को लेकर नकरात्मक मानसिकताएं कैसे नहीं उत्पन्न होंती? 

स्वाभाविक तौर पर राहुल गांधी के अंदर हिन्दुत्व को लेकर नकारात्मक सोच-समझ विकसित हो गई। इसका दुष्परिणाम यह हो गया कि राहुल गांधी भी हिन्दुत्व विरोधी कांग्रेसी टीम का हिस्सा हो गए। राहुल गांधी ने अमरीकी कूटनीतिज्ञ से कह डाला कि भारत को मुस्लिम आतंकवाद से नहीं बल्कि हिन्दू आतंकवाद से खतरा है, भारत को हिन्दुओं से खतरा है। अमरीकी कूटनीतिज्ञ ने अपनी पुस्तक में राहुल गांधी की हिन्दू विरोधी सोच का पर्दाफाश किया है। सबसे बड़ी बात यह है कि कांग्रेस की अपनी रिपोर्ट ही इस प्रश्न की सच्चाई को प्रमाणित करती है। 2014 में कांग्रेस ने अपनी हार पर एक कमेटी बनाई थी। उस कमेटी के मुखिया ने अपनी रिपोर्ट में खुलासा किया था कि हिन्दू विरोधी छवि के कारण कांग्रेस की पराजय हुई है और कांग्रेस के बयानबाज नेताओं ने कांग्रेस से हिन्दुओं को दूर कर दिया था, कांग्रेस की छवि एक मुस्लिम परस्त पार्टी की बनी थी। 

अगर कांग्रेस यह नकारती है और यह कहती है कि उसने हिन्दू आतंकवाद शब्द नहीं गढ़े थे और न ही हिन्दुत्व को अपमानित किया था तो फिर कांग्रेस को कुछ प्रश्नों का जवाब देना ही होगा? पहला प्रश्न यह है कि फिर कांग्रेस की अपनी रिपोर्ट में ही हिन्दू आतंकवाद शब्द से राजनीति की बात कैसे सामने आई, अगर कांग्रेस की अपनी ही रिपोर्ट सही नहीं थी तो फिर अपनी एंथनी रिपोर्ट को अब तक अस्वीकार क्यों नहीं किया गया? राहुल गांधी ने अमरीकी कूटनीतिज्ञ से देश को हिन्दुओं से खतरे की बात क्यों कही थी? 

गृहमंत्री के तौर पर पी. चिदम्बरम और सुशील शिंदे ने संसद में हिन्दू आतंकवाद शब्द का प्रयोग क्यों किया था? साध्वी प्रज्ञा ठाकुर का उत्पीडऩ क्यों हुआ था, समझौता एक्सप्रैस में हिन्दू नेताओं के अपराध क्यों नहीं साबित हुए? राहुल गांधी अपने आप को शिव का भक्त और जनेऊधारी हिन्दू क्यों कहते हैं। राहुल गांधी और अब प्रियंका गांधी मंदिर-मंदिर क्यों घूम रहे हैं, भगवा और पीला, उजला टीका क्यों लगा रहे हैं? अगर कांग्रेस ने हिन्दुओं से माफी मांग ली होती तो फिर उसे फायदा ही होता। निश्चित तौर पर हिन्दुत्व में अभी चुनावी शक्ति बची हुई है। हिन्दुत्व एक बड़ा प्रश्न है। पर नरेन्द्र मोदी भी तो हिन्दुत्व के प्रश्न पर ईमानदार नहीं रहे हैं।-विष्णु गुप्त

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