2018-19 में बढ़ सकता है वित्तीय घाटा

Edited By Punjab Kesari,Updated: 11 Mar, 2018 02:02 AM

financial losses may increase in 2018 19

जब आंकड़े संतुलन बनाने के लिए अंतत: दाईं या बाईं ओर रख दिए गए हैं तो सरकार की बजटीय टिप्पणी किसी गृहिणी के घरेलू बजट से अधिक अलग दिखाई नहीं देती। यदि हम शून्यों को नजरअंदाज कर दें तो यह एक अमीर परिवार का वार्षिक घरेलू बजट हो सकता है।  2018-19 के...

जब आंकड़े संतुलन बनाने के लिए अंतत: दाईं या बाईं ओर रख दिए गए हैं तो सरकार की बजटीय टिप्पणी किसी गृहिणी के घरेलू बजट से अधिक अलग दिखाई नहीं देती। यदि हम शून्यों को नजरअंदाज कर दें तो यह एक अमीर परिवार का वार्षिक घरेलू बजट हो सकता है। 2018-19 के लिए भारत के वार्षिक बजट के आंकड़ों पर नजर डालें तो कुल प्राप्तियां 18,17,937 करोड़ रुपए जबकि कुल खर्चा 24,42,213 करोड़ रुपए है। घाटा 6,24,276 करोड़ रुपए का है। 

गृहिणी के मामले में कोई अन्य विकल्प नहीं, बल्कि धन उधार लेना ही होता है, यदि वह कर्ज लेने के काबिल हो और देने वाला कर्ज देने का इच्छुक। सरकार के मामले में विकल्प वही है, कर्ज लेना, मगर शर्तें अलग हैं। सरकार को कर्ज लेना ही होता है चाहे वह इसके काबिल हो अथवा नहीं। कुछ सरकारें अपनी क्षमता से अधिक कर्ज ले लेती हैं और आने वाली सरकारों के लिए भारी कर्जा छोड़ जाती है। एक सरकार इस आशा में कर्ज लेती है कि यह अस्थायी होगा और अतिरिक्त कर्ज एक वर्ष के भीतर अतिरिक्त प्राप्तियां तलाश कर उतार दिया जाएगा। 

आंकड़ों के पीछे 
2018-19 के बजट के अनुसार केन्द्र सरकार 6,24,276 करोड़ का कर्ज लेगी। इसे प्रसिद्ध वित्तीय घाटे के तौर पर जाना जाता है। सभी आंकड़ों के मामले में असल कहानी मात्र संख्या पर देखने से नजर नहीं आती। इसके लिए संख्या के पीछे जाना पड़ता है और यही मैं इस लेख में बताने का प्रयास कर रहा हूं। पहले हम प्राप्तियों पर नजर डालते हैं। अधिकतर प्राप्तियां कर राजस्व (केन्द्र सरकार के लिए शुद्ध) से बनती हैं। प्रमुख कर तथा कहां से उनकी आशा की जा सकती है, इसे हम यूं बता सकते हैं कि (सभी संख्याएं करोड़ रुपयों में) कार्पोरेशन टैक्स- 6,21,000 करोड़, आयकर-5,29,000, कस्टम्स-1,12,500, एक्साइज-2,59,600, जी.एस.टी.-7,43,900, सी.जी. एस.टी.-6,03,900, आई.जी.एस.टी.-50,000, सैस-90,000। इनमें वस्तु एवं सेवा कर (जी.एस.टी.) एक हाथी की तरह है।

जी.एस.टी. 1 जुलाई 2017 को लागू किया गया है। कंट्रोलर आफ गवर्नमैंट अकाऊंट्स (सी.जी.ए.) द्वारा प्रकाशित आंकड़ों के अनुसार अगस्त 2017 से जनवरी 2018 के बीच सी.जी.एस.टी. संग्रह (आई.जी. एस.टी. सैटलमैंट सहित) औसत: 22,129 करोड़ रुपए प्रतिमाह था। बजट में आशा की गई है कि औसत: संग्रह फरवरी तथा मार्च 2018 में 44,314 करोड़ तक बढ़ जाएगा और फिर 2018-19 में प्रति माह 50,000 करोड़ रुपए तक हो जाएगा। एक उदार अनुमान के अनुसार सी.जी.एस.टी. संग्रह प्रतिमाह 40,000 करोड़ रुपए तक बढ़ जाएगा और वाॢषक संग्रह 4,80,000 करोड़ रुपए, तो इसमें 1,23,900 करोड़ रुपए (सकल) तथा 71,862 करोड़ रुपए (केन्द्र के शुद्ध 58 प्रतिशत के लिए) की कमी रहेगी। 

प्राप्तियों के मामले में एक अन्य प्रश्र चिन्ह है विनिवेश प्राप्तियां। 2017-18 में बजट अनुमान 72,500 करोड़ रुपए का था, मगर संशोधित अनुमान 1 लाख करोड़ रुपए है। इसे ओ.एन.जी.सी. को एच.पी.सी.एल. में सरकार की हिस्सेदारी खरीद कर 36,915 करोड़ रुपए प्राप्त कर हासिल किया गया था। क्या 2018-19 में इसे फिर दोहराया जा सकेगा? यदि यह संभव नहीं है तो विनिवेश प्राप्तियों का बजट अनुमान एक चुनावी वर्ष में 80,000 करोड़ रुपए (2017-18 के बजट अनुमान से अधिक) होगा, जिसे प्राप्त करना कठिन दिखाई देता है। इसलिए इस मामले में भी एक छेद दिखाई देता है, लगभग 20,000 करोड़ रुपए का। 

कम करके बताए गए खर्च 
खर्चों के पहलू को देखते हैं। यहां दो अंतरालों में छेद हैं। पहला है खाद्य सबसिडी का प्रावधान। 2016-17 में यह लगभग 1,10,000 करोड़ रुपए के लिए था और 2017-18 में अनुमान लगभग 1,40,000 करोड़ रुपए का है। राजग सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य (एम.एस.पी.) देने में काफी कंजूस थी। यह देखते हुए कि यह एक चुनावी वर्ष है, सरकार ने ‘लागत+50 प्रतिशत’ की दर से एम.एस.पी. देने की बड़ी घोषणा की। यह अभी भी स्पष्ट नहीं है कि ‘लागत’ को कैसे परिभाषित किया जाएगा। मगर यदि सरकार को एम.एस.पी. में बड़ी वृद्धि की घोषणा करनी थी तो 1,70,000 करोड़ रुपए का प्रावधान समुचित नहीं होगा। 

दूसरे, राष्ट्रीय स्वास्थ्य सुरक्षा योजना को कतई धन उपलब्ध नहीं करवाया गया। यदि यह एक जुमला है (बजट 2016-17 में घोषणा के अनुसार) तो चिन्ता की कोई बात नहीं। मगर यदि सरकार 2018-19 में योजना को लागू कर देती है और लाभार्थियों के लिए बीमा खरीदती है तो इसे धन खर्च करना होगा। इसे लेकर अनुमान 11,000 करोड़ रुपए से लेकर वास्तविक 1 लाख करोड़ रुपए के बीच झूलते हैं। इस आंकड़े को खर्चों के पहलू में शामिल किया जाना होगा। इन दो मदों के अन्तर्गत मेरा अनुमान यह है कि सरकार को अतिरिक्त 70,000 करोड़ फूड सबसिडी तथा 50,000 करोड़ स्वास्थ्य बीमा पर खर्च करने की जरूरत होगी।

कितना बड़ा है छेद
मैंने कच्चे तेल की कीमतों में वृद्धि को इसमें नहीं जोड़ा है। ऐसा दिखाई देता है कि बजट में यह अनुमान लगाया गया है कि कच्चे तेल की कीमतें प्रति बैरल 70 डालर से नीचे बनी रहेंगी। यदि यह संख्या ऊपर जाती है तो एक गंभीर समस्या पैदा हो जाएगी। यदि हम ये संख्याएं स्टेटमैंट आफ अकाऊंट के दोनों पहलुओं में जोड़ते हैं तो हमारे सामने प्राप्तियों के मामले में 92,000 करोड़ रुपए की कमी होगी और खर्चों के मामलों में अतिरिक्त 70,000 करोड़ रुपए की वृद्धि। इसका अर्थ यह हुआ कि वित्तीय घाटे में 1,62,000 करोड़ रुपए अतिरिक्त जुड़ जाएंगे। इसलिए 2018-19 में वित्तीय घाटा 6,24,276 करोड़ रुपए अथवा जी.डी.पी. के 3.3 प्रतिशत तक ही रुकने की संभावना नहीं है। यह 7,86,276 करोड़ रुपए अथवा जी.डी.पी. के 4.15 प्रतिशत तक बढ़ सकता है। बाजार इस पर नजर रखे हुए है। आपको भी रखनी चाहिए क्योंकि उधार लेने का मतलब है आप पर कर्ज।-पी. चिदम्बरम

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