सभी साइबर अपराधों में दर्ज होनी चाहिए एफ.आई.आर.

Edited By Updated: 28 Oct, 2025 04:28 AM

fir should be registered in all cyber crimes

डिजिटल अरैस्ट और दूसरे कई तरह के साइबर अपराधों से पूरा देश त्रस्त है। हरियाण में अंबाला के वृद्ध दंपति के डिजिटल अरैस्ट और ठगी मामले में स्वत:संज्ञान लेते हुए सुप्रीम कोर्ट के जज सूर्यकांत की बैंच ने सभी राज्यों से जवाब मांगते हुए इन मामलों की जांच...

डिजिटल अरैस्ट और दूसरे कई तरह के साइबर अपराधों से पूरा देश त्रस्त है। हरियाण में अंबाला के वृद्ध दंपति के डिजिटल अरैस्ट और ठगी मामले में स्वत:संज्ञान लेते हुए सुप्रीम कोर्ट के जज सूर्यकांत की बैंच ने सभी राज्यों से जवाब मांगते हुए इन मामलों की जांच सी.बी.आई. से कराने का आदेश दिया है। साइबर अपराधों को रोकने में सरकार की विफलता से करोड़ों लोगों की गाढ़ी  कमाई लुट रही है। ‘डिजिटल अरैस्ट’ के कई मामलों की सी.बी.आई. और ई.डी. पहले से ही जांच कर रही है। पुराने मामलों में केंद्रीय एजैंसियों की विफलता से साफ  है कि साइबर अपराध के संगठित तंत्र को तोडऩे के लिए केंद्र को राज्यों के साथ डबल इंजन का पावर लगाने की जरूरत है। संविधान और कानूनी पहलुओं के अनुसार केंद्र सरकार को समस्या की जड़ में प्रहार करना चाहिए।

राज्यों का विषय : लोकसभा में दिसंबर 2024 को गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय के जवाब के अनुसार साइबर अपराधों की जांच, रोकथाम और अभियोग से जुड़े विषय राज्य सरकारों के अधीन आते हैं जबकि आई.टी. और संचार जैसे विषय संविधान की सातवीं सूची के अनुसार केंद्र सरकार के अधीन आते हैं। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने इंडियन साइबर क्राइम को-ऑॢडनेशन सैंटर (आई.सी.) बनाया है, जिसकी हैल्पलाइन 1930 पर शिकायत दर्ज कराई जा सकती है।  राज्यों की पुलिस जिन मामलों में एफ .आई.आर. दर्ज करती है, उनका सालाना ब्यौरा केंद्र सरकार के अधीन नैशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एन.सी.आर.बी.) जारी करता है। एन.सी.आर.बी. के आंकड़ों के अनुसार साल 2023 में राज्यों की पुलिस ने साइबर अपराध के कुल 86420 मामले दर्ज किए थे जबकि केंद्रीय गृह मंत्रालय के पास दर्ज साइबर अपराध की शिकायतों पर निगाह डाली जाए तो साल 2022 में 10.29 लाख, 2023 में 15.96 लाख और 2024 में 22.68 लाख साइबर अपराधों की शिकायतें दर्ज हुई थीं। 

 ‘ऑप्रेशन सिंदूर’ के दौरान विदेशों से 10 करोड़ से ज्यादा साइबर हमले हुए थे। नैशनल स्टॉक एक्सचेंज में भी 17 करोड़ से ज्यादा साइबर हमले होने की खबरें हैं। साल 2021 में जारी आई.टी. इंटरमीडिएरी नियमों के अनुसार मेटा, गूगल और अमेजन जैसी कम्पनियों को मासिक कार्रवाई रिपोर्ट जारी करनी पड़ती है। अगर सिर्फ  व्हाट्सएप के आंकड़ों को देखा जाए तो पिछले 4 सालों में व्हाट्सएप ने 28.79 करोड़ से ज्यादा मामलों में आपत्तिजनक कंटैंट या अकाऊंट को बैन किया है लेकिन साइबर अपराध से जुड़े इस आपराधिक तंत्र के खिलाफ  केंद्र सरकार की एजैंसियां और राज्यों की पुलिस कोई कारवाई नहीं कर रही।

पुलिस अधिकारों में कटौती : साइबर अपराधों का मकडज़ाल कई राज्यों में फैलने के साथ इसके तार कम्बोडिया और म्यांमार जैसे देशों से भी जुड़े हैं लेकिन सरकारी आदेशों से लगता है कि साइबर अपराधों से जुड़े मामलों में अफसरशाही में ऊहापोह और भ्रम की स्थिति है। केंद्र सरकार के मंत्रालयों में एलोकेशन ऑफ बिजनैस रूल्स के अनुसार काम का बंटवारा होता है। आदेश के अनुसार साइबर अपराध से जुड़े विषय केंद्रीय गृह मंत्रालय के अधीन आते हैं लेकिन इस विषय से जुड़े कानून और आदेश आई.टी. मंत्रालय जारी करता है।

सोशल मीडिया और विदेशी टैक कम्पनियों के खिलाफ  कार्रवाई का अधिकार भी आई.टी. मंत्रालय के पास ही है। बोगस बैंक खाते, फर्जी सिम कार्ड, फर्जी सोशल मीडिया खाते और विदेशी मामलों से जुड़े विषयों पर रिजर्व बैंक और केंद्र सरकार के अनेक विभागों को कानून बनाने और एक्शन लेने का अधिकार है, इसलिए संविधान की सातवीं अनुसूची में स्पष्ट विधिक और प्रशासनिक शक्तियों के बावजूद राज्यों की पुलिस साइबर अपराधों से निपटने में पस्त दिख रही है। आई.टी. मंत्रालय ने इंटरमीडिएरी रूल्स में बदलाव का नोटिफिकेशन जारी किया है। उसके अनुसार अब केंद्र सरकार के संयुक्त सचिव या राज्यों में डी.आई.जी. या ऊपर के अधिकारी ही इंटरनैट से सामग्री हटाने का आदेश जारी कर सकते हैं। पुराने एलोकेशन के अनुसार न्यूज से जुड़े मामलों के लिए केंद्रीय सूचना और प्रसारण मंत्रालय को अधिकार दिए गए थे, इसलिए नए नियमों की वैधता के साथ उन पर प्रभावी कारवाई के तंत्र पर सवाल उठ सकते हैं। 

इन नियमों से गैर-कानूनी सामग्री की सटीक पहचान के साथ जवाबदेही बढऩे का दावा किया जा रहा है लेकिन हकीकत में इन नियमों को एलन मस्क की कम्पनी एक्स (पूर्व में ट्विटर)के साथ कर्नाटक हाईकोर्ट में चली लंबी लड़ाई के साथ जोड़कर देखा जा रहा है। ट्रम्प के दबावों के बीच सरकार के इस कदम से अमरीकी टैक कम्पनियों को भारत के कानूनों के अनुपालन से बड़ी राहत मिल सकती है।

राज्यों की पुलिस के अधिकारों में कटौती करने वाले इस आदेश से दो बड़े सवाल उठते हैं : पहला साइबर अपराध से जुड़ा विषय संवैधानिक तौर पर राज्यों के अधीन है तो इस आदेश को जारी करने से पहले राज्यों से परामर्श क्यों नहीं किया गया? दूसरा अन्य अपराधों के मामलों में थानेदार को एफ.आई.आर. समेत जांच के सभी अधिकार हासिल हैं तो फिर डिजिटल अपराधों के मामलों में टैक कम्पनियों को विशेष सहूलियत और सुरक्षा क्यों दी जा रही है?-विराग गुप्ता(एडवोकेट, सुप्रीम कोर्ट)
 

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