‘पांच तत्व और नौ रस’ जीवन का आधार और मूलमंत्र है

Edited By ,Updated: 10 Apr, 2021 03:11 AM

five elements and nine juices  is the basis and core of life

नौ रसों को समझने के लिए यह जानना आवश्यक है कि सृष्टि का निर्माण करते समय किन चीजों का प्रयोग हुआ ताकि बिना किसी रुकावट के जीवन का चक्का चलता रहे और जितना भी समय किसी भी जीव को इस संसार में विचरण करने के लिए

नौ रसों को समझने के लिए यह जानना आवश्यक है कि सृष्टि का निर्माण करते समय किन चीजों का प्रयोग हुआ ताकि बिना किसी रुकावट के जीवन का चक्का चलता रहे और जितना भी समय किसी भी जीव को इस संसार में विचरण करने के लिए मिला, वह व्यतीत होकर जब समय समाप्त होने की घोषणा सुनाई दे तो निर्विकार भाव से इस संसार से अलविदा कह दिया जाए। 

पांच तत्व से बुनी चदरिया : हमारा यह ब्रह्मांड और शरीर पांच तत्वों अर्थात पृथ्वी, आकाश, जल, वायु और अग्रि पर आधारित माना गया है। इन्हीं से दुनिया चलती है और आत्मा के जरिए विभिन्न प्राणियों या योनियों के रूप में जीव संसार में घूमता फिरता रहता है। मानव देह के अतिरिक्त धरती, आसमान और नदियों तथा समुद्रों में अपनी प्रति और उपयोगिता के अनुसार सभी प्रकार के जीव जंतु, पक्षी आदि सृष्टि के आरंभ से कुदरत के साथ तालमेल बिठाते हुए जिंदगी को जीने लायक बनाते आए हैं। वसुधैव कुटुंबकम् की नींव भी यही है। 

यह तो हुई भौतिक या शारीरिक गतिविधियों को संचालित करने की प्रक्रिया लेकिन शरीर में एक और तत्व है जो किसी दूसरे जीव को उपलब्ध नहीं है, वह है हमारा मन या दिमाग जिससे हमारी  मानसिक गतिविधियों का संचालन होता है। हम क्या सोचते हैं, क्या और कैसे करते हैं, यह सब पहले हमारे मस्तिष्क में जन्म लेता है और हमारे शरीर के विभिन्न अंग उसी के अनुरूप आचरण करने लगते हैं। सबसे पहले पृथ्वी को ही लें जिसे ठोस माना गया है। 

विधाता ने हमारे शरीर की बनावट भी उसी की भांति ठोस या मजबूत रखी ताकि पृथ्वी की तरह वह सभी प्रकार के प्रहार और तनाव सब कुछ झेल सके। इसके बाद जल को जीवन का स्रोत अर्थात जीवनदायी माना गया है और इसीलिए इसे संभाल कर रखने तथा इसका संरक्षण करने पर जोर दिया जाता है। वायु हमारे जागरूक रहने और हमेशा चलते रहने का संकेत है। 

हवा अदृश्य होकर भी जीवन में खुशियां और मन में उल्लास भरने का काम करती है। ठंडक और ताजगी का एहसास होता है और सांस के जरिए शरीर को शक्ति मिलती रहती है। अग्रि को ऊर्जा और प्रकाश का स्रोत माना गया है जिसका असर सीधा हमारी बुद्धि पर पड़ता है। हमारे शरीर को जितनी ऊर्जा मिलती रहेगी वह उतना ही क्रियाशील और प्रकाश से भरा रहता है। आकाश तो है ही सब से ऊपर और सभी तत्वों को एक छत्र की तरह छाया प्रदान करता है। जब भी शरीर विचलित होता है और मन में कोई कुंठा होती है तो आकाश को ही अपना दु:ख दर्द सुनाने का मन करता है। 

दिन में नीला आसमान और रात में चांद सितारों से भरा यह तत्व हमें सुकून देने के साथ-साथ हालात में बदलाव होने का भरोसा भी देता है। कभी रात का अंधकार और फिर दिन का उजाला यही कहता है कि परिवर्तन ही संसार का प्रमुख नियम है और इससे कोई अछूता नहीं इसलिए बदलाव को स्वीकार करते रहने में ही जीवन का सुख है।

पांच तत्वों से बने शरीर का निर्माण करते समय निर्माता ने आंख, कान, नाक, जीभ और त्वचा के रूप में हमें इंद्रियों का एेसा अनमोल खजाना दिया जिससे हम सभी तरह की अनुभूति प्राप्त करते हैं और इनके जरिए स्वाद तथा गंध का अनुभव करते हैं। इसके भी अनेक रूप हैं जैसे कि कड़वा, खट्टा, मीठा, नमकीन, तीखा और कसैला। इनसे ही शास्त्रों में बताए गए नौ रसों का निर्माण होता है। ये रस जीवन में संतुलन बनाए रखने का काम करते हैं। गड़बड़ तब ही होती है जब अपने मन के वश में आकर इन रसों का बैलेंस बिगड़ जाता है। 

रस बिना जीवन नहीं : शृंगार को रसराज कहा गया है। यह मनुष्य की कोमल भावनाआें को सहलाने का काम करता है, उसे प्रेम करने के लिए प्रेरित करता है और सौंदर्य को सराहने की योग्यता प्रदान करता है। शृंगार रस जहां सुंदरता का प्रतीक है, वहां यदि इसमें क्रोध का समावेश हो जाए तो यह वीभत्स बन जाता है और हमारे मन में नफरत पैदा करने का काम करता है। जब नफरत बढ़ जाती है तो फिर मनुष्य के अंदर जो भाव पैदा होता है वह रौद्र रूप धारण कर लेता है जिसके वश में हो जाने से अच्छे बुरे का भेद करना कठिन हो जाता है। 

रौद्र रस के समानांतर वीर रस को रखा गया है जो इस बात का प्रतीक है कि अगर हमें अपनी शक्ति अर्थात वीरता का प्रदर्शन करना है तो उसे किसी अन्य के साथ हो रहे अन्याय और अत्याचार के खिलाफ दिखाया जाए। यह रस बताता है कि वीर होने का अर्थ यह नहीं कि किसी को अपने अधीन किया जाए बल्कि यह है कि यदि कोई दबा, कुचला, दीन हीन है तो उसकी रक्षा इस प्रकार की जाए कि जो निर्मम, कठोर और अत्याचारी है वह अपने आतंक से भयभीत न कर सके।

इन चार प्रमुख रसों, शृंगार, वीर, रौद्र और वीभत्स के अतिरिक्त अन्य पांच रस भी जीवन में सही मात्रा में होने जरूरी हैं। उदाहरण के लिए करुणा का अर्थ यह नहीं कि व्यक्ति हरदम रोता रहे, उदासी को अपने से अलग होने ही न दे और हमेशा दूसरों की दया का पात्र होने में ही अपना भला समझे। 

पुस्तक पढ़ते, नाटक देखते, संगीत सुनते हुए हमारे मन में जो भाव आते हैं, वही अक्सर हम बाहर प्रकट करते हैं। यही भाव किसी भी कृति के अच्छे लगने या खराब महसूस करने के कारण हैं। निष्कर्ष यही है कि जो मन को भाए वही सुहाता है और जो अच्छा न लगे उसे त्याग देने से ही मन को शांति मिलती  है। यही शांत रस जीवन का अंतिम सत्य है।-पूरन चंद सरीन
 

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