बोलने व मीडिया की ‘स्वतंत्रता’ जीवंत लोकतंत्र के सर्वाधिक महत्वपूर्ण तत्व

Edited By ,Updated: 10 Oct, 2019 12:52 AM

freedom of speech and media  is the most important element of vibrant democracy

बोलने की स्वतंत्रता हमारे सर्वाधिक महत्वपूर्ण मूलभूत अधिकारों में से एक है और हम उचित रूप से इस पर गर्व करते हैं। स्वतंत्र मीडिया इस मूलभूत अधिकार का एक स्वाभाविक परिणाम है, फिर भी प्रैस की स्वतंत्रता के लिए कोई अलग प्रावधान नहीं है। यहां तक कि...

बोलने की स्वतंत्रता हमारे सर्वाधिक महत्वपूर्ण मूलभूत अधिकारों में से एक है और हम उचित रूप से इस पर गर्व करते हैं। स्वतंत्र मीडिया इस मूलभूत अधिकार का एक स्वाभाविक परिणाम है, फिर भी प्रैस की स्वतंत्रता के लिए कोई अलग प्रावधान नहीं है। यहां तक कि अमरीका के अपने हालिया दौरे के दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी हमारी लोकतांत्रिक परम्पराओं बारे बात की, जहां उन्होंने राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के साथ मंच सांझा करते हुए उस देश में बसे भारतीयों को सम्बोधित किया।

मीडिया व बोलने की स्वतंत्रता पर हमला
दुर्भाग्य से मीडिया पर हमले करने तथा बोलने की स्वतंत्रता पर रोक लगाने के प्रयासों का रुझान बढ़ रहा है। कुछ हालिया घटनाक्रम इस तथ्य की ओर इशारा करते हैं। यह सर्वविदित है कि मीडिया का एक बड़ा वर्ग सरकार के आगे झुक गया है, कुछ हद तक सरकार के अपनी एजैंसियों के उनके पीछे लगाने के डर से और कुछ हद तक अपने खुद के लाभकारी हितों के कारण, यद्यपि हिन्द समाचार पत्र समूह जैसे कुछ सम्मानीय अपवाद भी हैं।

और फिर मीडिया के एक वर्ग के खिलाफ कार्रवाई करने की मांग की जा रही है तथा इसका बहिष्कार करने का आह्वान किया जा रहा है। सोशल मीडिया में ऐसे बहुत से वीडियो हर समय चलते रहते हैं जिनमें तीसरे दर्जे के नेता मीडिया का बहिष्कार करने की बात करते हैं। जहां यह बेतुका लगता है, वहीं ऐसे बहुत से ‘शिक्षित’ समर्थक हैं जो ऐसे नेताओं की वाहवाही करते हैं तथा ऐसी लोकतंत्र विरोधी डींगों में अपनी आवाज शामिल कर देते हैं। ऐसा लगता है कि उन्हें यह समझ नहीं आता कि वे मीडिया पर सैंसरशिप की मांग कर रहे हैं, जिसका आपातकाल के दौरान भाजपा तथा अन्य दलों ने जोरदार विरोध किया था।

सम्भवत: मीडिया के लिए यह तिरस्कार शीर्ष से फैलाया जाता है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जब से कार्यभार सम्भाला है, तब से एक भी प्रैस कांफ्रैंस को सम्बोधित न करके एक तरह का रिकार्ड बनाया है। उन्होंने मीडिया की ओर से किए गए किसी भी प्रश्न का उत्तर नहीं दिया है। हाल ही में अमरीका में अपनी वार्ता के बाद डोनाल्ड ट्रम्प के साथ एक ‘संयुक्त प्रैस कांफ्रैंस’ में मोदी ने कोई भी प्रश्र नहीं लिया जबकि ट्रम्प ने पूछे गए प्रत्येक प्रश्र का उत्तर दिया।

मोदी का इलैक्ट्रॉनिक मीडिया से लगाव
विडम्बना यह है कि उनको अन्यथा मीडिया से अत्यंत लगाव है और राष्ट्रीय इलैक्ट्रॉनिक मीडिया में बने रहने का कोई अवसर नहीं छोड़ते। निश्चित तौर पर वह चुनाव प्रचारों के दौरान उनकी आवाज लोगों तक पहुंचाने में मीडिया द्वारा निभाई गई महत्वपूर्ण भूमिका को नहीं भुला सकते। प्रधानमंत्री होने के नाते उन्हें मीडिया की ओर से आने वाले प्रश्रों का सामना करना चाहिए ताकि वह सरकार का पालतू बनने की बजाय लोकतंत्र के रक्षक के तौर पर अपने कत्र्तव्य को सुनिश्चित कर सकें।

सम्भवत: व्यक्ति की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के बावजूद यह रवैया मजबूती पकड़ता जा रहा है। हाल ही में देशद्रोह के आरोप में 49 प्रमुख शख्सियतों के खिलाफ एफ.आई.आर. दर्ज करना इसका स्पष्ट उदाहरण है। इतिहासकार रामचन्द्र गुहा, अभिनेत्री कोंकणा सेन शर्मा तथा फिल्मकार मणिरत्नम तथा अपर्णा सेन सहित इन सभी लोगों ने पवित्र गाय के नाम पर लिंचिंग की घटनाओं पर चिंता जताने के लिए प्रधानमंत्री को एक खुला खत लिखा था।

यह एक पूर्णतया उचित मांग थी लेकिन बिहार में एक जूनियर मैजिस्ट्रेट ने एक छोटे वकील की शिकायत का संज्ञान लेते हुए देशद्रोह, सार्वजनिक उपद्रव, धार्मिक भावनाओं को चोट पहुंचाने तथा शांतिभंग करने के इरादे से अपमान करने से संबंधित भारतीय दंड संहिता की विभिन्न धाराओं के अंतर्गत एफ.आई.आर. दर्ज करने का आदेश दिया। अब और अधिक शख्सियतों ने एफ.आई.आर. दर्ज करने के खिलाफ विरोध में अपनी आवाज शामिल कर दी है।

सरकार की चुप्पी
इससे भी अधिक अफसोसनाक यह है कि नीतीश सरकार, जो राजग की सहयोगी है तथा केन्द्र सरकार, दोनों ने ही ऐसे मूर्खतापूर्ण कदम के खिलाफ न तो कोई स्टैंड लिया और न ही बोला। यहां तक कि उच्च न्यायपालिका ने भी संबंधित मैजिस्ट्रेट की खिंचाई करने तथा एफ.आई.आर. रद्द करने के लिए इसमें दखल नहीं दिया। ऐसे व्यवहार से इस तरह के संकेत उत्पन्न होते हैं, इसका अनुमान लगाना कठिन नहीं। जहां ब्रिटिश राज की देशद्रोह के कानूनों की विरासत से छुटकारा पाने की जरूरत है, जो एक अलग कालम का विषय है, वहीं सरकार तथा अन्य संबंधित पक्षों को अवश्य इस बात की सराहना करनी चाहिए कि बोलने की स्वतंत्रता का अधिकार तथा स्वतंत्र मीडिया एक जीवंत लोकतंत्र के सर्वाधिक आवश्यक तत्व हैं।
विपिन पब्बी vipinpubby@gmail.com

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