‘गांधी’, यहां कौन-सा गांधी

Edited By ,Updated: 05 Oct, 2022 03:54 AM

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‘‘आप गांधी के बारे में क्या सोचते हैं?’’ एक 25 वर्षीय युवक उपेक्षापूर्वक कहता है, ‘‘आपका तात्पर्य राहुल से है?’’ तो इस पर एक 16 वर्षीय युवक कहता है, ‘‘बिल्कुल नहीं! वह एक हॉट डूड है।’ तो फिर

‘‘आप गांधी के बारे में क्या सोचते हैं?’’ एक 25 वर्षीय युवक उपेक्षापूर्वक कहता है, ‘‘आपका तात्पर्य राहुल से है?’’ तो इस पर एक 16 वर्षीय युवक कहता है, ‘‘बिल्कुल नहीं! वह एक हॉट डूड है।’ तो फिर एक 8 वर्षीय बालक दांत दिखाते हुए कहता है, ‘‘बेवकूफ मैं राहुल की बात नहीं कर रहा हूं बल्कि उस विचित्र वृद्ध व्यक्ति की बात कर रहा हूं जिसके बारे में हमने इतिहास में पढ़ा है और जिसके चलते हमें स्कूल से छुट्टी मिलती है, जिसे हम महात्मा कहते हैं, किंतु उन्होंने किया क्या’’? 

प्रिय देशवासियो, हमारी जैनरेशन-एक्स मोहनदास करमचंद गांधी अर्थात महात्मा गांधी के बारे में क्या सोचती है, जिन्हें हम आदरपूर्वक राष्ट्रपिता कहते हैं। उन्हें इतिहास के कूड़ेदान में दबा दिया गया है और प्रत्येक वर्ष 2 अक्तूबर को उन्हें याद किया जाता है। यह इसी तरह से है जैसे कि उसकी वाॢषक सफाई करनी हो। औपचारिक रूप से उन्हें श्रद्धांजलि देने के लिए राजघाट जाया जाता है, हमारे नेताओं द्वारा उनके प्रिय भजनों को गाया जाता है और यह वचन दिया जाता है कि वे उनका अनुसरण करेंगे। उन्हें श्रद्धांजलि दी जाती है और नेताआें का कार्य पूरा हो जाता है, वे पुन: लोकतंत्र और कानून के शासन के व्यवसाय में लग जाते हैं। 

प्रश्न उठता है क्या हमारे राजनेता ईमानदारी से गांधी जी में विश्वास करते हैं, उनके मूल्यों को मानते हैं? भूल जाइए। हर कोई गांधी की भूमि से होने की लोकप्रियता को भुनाना चाहता है और राजनीतिक लाभ के लिए उनकी गांधीगिरी की फसल काटना चाहता है। नि:संदेह गांधी जी ने 75 वर्ष पूर्व जिस चीज का सपना देखा था उसके बाद हमने एक लंबी यात्रा पूरी कर दी है। आज हम केवल उनके बारे में बौद्धिक बातें करते हैं जहां पर उनके आदर्शों को भुला दिया गया है और जिन सिद्धांतों के कारण उन्हें याद किया जाता है, उन्हें गलत समझा गया है। हर कोई उनके दर्शन अर्थात शांति, अहिंसा और सशक्तिकरण के बारे में बढ़-चढ़कर बातें करता है किंतु यह इस आपराधिक राजनीतिक युग में उनके मूल्यों से साम्यता नहीं रखता है जहां पर हिंसा का बोलबाला है। 

अपने चारों आेर देखिए और पता करिए कि हम गांधी जी के भारत के दर्शन से कितने दूर चले गए हैं। कम लोगों को पता होगा कि गांधी जी शासन के वेस्टमिंस्टर मॉडल का विरोध करते थे क्योंकि इसमें शासक और शासित 2 वर्गों की व्यवस्था है। उनका मत था कि ब्रिटेन की संसद एक बांझ औरत के समान है जहां पर वह अंतिम रूप से कुछ नहीं कर सकती है। न ही सांसद अपनी इच्छानुसार कार्य कर सकते हैं, अपितु उन्हें पार्टी के व्हिप का पालन करना होता है जिसके चलते वे रबर की मोहर बन जाते हैं। 

यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि स्वतंत्रता के बाद भारत ने उनकी सलाह पर ध्यान नहीं दिया। वे यह भी चाहते थे कि स्वतंत्रता के बाद कांग्रेस पार्टी का विघटन किया जाए क्योंकि इसमें कुछ चुङ्क्षनदा नेता थे जो अंग्रेजों की तरह देश पर शासन करना चाहते थे। गांधी जी चाहते थे कि कांग्रेस का स्थान लोक सेवा संघ ले। इसका मुख्य कारण यह था कि पार्टी में विकृतियां आने लगी थीं जिसके चलते वह स्वतंत्रता आंदोलन को भुनाएगा जिसमें संपूर्ण देश ने भाग लिया था। आज गांधी जी सही सिद्ध हो रहे हैंं क्योंकि पार्टी आज स्वयं अपना ही कंकाल बन कर रह गई है तथा 543 सदस्यीय लोकसभा में उसके केवल 53 सदस्य हैं। 

दु:खद तथ्य यह है कि आज हमारे नेतागणों के शब्दकोष में दिखावे के लिए भी उनकी विचारधारा, सिद्धांत या नीतियां नहीं दिखाई देती हैं। पहले के नेता विचारधारा की आड़ में अपने इरादों को छुपाते थे किंतु आज इस आड़ को भी हटा दिया गया है। गांधी जी के ‘करो या मरो’ नारे का उत्साह ठंडा पड़ गया है और इसका स्थान शक्ति प्रदर्शन के लिए किराए पर भीड़ जुटाने ने ले लिया है क्योंकि आज जिसकी लाठी उसकी भैंस है और हम आज के इन कागजी शेरों से अपेक्षा भी क्या कर सकते हैं। गांधी जी ने कहा था कि जिस सच्चाई की बात मैं करता हूं वह पर्वतों जैसा पुराना है किंतु वे यह नहीं देख पाए कि उनके पर्वतों को नष्ट किया जा सकता है, सच्चाई को मिटाया जा सकता है और उसका स्थान केवल एक लक्ष्य ले सकता है - गद्दी रखो, पैसा पकड़ो। सत्ता और पैसा किसी भी कीमत पर। देश और उसका लोकतंत्र जाए भाड़ में। 

हाल ही में बिहार, महाराष्ट्र और उससे पूर्व कर्नाटक तथा मध्य प्रदेश में सत्ता परिवर्तन इस बात पर बखूबी प्रकाश डालता है। यह उनके पद को न पकड़े रखने के सिद्धांत का पालन हो रहा है। विडंबना देखिए कि हम उनके सादा जीवन, उच्च विचार, उचित और अनुचित, गलत और सही की भावना तथा मूल्य प्रणाली से कोसों दूर चले गए हैं। सामाजिक, राजनीतिक और नैतिक रूप से एक दिवालिया राष्ट्र की यह स्वाभाविक प्रतिक्रिया है क्योंकि इसमें नि:सहाय जनता मूक दर्शक बनकर रहती है। 

आज गांधी जी की शिक्षाआें को एक ङ्क्षचता बना दिया गया है जो राजनीतिक हवा में बह जाता है और इसका श्रेय हमारे संकीर्ण विचारधारा वाले नेताआें को जाता है। गांधी जी ने कहा था, ‘‘मंत्रियों को साहेब लोगों की तरह नहीं रहना चाहिए या सरकार द्वारा आधिकारिक कार्यों के लिए उपलब्ध सुविधाओं का उपयोग निजी कार्य के लिए नहीं करना चाहिए।’’ 

किंतु सच्चाई इससे परे है। कल के राजा-महाराजा आज के नए महाराजा मंत्री और एम.पी. हैं जो अपने को विजेता मानते हैं। उनकी आज भी जी हुजूर, सामंती सोच है और फिर भी हम अपने देश को लोकतंत्र कहते हैं। आज कुछ लोग अन्य लोगों से अधिक समान के आेरवेलियन सिंड्रोम से ग्रस्त हैं। उनकी पद प्रतिष्ठा का क्रम उनके साथ चलने वाले बंदूकधारी कमांडो, उनके काफिले द्वारा टै्रफिक लाइट को जंप करने और उसके कारण दुर्घटनाएं होने के रूप में देखा जा सकता है। 

गांधी जी ने कहा था कि सिद्धांतों के बिना राजनीति, कार्य के बिना संपत्ति, नैतिकता के बिना व्यवसाय, चरित्र के बिना शिक्षा, चेतना के बिना आनंद, मानवता के बिना विज्ञान और बलिदान के बिना पूजा निरर्थक है। आज हम असत्य के साथ प्रयोग कर रहे हैं।-पूनम आई. कौशिश 
 

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