Edited By ,Updated: 01 Nov, 2025 04:11 AM

मिस्र के शर्म अल शेख में ट्रम्प की शांति योजना का समर्थन करने के लिए सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, कतर, मलेशिया, इंडोनेशिया और पाकिस्तान जैसे मुस्लिम देश इकट्ठे हुए थे। इनमें से किसी ने भी दो साल चले इसराईल-गाजा संघर्ष में हिस्सा नहीं लिया था।
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मिस्र के शर्म अल शेख में ट्रम्प की शांति योजना का समर्थन करने के लिए सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, कतर, मलेशिया, इंडोनेशिया और पाकिस्तान जैसे मुस्लिम देश इकट्ठे हुए थे। इनमें से किसी ने भी दो साल चले इसराईल-गाजा संघर्ष में हिस्सा नहीं लिया था। इस क्षेत्र के वे मुस्लिम देश जो फिलिस्तीनियों के लिए लड़े थे, वे मौजूद नहीं थे। ये देश थे ईरान, लेबनान, ईराक, सीरिया, यमन। दो अन्य देश बहरीन, जहां शिया आबादी ज्यादा है और कुवैत, जहां शिया आबादी अच्छी-खासी है,शामिल नहीं थे। इन शेखी इलाकों में शियाओं पर लगाम कसी गई है। संक्षेप में, जिन देशों ने हमास और फिलिस्तीनी आंदोलन को सैन्य और राजनीतिक समर्थन दिया, वे सभी शिया थे और शर्म अल शेख में मौजूद नहीं थे। क्या हमास या फिलिस्तीनी ऐसी योजना पर खुशी से उछल पड़ेंगे जिसमें न तो उन्हें और न ही उनके समर्थकों को कोई जगह मिले?
शिया-सुन्नी के बीच की खाई को चौड़ा करना दशकों से पश्चिमी देशों का प्रयास रहा है। मुझे याद है कि स्वर्गीय हेनरी किसिंजर ने सांप्रदायिक विभाजन को पश्चिम एशियाई राजनीति का प्रमुख विषय बताया था, जिसमें फिलिस्तीनी मुद्दा भी शामिल था। ट्रम्प की योजना की पटकथा लिखने वाले का यही दीर्घकालिक दृष्टिकोण था। जब सऊदी अरब के दिवंगत शाह अब्दुल्ला फरवरी 2011 में जर्मनी से स्वास्थ्य लाभ लेकर लौटे तो उन्होंने पाया कि पश्चिम के 2 स्तंभ- मिस्र के होस्नी मुबारक और ट्यूनीशिया के जीन अल-अबिदीन बेन अली, अरब स्प्रिंग की भेंट चढ़ गए थे। शाह अब्दुल्ला ने अपनी जनता पर 136 अरब डॉलर की बारिश की। उन्होंने 2011 में सीरियाई गृहयुद्ध को भड़काने के लिए पर्दे के पीछे से काम किया जो शिया क्षेत्र-सीरिया, हिजबुल्लाह, हमास और अंतत: ईरान को बाधित करने का पहला चरण था।
अगर सऊदी अरब की जनता अरब स्प्रिंग से इतनी उत्तेजित थी कि उसे शांत करने के लिए अरबों डॉलर की बारिश जरूरी थी तो निश्चित रूप से पड़ोस में मुसलमानों के 2 साल लंबे नरसंहार ने सऊदी जनता में और भी ज्यादा उत्तेजना पैदा कर दी होती। क्या अब्राहम समझौते के तहत क्राऊन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान द्वारा इसराईल के साथ रिश्ते बनाने की जल्दबाजी के बारे में लगाई जा रही सारी अटकलें ख्वाहिशों से भरी नहीं थीं? हालांकि हमास वैचारिक रूप से मुस्लिम ब्रदरहुड के संस्थापक हसन अल बन्ना का प्रत्यक्ष वंशज था, फिर भी उसके सुन्नी पूर्वजों को जोर देने के लिए शायद ही कभी रेखांकित किया गया क्योंकि इससे शिया गुट के सिद्धांत को भ्रमित किया जा सकता था।
द टाइम्स ऑफ इसराईल ने यहूदी राज्य की एक बहुत ही नाजुक नस को छुआ है। ‘हमास एक पराजित शक्ति की तरह व्यवहार नहीं कर रहा है, जिससे पूरे गाजा युद्धविराम को खतरा है।’ क्यों? क्योंकि इसराईली जानते हैं कि ट्रम्प की योजना ने उन्हें जीत थमा दी है। इसका मतलब है कि 13 अक्टूबर को इसराईली संसद में आयोजित तमाशे को इसराईली जीत का अवसर बनाने के लिए काफी सावधानी बरती गई थी। तीन अलग-अलग ताकतों को एक साथ लाया गया था। इन्हीं तीनों ने मिलकर दो साल तक इतिहास के सबसे बड़े टैलीविजन नरसंहार को संभव बनाने के लिए कार्रवाई की।
नरसंहार के लिए जिम्मेदार तीनों ताकतें उस दिन नेसेट में सावधानीपूर्वक एकत्रित हुई थीं। बेंजामिन नेतन्याहू, डोनाल्ड ट्रम्प और मिरियम एडेलसन, जिन्हें ट्रम्प ने ‘मिरियम’ बैंक में 60 अरब डॉलर के साथ’ कहकर पेश किया था, जाहिर तौर पर अमरीका में प्रतिष्ठित इसराईल लॉबी का एक स्तंभ है। जब यह सबसे शक्तिशाली तिकड़ी ट्रम्प की शांति योजना और इस तथ्य का जश्न मना रही थी कि ‘नेतन्याहू के सभी युद्ध लक्ष्य पूरे हो गए हैं’ तो हमास के लिए यह जरूरी था कि वह फिलिस्तीनी कैदियों की वापसी का जश्न न मनाए। इसराईली जीत के आख्यान को इतना बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया जाना था कि तथ्य दब जाएं। नेतन्याहू हमास का सफाया करने में भी विफल रहे। हमास के प्रति इसराईल के रवैये में एक स्पष्ट सिजोफ्रेनिया व्याप्त है। इस समूह के साथ युद्धविराम पर बातचीत करनी होगी लेकिन एक बार शांति स्थापित हो जाने के बाद, हमास को जादुई रूप से गायब हो जाना चाहिए। जो सच्चाई छिपाई जा रही है वह यह है कि इसराईल फिलिस्तीनियों पर उस पैमाने पर अत्याचार कभी नहीं कर पाएगा जैसा कि दुनिया ने पिछले 2 सालों में अपने टी.वी. स्क्रीन पर देखा है। अब कोई नरसंहार नहीं होगा।
अमरीका तेजी से वैश्विक आधिपत्य के रूप में अपनी स्थिति खो रहा है। वह साम्राज्यवादी आधिपत्य, जिसने नीतिगत रूप से सभी इसराईली दंडमुक्ति का समर्थन किया था, अब विश्व जनमत की अनदेखी करने के लिए पर्याप्त शक्तिशाली नहीं है।1991 में सोवियत संघ के पतन और 9/11 के बीच के दशक में अमेरिका और इसराईल की दंडमुक्ति अपने चरम पर थी। यही वह दौर था जब अमरीकी सदी के सपनों को बल मिला। अब हमारे पास पुख्ता सूत्रों से यह जानकारी है कि नवंबर 2001 में, बेंजामिन नेतन्याहू ने पश्चिम एशिया के 7 देशों की एक सूची सौंपी थी जहां शासन परिवर्तन का असर पड़ेगा।
इसराईल लॉबी, नव-रूढि़वादी नेतन्याहू ने एकमात्र महाशक्ति क्षण में पश्चिम एशिया के भविष्य के लिए अपनी रूपरेखा तैयार की थी। यूक्रेन के बाद ‘कमजोर’ रूस के यूरोप के भ्रामक सपने भी एकमात्र महाशक्ति क्षण में ही टिके हुए हैं जो अफसोस की बात है कि बीत चुका है। यूक्रेन और गाजा में आंदोलन को रोके हुए गतिरोध समय और लाखों लोगों की जान की भारी बर्बादी है। नई विश्व व्यवस्था भले ही अभी दूर हो लेकिन क्षितिज पर ध्यान से देखिए इसकी धुंधली रूपरेखा सिल्हूट में पहले से ही उभर रही है।-सईद नकवी