जार्ज फर्नांडीज को ‘मौन’ रहना स्वीकार नहीं था

Edited By ,Updated: 14 Jun, 2020 03:05 AM

george fernandes did not accept being silent

वह कहते हैं कि वक्त आता है तो आदमी आता है। मुझे कोई संदेह नहीं कि वक्त आ गया है लेकिन मेरे दिमाग में आने वाला व्यक्ति अभी गायब है फिर भी जितना अधिक मैं दो प्रमुख संकटों के बारे में सोचता हूं उतना ही हमारे देश का सामना उनसे होगा। जब मैं उसका नाम...

वह कहते हैं कि वक्त आता है तो आदमी आता है। मुझे कोई संदेह नहीं कि वक्त आ गया है लेकिन मेरे दिमाग में आने वाला व्यक्ति अभी गायब है फिर भी जितना अधिक मैं दो प्रमुख संकटों के बारे में सोचता हूं उतना ही हमारे देश का सामना उनसे होगा। जब मैं उसका नाम लूंगा तो यह आपको आश्चर्यचकित कर देगा। मुझे पूरा यकीन है कि आप में से कइयों ने लम्बे समय तक उसके बारे में सोचा ही नहीं होगा लेकिन उनके विचार बहुत प्रासंगिक हैं और उस व्यक्ति का नाम जार्ज फर्नांडीज था। 

आईए दो संकटों को लेकर नवीनतम शुरूआत करते हैं। सिक्किम और लद्दाख में चीन के साथ टकराव की बात करने के दौरान मैं जार्ज फर्नांडीज का उल्लेख कर सकता हूं। चीन के बारे में उनको कोई भ्रम न था। 1998 में हिन्दोस्तान टाइम्स के टैलीविजन कार्यक्रम ‘फोकस’ के लिए एक प्रसिद्ध साक्षात्कार के दौरान उन्होंने मुझे कहा कि हमारे देश को संभावित खतरा एक देश से है। उन्होंने मुझसे कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि चीन भारत की सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा था क्योंकि चीन ने भारत को न केवल आर्थिक प्रतिद्वंद्वी के रूप में देखा बल्कि इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि एक तीसरा विश्व देश इतने शीर्ष पर कैसे पहुंच सकता है। इसलिए उन्होंने माना कि चीन भारत को सफल नहीं होने के लिए दृढ़ संकल्पित है। 

उस समय जार्ज फर्नांडीज रक्षा मंत्री थे मगर कई चीजें उनको रोक न पाईं। जार्ज बहुत ही मुखर थे और यदि आवश्यक हुआ तो वह अपनी बात सार्वजनिक तौर पर कह जाते थे। विवेक उनकी वीरता का हिस्सा नहीं था। वह सरकार के दृष्टिकोण से नहीं बल्कि अपने विवेक से काम लेते थे। उस साक्षात्कार में जार्ज ने चीनी ‘स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स’ के बारे में बातचीत की जिसने भारत को घेर रखा था। पश्चिम में गवादर से लेकर पूर्व तक कोको द्वीप समूह तक तथा ङ्क्षहद महासागर में रणनीतिक स्थानों की एक शृंखला के माध्यम से जार्ज का मानना था कि यह नैकलेस भारत के लिए नाक का सवाल हो सकता है। 

उन्होंने तिब्बती छात्रों को गले लगाया जो उनके परिसर में रहते थे
मैं यह नहीं कह रहा कि जार्ज सही थे मगर हाल के घटनाक्रमों से लगता है कि वह गलत नहीं थे। वह चीनियों से सावधान थे। उनकी सहानुभूति देश के विरोधियों के साथ है। इसीलिए उन्होंने तिब्बती छात्रों को गले लगाया जो उनके परिसर में रहते थे। ये बातें रक्षा मंत्री बनने से पहले शुरू हो चुकी थीं। 6 साल तक वह अपने पद तक बने रहे और यह लम्बे समय तक चलता रहा। 

आईए अब दूसरे संकट की ओर मुड़ते हैं। हमने प्रवासी श्रमिकों पर आघात लगाया है और सरकार में ङ्क्षचता का अभाव देखा गया है। यदि जार्ज आज मंत्री होते तो ऐसा कभी नहीं हो सकता था। उनकी राजनीतिक सोच में जो कुछ भी गलत हुआ हो मैं इससे इंकार नहीं कर सकता। उनकी आवाज एक ऐसी आवाज थी जो अन्याय के सामने शायद कभी भी चुप नहीं बैठी थी। 

1980 के दशक में उन्होंने सिखों के लिए तथा 90 के दशक में कश्मीरियों के लिए बात की। यह तब अलग बात नहीं थी जब लाखों प्रवासी श्रमिक थके-हारे घर लौटते थे। अगर वह जिंदा होते तो वह एक बूढ़े आदमी की तरह होते। उम्र और बीमारी ने अनायास ही उनके भाषण को बिगाड़ दिया। फिर भी वह अपने विचारों से अवगत करवाने के लिए संघर्ष करते रहे। मौन उन्हें स्वीकार नहीं था। 

वास्तव में मुझे चीन और दुखी प्रवासियों के लिए खुद को सीमित क्यों करना चाहिए? जार्ज ने नागरिकता संशोधन अधिनियम, दिल्ली दंगों के दौरान पुलिस द्वारा मुसलमानों से निपटना तथा जे.एन.यू. में छात्रों की राय पर जानबूझ कर चुप्पी साधना पर जरूर बोला होता। मैं स्वीकार करता हूं कि जब वह वाजपेयी सरकार में शामिल हुए थे तब वह 1960 और 70 के दशक की तरह विद्रोही नहीं थे। उन्होंने अपने कपड़े आप धोए।

कृष्णा मेनन मार्ग पर उनके घर में न तो कोई गेट था और न ही कोई सुरक्षा कर्मी। 2002 में पाकिस्तान के उच्चायुक्त अशरफ काजी को व्यक्ति विहीन गैर घोषित किया गया तो जार्ज ने उन्हें देश से बाहर होने के अपनी सरकार के आदेश से पहले रात के खाने के लिए आमंत्रित किया। जार्ज ने अपनी गलतियां कीं। मैं इस बात से इंकार नहीं करूंगा लेकिन बहुत कुछ ऐसा था जिसके बारे में उन्होंने कहा वह सही था। वह अलग होने और अपनी राय पर कायम होने की हिम्मत रखते थे। हमें आज भी ऐसे व्यक्ति की तलाश है।-करण थापर 
 

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