निजीकरण के कारण अमीर और अमीर व गरीब और गरीब हो रहा

Edited By ,Updated: 28 Mar, 2021 03:18 AM

getting rich and rich and poor and poor due to privatization

हाल ही में सम्पन्न संसदीय बजट सत्र के दौरान एक बात जो सामने आई है वह यह है कि किस तरह केंद्रीय मंत्रियों ने बारम्बार तोते की तरह रट लगाई कि, ‘‘कारोबार करना सरकार का कार्य नहीं है।’’ एक बात ने मुझे हैरानी में डाल दिया और वह यह कि क्या सभी मंत्री अपने

हाल ही में सम्पन्न संसदीय बजट सत्र के दौरान एक बात जो सामने आई है वह यह है कि किस तरह केंद्रीय मंत्रियों ने बारम्बार तोते की तरह रट लगाई कि, ‘‘कारोबार करना सरकार का कार्य नहीं है।’’ एक बात ने मुझे हैरानी में डाल दिया और वह यह कि क्या सभी मंत्री अपने उच्चारण का निहितार्थ समझते हैं। मैं हर बार यह सोच कर मदद नहीं कर सकता कि उपरोक्त प्रस्ताव को स्पष्ट किया गया था।

अगला अटल और अशुभ नतीजा यह होगा कि सरकार में रहते हुए यह सरकार का कार्य नहीं होगा। भारत की सार्वजनिक सम्पत्ति की भव्य बिक्री इतनी तीव्रता से केन्द्रित हो गई है जैसे कि कुलीन वर्ग ही भारत की असली ताकत होंगे। कोई भी सरकार भविष्य में उन्हें चुनौती नहीं दे पाएगी।

1870 से लेकर 1999 की अवधि को अमरीकी इतिहास मेें ‘गिल्डैड ऐज’ के नाम से जाना जाता है। यह ऐसा समय था जब लोग बहुत कम समय में अशिष्ट रूप से अमीर बन गए थे। ऐसे लोगों में जॉन डी रॉकफैलर, एंड्रयू डब्ल्यू मैलन, एंड्रयू कारनेगी, हैनरी फ्लैगलर, हैनरी एच. रोजर्स, जे.पी. मार्गन, कार्नेलियस वैंडरबिल्ट तथा जॉन जैकब एस्टर के नाम शामिल हैं। हालांकि अमरीकी लोगों में अभी भी ऐसे लोग हैं जो नाजायज साधनों के माध्यम से समृद्ध हो गए। राष्ट्रों के इतिहास में इस अवधि के अंतिम दौर में सार्वजनिक धन से सार्वजनिक सम्पदा को पैदा किया गया जिसका बड़े स्तर पर निजीकरण किया गया।

सार्वजनिक सम्पत्ति को बड़े स्तर पर निजीकरण करने वाले लोगों में 20वीं शताब्दी के पहले दशक के दौरान ब्रिटेन की प्रधानमंत्री मार्गरेट थैचर का नाम आया। मई 1979 में प्रधानमंत्री बनने के बाद थैचर ने सार्वजनिक बुद्धिजीवियों और यहां तक कि स्वामित्व वाले उद्यमों के सीधे प्रभावित श्रमिकों के मजबूत विरोध के बावजूद स्टील मेकर, कार मेकर, विमानन कम्पनियों, तेल एवं गैस की अग्रणी कम्पनियों, एयरलाइंस तथा दूरसंचार एकाधिकार को बेच दिया। यहां तक कि सार्वजनिक आवास में रहने वाले किराएदारों को भी हटा दिया गया था।

बीमार अर्थव्यवस्था के लिए चिकित्सा की बजाय एक सामाजिक झटका लगा। यह एक हिंसक कृत्य था। इसके सामाजिक निहितार्र्थ बड़े पैमाने पर थे। अर्थशास्त्री ब्लैंडन, ग्रेग तथा मैशिन ने 2005 में किए गए शोध में पाया कि, ‘‘1979 में यू.के. की असमानता आय में हुई तेजी से वृद्धि कभी-कभी इस तर्क से उचित ठहराई जाती है कि समाज अब अधिक गुणात्मक है ताकि गरीब को अमीर बनने के लिए और आसानी हो सके। यदि वह काम करने के योग्य या फिर तैयार है।’’

हमारे शोध से पता चलता है कि यहां सब कुछ विपरीत हुआ और वास्तव में हाल के दशकों में सामाजिक गतिशीलता में गिरावट आई है। गरीब परिवारों में पैदा हुए बच्चों की क्षमता को पूरा करने की संभावना कम है। अपनी पृष्ठभूमि को तोडऩे में वह सक्षम नहीं है। इसलिए मार्गरेट थैचर के वर्षों की एकमात्र स्थायी विरासत यह है कि अमीर अमीर हो गया और गरीब गरीब हो गया।

1990 के दशक के अंत तथा मध्य में सोवियत यूनियन के पतन के बाद रूसी राष्ट्रपति बोरिस येल्तसिन ने निर्मम निजीकरण कार्यक्रम का शुभारंभ किया। सरकार के स्वामित्व वाली सम्पत्ति का अब तक का सबसे बड़ा निपटान किया गया था। समय के रहते यह प्रक्रिया जब खत्म हुई तो रूस के बड़े और मध्यम आकार के संगठन का 77 प्रतिशत और छोटे आकारों का 82 प्रतिशत प्राइवेट मालिकों को स्थानांतरित हो गया। यह 15000 निजी सम्पत्तियां औद्योगिक आऊटपुट का दो तिहाई हिस्सा थीं और रशिया के औद्योगिक कार्यबल का 60 प्रतिशत से अधिक था। इसके नतीजे में बिलियन डालर का सार्वजनिक धन प्राइवेट हाथों में चला गया। इसका नतीजा यह हुआ कि रूस का एक बहुत बड़ा हिस्सा बहुत अधिक मंदी में चला गया।

रूसी मुद्रा का स्तर गिर गया और आम लोगों को कई जरूरतों से वंचित होना पड़ा। यह दिन माक्र्सवाद के दिनों से भी बदतर हो गए थे। इसी तरह भारत में भी आज ऐसे पूंजीपति लोग हैं जो इसी ढंग से फायदा उठा रहे हैं।  सरकार तथा मिथ्या निर्माण के अंतर्गत एयरपोर्ट, एयरलाइन्स, पब्लिक सैक्टर यूनिट तथा पावर उपयोगिताओं को काटा जा रहा है और इस बात को दोहराया जा रहा है कि कारोबार करना सरकार का पेशा नहीं है।

निजीकरण और विनिवेश जैसी दुर्भावनापूर्ण रणनीति के परिणाम आने वाले दशकों में भारत को परेशान करेंगे। 2004 से 2014 तक भारत एक ऐसा देश था जिसने 271 मिलियन लोगों को गरीबी से बाहर निकाला था। आज धन संबंधी असमानता देखी जा रही है। यहां तक कि महामारी के भारत को झकझोरने से पहले भारत के 1 प्रतिशत अमीर लोगों के पास 953 मिलियन लोगों द्वारा अर्जित दौलत से 4 गुणा ज्यादा दौलत थी।-मनीष तिवारी

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