शीशे के बने घर और पत्थर

Edited By ,Updated: 18 Jun, 2021 05:43 AM

glass houses and stones

एन.वी. रमना की पदोन्नति ने एक ऐसा स्पष्ट बदलाव लागू किया है कि दिखाई देता है कि न्यायपालिका द्वारा न्याय उपलब्ध करवाया जा रहा है। इसे पहले सी.बी.आई. प्रमुख के चयन की प्रक्रिया में

एन.वी. रमना की पदोन्नति ने एक ऐसा स्पष्ट बदलाव लागू किया है कि दिखाई देता है कि न्यायपालिका द्वारा न्याय उपलब्ध करवाया जा रहा है। इसे पहले सी.बी.आई. प्रमुख के चयन की प्रक्रिया में देखा गया है। इससे लोगों में आशा जगी है कि लोकतंत्र का तीसरा स्तंभ आशानुरूप खुद को स्थापित कर रहा है, विशेषकर ऐसे समय में जब राजनीतिक कार्यपालिका अपने हितों के अनुकूल संविधान की व्या या तथा कानूनों को गलत परिभाषित कर रही है। 

उदाहरण के लिए खुली अदालत में जस्टिस हेमंत गुप्ता तथा जस्टिस वी. रामासुब्रह्मण्यन द्वारा की गई टिप्पणी, जब उन्होंने मुंबई के पूर्व पुलिस आयुक्त द्वारा उनके खिलाफ मामलों की जांच को सी.बी.आई. में स्थानांतरित करने की मांग को कुछ शिकायतों के साथ ठुकरा दिया। कोई पूछ सकता है कि सी.बी.आई. क्यों? इसलिए कि पूर्व आयुक्त से राज्य के गृहमंत्री के खिलाफ लगाए गए आरोपों बारे सी.बी.आई. में पूछताछ की जाए और बंबई हाईकोर्ट ने उपकृत किया। 

हाईकोर्ट का निर्णय अच्छा था क्योंकि आप राज्य सरकार की एजैंसियों से सच्चाई की आशा नहीं कर सकते जब उनका खुद का गृहमंत्री संदेह के घेरे में हो। गृहमंत्री पर सिटी पुलिस की क्राइम ब्रांच के दो अधिकारियों को अपने घर पर बुलाने तथा प्रत्येक माह बार मालिकों तथा ऐसे ही लोगों से 100 करोड़ रुपए एकत्र करने का कार्य सौंपने का आरोप था। 

जब पूर्व आयुक्त को प्रभावशाली पद से हटाया गया और वह अपने कंफर्ट जोन से बाहर आ गए तो उन्होंने रोष स्वरूप मुख्यमंत्री को एक पत्र लिखा। उस पत्र में गृहमंत्री की अपराधीकरण को बढ़ावा देकर पार्टी के खजाने को मजबूत करने की मंशा बारे स्पष्ट लिखा गया था। जिन दो जूनियर अधिकारियों को धन एकत्र करने का जिम्मा सौंपा गया था उनके नामों का भी उल्लेख किया गया था।

दोनों में से एक सचिन वाजे था, जिसने 20 जिलेटिन छड़ों के साथ एक कार वहां खड़ी की और संभवत: मुकेश अ बानी तथा उनकी पत्नी को डराने के लिए पत्र लिखा (पत्र में क्या लिखा था, यह प्रकाशित नहीं किया गया)। वाजे पुलिस प्रमुख का सबसे करीबी विश्वासपात्र था। जब वाजे ने कार्रवाई को अंजाम दिया तो सिटी पुलिस के पूर्व आयुक्त को असुखद घटनाक्रम की आशंका हो गई थी।

महाराष्ट्र विधानसभा में विपक्ष के नेता, भाजपा के देवेन्द्र फडऩवीस ने महाराष्ट्र पर शासन कर रहे 3 दलों के गठबंधन-शिवसेना, राकांपा तथा कांग्रेस की आलोचना करने के लिए अवसर को झपट लिया। इससे पहले जब वह मुख्यमंत्री थे तो उन्होंने परमबीर सिंह का इस्तेमाल किया था, भीमा कोरेगांव षड्यंत्र मामले में वामपंथी कार्यकत्र्ताओं की गिर तारी के खिलाफ सरकार की कार्रवाई को न्यायोचित ठहराने के लिए।

इस अधिकारी को एंटीक्रप्शन ब्यूरो का निदेशक नियुक्त किया गया ताकि राकांपा के अजीत पंवार को बड़े सिंचाई घोटाले में दोषमुक्त करके राजनीतिक गठबंधन बनाने का प्रयास किया जा सके। यह उनकी (फडऩवीस) पार्टी के हित में था कि अघाड़ी के गृहमंत्री अनिल देशमुख  को अच्छी तरह से धिक्कारा जाए, इसलिए भाजपा ने पूर्व पुलिस आयुक्त की वापसी का खुली बांहों से अपने खेमे में स्वागत किया। 

यह एक खुला रहस्य है कि हाल के वर्षों में जो भी पार्टी सत्ता में रही है, उसने सी.बी.आई. का इस्तेमाल किया है। इसलिए जब हाईकोर्ट ने गृहमंत्री के खिलाफ पूर्व आयुक्त के आरोपों की जांच सी.बी.आई. को सौंपने का आदेश दिया तो पूर्व आयुक्त की खुशी सातवें आसमान पर पहुंच गई। मगर राज्य सरकार ने चुङ्क्षनदा पीड़ितों की 3-4 शिकायतों के साथ पूर्व आयुक्त के खिलाफ जवाबी हमला किया। 2 पूर्व पुलिस इंस्पैक्टर, एक क्रिकेटर बुकी तथा एक रियल एस्टेट एजैंट को अधिकारी के खिलाफ प्रताडऩा की निजी शिकायतों के साथ खड़ा कर दिया गया। राज्य की जांच एजैंसियों को जांच का काम सौंपा गया। 

परमबीर ने पूरी तरह से यह जानते हुए कि राज्य की पुलिस इकाइयां राज्य के नियंत्रण में हैं जबकि सी.बी.आई. केंद्र के, राहत के लिए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया। जांच का काम सी.बी.आई. को स्थानांतरित करने के उनके आवेदन को ठुकराते हुए माननीय जजों ने टिप्पणी की कि ‘जो शीशे के घरों में रहते हैं उन्हें पत्थर नहीं फैंकने चाहिएं’। जजों ने यह निष्कर्ष कैसे निकाला कि आरोपी तथा आरोप लगाने वाले दोनों शीशे के घरों में रहते हैं?

इस सारे घटनाक्रम ने इस पुराने पुलिसकर्मी का मूड खराब कर दिया। मैं हमेशा से ही आई.पी.एस. का एक सदस्य होने पर गर्व महसूस करता था जिसमें मैं 1953 में शामिल हुआ था। मगर सकारात्मकता, जिसकी बात हमारे प्रधानमंत्री करते हैं, का चयन करके, मेरा मानना है कि कुछ अधिकारी झंडे को फहराता हुआ रखे हुए हैं। मगर अफसोस ऐसे सदस्यों की सं या कम होती जा रही है। लोग अभी भी न्याय प्राप्त करने की आशा में हैं, जिस कारण आई.पी.एस. अधिकारियों को विशेष रूप से नियुक्त किया जाता है।-जूलियो रिबैरो(पूर्व डी.जी.पी. पंजाब व पूर्व आई.पी.एस.अधिकारी)

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