देश की एकता के लिए श्यामा प्रसाद का महान ‘बलिदान’

Edited By Punjab Kesari,Updated: 22 Jun, 2018 04:34 AM

great sacrifice of shyama prasad for the unity of the country

‘जब तक सूरज चांद रहेगा, मुखर्जी तेरा नाम रहेगा’— यह बड़ा नारा सबसे पहले 23 जून, 1953 को प्रात: श्रीनगर सैंट्रल जेल के एक भाग में गूंजा और फिर सन्नाटा-सा छा गया। इस जेल के अंदर और बाहर के कुछ भागों में प्रजा परिषद के बहुत से कार्यकत्र्ताओं को रखा गया...

‘जब तक सूरज चांद रहेगा, मुखर्जी तेरा नाम रहेगा’— यह बड़ा नारा सबसे पहले 23 जून, 1953 को प्रात: श्रीनगर सैंट्रल जेल के एक भाग में गूंजा और फिर सन्नाटा-सा छा गया। इस जेल के अंदर और बाहर के कुछ भागों में प्रजा परिषद के बहुत से कार्यकत्र्ताओं को रखा गया था किंतु डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के निधन का समाचार मिलते ही जेल में एक तनाव जैसी स्थिति उत्पन्न हो गई। 

किसी भी तरह की गड़बड़ को टालने के लिए सभी कैदियों को सामान्य के विपरीत अन्य स्थानों पर बंद कर दिया गया। दिनभर एक विचित्र-सी दुखद स्थिति उत्पन्न हुई। सभी जानना चाहते थे कि यह कैसे और क्यों हुआ। डा. मुखर्जी और उनके दो अन्य साथियों लेखक वैद गुरुदत्त और डा. मुखर्जी के निजी सचिव टेकचंद को श्रीनगर की इस बड़ी जेल से लगभग 6 किलोमीटर की दूरी पर ऐतिहासिक निशात बाग में गालियों के दो झोंपड़ों में रखा गया था। 

उन्हें 11 मई को रावी पुल लखनपुर से गिरफ्तार करके 12 मई को श्रीनगर जेल लाया गया किंतु जून के तीसरे सप्ताह में अटकलें शुरू हो गई थीं कि प्रजा परिषद का 8 महीनों से जारी आंदोलन अंत की ओर बढ़ रहा है क्योंकि एक ओर डा. मुखर्जी की गिरफ्तारी को हाईकोर्ट में चैलेंज किया गया था तो दूसरी ओर प्रजा परिषद के प्रधान पं. प्रेमनाथ डोगरा को बातचीत के लिए श्रीनगर लाया गया था ताकि सलाह-सफाई का कोई रास्ता निकाला जा सके, किंतु 22-23 जून की रात को क्या हुआ और इस बड़े बंदी की अचानक मृत्यु कैसे हुई, यह विषय 65 वर्ष का समय बीत जाने के पश्चात एक रहस्य-सा बना हुआ है क्योंकि डा. मुखर्जी की दुखद मृत्यु की जांच नहीं करवाई गई। 

यद्यपि इसकी मांग करने वालों में उनकी बूढ़ी मां श्रीमती योग माया और देश के कई बड़े नेता शामिल थे। डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी एक बड़े राजनेता होने के साथ ही कुशल सोच के मालिक भी थे। वह टकराव से कहीं अधिक बातचीत द्वारा समस्याओं का समाधान तलाश करने की कोशिश करते थे जिसका अनुमान कई घटनाओं से लगाया जा सकता है। आप 9 अगस्त, 1952 को पहली बार जम्मू आए किंतु यहां आने से पूर्व उन्होंने 7 अगस्त को लोकसभा में एक बड़ा भाषण दिया, जिसमें कश्मीर समस्या के विभिन्न पक्षों पर प्रकाश डालने के अतिरिक्त कई तरह के सुझाव भी रखे और श्री जवाहर लाल नेहरू से पूछा कि जब जम्मू-कश्मीर भारत का कानूनी अंग है तो फिर वहां अलग विधान, अलग झंडा और अलगाववाद की बातें किसलिए। श्री नेहरू का उत्तर था-जो कुछ वहां के लिए हो रहा है, वह अस्थायी है और धारा 370 समय के साथ घिसते-घिसते घिस जाएगी। 

9 अगस्त को डा. मुखर्जी राज्य में प्रवेश हुए तो लखनपुर-कठुआ से लेकर जम्मू तक के लगभग 100 किलोमीटर लम्बे रास्ते पर लोगों ने उनका भव्य स्वागत किया और मुखर्जी ने उन्हें आश्वासन दिलाया कि उनकी भावनाओं का सम्मान होगा। 10 अगस्त के लिए प्रजा परिषद ने एक बड़ी रैली का आयोजन कर रखा था, किंतु डा. मुखर्जी के परामर्श पर यह रैली अगले दिन के लिए टाल दी गई और वह विमान द्वारा राज्य के प्रधानमंत्री शेख मोहम्मद अब्दुल्ला से मिलने के लिए श्रीनगर चले गए। श्रीनगर में क्या बातचीत हुई, इसका कोई ब्यौरा तो सामने नहीं आया अपितु 11 अगस्त की इस रैली में डा. मुखर्जी ने घोषणा की कि विधान दिलाऊंगा या प्राण दूंगा। 

उस समय कौन जानता था कि यह बात आने वाले समय में सही सिद्ध होने वाली है। नवम्बर 1952 से लेकर राज्य में प्रजा परिषद का आंदोलन जारी था और देश के अन्य भागों में भारतीय जनसंघ की ओर से विभिन्न स्थानों पर गिरफ्तारियों का क्रम शुरू  हो गया था। मई के शुरू में ही डा. मुखर्जी इस बात से परेशान दिखाई दिए कि राज्य में अत्याचारों का कोई अंत दिखाई नहीं देता इसलिए उन्होंने 8 मई, 1953 से जम्मू के लिए अपनी यात्रा का आरंभ किया और एक वक्तव्य जारी करके कहा कि वह मौके पर जाकर स्थिति का जायजा लेना चाहते हैं ताकि समस्याओं का कोई समाधान निकाला जा सके। सूचनाओं के अनुसार उन्होंने 9 मई को शेख मोहम्मद अब्दुल्ला और प्रधानमंत्री श्री जवाहर लाल नेहरू को तार भी भेजे कि वह उनसे मिलकर बातचीत द्वारा समस्याओं का समाधान निकालना चाहते हैं किंतु इतिहासकारों के अनुसार, शेख मोहम्मद अब्दुल्ला ने अपने उत्तर में असामान्य परिस्थितियां होने की बात कहकर मामले को टाल दिया और श्री नेहरू ने कोई उत्तर ही नहीं दिया। 

11 मई को प्रात: गुरदासपुर के जिला आयुक्त ने पठानकोट में यह धारणा दी कि उन्हें राज्य में जाने से रोका नहीं जाएगा किंतु उसी दिन दोपहर को जब डा. मुखर्जी का काफिला रावी पुल के बीच में ही पहुंचा था तो राज्य पुलिस के कुछ अधिकारियों की एक टुकड़ी ने उन्हें रोक दिया और डा. मुखर्जी को उनके दो साथियों के साथ गिरफ्तारी का वारंट भी थमाया जिसके पश्चात उन्हें एक जीप में बिठाकर रात को दो बजे बटोत पहुंचाया गया और अगले दिन निशात बाग की अस्थायी जेल में बंद कर दिया गया। 

उपलब्धियां: प्रजा परिषद के लम्बे संघर्ष और डा. मुखर्जी के महान बलिदान के कारण राज्य और शेष भारत के बीच अलगाववाद की कई दीवारें गिर गईं। इनमें वीजा जैसी परमिट प्रथा, कस्टम की पुरानी परम्परा के अंत के अतिरिक्त राज्य में उच्चतम न्यायालय, महालेखाकार और चुनाव आयोग का कार्यक्षेत्र बढ़ाया जाना उल्लेखनीय पक्ष है क्योंकि उच्चतम न्यायालय और महालेखाकार का कार्यक्षेत्र इस राज्य में न बढ़ाने के कारण राज्य की वित्तीय स्थिति और अलोकतांत्रिक तरीकों की सीमा यह थी कि 1951 में जब पहली विधानसभा बनी तो मनमाने रूप से विधानसभा क्षेत्रों का गठन किया गया और 75 सदस्यों की इस विधानसभा में विपक्ष का एक भी सदस्य आने नहीं दिया गया और फिर 1972 तक जितने भी चुनाव हुए उनमें अधिकांश बिना किसी मुकाबले के सफल घोषित कर दिए जाते थे। 

यह पहला अवसर था कि चुनाव आयोग का कार्यक्षेत्र इस राज्य में बढ़ाने के पश्चात सभी क्षेत्रों में मुकाबला हुआ और कई स्थानों पर लोगों ने पहली बार बैलेट पेपर देखा और सीमा तो यह रही कि 2002 के विधानसभा चुनाव में मतों द्वारा राज्य की सरकार बदली। यह बलिदानों का ही परिणाम था कि सदर-ए-रियासत के स्थान पर राज्यपाल की नियुक्ति की प्रक्रिया शुरू हुई और  वजीर-ए-आजम के स्थान पर राज्य सरकार के प्रमुख का नाम मुख्यमंत्री रखा गया। इसी तरह जन कल्याण के कई कानून राज्य में लागू हुए किंतु अलगाववाद की कई बड़ी दीवारें अब भी मौजूद हैं जिनमें राज्य का अलग विधान और झंडा शामिल है। 

सीमा तो यह है कि राज्य का कोई भी नागरिक शेष भारत के किसी भी भाग में जाकर पूरे नागरिक अधिकारों के साथ लाभान्वित हो सकता है और किसी भी लोकतांत्रिक पद तक पहुंच सकता है किंतु कोई गैर-राज्यीय इस राज्य में मतदाता तक नहीं बन सकता, नागरिक अधिकार तो दूर की बात रही। सुरक्षा बलों का कोई भी जवान इस राज्य की रक्षा के लिए अपना रक्त बहा सकता है किंतु गैर-राज्यीय होने के कारण जम्मू-कश्मीर में अपने लिए दो गज भूमि भी नहीं खरीद सकता है। अर्थात एक विचित्र-सी स्थिति अब भी बनी है। अर्थात डा. मुखर्जी का कश्मीर मिशन अब भी अधूरा है।-गोपाल सच्चर

IPL
Chennai Super Kings

176/4

18.4

Royal Challengers Bangalore

173/6

20.0

Chennai Super Kings win by 6 wickets

RR 9.57
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!