क्या अब देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस का अंत आ गया है

Edited By Updated: 18 Nov, 2025 05:16 AM

has the end come for the country s oldest party congress

बिहार चुनावों के बाद अपने विजय भाषण में, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भविष्यवाणी की थी कि एन.डी.ए. की भारी जीत को देखते हुए, कांग्रेस पार्टी फिर से विभाजित हो सकती है। उन्होंने कांग्रेस पार्टी की आलोचना करते हुए कहा कि वह एक कम्युनिस्ट-माओवादी इकाई...

बिहार चुनावों के बाद अपने विजय भाषण में, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भविष्यवाणी की थी कि एन.डी.ए. की भारी जीत को देखते हुए, कांग्रेस पार्टी फिर से विभाजित हो सकती है। उन्होंने कांग्रेस पार्टी की आलोचना करते हुए कहा कि वह एक कम्युनिस्ट-माओवादी इकाई में तबदील हो रही है और कहा कि वह लोकसभा और विधानसभा, दोनों ही चुनावों में लगातार हार रही है और इसमें सकारात्मक राजनीतिक दिशा का अभाव है। पार्टी का नेतृत्व बिहार और अन्य जगहों पर सामाजिक गतिशीलता को समझने में लगातार विफल रहा है। हालांकि इसने अपने पारंपरिक मतदाता आधार, जिसमें उच्च जातियां, दलित और मुस्लिम शामिल हैं, का समर्थन खो दिया है लेकिन उन्हें वापस पाने का कोई प्रयास नहीं किया गया है।

क्या बिहार में अपने निराशाजनक प्रदर्शन के बाद कांग्रेस पार्टी का पतन हो गया है? इसमें कोई संदेह नहीं है कि पार्टी को एक बड़ा नुकसान हुआ है, हालांकि इसके नेताओं राहुल गांधी, उनकी बहन प्रियंका गांधी और पार्टी प्रमुख मल्लिकार्जुन खरगे द्वारा व्यापक प्रचार अभियान के बावजूद, वे मतदाताओं को आकर्षित करने में विफल रहे। नतीजे उनके सीमित प्रभाव को दर्शाते हैं, यहां तक कि उन निर्वाचन क्षेत्रों में भी जहां वे पहले से काबिज थे, कांग्रेस को केवल 5 सीटें मिलीं।

बिहार से संकेत स्पष्ट हैं: मतदाताओं को अब पार्टी पर भरोसा नहीं रहा। मतदाता अब कांग्रेस को शासन चलाने लायक पार्टी नहीं मानते और गांधी परिवार अब जिम्मेदारी से बच नहीं सकता। कांग्रेस अब भी इंकार की मुद्रा में है। असली समस्याओं को स्वीकार करने से इंकार कर रही है और अपने पुराने गौरव में जी रही है। इसका नेतृत्व जिम्मेदारी लेने की अनिच्छा के कारण कार्यकत्र्ताओं का समर्थन करने में लगातार विफल रहा है। बिहार में, स्थिति और भी बदतर हो गई है क्योंकि पार्टी के पास एक मजबूत संगठनात्मक ढांचे और जनता तक व्यापक पहुंच का अभाव है। कांग्रेस का भविष्य अनिश्चित है क्योंकि वह लगातार राज्यों में हार रही है। भाजपा के प्रभुत्व का मुकाबला करने के लिए, पार्टी को खुद को नए सिरे से गढऩा होगा। कई प्रभावशाली नेताओं के भाजपा में शामिल होने से कांग्रेस काफी कमजोर हो गई है। परंपरागत रूप से क्षेत्रीय नेताओं और राजनीतिक परिवारों पर निर्भर रहने वाली कांग्रेस को अब समर्थन की कमी का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि अन्य जाति समूहों ने भी उससे दूरी बना ली है। वर्तमान में, पार्टी मुख्य रूप से मुस्लिम वोट पर निर्भर है जो ए.आई.ए.आई.एम. के उदय के कारण खतरे में है।  

पार्टी का भविष्य अनिश्चित बना हुआ है: पार्टी की उम्मीदें धराशायी हो गईं क्योंकि उसे इस बार ज्यादा सीटें मिलने की उम्मीद थी। इस करारी हार से यह सवाल उठता है कि कांग्रेस ने इतने लंबे समय तक अपनी मजबूत पकड़ क्यों खो दी। क्या इतने खराब प्रदर्शन के बाद यह देश की सबसे पुरानी कांग्रेस पार्टी के लिए अंत है? पार्टी का भविष्य अनिश्चित बना हुआ है। कांग्रेस पार्टी के पतन का कारण 1980 और 1990 के दशक में मंडल नेताओं का उदय माना जा सकता है, जिन्होंने पार्टी और भाजपा के प्रभुत्व को चुनौती दी। सत्ता के इस बदलाव के कारण कांग्रेस विभिन्न गुटों के साथ जुड़ गई, जिससे अंतत: उसका प्रभाव और अधिकार कमजोर हो गया। पार्टी को वर्तमान में विधानसभा सीटें जीतने और अपना पुराना गौरव पुन: प्राप्त करने में कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। कांग्रेस राष्ट्रीय और राज्य दोनों स्तरों पर नेतृत्व की कमी से जूझ रही है। अतीत में, कांग्रेस जीत के लिए मजबूत क्षेत्रीय नेताओं और राजनीतिक परिवारों पर बहुत अधिक निर्भर रहती थी हालांकि मल्लिकार्जुन खरगे कांग्रेस अध्यक्ष हैं  लेकिन ज्यादातर फैसले राहुल गांधी ही लेते हैं जो चुनावों के दौरान अपनी कड़ी मेहनत के बावजूद अक्सर देश से अनुपस्थित रहते हैं। प्रियंका गांधी भी वोट आकर्षित करने में कारगर साबित नहीं हुई हैं।

ए.एम.आई.एम.आई. के उदय के बाद खतरे में है  कांग्रेस: इसके अलावा, पार्टी के पास राज्य स्तर पर मजबूत नेता थे। हालांकि, अब उन परिवारों ने अपनी निष्ठा भाजपा की ओर मोड़ ली है। इसलिए, कांग्रेस कमजोर हो गई है। अन्य जाति समूह भी कांग्रेस छोड़ चुके हैं और कई क्षेत्रीय नेता उभर रहे हैं। अब उनके पास मुसलमान बचे हैं लेकिन ए.एम.आई.एम.आई. के उदय के बाद वह भी खतरे में है। सबसे पहले, स्वतंत्रता संग्राम के दौरान, कांग्रेस एकछत्र संगठन थी, जो राष्ट्रवादी धारा से लेकर वामपंथी ताकतों तक, सभी वैचारिक रंगों का प्रतिनिधित्व करती थी। अब ऐसा नहीं है क्योंकि अब यह वामपंथ की ओर झुकने लगी है। दूसरा, पार्टी में सक्रिय कार्यकत्र्ताओं की भी कमी है जो भाजपा और अन्य दलों से बिल्कुल अलग है। समर्पित समर्थन के बिना कोई भी पार्टी सफल नहीं हो सकती। तीसरा, आवश्यक चुनावी धन। जब कांग्रेस के पास 15 राज्य थे, तो धन मुख्यमंत्रियों से आता था। चौथा, कांग्रेस के पास नेताओं का समर्थन करने के लिए अच्छे सलाहकारों का मार्गदर्शन नहीं है। पांचवां, मतदाताओं को लुभाने के लिए एक अच्छा नीतिगत निर्णय और आकर्षक योजनाएं नहीं हैं। छठा, प्रत्येक हार के बाद आत्मनिरीक्षण चाहिए।

एक संगठन के लिए एक स्पष्ट विचारधारा, मजबूत नेतृत्व, व्यापक जनाधार और एक ठोस ढांचे की आवश्यकता होती है। बिहार और पूरे देश में, मुख्य विपक्षी दल में इन सभी गुणों का अभाव है। पार्टी को बैठकर भविष्य की रणनीति पर गहन विचार-विमर्श करना चाहिए। अगले साल 6 विधानसभा चुनाव हैं। जब तक पार्टी अपना भविष्य तय नहीं करती, तब तक वह और नीचे गिरती रहेगी।  उसे शेष नेताओं को अन्य दलों में जाने की अनुमति नहीं देनी चाहिए। देश की सबसे पुरानी पार्टी रातों-रात गायब नहीं हो सकती, भले ही भाजपा को उम्मीद हो कि इसका पतन जारी रहेगा। इसलिए, कांग्रेस नेतृत्व को इसे उसके मूल गौरव पर वापस लाने के लिए एकजुट होना होगा।-कल्याणी शंकर
 

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