प्रकृति के सब जीवों में मानव जीवन श्रेष्ठ

Edited By ,Updated: 05 Jun, 2021 05:05 AM

human life is the best among all the creatures of nature

संपूर्ण ब्रह्मांड में पृथ्वी ही एकमात्र ऐसा ज्ञात ग्रह है जहां पर्यावरण उपस्थित है और जिसके कारण यहां जीवन है। 5 जून को प्रतिवर्ष पर्यावरण संरक्षण के पवित्र ध्येय का स्मरण करने के उद्देश्य से विश्व

संपूर्ण ब्रह्मांड में पृथ्वी ही एकमात्र ऐसा ज्ञात ग्रह है जहां पर्यावरण उपस्थित है और जिसके कारण यहां जीवन है। 5 जून को प्रतिवर्ष पर्यावरण संरक्षण के पवित्र ध्येय का स्मरण करने के उद्देश्य से विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता है। जब से मानव स यता प्रारंभ हुई है तब से लेकर आज तक पर्यावरण संरक्षण एक महत्वपूर्ण विषय रहा है। 

भारतीय दर्शन में प्रकृति के साथ जीने की जीवन पद्धति को अपनाया गया है इसीलिए भारतीय दर्शन प्रकृति के साथ संबंध स्थापित करता है। अथर्ववेद वेद में कहा गया है कि ‘‘माता भूमि:, पुत्रोऽहं पृथ्विया’’ अर्थात यह धरा, यह भूमि मेरी माता है और मैं इसका पुत्र हूं। पर्यावरण संरक्षण पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ता जाए, इसके लिए पर्यावरण संरक्षण को धर्म से भी जोड़ा गया और ऐसी उद्घोषणा भी की ‘कहते हैं सारे वेद पुराण, एक पड़े बराबर सौ संतान।’ 

मानव सभ्यता के विकास क्रम में जब इस जानकारी से साक्षात्कार हुआ कि पेड़ों से हमें ऑक्सीजन मिलती है एवं जो कार्बन डाई ऑक्साइड मनुष्य छोड़ता है उसे पेड़ ग्रहण करते हैं, तो पेड़ और मनुष्य के मध्य तादात् य स्थापित हो गया। भारतीय स यता संस्कृति में प्रकृति और पर्यावरण को पूज्य मानने की पर परा बहुत पुरानी है, जिसका उदाहरण हम सिंधु घाटी स यता में मिले प्रकृति पूजा के प्रमाणों, वैदिक संस्कृति के प्रमाणों में देख सकते हैं। भारतीय जन जीवन में वृक्ष पूजन की पर परा भी रही है। पीपल के वृक्ष पूजा एवं उसके नीचे बैठकर ज्ञान प्राप्ति करना एवं सामाजिक जीवन की चर्चा करना पर परा का हिस्सा रहा है। 

भारतीय संस्कृति में विशेषकर उत्तरी भारत में एक पूनम को पीपल पूनम भी कहा जाता है। इसी प्रकार वैशाख पूर्णमा को बुद्ध पूॢणमा के नाम से जाना जाता है। कालांतर में कुछ ऐसा कालखंड भी आया जिसमें भारत वर्ष गुलाम हुआ। मनुष्य की श्रेष्ठ चीजों का भी पतन हुआ। भौतिक सुख-सुविधाओं के आकर्षण में प्रकृति का दोहन प्रारंभ हुआ और मनुष्य ने पेड़-पौधों का काटना प्रारंभ किया। भौतिक सुख की आकांक्षा ने पूरे विश्व में पर्यावरण को नुक्सान पहुंचाया। विकास की अंधी दौड़ में जंगल कम होते गए, कार्बन और ग्रीन हाऊस गैसों का उत्सर्जन बढ़ता गया। 

पृथ्वी के सामान्य तापमान में वृद्धि होने लगी। स पूर्ण विश्व में ग्लोबल वाॄमग की समस्या महसूस की जाने लगी जिसके प्रारंभिक दुष्परिणाम दुनिया के देशों ने मौसम परिवर्तन, कहीं बाढ़, कहीं सूखा, ग्लेशियरों का पिघलना, समुद्री जल स्तर का बढ़ना और जैव विविधता में कमी आदि रूपों में महसूस किया। ऐसे समय हमें मानव सभ्यता के संरक्षण के लिए पहले पर्यावरण संरक्षण पर गंभीरता से ध्यान केन्द्रित करना होगा। हमें अपनी प्राचीन पर्यावरण संरक्षण की पर पराओं पर पुन: विचार करना होगा। कार्बन उत्सर्जन को कम करना होगा। व्यापक वनीकरण के प्रयास करने होंगे। पर्यावरण संरक्षण को अपनी नीतियों का प्रमुख हिस्सा बनाना होगा। भारत सरकार की वर्तमान नीतियां पर्यावरण संरक्षण के लिए प्रतिबद्ध हैं। 

भारत प्रारंभ से ही पर्यावरण संरक्षण के वैश्विक उपायों, सम्मेलनों एवं समझौतों का हिस्सा रहा है। स्टॉकहोम स मेलन से लेकर पैरिस समझौते तक भारत पूर्ण समर्पण के साथ इनके साथ खड़ा रहा है। 2015 में पैरिस समझौते में विश्व के 196 देशों ने लक्ष्य निर्धारित किया कि वैश्विक औसत तापमान को इस सदी के अंत तक औद्योगिकीकरण के पूर्व के समय के तापमान के स्तर से 2 डिग्री सैंटीग्रेड से अधिक नहीं होने देना है। यह लक्ष्य ग्रीन हाऊस गैसों के उत्सर्जन की मात्रा को सीमित करने पर आधारित है। भारत इस समझौते का महत्वपूर्ण अंग है। इसी के अनुसार भारत ने भी अपने लक्ष्य निर्धारित किए हैं। 

भारत ने राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान के तहत वर्ष 2030 तक अपनी उत्सर्जन तीव्रता को 2005 के मुकाबले 33-35 प्रतिशत तक कम करने का लक्ष्य रखा है। भारत ने वृक्षारोपण और वन क्षेत्र में वृद्धि के माध्यम से 2030 तक 2.5 से 3 बिलियन टन कार्बन डाई ऑक्साइड के बराबर कार्बन सिंक बनाने का भी वायदा किया है। भारत के यशस्वी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी द्वारा प्रारंभ किया गया ‘स्वच्छ भारत मिशन’ भी मूलत: पर्यावरण संरक्षण से जुड़ा हुआ ही एक आयाम है। हमारे प्रधानमंत्री जब लाल किले से सिंगल यूज प्लास्टिक के विरुद्ध अभियान की घोषणा करते हैं तो वस्तुत: वे पर्यावरण संरक्षण के महत्वपूर्ण पहलू को ही चिन्हित करते हैं। 

प्रकृति के सब जीवों में मानव जीवन श्रेष्ठ है। विवेकशील होने के कारण मानव जीवन को यह श्रेष्ठता हासिल है। क्या हम श्रेष्ठता की श्रेणी में नहीं रहना चाहते हैं? अपने अनुभवों का विश्लेषण करना हमें श्रेष्ठ बनाता है। चिंतन, मनन और मंथन की प्रक्रिया हमें श्रेष्ठ बनाती है। आइए हम स्वत: स्वप्रेरणा से प्रकृति को बचाने का प्रयास करें और हम सभी विश्व पर्यावरण दिवस के उपलक्ष्य में यह प्रण लें कि हम सभी प्रकृति और पर्यावरण के संरक्षण के प्रति अपने कत्र्तव्यों का पालन करेंगे। अधिक से अधिक वृक्षारोपण करेंगे एवं पेड़ नहीं कटने देंगे। सिंगल यूज प्लास्टिक का प्रयोग नहीं करेंगे और पर्यावरण संरक्षण से जुड़े लक्ष्यों को प्राप्त करने में अपना योगदान देंगे।-अर्जुन राम मेघवाल(भारी उद्योग एंव संसदीय कार्य मंत्री)

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