हिंसा की आग में झुलसती मानवता

Edited By ,Updated: 30 Mar, 2022 05:09 AM

humanity burning in the fire of violence

हाल में ही एक दिल दहलाने वाला मामला प्रकाश में आया। पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले में रामपुरहाट के समीप, बोगतुई गांव में कुछ अज्ञात लोगों द्वारा गत 21 मार्च को कथित तौर पर करीब

हाल में ही एक दिल दहलाने वाला मामला प्रकाश में आया। पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले में रामपुरहाट के समीप, बोगतुई गांव में कुछ अज्ञात लोगों द्वारा गत 21 मार्च को कथित तौर पर करीब एक दर्जन घरों में आग लगा दी गई, जिसमें झुलस कर 8 लोगों की मृत्यु हो गई। पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार जिंदा जलाने से पहले उन्हें बुरी तरह पीटा गया था। सी.बी.आई. की 30 सदस्यीय टीम ने बंगाल में घटित इस हृदयविदारक घटना की जांच आरंभ कर दी है। 

असहनशीलता की प्रवृत्ति मानवता पर इस कदर हावी हो रही है कि वहशीपन की सभी हदें टूटने लगी हैं। इनमें कुछ मामले व्यक्तिगत रंजिशों से जुड़े होते हैं, लेकिन स्वार्थसिद्धि के लिए जाति, धर्म आदि के नाम पर लोगों की भावनाएं भड़का कर, बल प्रयोग एवं हिंसा के लिए उकसाना, राजनीतिक क्षेत्र में एक आम बात बन गई है। 

‘मॉब लिंचिंग’ लगातार बढ़ रही घटनाएं राष्ट्रहित के लिए सबसे बड़ी चुनौती साबित हो रही हैं। ‘मॉब लिंचिंग’ से अभिप्राय: है, दो या दो से अधिक लोगों द्वारा किसी को दोषी पाए जाने पर या अपराधी होने के संदेह में प्रतिशोध की भावना से स्वयं ही दंडित करना। ‘अनेकता में एकता’ भारतीय संस्कृति की मुख्य विशेषता रही है, किंतु यह भी सत्य है कि कई बार जातिगत, वर्गीय, साम्प्रदायिक अथवा धार्मिक मतभेद सबसे बड़ी समस्या बनकर राष्ट्र के सम्मुख आ खड़े होते हैं। असंतुष्टि की एक छोटी-सी चिंगारी यदि प्रचंड रूप धारण कर ले तो समूची मानवता इसकी चपेट में आने लगती है। वर्ष 2019 में ‘मॉब लिंचिंग’ के अनुमानत: 107 व 2020 में 23 मामले प्रकाश में आए। 

‘भीड़ का कोई चेहरा नहीं होता’, इसीलिए लिंचिंग में संलिप्त लोगों की गिरफ्तारी न हो पाना सबसे बड़ी समस्या है। न केवल यह अनुच्छेद-21 में दिए ‘जीवन के अधिकार’ का उल्लंघन करता है, बल्कि असामाजिक तत्वों का हौसला बढ़ाते हुए, राज्य की कानूनी व्यवस्था पर भी प्रश्नचिन्ह लगाता है। किसी भी स्तर पर हिंसा का पनपना मानवीय सिद्धांतों के विरुद्ध है।

भारतीय दंड संहिता में ‘मॉब लिंचिंग’ के विरुद्ध कार्रवाई से संबंधित कोई स्पष्ट उल्लेख नहीं है। इनका निपटारा धारा-302(हत्या), 307 (हत्या का प्रयास), 323 (जानबूझकर घायल करना ), 147-148 (दंगा-फसाद), 149 (आज्ञा के विरुद्ध एकत्र होना) तथा धारा-34 (सामान्य आशय) के तहत होता है। भीड़ द्वारा हत्या करने पर आई.पी.सी. की धारा 302 तथा 149  मिलाकर पढ़ी जाती हैं, हत्या-प्रयास मामले में धारा 307 और 149 संयुक्त रूपेण सम्मिलित होती हैं। सी.आर.पी.सी. में भी इस बारे स्पष्टत: कुछ नहीं कहा गया। 

वर्ष 2018 में सर्वोच्च न्यायालय ने लिंचिंग को ‘भीड़तंत्र के एक भयावह कृत्य’ के रूप में संबोधित करते हुए केंद्र व राज्य सरकारों को कानून बनाने के दिशा-निर्देश दिए। मणिपुर, वर्ष 2018 मेें लिंचिंग के विरुद्ध प्रस्ताव पारित करने वाला पहला राज्य बना। 2019 में राजस्थान एवं पश्चिम बंगाल में भी लिंचिंग के विरुद्ध विधेयक पारित किए गए। गत 21 दिसंबर, 2021 को झारखंड विधानसभा में भी सामूहिक हिंसा के विरुद्ध विधेयक पारित किया गया। 

पश्चिम बंगाल में ‘प्रिवैंशन ऑफ लिंचिंग बिल, 2019’ के तहत मारपीट और घायल करने का आरोप सिद्ध होने पर 3 वर्ष कारावास से लेकर आजीवन कैद का प्रावधान किया गया। विधेयक में यह भी कहा गया कि यदि मारपीट में व्यक्ति की जान चली जाती है तो जिम्मेदार व्यक्ति/यों को मृत्युदंड या आजीवन सश्रम कारावास तथा 5 लाख रुपए तक जुर्माना हो सकता है। लेकिन कानूून बनने के 10 दिनों के भीतर ही सामूहिक हिंसा से संबद्ध ऐसे 5 मामले सामने आए, जिनमें 2 लोगों की मृत्यु हो गई तथा 3 गंभीर रूप से घायल हुए। स्पष्ट है, कि विधेयक इतना प्रभावी सिद्ध नहीं हो पाया कि अमानवीय तत्वों में भय व्यापत हो और अराजक घटनाओं पर रोक लग सके। 

हिंसक घटनाओं से आम जनता में असुरक्षा, भय व अशांति की भावना उपजती है तथा पुलिस प्रशासन व कानून व्यवस्था के प्रति रोष एवं संदेह उत्पन्न होता है। अंतर्राष्ट्रीय छवि धूमिल होने के साथ विदेशी व घरेलू निवेश भी प्रभावित होते हैं, जिसका अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। हिंसक घटनाओं को रोकने के लिए आवश्यक है कि अमानवीय कृत्यों में संलिप्त अपराधियों सहित, उन्हें हिंसक गतिविधियों के प्रति उकसाने वाले अथवा संरक्षण प्रदान करने वाले लोगों को भी कड़ा दंड मिले। विचारणीय है कि मात्र विधेयक बना देना भर काफी नहीं, हिंसक घटनाएं रोकने हेतु समयानुसार कानूनों में अपेक्षित सुधार व उनका कड़ाई से लागू होना भी अत्यावश्यक है।-दीपिका अरोड़ा
 

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