बात निकलेगी तो दूर तलक जाएगी!

Edited By ,Updated: 24 Mar, 2023 04:38 AM

if the matter comes out it will go far away

‘‘बात निकलेगी तो दूर तलक जाएगी। लोग बेवजह उदासी का सबब पूछेंगे।’’ कफील आजर अमरोहवी ने जब अपनी यह नज्म लिखी होगी तब उन्हें शायद इस बात का ध्यान नहीं होगा कि उनकी नज्म के शे’र कई परिस्थितियों में इस्तेमाल किए जाएंगे।

‘‘बात निकलेगी तो दूर तलक जाएगी। लोग बेवजह उदासी का सबब पूछेंगे।’’ कफील आजर अमरोहवी ने जब अपनी यह नज्म लिखी होगी तब उन्हें शायद इस बात का ध्यान नहीं होगा कि उनकी नज्म के शे’र कई परिस्थितियों में इस्तेमाल किए जाएंगे। जब भी कभी किसी रहस्यमयी घटना का आंशिक पर्दाफाश होता है तो अक्सर इसी शे’र को याद किया जाता है। आपने संसद में भी माननीय सांसदों से इस शे’र को कई बार सुना होगा। आज इस शे’र को एक बार फिर से याद किया जा रहा है। कारण है जम्मू-कश्मीर की घाटी में घटी एक घटना, जिसने पूरे देश को अचंभे में डाल रखा है। 

पिछले दिनों एक ऐसा मामला सामने आया जिसमें एक शख्स ने खुद को प्रधानमंत्री कार्यालय का एक बड़ा अधिकारी बता कर जम्मू-कश्मीर में ‘जैड प्लस’ श्रेणी की सुरक्षा ले ली  और उन्हीं के संरक्षण में सीमावर्ती राज्य के कई संवेदनशील इलाकों में भी चला गया। डा. किरण पटेल नाम के इस अधिकारी ने सरकारी चिन्ह वाले अपने कार्ड भी छपवा रखे थे। अक्तूबर 2022 से फरवरी 2023 तक इसने जम्मू-कश्मीर के कई ‘सरकारी दौरे’ भी कर डाले। इतना ही नहीं वहां के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ कुछ महत्वपूर्ण मामलों में मीटिंग भी की। उन अधिकारियों पर अपना रौब भी दिखाया। अपने मित्रों में अपने रुतबे का दिखावा करने की मंशा से, कई संवेदनशील इलाकों में सुरक्षाकर्मियों के साथ फोटो और वीडियो को सोशल मीडिया पर भी
डाला। ऐसे वीडियो और सरकारी तंत्र के रुतबे को देख कर कौन होगा जो ऐसे व्यक्ति को वास्तव में प्रधानमंत्री कार्यालय का एक बड़ा अधिकारी न  मान ले। इसके पाखंड का भांडा तब फूटा जब इसने फरवरी 2023 में ही जम्मू-कश्मीर में कई दौरे कर डाले। 

एक अधिकारी को जब संदेह हुआ तो उसने दिल्ली में प्रधानमंत्री कार्यालय में फोन लगा कर इस व्यक्ति के बारे में जानकारी हासिल करनी चाही। जब पता चला कि न तो इस नाम का कोई व्यक्ति है और न ही वह पद प्रधानमंत्री कार्यालय में है। जब दिल्ली से ये पूछा गया कि यह जानकारी क्यों ली जा रही है तो श्रीनगर के अधिकारी ने सब सच बताया। दोनों अधिकारियों ने यह तय किया कि इस ठग को रंगे हाथों पकड़ा जाए। जब श्रीनगर पुलिस ने इसे किसी विशिष्ट व्यक्ति से मिलवाने के लिए कहा तो यह बहुरूपिया तुरंत राजी हो गया। इसकी खुशी उस समय थम गई जब हमेशा की तरह उसे बुलेट प्रूफ गाड़ी में बैठाने की बजाय पुलिस की साधारण गाड़ी में बिठाया गया। उसके बाद जो भी हुआ वो आप सबको पता ही है।

जम्मू-कश्मीर के पूर्व पुलिस महानिदेशक डा. शेषपाल वैद ने एक टी.वी. इंटरव्यू में बताया कि जब भी कभी किसी व्यक्ति को ‘जैड प्लस’ श्रेणी की सुरक्षा प्रदान की जाती है तो संबंधित अधिकारियों को लिखित सूचना दी जाती है। इस मामले में क्योंकि यह व्यक्ति प्रधानमंत्री कार्यालय के अधीन था तो तय नियमों के अनुसार दिल्ली से जम्मू कश्मीर के मुख्य सचिव और पुलिस महानिदेशक को सूचना भेजी जाती। जो कि इस मामले में नहीं भेजी गई। इसलिए इस ठग को प्रदान की गई सुरक्षा गैर-कानूनी है। 

इसके साथ ही डा. वैद के अनुसार इस पद के अधिकारी को जैड प्लस की सुरक्षा प्रदान करने का कोई प्रावधान ही नहीं है। ऐसी सुरक्षा तो केवल अति विशिष्ट लोगों को दी जाती है। किरण पटेल को सरकारी सुरक्षा के घेरे में घाटी के संवेदनशील इलाकों में घूमते हुए देखा गया है उसे सुरक्षा में चूक मानने से इंकार नहीं किया जा सकता।

गौरतलब है कि अक्सर यह देखा जाता है कि यदि कभी कोई चरवाहा गलती से भी सरहद पार करके इस पार या उस पार चला जाए तो दोनों देशों की पुलिस, खुफिया विभाग और सेना उसे जासूस मान कर उसकी सख्ती से पूछताछ करती हैं। बाद में भले ही वो चरवाहा बेकसूर साबित हो लेकिन उसकी जांच किए बिना उसे छोड़ा नहीं जाता। इस मामले में देखा जाए तो जब यह साबित हो चुका है कि किरण पटेल बहुरूपिया बन कर ख़ुद को प्रधानमंत्री कार्यालय का एक वरिष्ठ अधिकारी बता रहा था तो क्या पुलिस, खुफिया विभाग और सेना इसे जासूस समझ कर इसकी पूछताछ करेंगे? क्या इस बहुरूपिए को बिना जांच किए सुरक्षा और अन्य सुविधाएं प्रदान करवाने वाले राज्य सरकार के अधिकारियों के खिलाफ कोई कार्रवाई होगी? 

आज के दौर में यह बात आम हो चुकी है कि जब भी हमें किसी सरकारी दफ्तर में जाना होता है तो बिना एंट्री पास के आप उस कार्यालय में नहीं घुस सकते। एक दफ्तर में एंट्री पास के लिए भी नियम तय होते हैं, जिनका पालन सख्ती से किया जाता है। उसी तरह किसी को उच्च श्रेणी की सुरक्षा व अन्य सुविधाएं देने के लिए भी तय नियम होते हैं। सूचना क्रांति के इस युग में प्रधानमंत्री कार्यालय समेत किसी भी मंत्रालय या सरकारी दफ्तर में तैनात अधिकारियों की जानकारी आम आदमी को बड़ी आसानी से मिल जाती है। सरकारी अधिकारियों को यह जानकारी लेने में कुछ ही क्षण लगते हैं। फिर ऐसी क्या मजबूरी थी कि जब किरण पटेल पहली बार घाटी के ‘सरकारी दौरे’ पर आया तो उसके बारे में जांच नहीं हुई? अब जब मामले ने तूल पकड़ लिया है तो जांच होना तो स्वाभाविक ही है। परंतु इस जांच की आंच कितनी दूर तक जाएगी यह तो आने वाला समय ही बताएगा।-रजनीश कपूर 

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