पंजाब में अशांति हो तो लाभ किसका

Edited By Pardeep,Updated: 26 Nov, 2018 04:54 AM

if there is unrest in punjab then beneficiaries

कनाडा, अमरीका, ब्रिटेन तथा जर्मनी में भारतीय मूल के लोग हैं, जो स्वतंत्र खालिस्तान राज्य का सपना देखते हैं। उनके इस सपने में वे लोग सांझीदार नहीं हैं, जिन्हें उस देश में पीछे छोड़ दिया गया, जहां उनके पूर्वज जन्मे थे। लेकिन एक बार घर वापस लौटने पर...

कनाडा, अमरीका, ब्रिटेन तथा जर्मनी में भारतीय मूल के लोग हैं, जो स्वतंत्र खालिस्तान राज्य का सपना देखते हैं। उनके इस सपने में वे लोग सांझीदार नहीं हैं, जिन्हें उस देश में पीछे छोड़ दिया गया, जहां उनके पूर्वज जन्मे थे। लेकिन एक बार घर वापस लौटने पर गुणवत्तापूर्ण जीवन जीने के बाद अपराध की व्यापक भावना उन्हें उस मांग को बनाए रखने के लिए प्रेरित नहीं करती जिसे पंजाब में अलगाववादी तत्व बहुत पहले छोड़ चुके थे। 

गुरपतवंत सिंह पन्नू नामक एक वकील, जो अमरीकी नागरिक है ‘सिख रैफरैंडम-2020’ नामक अभियान का जनक है। वह एक अलग सिख होमलैंड की असमर्थनीय मांग को लेकर सक्रिय है। विदेशों में बसे बहुत से युवा सिख उससे प्रभावित हैं। मगर जिस चीज ने पंजाब सरकार तथा इसकी पुलिस को परेशान किया है वह यह कि कुछ स्थानीय युवाओं ने भी इसमें रुचि दिखाई है। 

पाकिस्तान ने अवसर नहीं छोड़ा
वर्ष 2015 में कुछ समय के लिए धार्मिक पुस्तकों के कथित अपवित्रीकरण ने ङ्क्षहसा को ङ्क्षचगारी दिखाई। पुलिस फायरिंग में 2 प्रदर्शनकारियों की मौत ने आग में ईंधन डालने का कार्य किया। ऐसी घटनाओं में युवाओं का कट्टरपंथी बनना एक स्वाभाविक परिणाम है। भारतीय राज्य को परेशानी में डाले रखने के लिए पाकिस्तानी खुफिया एजैंसी ऐसे अवसरों को हाथ से जाने नहीं देती। विदेशों में रहने वाले सिख हमेशा ही खालिस्तान को लेकर भारत में रहते अपने सह-धर्मियों के मुकाबले अधिक उत्साहित रहते हैं। 1987 में ओट्टावा (कनाडा) से एक 6 सदस्यीय संसदीय शिष्टमंडल कनाडाई सिखों द्वारा सुनाई गई हत्याओं तथा प्रताडऩा की कहानियों की पुष्टि करने के लिए भारत आया। 

तत्कालीन भारत सरकार उन्हें स्वर्ण मंदिर नहीं जाने देना चाहती थी। राज्य का पुलिस महानिदेशक (डी.जी.पी.) होने के नाते मैंने उनके दौरे का स्वागत किया क्योंकि मैं जानता था कि वास्तविक सच्चाई सामने आएगी। शिष्टमंडल आया। पुलिस ने कनाडाई संसद के सदस्यों का स्वागत किया लेकिन स्वर्ण मंदिर के भीतर जाने में अपनी असमर्थता व्यक्त की क्योंकि उस समय वहां खतरनाक तत्वों का ‘कब्जा’ था। चूंकि शिष्टमंडल की सुरक्षा को लेकर कोई संदेह नहीं था, उसे स्वर्ण मंदिर में प्रवेश करने की इजाजत दे दी गई। उसकी आंखें खुली की खुली रह गईं और उन्होंने जमीनी तथ्यों की रिपोर्ट अपनी प्रैस को भेजी। कनाडा, अमरीका, ब्रिटेन तथा जर्मनी में रहने वाले प्रवासी लोगों का यह वही हिस्सा है, जो इस बात के बावजूद कि स्थानीय सिखों में खालिस्तान को लेकर कोई उत्साह नहीं है, पंजाब में आतंकी उथल-पुथल को पुनर्जीवित करने के प्रयास का नेतृत्व कर रहा है। 

सोशल मीडिया के उभार से मदद
सोशल मीडिया के उभार ने ऐसे विचारों के फैलाव में मदद की है जो दरकिनार किए गए तत्वों को बिना सोची-समझी कार्रवाइयां करने में मदद करते हैं। पाकिस्तानी खुफिया एजैंसी हमेशा से ही ऐसे निराश व्यक्तियों को ऐसी सहायता (हथियार आदि) देने को बेताब रहती है जिनकी उन्हें ऐसी गड़बडिय़ां रचने के लिए जरूरत रहती है। इस बात की पूरी सम्भावना है कि अमृतसर में निरंकारी भवन पर हमले में इस्तेमाल किए गए हैंड ग्रेनेड का मूल हमारा पड़ोसी देश था। 

निरंकारी हमेशा से ही एक आसान तथा आकर्षक लक्ष्य रहे हैं। वे हमेशा से ही झगड़े का आसान शुरूआती बिन्दू रहे हैं क्योंकि उनकी ‘जीवित गुरु’ की अवधारणा हमेशा सिख श्रद्धालुओं को चिढ़ाती है। जरनैल सिंह भिंडरांवाले ने उन्हें अपने अभियान का शुरूआती बिंदू बनाया। यद्यपि आज वैसी स्थितियां तथा सोच नहीं है, यह भारतीय राज्य को सेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत की चेतावनी पर ध्यान देने के योग्य बनाती है कि एक ऐसे राज्य में युद्ध के नगाड़े सुनाई दे सकते हैं जिसे बहुत समय पूर्व ‘भारत की खड्ग भुजा’ का सम्मान दिया गया था। 

मैं कैप्टन अमरेन्द्र सिंह को अपना मित्र मानता हूं। उनका ध्यान इस बात को सुनिश्चित करने की जरूरत पर होना चाहिए कि सामान्य जटसिख किसान भारत में उचित रूप से रहें। उन्हें यह सुनिश्चित करने की जरूरत है कि पुलिस बल सामान्य नागरिकों के साथ उस शालीनता तथा मर्यादा के साथ पेश आए जिसके वे हकदार हैं। और उसे प्रत्येक सरकारी विभागों में स्थानीय भ्रष्टाचार पर कड़े नियंत्रण के तौर पर परिभाषित किया जाए। यदि वह उस उद्देश्य को प्राप्त करने में सफल रहें तो वह आई.एस.आई. से निपटने की समस्या को राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल के लिए छोड़ सकते हैं, जो पूरी तरह से जानते हैं कि क्या किया जाना चाहिए और कब। 

पंजाब के लोगों ने ही आतंकवाद का अंत किया
पंजाब के लोगों, विशेषकर जटसिख किसानों ने एक दशक तक चले आतंकवाद का अंत किया जिसने उनके जीवन की लय को बिगाड़कर रख दिया था। जब उनकी यातनाएं असहनीय हो गईं, उन्होंने ऐसा अपने बीच मौजूद शरारती तत्वों का आत्मसमर्पण करवा कर किया। मुझे संदेह है कि वे उस अपेक्षित समर्थन की ओर मुड़ेंगे, जो आक्सीजन की तरह साबित हुआ था, जिसकी आतंकवादियों को जरूरत थी। उन विकट परिस्थितियों में पाकिस्तानी खुफिया एजैंसी ने खालिस्तानी आतंकवादियों को हथियार, शरण तथा प्रशिक्षण सुविधाएं उपलब्ध करवाईं लेकिन उस कम लागत के युद्ध को बनाए रखने के लिए केवल उतना ही पर्याप्त नहीं था, जिसे शरारती तत्व लड़ रहे थे। उनके सह-धर्मियों का समर्थन अत्यंत जरूरी था। जब उसे वापस ले लिया गया, पंजाब में शांति वापस लौट आई।

यदि राज्य को इस संकट के पुन: फैलने से बचना है तो इसे इस सच को समझना होगा। आज का पंजाब 1980 के दशक वाले पंजाब जैसा नहीं है। मैं मानता हूं कि केवल एक समानता है कि अकाली तब भी चतुर होते हैं जब वे सत्ता से बाहर होते हैं। निराशा में वे धारदार राजनीति में लिप्त हो जाते हैं। हो सकता है कि वे अब ऐसा न कर रहे हों क्योंकि उन्होंने सबक सीख लिए हैं। इसके अतिरिक्त आज जमीनी हकीकतें भिन्न हैं। लोगों की सामूहिक सोच पर कब्जा जमाने के लिए कोई भिंडरांवाला नहीं है। आलोचना के लिए अकालियों की पसंदीदा पार्टी कांग्रेस दिल्ली में सत्ता से बाहर है। और भी महत्वपूर्ण बात यह कि जट किसान उन यातनाओं को नहीं दोहराना चाहेंगे जिनका सामना उन्होंने आतंकवाद के दौरान किया था। 

मुख्य प्रश्र, जिसका शासकों को उत्तर देने की जरूरत है, वह यह कि यदि शरारती तत्व शांति में व्यवधान डालने में सफल हो जाते हैं तो इसका लाभ किसे होगा? निश्चित तौर पर हमारा पड़ोसी खुशी मनाएगा। मगर पंजाब में इसका फायदा किसे होगा? यदि इस प्रश्र का उत्तर जान लिया जाए तो सही समाधान पा लिया जाएगा। गुरपतवंत सिंह पन्नू तथा उसके जैसे लोगों को प्रभावहीन करने के लिए अमरीका, ब्रिटेन तथा कनाडा में जवाबी प्रचार राज्य तथा केन्द्र सरकारों के एजैंडे में पहली चीज होना चाहिए। (राज्य में आतंकवाद के कुछ सर्वाधिक बुरे वर्षों के दौरान रिबैरो ने पंजाब पुलिस का नेतृत्व किया था।)-जूलियो रिबैरो

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