भारत की सुरक्षा जरूरतें और वायु सेना में आधुनिक लड़ाकू विमानों की कमी

Edited By ,Updated: 06 Jan, 2017 12:36 AM

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भारतीय वायुसेना के पूर्व प्रमुख एयर चीफ मार्शल अरूप राहा ने गत बुधवार को अपनी सेवानिवृत्ति से पहले नई दिल्ली में कहा था कि वायुसेना को फ्रांस से प्राप्त

भारतीय वायुसेना के पूर्व प्रमुख एयर चीफ मार्शल अरूप राहा ने गत बुधवार को अपनी सेवानिवृत्ति से पहले नई दिल्ली में कहा था कि वायुसेना को फ्रांस से प्राप्त होने वाले 36 राफेल लड़ाकू विमानों के अतिरिक्त 200 से 250 मध्यम लड़ाकू विमानों की जरूरत है।

36 राफेल लड़ाकू विमानों के लिए अनुबंध पर 7.8 बिलियन यूरो (55600 करोड़ रुपए) के लिए हस्ताक्षर किए गए थे। अन्य 200 राफेल अथवा उनके बराबर के लड़ाकू विमानों के लिए 43.3 अरब यूरो (3,10,000 करोड़ रुपए) की जरूरत होगी, जो भारत के वर्तमान रक्षा खर्चों को देखते हुए बहुत अधिक कीमत है।

मगर राहा ने अपनी आवश्यकता सामने रखने में कोई हिचकिचाहट नहीं दिखाई। उन्होंने कहा कि वायुसेना ने अभी 36 विमानों का आर्डर दिया है औरउन्हें मध्यम भार वर्ग में और अधिक विमानों की जरूरत है, ताकि वायुसेना को पूर्ण सक्षमता प्रदान की जा सके।

भारतीय वायुसेना चीन तथा पाकिस्तान से एक साथ निपटने के लिए अनुमानित 42 स्क्वाड्रनों के मुकाबले वर्तमान में केवल 33 स्क्वाड्रनों से काम चला रही है। इनमें से मिग-21 तथा मिग-27 विमानों के 11 स्क्वाड्रनों का संचालन संदिग्ध है, जिनकी रिटायरमैंट की समयावधि काफी पहले पूरी हो चुकी है।

इस पर टिप्पणी करते हुए राहा ने कहा कि वे पहले ही चार दशकों तक इनका इस्तेमाल कर चुके हैं। अब समय है कि उन्हें सेवानिवृत्ति देकर नए विमान प्राप्त किए जाएं। अगले 10 वर्षों के दौरान हमें आवश्यक रूप से 200 से 250 विमान चाहिएं। इसके लिए संतुलन बनाना होगा। हैवी वेट स्पैक्ट्रम में हमारे पास पर्याप्त विमान हैं, मगर मध्यम भार श्रेणी में हमें और विमानों की जरूरत है। 200 बहुत अच्छे रहेंगे।

वायुसेना के ‘फोर्स मिक्स’ के एक विश्लेषण में खुलासा हुआ है कि लड़ाकू विमानों की कमी वास्तव में हल्के लड़ाकू विमानों की श्रेणी में है न कि मध्यम वर्ग के लड़ाकू विमानों की। 2022 तक, जब मिग-21 तथा मिग-27 विमानों के 11 स्क्वाड्रनों को चरणबद्ध तरीके से सेवानिवृत्त कर दिया जाएगा, तो हल्के लड़ाकू विमानों की अत्यंत कमी हो जाएगी अगर बेहतरीन की भी बात करें तो 103 तेजस हल्के लड़ाकू विमान शामिल होंगे, जिससे केवल 5 स्क्वाड्रन तैयार होंगे। इसके विपरीत मध्यम लड़ाकू विमान वर्ग में 14 स्क्वाड्रन (266 विमान) तथा अन्य 14 स्क्वाड्रन (272 विमान) भारी लड़ाकू विमान वर्ग में होंगे।

लड़ाकू विमानन विश्लेषक एवं वायु पत्रिका के प्रकाशक पुष्पिन्द्र सिंह कहते हैं कि वायुसेना को अप्रचलित हो चुके मिग विमानों के 11 स्क्वाड्रन बदलने की जरूरत है। उनकी जगह पर एक ऐसा विमान होना चाहिए, जिसकी कीमत कम हो, संचालन लागत कम आए और हल्के से मध्यम वर्ग का हो। इसलिए हम राफेल श्रेणी के 200 लड़ाकू विमानों की कीमत झेल नहीं सकते और तेजस विमानों का निर्माण बहुत धीमी गति से हो रहा है। इसलिए केवल एक विकल्प बचता है कि लड़ाकू विमान बनाने के लिए एक दूसरी फाइटर लाइन का निर्माण किया जाए, जिसमें 20 टन वर्ग के विमान बड़ी संख्या में बनाएजाएं।

सरकार पहले ही इस रास्ते पर चल रही है। 7 अक्तूबर को भारतीय वायुसेना ने कई बड़ी वैश्विक एयरोस्पेस कम्पनियों, जिनमें लॉकहीड माॢटन, बोइंग, साब तथा रूस की रोसोबोरोनेक्सपोर्ट शामिल हैं, को पत्र लिखकर उन्हें भारत में एक इंजन वाले मध्यम वर्ग के लड़ाकू विमान तैयार करने में उनकी रुचि बताने को कहा

वर्तमान में इस दौड़ में लॉकहीड माॢटन, जो एफ-16 ब्लाक 70 विमानों की पेशकश कर रही है तथा साब, जो एक नया लड़ाकू विमान ग्रिपेन ई पेश कर रही है, आगे हैं और दोनों ही नई दिल्ली में बहुत जोश से अपना दावा रख रही हैं।

गत 15 वर्षों से भारतीय वायुसेना अपनी लड़ाकू विमानों की जरूरतें हल्के, मध्यम तथा भारी लड़ाकू विमानों को ध्यान में रखते हुए बना रही है। वर्ष 2000 में वायुसेना मुख्यालय ने कहा था कि एक आदर्श ‘फोर्स मिक्स’ हल्के, मध्यम तथा भारी वर्गों में 200-200 लड़ाकू विमान होगा। इस बारे में तर्क कभी भी स्पष्ट नहीं किया गया।

पारम्परिक रूप से वायुसेना की ‘फोर्स मिक्स’ विमानों की भूमिका पर आधारित होती है न कि उनके भार अथवा आकार पर। वायुसेना अब तक अपनी जरूरतों का आकलन ‘एयर सुपीरियोरिटी फाइटर्स’ के आधार पर करती आई है, जो हवा में अपना प्रभुत्व बनाने के लिए दुश्मन के विमानों को मार गिराए, हमलावर विमान, जो हवाई अड्डों, सड़कों, रेलवेज और यहां तक कि रणनीतिक लक्ष्यों सहित दुश्मन के ठिकानों पर बम गिरा सकें तथा ‘क्लोज एयर सपोर्ट फाइटर्स’ जो युक्तिपूर्ण युद्ध क्षेत्रों में दुश्मन के ठिकानों पर हमला कर सकें तथा उनके विभिन्न लड़ाकू बलों को एक साथ आने से रोक सकें।

इसके अतिरिक्त वे अपनी जरूरतों की गणना विशेषज्ञता प्राप्त विमानों के लिए भी करते हैं, जो इलैक्ट्रानिक युद्ध में हिस्सा लेते हुए दुश्मन के राडारों को जाम कर दें ताकि अपने अभियान को अंजाम दिया जा सके।

अमरीकी वायुसेना जैसी बड़ी वायुसेनाओं के पास अभी भी प्रत्येक भूमिका के लिए सुपरस्पैशलिस्ट एयरक्राफ्ट हैं, एफ-22 रैप्टर तथा एफ-15 ईगल एयर सुपीरियोरिटी भूमिका निभाते हैं, जबकि हमला करने की भूमिका एफ-35 लाइटङ्क्षनग-2 के हवाले है, जिसे ज्वाइंट स्ट्राइक फाइटर भी कहा जाता है, क्योंकि यह यू.एस.ए.एफ., नेवी तथा मैरीन कॉप्र्स के लिए सांझा स्ट्राइक एयरक्राफ्ट है।

अमरीकी नौसेना के पास एयरक्राफ्ट कैरियर्स के अलावा युद्धक कार्रवाइयों के लिए एक अलग लड़ाकू विमान एफ/ए-18ई/एफ सुपर हार्नेट है, जो इलैक्ट्रानिक वारफेयर फाइटर्स एफ/ए-18जी ग्रोलर के साथ मिलकर कार्रवाई करता है।

यहां यह जानना रुचिकर है कि छोटी (तथा कम बजट वाली) सेनाएं मल्टी रोल लड़ाकू विमानों का इस्तेमाल करती हैं जो अधिकांश भूमिकाएं निभाने में सक्षम होते हैं जो स्पैशलिस्ट विमानों से जरा-सी कम होती हैं। इस तरह से वायुसेना को राफेल, यूरोफाइटर टाइफून, एफ-16 तथा ग्रिपेन जैसे विमानों से लैस करने से इसके बेड़े में कई तरह के विमानों की जरूरत कम होगी।

बेड़े में पहले ही सात किस्म के लड़ाकू विमान (मिग-21 तथा मिग-27 के सेवानिवृत्त होने के बाद 5) शामिल होने से भारतीय वायुसेना की भविष्य के युद्धों में सबसे अधिक चिन्ताजनक समस्या इन अलग किस्मों के विमानों का रख-रखाव तथा उनका मुरम्मत कार्य होगा। यह समस्या तब और भी पेचीदा होगी जब एफ-16 अथवा ग्रिपेन भारत में बनने लगेंगे।

वास्तव में भारत को कितने स्क्वाड्रनों की जरूरत है? 42 स्क्वाड्रनों का आंकड़ा कई वर्ष पूर्व बताया गया था मगर कई उच्च कारगुजारी तथा बहुमुखी भूमिका वाले विमानों के आने के बाद भी इस संख्या में कोई संशोधन नहीं किया गया है। आधुनिक लड़ाकू विमानों की लागत तथा भारत की सुरक्षा जरूरतों पर बढ़ते दबाव को देखते हुए निश्चित तौर पर इस मुद्दे पर भविष्य में विचार किया जाएगा। 

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