खिलौने, लैब में बने हीरे और साइकिल उद्योग में भी चीन को पछाड़ेगा भारत

Edited By ,Updated: 09 Sep, 2022 06:20 AM

india will also beat china in toys lab made diamonds and bicycle industry

इस समय वैश्विक स्तर पर खिलौना उद्योग 141 अरब डॉलर का बड़ा बाजार है। जिस तीव्र गति से खिलौना उद्योग बढ़ रहा है, उसे देखते हुए वर्ष 2028 तक यह 240 अरब डॉलर तक पहुुंचेगा। फिलहाल

इस समय वैश्विक स्तर पर खिलौना उद्योग 141 अरब डॉलर का बड़ा बाजार है। जिस तीव्र गति से खिलौना उद्योग बढ़ रहा है, उसे देखते हुए वर्ष 2028 तक यह 240 अरब डॉलर तक पहुुंचेगा। फिलहाल अंतर्राष्ट्रीय बाजार में खिलौना उद्योग की बाजी चीन के हाथ है, क्योंकि वह पूरी दुनिया की खिलौनों की जरूरत का आधे से अधिक हिस्सा खुद तैयार करता है।

चीन की हुआदा खिलौना कंपनी इस क्षेत्र की एक बड़ी खिलाड़ी है और इस कंपनी के बनाए खिलौने विदेशों में बड़ी मात्रा में निर्यात किए जाते हैं। ठीक इसी तरह गुडबेबी ग्रुप, नानहाई सीनो-यू.एस. ट्वॉय फैक्टरी, नानहाई होंगचिंग कंपनी, यांगत्सोऊ ट्वॉय कंपनी, युनख सैली क्राफ्ट कंपनी, वेनचौऊ आर्टस एंड क्राफ्ट्स कंपनी, लिराडो ग्रुप, अल्फा ग्रुप बड़ी खिलौना कंपनियां हैं, जिनका बोलबाला चीन के साथ विदेशी बाजारों में भी है।

खिलौनों के बाजार में चीन की हिस्सेदारी की बात करें तो पूरी दुनिया के 55-60 प्रतिशत खिलौने चीन में बनते हैं और वर्ष 2021 में खिलौने और गेम्स के निर्यात से ही चीन ने 100 अरब डॉलर की कमाई की थी। वहीं, बड़ी मात्रा में चीनी खिलौने भारत में भी आयात किए जाते थे, लेकिन वर्ष 2020 में गलवान घाटी की हिंसा के बाद भारत ने चीन से आयात कम करना शुरू कर दिया और खुद खिलौने बनाने के क्षेत्र में उतर गया। कुछ वर्ष पहले तक चीन के बने 80 प्रतिशत खिलौने भारतीय बाजार में मौजूद थे। अगर हम बात करें वर्ष 2018-19 की तो इस एक वर्ष में भारत ने चीन से 37.1 करोड डॉलर के खिलौनों का आयात किया था, लेकिन वर्ष 2021-22 में यह घटकर 11 करोड़ डॉलर तक रह गया है। 

भारत अब इस खेल को बदलने में जुट गया है। वर्तमान भारत सरकार न सिर्फ देश में बड़ी मात्रा में खिलौने बनाने की योजना पर काम कर रही है, बल्कि विदेशों में भारत में बने खिलौनों का निर्यात कर अंतर्राष्ट्रीय खिलौना बाजार में अपनी हिस्सेदारी चीन से ज्यादा करने की दिशा में काम कर रही है। शुरूआती दौर में भारत 141 अरब डॉलर के अंतर्राष्ट्रीय खिलौना बाजार का 10 प्रतिशत भी अपने पक्ष में कर ले तो 13-14 अरब डॉलर खिलौना उद्योग से कमा सकता है। भारत सरकार इस दिशा में तेजी से काम कर रही है जिससे अंतर्राष्ट्रीय खिलौना और गेम्स निर्माता कंपनियां, जो अभी चीन में काम कर रही हैं, वे भारत आकर अपनी खिलौने की फैक्टरी लगाएं, जिसके लिए भारत उनकी हरसंभव मदद करेगा। 

सरकार की योजना खिलौना और लैबोरेटरी में हीरे बनाने तथा साइकिल उद्योग को बढ़ावा देने की है। भारत सरकार इसके लिए 1.97 लाख करोड़ रुपए की प्रोडक्शन लिंक्ड इंसैटिव स्कीम लाने जा रही है, जिससे अगले 5 वर्षों में 60 लाख नई नौकरियों का सृजन होगा। सरकार खिलौना फैक्टरी भारत में लगाने वालों को कुछ वर्षों के लिए टैक्स हॉलीडे देने जा रही है, जिससे आने वाले दिनों में खिलौना उद्योग का केंद्र भारत बने। ठीक इसी तरह साइकिल का बाजार भी तेजी के साथ बढ़ता जा रहा है और वर्ष 2021 तक वैश्विक साइकिल बाजार 60 अरब डॉलर का हो चुका है। लैब में बनाए जाने वाले बहुमूल्य पत्थर, जिनमें प्रमुख रूप से हीरे का नाम आता है, जिसका इस्तेमाल आभूषणों के साथ कम्प्यूटर चिप्स, 5जी उपकरणों और उपग्रहों में भी होता है।

इन तीनों सैक्टरों में पी.एल.आई. स्कीम के लिए सरकार तेजी से काम कर रही है। इनमें सबसे ज्यादा ध्यान खिलौना उद्योग पर दिया जा रहा है, क्योंकि सर्वाधिक तेजी से बढऩे वाले बाजारों में खिलौना उद्योग सबसे आगे है। भारत में खिलौने बनाने वाले निर्माताओं को नुक्सान न पहुुंचे, इसके लिए भारत सरकार ने खिलौने और गेम्स के आयात पर पहले ही टैक्स को 20 प्रतिशत से बढ़ाकर 60 प्रतिशत कर दिया है। भारत सरकार देश से खिलौनों के निर्यात पर ध्यान केंद्रित कर रही है। इससे एक तरफ भारत खिलौना उद्योग का केंद्र बनेगा, तो वहीं दूसरी तरफ इससे युवाओं को रोजगार भी मिलेगा। 

मोबाइल फोन की बात करें तो पहले इस क्षेत्र में भारत बहुत पीछे था, लेकिन पिछले कुछ वर्षों की मेहनत के बाद भारत चीन के बाद दूसरा सबसे बड़ा मोबाइल फोन निर्माता बन गया है। इसी सफलता को सरकार खिलौना उद्योग में भी दोहराना चाहती है, जिसके लिए विशेष तौर पर पी.एल.आई. स्कीम लाई जा रही है। अभी तक जो पी.एल.आई. स्कीमें भारत में लागू की गईं, वे विदेशी निर्माताओं को लुभाने में कारगर साबित हुई हैं। भारत सरकार की इस मुहिम से न सिर्फ देश विनिर्माण के क्षेत्र में अग्रणी बनेगा, बल्कि युवाओं को रोजगार के साथ निर्यात से विदेशी मुद्रा भी अर्जित करेगा। वैश्विक बाजार में जहां इससे सबसे बड़ा लाभ भारत को मिलेगा, वहीं चीन से बाहर जाते विदेशी निर्माता भी भारत का रुख करेंगे।

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