शुद्ध के लिए युद्ध से ही बनेगा भारत ‘श्योर फॉर प्योर’

Edited By ,Updated: 23 Nov, 2019 01:11 AM

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त्यौहारों के मौसम से ठीक पहले अगस्त की शुरूआत में ही म.प्र. में सरकार की सख्ती ने मिलावटी दूध, पनीर, मावा के पूरे प्रदेश में कई मामलों को उजागर किया जिनमें कुछ पर रासुका जैसी कार्रवाई भी की गई। मिलावटखोरों की जानकारी देने वालों को 11000 रुपए का...

त्यौहारों के मौसम से ठीक पहले अगस्त की शुरूआत में ही म.प्र. में सरकार की सख्ती ने मिलावटी दूध, पनीर, मावा के पूरे प्रदेश में कई मामलों को उजागर किया जिनमें कुछ पर रासुका जैसी कार्रवाई भी की गई। मिलावटखोरों की जानकारी देने वालों को 11000 रुपए का ईनाम, साथ ही नाम गोपनीय रखने का जो भरोसा देकर एक हैल्पलाइन नम्बर दिया गया। परिणाम भी दिखे कि मिलावटखोर कारोबार समेट दूसरा ठिकाना ढूंढने को मजबूर दिखने लगे। यही क्या कम है कि कहीं से एक अच्छी शुरूआत तो हुई। 

मिलावटखोरों के हैं हौसले बुलंद
पहला सच पूरे देश में अब भी मिलावटखोरों के हौसले इस कदर बुलंद हैं कि खाने-पीने के सामानों में खासतौर पर सिंथैटिक दूध, सिंथैटिक पनीर और नकली मावा जो लिक्विड डिटर्जैंट, ग्लूकोज पाऊडर में रसायन मिलाकर तैयार किया जाता है, के अलावा दूसरी चीजों की लम्बी फेहरिस्त है। जबकि खतरनाक रसायनों से बनी  शृंगार सामग्री व नकली दवाओं के बेफिक्र कारोबार ने देश के स्वास्थ्य को अलग चुनौती दे रखी है। साग-सब्जियों को ताजा व बढिय़ा दिखाने की खातिर नुक्सानदेह रासायनिक लेपों के अलावा रातों-रात इंजैक्शन से बढऩे वाली सब्जियों तथा पकने वाले फल सब कुछ सेहत पर बहुत भारी पड़ रहे हैं। मिलावटी खाद्य तेल, गुटखा और विदेशों से आने वाली दालों में बड़ी मात्रा में कीटनाशकों की मौजूदगी भी डराने वाली है। इन्हीं सबका नतीजा है कि इंसान स्वास्थ्य के प्रति चौकन्ना रहकर भी अनजाने और मजबूरन गम्भीर बीमारियों को दावत  दे हर निवाले के साथ निगल रहा है। 

दूसरा सच रुपयों की खातिर मिलावटखोरों ने इंसानियत की सारी हदों को पार कर बीमारों को नकली दवा तक थमा दी। कुछ ही महीने पहले ऑनलाइन कारोबार से तमाम जगहों से बेहद सस्ते दामों पर जयपुर पहुंची नकली दवाओं की बड़ी खेप ने रौंगटे खड़े कर दिए। जब दवाओं ने असर नहीं दिखाया तो हो-हल्ला मचा, फिर जांच हुई जिससे पता चला कि दिल, शुगर और ब्लड प्रैशर की नकली दवाएं दिल्ली, सिक्किम और राजस्थान से आई थीं। 

तीसरा सच बेहद हैरानी भरा है। चंद महीने पहले ही मुम्बई की जानी-मानी गोधुम ग्रेंस एंड संस के अध्यक्ष शिव शंकर गुप्ता ने चौंकाने वाला खुलासा किया जिसमें पूरे देश में सुबह से शाम तक खाए जाने वाले नामी ब्रांडों के प्रीमियम नमक में जहरीले रसायन का मिश्रण है। पोटाशियम फेरोसिनेसाइड रसायन एक जहर है जिसकी कुछ मात्रा से नमक का ब्लीचिंग प्रोसैस होता है। कम्पनियां जहां निर्धारित मात्रा में प्रयोग का दावा करती हैं, वहीं जानकार बताते हैं कि केवल 1.90 से 4.91 मिलीग्राम तक कैंसर के लिए काफी है। अमरीका की वैस्ट एनालिटिकल लैबोरेट्रीज यानी डब्ल्यू.ए.एल. ने भारत की कई ब्रांडेड कम्पनियों के नमक में यह रसायन जो कार्सिनोजेनिक होता है, को पाया जिससे कैंसर होता है। हैरानी वाली बात यह है कि अमरीका जर्मनी सहित 56 देशों ने नमक के उपयोग पर बैन लगा रखा है लेकिन भारत में धड़ल्ले से जारी है। आर.टी.आई. से ही यही खुलासा हुआ कि एफ.एस.एस.ए.आई. यानी भारतीय खाद्य संरक्षा एवं मानक प्राधिकरण ने इस नमक की कभी जांच नहीं की। 

चौथा सच, एम्स के स्किन विभाग के डाक्टरों की हालिया स्टडी के खुलासे ने सभी को चिंता में डाल दिया। रोज इस्तेमाल होने वाले हर्बल हेयर डाई और दूसरे सौंदर्य प्रसाधन तक खतरनाक हैं? डाक्टरों ने बाजार में बिक रहे 50 नामी हर्बल प्रॉडक्टों जिनमें बालों को रंगने वाली मेहंदी, कॉस्मैटिक क्रीम्स, सिंदूर, बिन्दी, कुमकुम, फेयरनैस क्रीम शामिल हैं, को सुरक्षित नहीं पाया। आई.आई.टी. रुड़की, एम्स ऋषिकेश के साथ हुई ज्वाइंट स्टडी में पता चला कि हेयर डाई और हर्बल मेहंदी में भी खतरनाक रसायन पी.पी.डी. बिना जानकारी दिए मिला देते हैं। जबकि बिन्दी, कुमकुम, सिन्दूर में किस स्तर के कैमिकल का उपयोग होता है, कोई नहीं जानता। 

ऐसे सैंकड़ों क्या, हजारों सच की लम्बी फेहरिस्त बन जाएगी। सवाल यह कि ऐसा कब तक चलेगा?  अगस्त 2016 में सुप्रीम कोर्ट ने मिलावट को गम्भीर मुद्दा बताते हुए केन्द्र और राज्य सरकारों को फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड्स एक्ट-2006 को प्रभावी तरीके से लागू करने के निर्देश दिए तब सरकार हरकत में आई और मिलावटखोरों के बढ़ते हौसलों से आम जनजीवन की सेहत को लेकर फिक्रमंद हुई। एफ.एस.एस.ए.आई. को कहना पड़ा कि ‘‘कोई भी व्यक्ति जो खाद्य पदार्थ में ऐसे किसी पदार्थ की मिलावट करता है जो मानव उपभोग के लिए घातक है तथा जिससे मृत्यु भी हो सकती है तो ऐसे मिलावटखोर को अधिकतम उम्रकैद की सजा तथा कम से कम 10 लाख रुपए का जुर्माना हो सकता है। सिंगापुर की तरह सेल्स ऑफ फूड एक्ट की तैयारी है जिसमें मिलावट गंभीर अपराध है। 

जघन्यतम अपराध जैसा प्रकरण कायम हो
वक्त का तकाजा है कि लंबे-चौड़े मौजूदा कानूनों की छंटनी हो तथा स्वास्थ्य के लिए जरूरी व उपयोगी सभी वस्तुएं चाहे खाने की हों, इलाज की हों या साजो-शृंगार, सौंदर्य से संबंधित हों, फिर देशी हों या विदेशी, सभी एक विभाग, एक कानून और एक छत के दायरे में आएं। शिकायत मिलते ही तत्काल जांच और परीक्षण हो तथा निर्माता, विक्रेता, इम्पोर्टर यानी हर वो कड़ी जो जीवन से खिलवाड़ करे, सभी पर जघन्यतम अपराध जैसा प्रकरण कायम हो और अदालतों में तुरन्त सुनवाई भी हो। किसी भी दशा में मामले का छोटी से लेकर बड़ी अदालत तक में महज 6 महीनों में निपटारा हो ताकि मिलावट के नाम से ही लोग तौबा-तौबा करें तभी भारत को मिलावट के नासूर से मुक्ति मिल पाएगी। 

इतना तो लगता है कि शुद्ध के लिए युद्ध की देश के भीतर ही अघोषित लड़ाई अब अपने मुकाम पर है और मिलावट से निर्णायक जंग जारी रही तो वह दिन दूर नहीं जब भारत श्योर फार प्योर का दर्जा पाने वाला दुनिया का पहला मुल्क भी बन सकता है। चाहे होली हो दीवाली, गणेशोत्सव  हो या नवरात्रि, रमजान, ईद हो या क्रिसमस, ऐसे मौकों पर ही क्यों, पूरे देश को पूरे बारह महीने और 365 दिन शुद्ध खाद्य सामग्री उपलब्ध हो, इस बात का अधिकार देशवासियों को है तो फिर क्यों न ऐसा कानून बने और सख्ती से अमल भी हो और सरकार श्योर फार प्योर की गारंटी दे तभी देश को मिलावट की त्रासदी से मुक्ति मिल पाएगी वरना कितने ही कानूनों के जैसे मिलावट पर भी एक निष्प्रभावी कानून बन जाएगा जिसके मायने कुछ नहीं निकलेंगे।-ऋतुपर्ण दवे
 

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