क्या भारत एक समान नागरिक संहिता के लिए तैयार है

Edited By Updated: 23 Feb, 2022 05:18 AM

is india ready for a uniform civil code

5 राज्यों में चल रहे विधानसभा चुनावों में हमारे राजनीतिक दल पहचान की राजनीति का मुद्दा उठा रहे हैं। यह मुद्दा संकीर्ण राजनीतिक स्वार्थों की पूॢत और अपने वोट बैंक को बढ़ाने के लिए उठाया जा रहा है। कर्नाटक के उड्डुपी में शैक्षिक संस्थान में हिजाब पर...

5 राज्यों में चल रहे विधानसभा चुनावों में हमारे राजनीतिक दल पहचान की राजनीति का मुद्दा उठा रहे हैं। यह मुद्दा संकीर्ण राजनीतिक स्वार्थों की पूॢत और अपने वोट बैंक को बढ़ाने के लिए उठाया जा रहा है। कर्नाटक के उड्डुपी में शैक्षिक संस्थान में हिजाब पर प्रतिबंध के बाद उठे विवाद ने संविधान के अनुच्छेद 44 के कार्यान्वयन पर पुन: बहस छेड़ दी है। इस अनुच्छेद में कहा गया है कि राज्य भारत के संपूर्ण भू-भाग में अपने नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता लागू करने का प्रयास करेगा। हिजाब को एक आवश्यक धार्मिक प्रथा मानते हुए कर्नाटक सरकार ने संविधान सभा में बाबा साहेब अंबेडकर के वक्तव्य को उद्धृत किया, जिसमें उन्होंने कहा था कि हमें धार्मिक निर्देशों को शैक्षिक संस्थानों से बाहर रखना चाहिए। 

आशानुरूप विपक्षी दलों, सामाजिक कार्यकत्र्ताओं और बुद्धिजीवियों ने हिजाब प्रतिबंध के मामले में मुस्लिम लड़कियों का समर्थन किया और कहा कि यह धार्मिक स्वतंत्रता और समानता के अधिकार का अतिक्रमण करता है। अन्य लोगों का कहना है कि यह संविधान के अनुच्छेद 14, 15 के अंतर्गत प्रदत्त लिंग की समानता के अधिकार अनुच्छेद 21 के अंतर्गत महिलाओं की गरिमा की गारंटी का अतिक्रमण करता है और इन अधिकारों को एक समान नागरिक संहिता के कार्यान्वयन के बिना प्राप्त नहीं किया जा सकता। 

एक समान नागरिक संहिता में धर्म को सामाजिक संबंधों से अलग रखा जाता है और हिन्दू कोड बिल, शरिया कानून अदि जैसे वैयक्तिक कानूनों, जो धार्मिक ग्रंथों और विभिन्न धार्मिक समुदायों के रीति-रिवाजों पर आधारित हैं, उन्हें भी अलग रखता है और उसके स्थान पर एक समान कानून बनाया जाता है जो विवाह, तलाक, दत्तक ग्रहण, उत्तराधिकार आदि जैसे वैयक्तिक मामलों में धर्म को ध्यान में रखते हुए सभी नागरिकों को एक समान अधिकार देता है और इस प्रकार विभिन्न सांस्कृतिक समूहों में सामंजस्य स्थापित, असमानता को दूर और महिलाओं के अधिकारों की रक्षा करता है और इस प्रकार लिंग के आधार पर एक समान समाज का निर्माण करता है।

वस्तुत: एक समान नागरिक संहिता सत्तारूढ़ भाजपा का मुख्य मुद्दा रहा है और अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण तथा जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद-370 को रद्द करने के साथ-साथ पार्टी के 2019 के लोकसभा चुनावों के घोषणा पत्र में शामिल किया गया था। मोदी और अमित शाह दोनों का मानना है कि किसी भी देश में धर्म आधारित कानून नहीं होने चाहिएं और सभी नागरिकों के लिए एक कानून होना चाहिए। एक समान नागरिक संहिता समाज के कमजोर वर्गों और धार्मिक अल्पसंख्यकों को संरक्षण और एकता के माध्यम से राष्ट्रवादी भावना को बढ़ावा देती है। यह अल्पसंख्यक बनाम बहुसंख्यक मुद्दा है और भारत में रह रहे मुसलमानों के लिए हिंदुत्व ब्रिगेड की नीति है। अखिल भारतीय मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने भी इस संबंध में आपत्ति व्यक्त की और वे इसे भारत की विविधता के लिए खतरा मानते हैं। 

हमारे देश में बहुसांस्कृतिक और बहुधार्मिक समाज हैं। प्रत्येक समूह को अपनी पहचान बनाने का संवैधानिक अधिकार प्राप्त है। इससे एक विचारणीय प्रश्न उठता है कि एक समान नागरिक संहिता को अल्पसंख्यक विरोधी क्यों माना जा रहा है? यदि हिन्दू पर्सनल लॉ का आधुनिकीकरण किया जा सकता है और परंपरागत ईसाई प्रथाओं को असंवैधानिक घोषित किया जा सकता है तो फिर मुस्लिम पर्सनल लॉ को पवित्र क्यों माना जाता है।  दु:खद तथ्य यह है कि विगत वर्षों में देश में संकीर्ण व्यक्तिगत राजनीतिक एजैंडे के लिए जानबूझकर धर्म को विकृत किया गया है और इसका उद्देश्य वोट बैंक भी रहा है। इस महत्वपूर्ण तथ्य में बाधाएं उत्पन्न की गई कि डॉ. अंबेडकर ने वैकल्पिक एक समान नागरिक संहिता की वकालत की थी। वस्तुत: उच्चतम न्यायालय ने भी अनेक बार एक समान नागरिक संहिता बनाने पर बल दिया किंतु इस संबंध में कोई कदम नहीं उठाए गए। 

वर्ष 2019 में राज्य सभा में भाजपा के एक सदस्य ने एक समान नागरिक संहिता के बारे में एक गैर-सरकारी विधेयक पेश किया, किंतु विपक्षी सदस्यों ने इसे इसलिए रोक दिया कि इससे सांप्रदायिक तनाव पैदा हो सकता है क्योंकि उस समय देश में नागरिकता संशोधन अधिनियम विरोधी प्रदर्शन चल रहे थे। नवम्बर में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने केन्द्र से आग्रह किया कि वे एक समान नागरिक संहिता के संबंध में त्वरित कदम उठाए क्योंकि यह आज की आवश्यकता है और इसे अनिवार्य रूप से लागू किया जाना चाहिए। दु:खद तथ्य यह है कि आज की राजनीतिक-सामाजिक वास्तविकता के मद्देनजर अंबेडकर की स्वस्थ सलाह को नजरअंदाज किया गया और इसे एक दिवास्वप्न के रूप में देखा जा रहा है तथा अनुच्छेद 44 लागू नहीं किया गया।

वर्तमान स्थिति यह है कि हिन्दू और मुसलमान दोनों ने अपने धर्मों के मूल तत्वों को भुला दिया है और उन्हें मुख्यतया धर्मांध और कट्टरवादी लोगों द्वारा गुमराह किया जा रहा है। हैरानी की बात यह है कि आज शिक्षित वर्ग की भाषा और कट्टरवादी हिन्दू-मुसलमानों की भाषा में अंतर नहीं किया जा सकता। प्रत्येक आलोचना के लिए उनका एक ही उत्तर होता है कि धर्म खतरे में है। इस मामले को इस तथ्य ने और उलझा दिया है कि देश में व्यक्तिगत कानूनों द्वारा अनेक धार्मिक प्रथाओं और आस्थाओं को चलाया जाता है और जब तक एक समाज के रूप में हम इन सब चीजों को नहीं छोड़ते, तब तक एक समान नागरिक संहिता की कल्पना नहीं की जा सकती।

भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है और पश्चिमी देशों में धर्मनिरपेक्षता का तात्पर्य है कि राज्य का कोई धर्म नहीं है जबकि यहां धर्मनिरपेक्षता की अवधारणा का तात्पर्य सभी धर्मों के प्रति सहिष्णुता है। यह न तो ईश्वर समर्थक है और न ईश्वर विरोधी तथा उससे अपेक्षा की जाती है कि वह सभी धर्मों और लोगों को एक नजर से देखे ओर यह सुनिश्चित करे कि धर्म के आधार पर किसी के साथ भी भेदभाव न किया जाए।  फिर इस समस्या का समाधान क्या है? यह इस बात पर निर्भर करता है कि क्या सरकार विभिन्न वायदों से मुक्त होना चाहती है? अपनी गलतफहमियों और चिंताओं को दूर करने के लिए लोगों में आम सहमति बननी चाहिए और उसके बाद ही एक समान नागरिक संहिता बनाई जा सकती है। एक वरिष्ठ मंत्री के शब्दों में, ‘‘एक समान नागरिक संहिता लैंगिक न्याय के लक्ष्य को प्राप्त करने का वैज्ञानिक और आधुनिक तरीका है जो कानूनों में अलग-अलग निष्ठाओं को दूर कर राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देगा क्योंकि इन अलग-अलग कानूनों में परस्पर विरोधाभासी विचारधाराएं हैं।’’ 

भारत और उसकी धर्मनिरपेक्षता की खातिर यह एक समान नागरिक संहिता स्वैच्छिक होनी चाहिए और उसे धीरे-धीरे स्वीकृति मिलनी चाहिए। तब मुस्लिम लोगों के पास एक विकल्प होगा कि वे उदार और प्रगतिशील बनें या पुरातनपंथी या पिछड़े बने रहें। गोवा में लंबे समय से पुर्तगाली शासकों के कारण एक समान नागरिक संहिता है और इसे सभी लोगों द्वारा स्वीकार किया गया है तथा इस प्रकार गोवा की एक पहचान बनी है। समय आ गया है कि अलग-अलग समुदायों के लिए अलग-अलग कानूनों को रद्द किया जाए और संविधान के अनुच्छेद 44 को लागू कर भारत में सुधार लाया जाए। आपका क्या मत है?-पूनम आई. कौशिश

 

Related Story

    IPL
    Royal Challengers Bengaluru

    190/9

    20.0

    Punjab Kings

    184/7

    20.0

    Royal Challengers Bengaluru win by 6 runs

    RR 9.50
    img title
    img title

    Be on the top of everything happening around the world.

    Try Premium Service.

    Subscribe Now!