क्या ‘सार्क’ में सम्भव है ई.यू. जैसी स्थिति

Edited By ,Updated: 16 Sep, 2019 02:01 AM

is sau possible in saarc situation like

दुनिया में यूरोपियन यूनियन के पास सबसे बड़ा मुक्त व्यापार क्षेत्र है। ई.यू. के एकल बाजार में 50 करोड़ लोग हैं और इसकी अर्थव्यवस्था आकार में भारतीय अर्थव्यवस्था से 10 गुणा बड़ी है। इस पूरे क्षेत्र में वस्तुओं, पूंजी तथा सेवाओं की बेरोक-टोक आवाजाही...

दुनिया में यूरोपियन यूनियन के पास सबसे बड़ा मुक्त व्यापार क्षेत्र है। ई.यू. के एकल बाजार में 50 करोड़ लोग हैं और इसकी अर्थव्यवस्था आकार में भारतीय अर्थव्यवस्था से 10 गुणा बड़ी है। इस पूरे क्षेत्र में वस्तुओं, पूंजी तथा सेवाओं की बेरोक-टोक आवाजाही होती है। फ्रैंच वाइन बिना सीमाओं के इटली में बेची जा सकती है, जर्मन कारें स्पेन में तथा इंगलैंड में व्यापारी वित्तीय केन्द्र लंदन में सिक्योरिटीज की डील पूरे यूरोप में कर सकते हैं। 

पोलैंड और पुर्तगाल के नागरिक लंदन या कोपेनहेगन जा सकते हैं तथा वहां घर और परिवार को बसा सकते हैं। यह एक अनोखा प्रबंध है, जिसकी धरती पर कोई मिसाल नहीं है। ई.यू. का विचार दूसरे विश्व युद्ध के बाद सामने आया। लोगों ने सोचा कि यदि यूरोपियन देशों की अर्थव्यवस्था को जोड़ दिया जाए तो उनमें युद्ध की आशंका बहुत कम रह जाएगी। इस प्रकार ई.यू. के देश स्टील उद्योगों के माध्यम से एक-दूसरे से जुडऩा शुरू हुए, जोकि युद्ध सामग्री के उत्पादन के लिए जरूरी थी।

धीरे-धीरे उन्होंने अपने अन्य हित भी सांझा करने शुरू कर दिए, जब तक कि वे वर्तमान स्थिति में नहीं पहुंच गए, जहां पूरा यूरोप संघीय ढांचे वाले एक देश की तरह नजर आता है। वर्तमान में अधिकतर ई.यू. देशों की एक करंसी यूरो है। फ्रांस, जर्मनी और इटली ने अपनी करंसियों को छोड़ कर यूरो को अपना लिया है। हालांकि इस महाद्वीप में लोग अलग-अलग भाषाएं बोलते हैं लेकिन इन देशों का विश्वास है कि उनकी सांस्कृतिक विरासत एक समान है। उनकी सांस्कृतिक और धार्मिक मान्यताएं मिलती-जुलती हैं। पूरे महाद्वीप को जोडऩे में भी एक तरह का आकर्षण है जैसा कि एक हजार साल पहले योद्धा चाल्र्स द ग्रेट ने किया था। 

ऐसा लगता है कि युद्ध से बचने का इन देशों का आरम्भिक विचार कामयाब रहा है क्योंकि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद पिछले 75 वर्षों में यहां कोई युद्ध नहीं हुआ है। जर्मनी और फ्रांस के बीच पुरानी दुश्मनी समाप्त हो गई है। इंगलैंड को अब इस महाद्वीप में संतुलन बनाने वाली शक्ति के तौर पर नहीं देखा जाता। इस संदर्भ में ई.यू. एक अच्छी बात है। इसके अलावा अर्थव्यवस्थाओं को जोडऩे की नीति भी सफल रही है। जिन देशों को मानव संसाधन और लेबर की जरूरत थी वे सीमापार से ऐसे संसाधन मिल जाने से लाभान्वित हुए। लगभग 20 वर्ष पहले पोलैंड के ई.यू. में आने के बाद यू.के. ने पोलैंड के प्रवासियों के लिए अपनी सीमाएं खोल दी हैं। इस समय यू.के. में लगभग 30 लाख प्रवासी हैं और 10 लाख ब्रिटिश लोग यूरोप में रह रहे हैं जिनमें से अधिकतर स्पेन में हैं। ई.यू. का विस्तार पूर्व की ओर हो रहा है। पूर्व सोवियत राज्यों से भी इसके संबंध बढ़ रहे हैं। 

भारत के लिए सबक
यह सब भारत के लिए एक सबक है। हम इस क्षेत्र में अपनी क्षमता का इस्तेमाल करने में असफल रहे हैं और एक राष्ट्र तथा एक अर्थव्यवस्था के तौर पर हम दक्षिण एशिया में ई.यू. जैसा ढांचा नहीं बना सकते। दक्षिण एशिया क्षेत्रीय सहयोग संगठन में नेपाल, बंगलादेश, पाकिस्तान, श्रीलंका, भूटान, मालदीव तथा भारत शामिल हैं। यहां पर दुनिया की जनसंख्या का 5वां हिस्सा रहता है लेकिन इनमें प्रमुख देश और प्रमुख अर्थव्यवस्थाएं केवल तीन हैं : भारत, बंगलादेश और पाकिस्तान। श्रीलंका, भूटान और नेपाल में हमारी सीमित आवाजाही है लेकिन अन्य दो प्रमुख देशों में बिल्कुल नहीं। यह कहना उचित होगा कि यदि कोई गैर-भारतीय है तो उसके लिए पाकिस्तान का वीजा लेना आसान है। यही स्थिति पाकिस्तानियों के साथ भी है। 

अर्थव्यवस्था दूसरे नम्बर पर
व्यापार के मामले में हमारे लिए अर्थव्यवस्था राष्ट्रवाद के बाद दूसरे नम्बर पर आती है। पाकिस्तान के साथ होने वाला सीमित व्यापार भी कोई घटना होने के बाद बंद हो जाता है। प्रश्र यह है कि क्या सार्क में ई.यू. जैसी व्यवस्था हमारे लिए लाभदायक है? इसका उत्तर है हां। हमारे निर्माताओं को पाकिस्तान और बंगलादेश के बाजार में पहुंच उपलब्ध करवाने से मांग में मंदी को दूर किया जा सकता है। भारतीय सामान की गुणवत्ता व कीमत इन दोनों देशों के उपभोक्ताओं के लिए आकर्षक होगी। 

यह रोचक है कि जहां भारत और पाकिस्तान दोनों का नेतृत्व व्यापार को सीमित रखने के प्रति उत्सुक रहा है वहीं पाकिस्तान का व्यापारिक समुदाय भी भारत के साथ दृढ़ आर्थिक संबंधों का पक्षधर नहीं है। इसके विपरीत भारतीय व्यापारियों ने सरकार को हमेशा बाजार को खोलने के लिए प्रोत्साहित किया है लेकिन उनकी आवाज को ऐसे लोगों द्वारा दबा दिया जाता है जो सीमा पर तनाव चाहते हैं। 

भारत में इस समय अजीब स्थिति है। हमारे यहां इस समय एक ऐसी मशहूर विचारधारा सत्ता में है जो दशकों से अखंड भारत की बात करते रहे हैं। एक ऐसी भारतीय सभ्यता जो काबुल से बर्मा तक फैली थी। लेकिन इसके साथ ही हम इस अखंड भारत को सार्क नागरिकों तथा वस्तुओं, पूंजी और सेवाओं की इस क्षेत्र में मुक्त आवाजाही से जोडऩे के विचार से घृणा करते हैं।-आकार पटेल

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