प्लास्टिक कानून व्यावहारिक न होने से उन्हें लागू करना अनुचित है

Edited By ,Updated: 02 Jul, 2022 04:20 AM

it is unfair to implement plastic laws as they are not practical

इसे परंपरा कहें या अपना बड़प्पन दिखाने की कोशिश या फिर अपनी धाक से लेकर धौंस जमाने की मानसिकता और हठधर्मी कि जो सरकार करे वही ठीक, चाहे वास्तविकता कुछ भी हो ! यही प्रवृत्ति सरकार

इसे परंपरा कहें या अपना बड़प्पन दिखाने की कोशिश या फिर अपनी धाक से लेकर धौंस जमाने की मानसिकता और हठधर्मी कि जो सरकार करे वही ठीक, चाहे वास्तविकता कुछ भी हो !
यही प्रवृत्ति सरकार के उस आदेश में दिखाई देती है जिसके अनुसार जुलाई से सिंगल यूज प्लास्टिक पर बैन लगा दिया गया है। 

प्लास्टिक कथा : 19वीं सदी के मध्य में प्लास्टिक के रूप में एक ऐसी खोज हुई जिसने तेजी से पूरी दुनिया में अपनी धूम मचा दी। उसके बाद प्लास्टिक के इस्तेमाल से होने वाले नुक्सान जैसे सामने आते गए, इस पदार्थ का विकल्प खोजा जाने लगा लेकिन अभी तक इसमें बहुत कम सफलता मिली है लेकिन भविष्य में कुछ भी हो सकता है। प्लास्टिक के आने से पहले कागज से बनी चीजों का इस्तेमाल होता था जो महंगा भी था और उसके लिए पेड़ों को काटना पड़ता था। इसके साथ ही न तो ये वस्तुएं ज्यादा देर तक टिकती थीं और न ही इनमें रखकर लाई जाने वाली चीजें। इसके अतिरिक्त  उनके निपटान यानी डिस्पोजल की समस्या भी थी। 

यह दौर उद्योग-धंधों के पनपने और उपभोक्ताओं के लिए प्रतिदिन नई चीजों के आने का था जिन्हें रखने के लिए प्लास्टिक से बनी टिकाऊ  और सस्ती थैलियों का इस्तेमाल होने लगा। इसी तरह खाने-पीने में प्लास्टिक के कप, गिलास, प्लेट, नली, क्रॉकरी, कटलरी और बहुत-सी दूसरी सामग्री ने घर-घर में अपनी जगह बना ली। इस तरह प्लास्टिक हमारे जीवन का अनिवार्य अंग बन गया जिसके बिना कुछ भी करना संभव नहीं रहा। अब इसी प्लास्टिक पर कड़े प्रतिबंध लगा दिए गए हैं जिन्हें लागू करना न तो आसान है और न ही प्रैक्टिकल क्योंकि इसके विकल्प के रूप में केवल यही है कि हम कागज से बनी चीजों का इस्तेमाल फिर से शुरू कर दें। 

कानून का पालन न करने और पकड़े जाने पर 5 साल की कैद और एक लाख तक का जुर्माना हो सकता है। कुछ राज्यों ने तो एेसे दिशा-निर्देश जारी किए हैं कि यदि कोई प्लास्टिक की थैली में घर का सामान लाते हुए पकड़ा गया तो उस पर कड़ी कार्रवाई होगी। एेसे आदेशों से समाज में अफरा-तफरी और उसके बाद वसूली का धंधा ही बढ़ेगा। सच यह भी है कि लगभग एक लाख छोटे, मध्यम उद्योग इस कारोबार में हैं और लाखों नहीं करोड़ों लोग इसके व्यापार से जुड़े हैं। प्लास्टिक बंदी से क्या अंधेर नगरी चौपट राजा की कहावत सिद्ध नहीं होती और समाज में अव्यवस्था फैलने का खतरा नहीं है? यह भी हो सकता है कि इस कानूनन बंदी का कोई असर ही न हो और उद्योगपति, व्यापारी तथा उपभोक्ता कुछ ले-दे कर इसके उल्लंघन होने पर बचने का रास्ता निकाल लें। 

प्लास्टिक प्रदूषण : इसमें कोई दो राय नहीं है कि प्लास्टिक के इस्तेमाल में अनेक दोष हैं, जैसे कि इसके डिस्पोजल का कोई सही प्रबंध न होने से यह बहुत घातक हो सकता है। मनुष्य से लेकर पशुओं तथा जलचरों के लिए नुक्सानदायक है। अक्सर सड़कों, नदी के किनारों और समुद्र तट पर प्लास्टिक की बोतलें और कचरा बिखरा हुआ दिखाई देता है। अब क्योंकि इसके डिस्पोजल का कोई उचित प्रबंध सरकार से हुआ नहीं तो फिर इसके इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगाने का कोई औचित्य नहीं बनता। इसके विपरीत प्लास्टिक अपने गुणों के कारण, उसमें रखी वस्तुओं के देर तक तरोताजा रहने और पूरी तरह से कीटाणु रहित होने अर्थात हाइजीनिक होने से इसका इस्तेमाल न करना संभव नहीं है। 

जब ऐसा है तो प्लास्टिक के दोषों का निराकरण करने का कानून बनाया जाता, उसका एेसा विकल्प दिया जाता जो अपनी उपयोगिता में प्लास्टिक के बराबर होता और इसके साथ ही उसके निपटान के लिए वेस्ट मैनेजमैंट के जरिए उपकरण और प्लांट्स लगाए जाते, तब तो बात समझ में आती। 

टैक्नोलॉजी का इस्तेमाल : ऐसा नहीं है कि इस दिशा में कोई काम नहीं हुआ। देश के कुछ राज्यों में प्लास्टिक प्रदूषण से बचने के लिए प्लांट्स लगे हैं लेकिन वे अपनी सीमित क्षमता के कारण बेअसर साबित हो रहे हैं। अपने देश के आकार और आबादी के सामने ये ऊंट के मुंह में जीरे के समान हैं। नतीजा यही है कि नदियों से लेकर समुद्र तक प्लास्टिक प्रदूषण फैलता जा रहा है।ऐसा भी नहीं है कि यह समस्या केवल हमारे देश की हो, यह विश्वव्यापी है। 

जिन देशों ने इस समस्या के विकराल रूप लेने से पहले कदम उठा लिए, वे आज प्लास्टिक के फायदों का लाभ उठा रहे हैं और साथ ही उसके प्रदूषण से बच भी रहे हैं। प्रतिबंध लगाना तब ही सही हो सकता है कि जब उसका कोई समान विकल्प हो। सिंगल यूज प्लास्टिक जैसी कोई वस्तु जब तक खोज नहीं ली जाती, तब तक के लिए इस पर रोक लगाने के बारे में सरकार को व्यावहारिक दृष्टिकोण से विचार करना होगा। एेसी नीति और कानून व्यवस्था लागू करनी होगी कि प्लास्टिक के लाभ मिलते रहें और स्वास्थ्य की रक्षा भी हो जाए। 

एक बार इस्तेमाल कर फैंक दिए जाने वाले प्लास्टिक को रीसाइकिल कर बहुत से उपयोगी पदार्थों में बदला जा सकता है। ऐसा नहीं है कि हमारा उद्योग जगत यह बात नहीं जानता लेकिन उसके सामने रीसाइक्लिंग प्लांट लगाने की पर्याप्त सुविधाएं नहीं हैं, इसकी लागत बहुत ज्यादा होने और मुनाफा कम होने और इसके साथ ही टैक्स और दूसरी सुविधाओं का आकर्षण न होने से इसमें बहुत कम निवेश हो रहा है। 

सरकार पुनर्विचार करे : यदि सरकार में इच्छाशक्ति है और वह वास्तव में प्लास्टिक प्रदूषण से मुक्ति दिलाकर देशवासियों का भला करना चाहती है तो उसे अपने वर्तमान आदेश को रद्दी में डालकर नए सिरे से सोचना होगा। यहां यह बताना कि सरकार को इन सब अनुसंधानों और खोजपूर्ण तथ्यों की जानकारी नहीं है तो यह एक भ्रम है। सरकार सब कुछ जानती है लेकिन हो सकता है कि अपने राजनीतिक स्वार्थ या फिर किसी अन्य कारण से कम से कम इस मामले में तो सही कदम नहीं उठा रही।-पूरन चंद सरीन
 

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