प्राकृतिक दृश्यों से सजा और समस्याओं से घिरा लक्षद्वीप

Edited By ,Updated: 13 Jan, 2024 06:22 AM

lakshadweep surrounded by natural scenery and problems

हमारे देश में मनमोहक, सुंदर और प्राकृतिक ऊर्जा से भरे देखने योग्य और एक सैलानी के लिए आकर्षण से भरे स्थानों की कोई कमी नहीं है।

हमारे देश में मनमोहक, सुंदर और प्राकृतिक ऊर्जा से भरे देखने योग्य और एक सैलानी के लिए आकर्षण से भरे स्थानों की कोई कमी नहीं है। एक ओर स्वर्ग-सा सुंदर कश्मीर है तो पूरे भारत में दूसरे ऐसे पर्यटक स्थल हैं जो दुनिया भर के लोगों का मन मोह लेने के लिए काफी हैं। पिछले दिनों प्रधानमंत्री मोदी की लक्षद्वीप यात्रा ने सैर-सपाटा करते रहने वाले लोगों के मन में यह इच्छा जगाई कि एक बार तो यहां जाया जाए। परंतु इसे विशाल पर्यटक स्थल बनाने से पहले कुछ सावधानियां जरूरी हैं।

प्राकृतिक छटा : सन् 2016 के सितंबर माह के अंतिम सप्ताह में लक्षद्वीप जाना हुआ। विज्ञान प्रसार के इंडिया साइंस चैनल के लिए समुद्री पानी से पीने का पानी और बिजली प्राप्त करने की टैक्नोलॉजी पर फिल्म बनानी थी। यह संयंत्र यहां नैशनल इंस्टीच्यूट ऑफ आेसियानोग्राफी के सहयोग से लगाया गया है। इस टैक्नोलॉजी से यह संभव हो पाएगा कि यहां जीवन के लिए अनिवार्य ये दोनों चीजें मिल सकें।

लगभग 32 किलोमीटर में फैले इस द्वीप को पूरा घूमने के लिए कुछ घंटे ही काफी हैं। लगभग 73000 की जनसंख्या थोड़े से हिस्से में सिमट जाती है। इनके आपस के रिश्ते बहुत ही आत्मीय, मधुर और मिलनसारी से भरे हैं। ईमानदारी चाहे अपने काम के प्रति हो या आपसी व्यवहार में, यहां की पहचान है। लोग घरों की सुरक्षा पर ज्यादा ध्यान नहीं देते क्योंकि किसी को चोरी-चकारी का कोई डर नहीं। बस कभी कोई जंगली जानवर, घरेलू पशु या सड़क पर घूमते कुत्ते, बिल्लियां अंदर न आ जाएं, उतनी सुरक्षा काफी है।

नारियल के पेड़ों की लंबी कतारें दिखाई देंगी, उसी की खेती ज्यादातर होती है, बाकी साग-सब्जी उगा ली या मोटा अनाज पैदा कर लिया। अपनी जरूरत का मिल गया और जो बचा, उसे बेचकर घर की दूसरी चीजें खरीद लीं। सभी घरों में फर्नीचर, रेडियो टी.वी. है और किसी चीज की जरूरत हुई तो नाव वाले से कहकर कोच्चि से मंगा ली। पढ़ाई के मामले में साक्षरता लगभग 100 प्रतिशत है, लड़कियों की पढ़ाई-लिखाई में कोई रुकावट नहीं और वे कहीं भी आ-जा सकती हैं, छेडख़ानी या महिला उत्पीडऩ की घटनाओं से यह प्रदेश अछूता है। शादी-ब्याह यहीं तय हो जाते हैं, कोई बाहर जाकर बसना चाहे तो कोई रोक-टोक नहीं। बहुत से लोग विदेशों में बस गए हैं और कुछ ने तो राष्ट्रीय सम्मान भी अर्जित किए हैं।

मलयालम भाषा है लेकिन हिन्दी सभी समझते हैं। अतिथियों का स्वागत करना यहां रहने वालों की आदत जैसी है, चाहे कोई भी हो। बातों का सिलसिला शुरू हो जाता और कोई बुजुर्ग यहां का इतिहास सुनाने लगते। भारतीय राजशाही चेरा के बारे में सुना तो टीपू सुल्तान के बारे में भी, इसके साथ ही पुर्तगाली यहां आकर बसे तो उन्हें हराकर अंग्रेज यहां अपनी हुकूमत करने लगे। मार्को पोलो और फिर वास्को डी गामा यहां आए। पहले यहां ङ्क्षहदू थे लेकिन बाद में सभी ने इस्लाम स्वीकार कर लिया। आज यहां पूरी आबादी मुस्लिमों की है और अन्य धर्मों के जो लोग हैं, वे यहां नौकरी के कारण रहते हैं या फिर कोई व्यवसाय करते हैं।

समुद्र के नजारे : अब समुद्र की आेर चलते हैं। सागर क्या है, अथाह नीले जल का अद्भुत संसार है। बीच पर सफेद रेत जिस पर चलने का अपना ही आनंद। कोई कचरा या गंदगी नहीं, जो भी यहां आता है, उसकी यहां कुछ भी कूड़ा-कर्कट फैंकने की हिम्मत नहीं होती, जुर्माना लग सकता है। साफ जगह को गंदा करने की वैसे भी कोई जुर्रत नहीं करता। समुद्र का पानी शांत लेकिन दूर से आती लहरें पास आकर भिगो भी सकती हैं, पर उनकी गति या समुद्री शोर इतना नहीं होता जितना कि मुंबई या चेन्नई के बीच पर देखने को मिलता है।

पानी में आगे बढ़ते ही प्रकृति का अविस्मरणीय दृश्य सामने आ जाता है। कोरल ऐसे दिखते हैं कि मानो हाथ बढ़ाकर उन्हें छू सकें। लेकिन गहराई में जाना खतरनाक भी हो सकता है इसलिए यहां मौजूद गोताखोर अंदर तक ले जाते हैं और आपको वह दुनिया दिखाई देने लगती है जो हमेशा के लिए मन में बस जाती है। रंग-बिरंगी, सुनहरी, सफेद, झूमती शर्माती आकृतियां और अगर हाथ या पैर का स्पर्श हो जाए तो पूरे शरीर में सिहरन-सी दौड़ जाए।

शाम होते-होते पूरा इलाका खाली होने लगता है। आम तौर से रात भर रुकने का प्रबंध यहां अभी नहीं है। समुद्र के पास के जंगल हों या दूर दिखाई देते अन्य द्वीपों के दृश्य शाम होते ही विचित्र आकृतियों में बदलते दिखाई देते हैं। लंबी छायाएं देखकर रोमांच भी होता और कुछ डर भी लेकिन धीमे-धीमे बहती वायु और पत्तों की सरसराहट आनंदित भी करती। दिन भर समुद्र की अठखेलियां देखिए और उसके अंदर छिपे रत्नों को निहारिए और घोर अंधेरा होने से पहले बस्ती में लौट जाइए, इतना संजोकर ले जाना बहुत है।

वास्तविकता के दर्शन : अब हम इस बात पर आते हैं कि क्योंकि यह पूरा क्षेत्र ईको सैंसेटिव यानी बहुत ही कोमल और कमजोर है, थोड़ा भी झटका लगे तो सैंकड़ों वर्षों में बना प्राकृतिक सौंदर्य जरा-सी लापरवाही से बर्बाद हो सकता है जिसे दोबारा बना सकना संभव नहीं है। अभी यहां बड़े होटल, रिसोर्ट या आमोद प्रमोद और मनोरंजन के साधन नहीं हैं। अभी तो रिस्ट्रिक्शन इतनी है कि कोई भी निर्माण कार्य करने से पहले बहुत लंबी प्रक्रिया से गुजरना होता है।

आवाजाही से भरपूर पर्यटक स्थल बनाने से पहले इस बात पर भी गौर करना जरूरी है कि अब तक यहां के सभी द्वीपों में बहुतों में तो इंसान बसते ही नहीं हैं क्योंकि वे प्राकृतिक जंगल हैं। उन्हें नष्ट कर यदि बस्तियां बसाई गईं तो क्या उनका हाल भी वही नहीं होगा जैसा कि शेष भारत में वन विनाश के कारण हुआ है? यहां अपना बहुत कम है, अधिकतर बाहर से लाना पड़ता है और फिर बीच में कोई सड़क या रेल नहीं, अथाह समुद्र है। प्रश्न यह है कि क्या यह द्वीप इतना भार सह पाएंगे और प्राकृतिक असंतुलन से इस क्षेत्र को बचाया जा सकेगा ?

यदि लक्षद्वीप का प्राकृतिक सौंदर्य बनाए रखना है तो पहले इन प्रश्नों के उत्तर खोजने होंगे। उसके बाद ही कोई कदम उठाना ठीक होगा। अब हम अपनी फिल्म की बात करते हैं। अनुसंधान के बाद पाया गया कि यहां जो समुद्र है, उसकी दिशा और यहां का क्लाइमेट ऐसा है कि समुद्र में से पीने का पानी और ऊर्जा प्राप्त की जा सकती है।

समुद्र की ऊपरी सतह गरम और निचली सतह पर शून्य से भी बहुत कम तापमान होता है। अब वहां से टैक्नोलॉजी की मदद से बड़े-बड़े पाइपों के जरिए डिसेलिनेशन तकनीक से पेयजल प्राप्त किया जा सकता है। इसी तरह ऊर्जा यानी बिजली बनाई जा सकती है। इन दोनों चीजों की इस इलाके को बहुत जरूरत है। लक्षद्वीप को विशाल पर्यटक स्थल बनाए जाने से किसी को कोई एतराज नहीं हो सकता लेकिन यदि यह काम पर्यावरण और ईको सिस्टम की सैंसेटिव पर ध्यान दिए बिना किया गया तो इसके दुष्परिणाम निकलने तय हैं। -पूरन चंद सरीन

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