Edited By ,Updated: 13 Feb, 2024 05:08 AM
संसद की स्थायी समिति की न्यायिक सुधार पर वार्षिक रिपोर्ट की कई सिफारिशों को सरकार ने स्वीकार कर लिया है। बदलते दौर में युवा वकीलों के टैलेंट से न्यायपालिका और देश लाभान्वित हो इसके लिए जजों की रिटायरमैंट उम्र नहीं बढ़ाने का फैसला अच्छा है।...
संसद की स्थायी समिति की न्यायिक सुधार पर वार्षिक रिपोर्ट की कई सिफारिशों को सरकार ने स्वीकार कर लिया है। बदलते दौर में युवा वकीलों के टैलेंट से न्यायपालिका और देश लाभान्वित हो इसके लिए जजों की रिटायरमैंट उम्र नहीं बढ़ाने का फैसला अच्छा है। पारदर्शिता के लिहाज से हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट जरूरी तौर पर वार्षिक रिपोर्ट जारी करें। सभी जज हर साल अपनी संपत्ति की घोषणा करें।
इन बातों पर सख्ती से अमल के लिए हाई कोर्ट जजों के 1954 के नियम और सुप्रीम कोर्ट जजों के 1958 के नियमों में बदलाव भी होना चाहिए। समिति की रिपोर्ट के अनुसार बार काऊंसिल की भूमिका के पुनॢनर्धारण और सुप्रीम कोर्ट के जज की मौखिक टिप्पणियों के अनुसार वकीलों के प्रशिक्षण के लिए संस्थागत तंत्र बनाने पर भी गंभीर बहस की जरूरत है। रिपोर्ट के अनुसार पिछले एक साल में लगभग 141 जज नियुक्त हुए। उनमें से 81 सामान्य वर्ग के, 22 महिलाएं, 10 अनुसूचित जाति और जनजाति के और 8 अल्पसंख्यक वर्ग के जज थे। जजों की नियुक्ति में विविधता और सामाजिक संतुलन बढ़ाने के लिए कॉलेजियम प्रणाली के साथ एम.ओ.पी. में भी जरूरी बदलाव करना होगा।
सुप्रीम कोर्ट को 2 हिस्सों में बांटने की बात : प्रकाश सिंह मामले पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार पुलिस को अपराध की जांच और अभियोजन के दो हिस्सों में बांटने की जरूरत है। उसी तरीके से सुप्रीम कोर्ट को भी संवैधानिक और अपील मामलों के दो हिस्सों में बांटने के लिए लम्बी बहस चल रही है। विधि आयोग ने इस बारे में 1984 और 1988 में सिफारिश की थी। केन्द्र सरकार ने भी इस बारे में 2010 और 2016 में अटार्नी जनरल से इस बारे में राय मांगी थी। 8 साल पहले इसी मामले पर दायर याचिका पर 5 जजों की संविधान पीठ को फैसला देना है। समिति के अनुसार दिल्ली केन्द्रित सुप्रीम कोर्ट होने से लोगों को न्याय मिलने में दिक्कत होती है।
दूर-दराज से आने वाले लोगों को बेवजह के खर्च के साथ भाषा की दिक्कत भी होती है। समिति के अनुसार दिल्ली के सुप्रीम कोर्ट को संविधान मामलों की मुख्य पीठ होना चाहिए। उसके अलावा पूरे देश के 4 हिस्सों में सुप्रीम कोर्ट की 4 क्षेत्रीय बैंच बनाने की जरूरत है जो अपील कोर्ट के तौर पर काम करें। इससे लोगों को न्याय मिलने का हक सही मायने में हासिल होगा। सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस ओका की बैंच ने कहा है कि ट्रायल कोर्ट को निचली अदालत न कहा जाए। दरअसल अधिकांश मामलों का निपटारा जिला अदालत के स्तर पर होना चाहिए। जिला जजों को आपराधिक मामलों में फांसी देने का अधिकार हासिल है। लेकिन जमानत के मामलों में हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में फैसला होता है। उसी तरीके से सिविल मामलों में सिविल जज और जिला जज के बाद हाई कोर्ट में मामले का पूर्ण निस्तारण हो जाता है।
जिला अदालतों और हाई कोर्ट के साथ देश में अनेक ट्रिब्यूनल हैं। सुप्रीम कोर्ट की क्षेत्रीय बैंच बनने के बाद अपील की एक और प्रक्रिया बढ़ जाएगी। संविधान के अनुसार अधिकांश विवादों का निराकरण पंचायत और तालुका स्तर पर करने की जरूरत है। क्षेत्रीय बैंच बनाने के फैसले से नेताओं को सियासी फायदा होगा। लेकिन इससे मुकद्दमेबाजी के साथ आम लोगों की तकलीफ ज्यादा बढ़ेगी। मुकद्दमेबाजी बढऩे से देश की आर्थिक प्रगति भी गड़बड़ा सकती है।
डिजिटल युग में बैंचों की जरूरत नहीं : सुप्रीम कोर्ट में 27 जजों की पूर्ण पीठ ने विधि आयोग की सिफारिशों को खारिज कर दिया था। अटार्नी जनरल ने भी सरकार को दिए गए ओपिनियन में कहा था कि नई बैंच बनाने से सुप्रीम कोर्ट का रसूख कमजोर होगा। ए.जी. के अनुसार ऐसा कदम देश की एकता, अखंडता के लिहाज से भी ठीक नहीं होगा। स्थानीय बैंच बनाने के पक्ष में जो तर्क दिए जा रहे हैं, वे व्यावहारिक और तर्कसंगत नहीं हैं।
संविधान के अनुसार सुप्रीम कोर्ट की कार्रवाई अंग्रेजी में होती है। क्षेत्रीय बैंचों में भी अंग्रेजी में सुनवाई होगी, इसलिए भाषा की सहूलियत का तर्क सही नहीं है। संविधान के अनुसार हाईकोर्ट आखिरी अपील अदालत है। सुप्रीम कोर्ट में एस.एल.पी. के तहत सिर्फ उन्हीं मामलों में अपील हो सकती है जिनमें महत्वपूर्ण संवैधानिक बिन्दु जुड़े हों। लेकिन उन कानूनी प्रावधानों को दर-किनार करके हर मामले में सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर करने का फैशन बन गया है। इसके लिए केंद्र और राज्य की सरकारें भी बड़े पैमाने पर जिम्मेदार हैं। जजों के अनुसार आधे से ज्यादा मुकद्दमेबाजी सरकारों के कारण होती है।
कोरोना और लॉकडाऊन के बाद देश की सभी अदालतों में ऑनलाइन सुनवाई का प्रचलन बढ़ गया है। मुकद्दमों की ऑनलाइन फाइलिंग को भी जिला अदालतों, हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में मान्यता मिल गई है। कुछ दिनों पहले हाईकोर्ट की वर्चुअल बैंच की भी शुरूआत हुई थी। 5 करोड़ मुकद्दमों से पीड़ित लोगों को एक नई अपील कोर्ट की बजाए स्थानीय स्तर पर जल्द न्याय की जरूरत है। सुप्रीम कोर्ट में मुकद्दमों की ऑनलाइन फाइलिंग और बहस के लिए जिला अदालतों और हाईकोर्ट में विशेष काऊंटर बनाने की जरूरत है। जहां पर लोग अपने मुकद्दमों की कार्रवाई को सीधे तौर पर देख सकें।
मुवक्किल की उपस्थिति में जिला अदालतों के वकील ऑनलाइन तरीके से हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में मामलों की बहस करके जल्द फैसला कराएं तो सही मायने में गरीबों को जल्द न्याय मिलेगा। पश्चिमी बंगाल में हो रहे विवादों से साफ है कि जज भी अब सियासी दबावों से प्रभावित हो रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट का फैसला देश का कानून माना जाता है। क्षेत्रीय बैंचों की स्थापना से संवैधानिक संतुलन गडबड़ाने के साथ संघीय व्यवस्था में कानून का शासन कमजोर हो सकता है।-विराग गुप्ता(एडवोकेट, सुप्रीम कोर्ट)