हिन्दुओं को लुभाने के लिए ममता की नई रणनीति

Edited By Punjab Kesari,Updated: 26 Feb, 2018 02:44 AM

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तृणमूल कांग्रेस नेता बंगाल के बहुसंख्यक हिन्दू समुदाय को लुभाने के लिए ऐड़ी-चोटी का जोर लगा रहे हैं। वे प्रदेश के विभिन्न जिलों में सम्मेलन आयोजित करके पंडों-पुरोहितों तक पहुंचने की नई रणनीति अपना रहे हैं और खुले में होने वाली मीटिंगों में भी तृणमूल...

तृणमूल कांग्रेस नेता बंगाल के बहुसंख्यक हिन्दू समुदाय को लुभाने के लिए ऐड़ी-चोटी का जोर लगा रहे हैं। वे प्रदेश के विभिन्न जिलों में सम्मेलन आयोजित करके पंडों-पुरोहितों तक पहुंचने की नई रणनीति अपना रहे हैं और खुले में होने वाली मीटिंगों में भी तृणमूल नेता हिन्दू पुरोहितों को संबोधित कर रहे हैं। अगले वर्ष होने वाले लोकसभा चुनाव के बाद मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की दिल्ली में भूमिका काफी महत्वपूर्ण होने की संभावना है। पश्चिम बंगाल में 42 लोकसभा सीटें हैं और तमकां इनमें से अधिक से अधिक पर अपने उम्मीदवार जिताना चाहती है। 

एक पुरोहित सम्मेलन के दौरान तमकां के एक जिला अध्यक्ष अमित मैती ने कहा: ‘‘दिल्ली से आने वाले किसी भी सम्राट या भगवा ध्वजवाहक के आगे अपनी पहचान का आत्मसमर्पण न करें।’’ विभिन्न हिन्दू समूह और खास तौर पर हिन्दू सम्हिति भाजपा से व्यथित है। इस घोर दक्षिण पंथी गुट की स्थापना संघ के पूर्व प्रचारक तपन घोष द्वारा 2008 में की गई थी। अब यह संगठन भी तमकां के पक्ष में बोल रहा है। विधानसभा और लोकसभा चुनावों के जिलावार विश्लेषण से यह खुलासा हुआ है कि मुस्लिम बहुल जिलों मुर्शिदाबाद, मालदा एवं उत्तर दिनाजपुर जिलों में जहां कांग्रेस और वाम मोर्चे की कारगुजारी बढिय़ा रही, वहीं तमकां ने हिन्दू बहुल जिलों में अच्छी कारगुजारी दिखाई थी इसीलिए ममता हिन्दुओं को लुभाने के न केवल प्रयास कर रही है बल्कि इसे अपनी विशेष शैली के अनुरूप चला रही है। 

नीतीश को बिहार के विकास की चिन्ता: मुख्यमंत्री नीतीश कुमार हाल ही में जापान दौरे पर गए थे ताकि वहां के व्यवसायियों को बिहार में निवेश करने और बोधगया तथा अन्य तीर्थ स्थलों के विकास में सहायता हेतु उन्हें प्रेरित कर सकें। वह बोधगया से नालंदा तक रेलगाड़ी भी शुरू करना चाहते हैं। ‘विकास पुरुष’ नीतीश को जापान का रुख इसलिए करना पड़ा कि केन्द्र सरकार की ओर से उन्हें कोई अतिरिक्त कोष नहीं मिल रहा, जबकि भाजपा के साथ गठबंधन बनाते समय उनके दिमाग में यही विचार था कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी उन्हें बिहार के विकास के लिए ढेर सारा पैसा देंगे। उनकी सभी अपेक्षाएं व्यर्थ सिद्ध हुई हैं। 

दूसरी बात यह कि आंतरिक राजनीति और गठबंधन के अंदर से पड़ रहे दबाव के चलते वह बिहार में निवेश आकर्षित करने के लिए आज तक निवेशक सम्मेलन का आयोजन नहीं कर पाए हैं। नीतीश कुमार के सामने दुविधा यह है कि बिहार पहले ही विकास के मामले में बहुत फिसड्डी है। ऊपर से इसकी आबादी भी बहुत ज्यादा है। विकास के लिए पैसे की कमी मुंह बाए खड़ी है और ऐसी अवस्था में उन्हें अगले चुनाव का सामना करना है। 

शिवसेना की मीटिंग में तय होगी चुनाव की रणनीति: सूत्रों के अनुसार शिवसेना के वरिष्ठ नेता, सांसद और विधायक 26 फरवरी को मुम्बई में मिल बैठेंगे और आगामी लोकसभा चुनाव पर चर्चा करेंगे व इसके लिए रणनीति तैयार करेंगे। इस मीटिंग में ही नेता यह फैसला लेंगे कि पार्टी ने महाराष्ट्र और केन्द्र की सरकारों को समर्थन जारी रखना है या इनसे अपना समर्थन वापस ले लेना है। कानाफूसियां तो यही कह रही हैं कि शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे कांग्रेस से बाहरी समर्थन लेकर महाराष्ट्र में सरकार बनाने के लिए राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के प्रमुख शरद पवार से बातचीत चला रहे हैं और 2019 के आम चुनाव लडऩे के लिए उनके साथ गठबंधन बनाएंगे। 

राजस्थान भाजपा में अन्तर्कलह: राजस्थान के उपचुनाव में बुरी तरह पराजित होने के बाद भाजपा अपने विधायकों का मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे पर भरोसा बहाल कर पाने में सफल नहीं रही। बजट सत्र के ऐन बीचों-बीच वसुंधरा ने विधान भवन में ही पार्टी के विधायकों की मीटिंग बुलाई थी, लेकिन 160 विधायकों में से 100 से भी कम ने इस मीटिंग में शिरकत की। मुख्यमंत्री ने मीटिंग में यह धमकी दी कि यदि सरकार पराजित हो गई तो अपने-अपने क्षेत्रों में रोजमर्रा की समस्याओं के मामले में विधायकों को समस्याएं दरपेश आएंगी। इस मीटिंग के बाद कई विधायकों को यह कहते सुना गया कि सरकार गिरने से उन्हें कोई फर्क पडऩे वाला नहीं है, क्योंकि वर्तमान में भी स्थानीय पुलिस अधिकारियों सहित सरकार के वरिष्ठ आफिसर उनकी कोई बात नहीं सुनते। भाजपा की यह प्रदेश इकाई अपने विधायकों को एकजुट रखने और अगले विधानसभा चुनाव के लिए उन्हें तैयार करने के लिए बहुत कठोर परिश्रम कर रही है। लेकिन विधायक वसुंधरा राजे के नेतृत्व में आगामी विधानसभा चुनाव में जीतने के प्रति इतने आश्वस्त नहीं हैं। 

भाजपा शासित प्रदेशों में हार्दिक पटेल का अभियान: पाटीदार आरक्षण आंदोलन के नायक हार्दिक पटेल ने बीते सोमवार कहा कि वह आगामी विधानसभा चुनाव में भाजपा सरकार के विरुद्ध चुनावी अभियान चलाएंगे और यह अभियान मुख्य तौर पर मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान जैसे भाजपा शासित प्रदेशों में केन्द्रित होगा। उन्होंने कहा कि यदि कोई उनके अभियान में अड़ंगा लगाने की कोशिश करता है तो उन्हें इसकी कोई परवाह नहीं। उन्होंने यह भी कहा कि वह युवाओं की बेरोजगारी, किसानों की दयनीय स्थिति तथा शिक्षा जैसे मुद्दों पर बोलना जारी रखेंगे।

गोरखपुर में मठ से बाहर का व्यक्ति भाजपा का उम्मीदवार: 11 मार्च को गोरखपुर में हो रहे लोकसभा उपचुनाव के लिए भाजपा ने अपनी क्षेत्रीय इकाई के अध्यक्ष उपेन्द्र शुक्ल को चुनाव में उतारा है। गत तीन दशकों दौरान यह पहला मौका है, जब इस चुनाव के लिए भाजपा द्वारा गोरखनाथ मठ से बाहर का कोई व्यक्ति उम्मीदवार बनाया गया है। शुक्ल की उम्मीदवारी को ब्राह्मणों पर डोरे डालने का प्रयास बताया जा रहा है क्योंकि यू.पी. में सवर्ण जातियों में से यही सबसे बड़ा समुदाय है और परम्परागत रूप में भाजपा का समर्थक भी है। यह उपचुनाव योगी आदित्यनाथ द्वारा मुख्यमंत्री बनने के बाद सांसद पद से इस्तीफा देने के कारण खाली हुई सीट पर हो रहा है। इसके साथ ही फूलपुर लोकसभा हलके में भी केशव प्रसाद मौर्य के उपमुख्यमंत्री बनने के बाद उपचुनाव हो रहा है।-राहिल नोरा चोपड़ा

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