धारा 370 पर महबूबा-उमर की ‘राष्ट्रविरोधी राजनीति’

Edited By ,Updated: 10 Apr, 2019 03:55 AM

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धारा 370 और अनुच्छेद 35ए पर पी.डी.पी. की महबूबा मुफ्ती और  नैशनल कांफ्रैंस के उमर अब्दुल्ला के उफान पर संज्ञान जरूरी है। महबूबा मुफ्ती और उमर अब्दुल्ला की चेतावनी है कि धारा 370 और अनुच्छेद 35ए को समाप्त करने से कश्मीर में भूकम्प आ जाएगा, भारत का...

धारा 370 और अनुच्छेद 35ए पर पी.डी.पी. की महबूबा मुफ्ती और  नैशनल कांफ्रैंस के उमर अब्दुल्ला के उफान पर संज्ञान जरूरी है। महबूबा मुफ्ती और उमर अब्दुल्ला की चेतावनी है कि धारा 370 और अनुच्छेद 35ए को समाप्त करने से कश्मीर में भूकम्प आ जाएगा, भारत का नामोनिशान मिट जाएगा, हुर्रियत के कुछ नेताओं ने पाकिस्तान में मिलने तक की बात की है। 

महबूबा मुफ्ती हो, उमर अब्दुल्ला हो, फारूक अब्दुल्ला हो या फिर हुर्रियत के अन्य नेता, सभी पर भारत विरोधी भावनाएं हावी रहती हैं, पाकिस्तान परस्ती उनके सिर पर नाचती रहती है। हमें समझना होगा कि जम्मू-कश्मीर सिर्फ चंद कश्मीरी आतंकवादियों और अलगाववादियों का ही नहीं है, कश्मीरी पंडितों का भी है। जम्मू और लद्दाख संभाग के लोग भी कश्मीरी उपनिवेशवाद से मुक्ति चाहते हैं। जम्मू और लद्दाख के दृष्टिकोण से भी धारा 370 की समाप्ति बेहद जरूरी है। 

पाकिस्तान परस्त लोगों को संदेश
भाजपा ने लोकसभा चुनाव में अपने संकल्प पत्र में धारा 370 को ही समाप्त करने की बात नहीं कही है, बल्कि अनुच्छेद 35ए और समान नागरिक संहिता बनाने की भी घोषणा की है। ये सभी विषय भाजपा के प्राण वायु रहे हैं और भाजपा अपने जन्मकाल से इसे उठाती रही है, अपनी चुनावी संभावनाओं की शक्ति बनाती रही है। सीधे तौर पर यह कहें कि धारा 370 और अनुच्छेद 35ए पर पहली बार सख्ती के साथ संकल्प कर भाजपा ने कश्मीर के उन सभी अलगाववादियों, आतंकवादियों और पाकिस्तान परस्त लोगों को संदेश दे दिया है कि अब उनकी आतंकवादी और राष्ट्रविरोधी हरकतें चलने वाली नहीं हैं। राष्ट्र विरोधी हरकतों पर राष्ट्र की संहिताएं वीरता के साथ बुलडोजर के समान चलेंगी।

धारा 370 को लेकर देश के अंदर चिंता पहले से ही जारी है, बड़े-बड़े आंदोलन हुए हैं, भाजपा अपने जनसंघ के कार्यकाल से यह वायदा करती रही है कि धारा 370 को समाप्त करना उसकी प्राथमिकता में है। जनसंघ के संस्थापक डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने कश्मीर में अपना बलिदान किया था और एक देश दो झंडे की व्यवस्था को समाप्त कराया था। धारा 370 और अनुच्छेद 35ए जवाहर लाल नेहरू की देन थी, पटेल के हाथ बांध कर नेहरू ने कश्मीर को यह विशेष सुविधा प्रदान की थी, इस विशेष सुविधा का लाभ कश्मीरियों को कम ही हुआ है, बल्कि पाकिस्तान परस्त राजनीति और पाकिस्तान की विखंडन राजनीति को अधिकतम लाभ हुआ है।

अगर यह व्यवस्था नहीं होती तो फिर पाकिस्तान न तो कश्मीर में भारत विखंडन को लेकर इतनी खतरनाक और हिंसक आतंकवाद की प्रक्रिया को निरंतर चला सकता था और न ही उसके पक्ष में आतंकवाद परस्ती होती। कांग्रेस जनित सरकारें धारा 370 और अनुच्छेद 35ए के प्रति कभी भी गंभीर नहीं रहीं। सिर्फ इतना ही नहीं बल्कि कांग्रेस जनित सरकारें कश्मीर के अलगाववादियों के प्रति झुकती रही हैं, कश्मीर के अलगाववादियों की मांगों के प्रति चरणवंदना करती रही हैं। यही कारण है कि कभी महबूबा मुफ्ती तो कभी उमर अब्दुल्ला भारत की एकता और अखंडता के खिलाफ सरेआम बयानबाजी पर उतर आते हैं, तो कभी सारी हदें पार कर पाकिस्तान परस्ती दिखाने लगते हैं। 

कांग्रेस की गलत नीति
समय बदला है, राजनीति बदली, राष्ट्र की अस्मिता के प्रति सोच भी मजबूत हुई है। ऐसी परिस्थिति में उन सभी विचारों की घेराबंदी भी शुरू हुई है, वह भी चाकचौबंद और प्रहारक तौर पर जो विचार भारत की एकता और अखंडता को लेकर जहरीले और खतरनाक हुआ करते थे। कांग्रेस जनित सरकार की यह कमजोरी थी या फिर राष्ट्रविरोधी नीति थी कि राष्ट्र को लांछित और  अपमानित तथा विखंडित करने वालों को भी संरक्षण दिया जाए, उन्हें सरकारी सुविधाओं से लैस करा कर पाला-पोसा गया। उस काल की कांग्रेस जनित सरकारें ऐसे तत्वों की सहायता से ही सत्तासीन होती थीं, जबकि राष्ट्रीयता की सोच रखने वाले तत्व हाशिए पर खड़े होते थे। ‘भारत तेरे टुकड़े होंगे हजार, हर घर से अफजल निकलेगा, तुम कितनों को मारोगे’ जैसे गिरोहों की राष्ट्र विरोधी नीति कौन नहीं जानता है। सबसे बड़ी बात यह है कि भारत तेरे टुकड़े होंगे हजार जैसे गिरोहों पर राष्ट्रवाद का बुल्डोजर भी चला है। 

राष्ट्रवाद की धारा विचार-विमर्श के केन्द्र में लाने का परिणाम यह हुआ कि ऐसे नारे लगाने वालों के मुंह बंद हो गए, पुलिस और सत्ता की वीरता सामने आई, न्यायिक सुनवाई की प्रक्रिया भी सक्रिय है। कहने का अर्थ यह है कि कश्मीर के आतंकवाद, कश्मीर की पाकिस्तान परस्ती और कश्मीर के भारत विरोधी विचारों के संरक्षणकत्र्ताओं पर राष्ट्रवाद की सोच हावी रही है। यह सही है कि पी.डी.पी. जैसी राष्ट्रविरोधी सोच रखने वाली पार्टी के साथ सत्ता की हिस्सेदारी गैर-जरूरी थी, राष्ट्र की अस्मिता के खिलाफ थी, आतंकवाद की जड़ को कमजोर करने की चल रही सैनिक कार्रवाई के खिलाफ थी। ऐसी हिस्सेदारी से पूर्व बहुत सतर्कता और बड़े स्तर पर सोच-विचार के साथ ही साथ योजना बनाने की जरूरत थी। कहने में हर्ज नहीं है कि राष्ट्र के प्रति गहरी सोच रखने वाली भाजपा भी गलती कर बैठी, उसके अनुमान गलत निकले। 

महबूबा मुफ्ती की सरकार के समय भारतीय सेना और अद्र्धसैनिक बलों के खिलाफ जमकर दुष्प्रचार हुआ, पत्थरबाजी हुई, पाकिस्तान परस्ती भी जम कर हुई, भाजपा सिर्फ तमाशबीन बन कर रह गई थी। भाजपा का राष्ट्रवाद बेपर्दा हो रहा था, आतंकवाद मजबूत हो रहा था। ऐसी स्थिति में पी.डी.पी. के साथ हिस्सेदारी उसके लिए दु:स्वप्न जैसी बन गई थी। फलस्वरूप हिस्सेदारी रोकनी पड़ी। जम्मू-कश्मीर में राष्ट्रपति शासन लगाना ही पड़ा है। जम्मू-कश्मीर में आज राष्ट्रपति शासन है और इससे कश्मीर के अंदर पत्थरबाजी कमजोर हुई है, आतंकवाद कमजोर हुआ है, पाकिस्तान परस्ती पर आतंकवादियों और हुर्रियत के नेताओं की गर्दन नापी जा रही है। 

पाकिस्तान की बात सुनने को तैयार नहीं दुनिया
महबूबा मुफ्ती हो या उमर अब्दुल्ला या फिर हुर्रियत के अन्य नेता, सभी की खुशफहमी थी कि भारत सरकार तो उनकी चरणवंदना करने से कभी पीछे नहीं हटेगी, यही कारण है कि वे कभी भी भारत सरकार की भावनाओं का सम्मान करने के लिए तैयार नहीं होते थे। वे यह भी अहंकार पाल कर रखे थे कि अगर भारत सरकार ने सख्ती दिखाई तो फिर वे पाकिस्तान परस्ती पर उतर आएंगे, मानवाधिकार का रोना रोएंगे, मानवाधिकार का बखेड़ा खड़ा कर पूरी दुनिया में तहलका मचा देंगे, भारत सरकार को खलनायक घोषित करा देंगे, मुस्लिम देशों को भारत सरकार के खिलाफ खड़ा कर देंगे। लेकिन अब उन्हें बदली हुई भारतीय राजनीतिक परिस्थितियों, बदली हुई मुस्लिम देशों की राजनीति और विश्व व्यवस्था का भान नहीं है। 

एक समय वह जरूर था जब अमरीका की शह  से पाकिस्तान की आतंकवादी नीति उफान लेती थी और कश्मीर का प्रश्न भारत के लिए दुरूह बन जाता था, वैश्विक स्तर पर कश्मीर को लेकर भारत को जवाब देने में परेशानी होती थी। लेकिन जब से अमरीका के लिए आतंकवादी भस्मासुर बने तब से पाकिस्तान की आतंकवादी शक्ति बेअसर हो गई। अब दुनिया पाकिस्तान को सिर्फ और सिर्फ आतंकवादी देश मानती है, पाकिस्तान की किसी भी बात को दुनिया सुनने के लिए तैयार नहीं है। 

भय बिन होत न प्रीत। वर्तमान सरकार का भय किसी न किसी रूप में महबूबा मुफ्ती, उमर अब्दुल्ला, फारूक अब्दुल्ला और अन्य हुर्रियत  नेताओं के सिर पर चढ़कर नाच रहा है। हुर्रियत के नेता दनादन सुरक्षा एजैंसियों के राडार पर आ रहे हैं। हुर्रियत नेताओं की राष्ट्रविरोधी हरकतों पर उनकी गर्दन नापी जा रही है। हुर्रियत नेता भारत सरकार की सुरक्षा और धन पर राज करते थे। भारत सरकार ने हुर्रियत नेताओं की सुरक्षा व्यवस्था में कमी की है। सुरक्षा व्यवस्था में कमी करने से हुर्रियत नेता सीधे तौर पर अपनी जान बचाने की चिंता में हैं, क्योंकि उनके अंदर झगड़े और विवाद कम नहीं हैं। पद पर कब्जा करने और आतंकवादी फंडिंग की हिस्सेदारी को लेकर खतरनाक ढंग से विवाद है। 

इधर आतंकवाद फंडिंग को लेकर भी भारतीय सुरक्षा एजैंसियों ने हुर्रियत और कश्मीरी नेताओं की गर्दन नापी है। पहले पाकिस्तान का भी डर दिखाया जाता था। नरेन्द्र मोदी ने 2 सर्जिकल स्ट्राइक कर पाकिस्तान को ही सबक सिखा दिया। अब पाकिस्तान को भी भारत से डर लग रहा है। ऐसे में पाकिस्तान का डर हुर्रियत और आतंकवादी नेता कैसे दिखा पाएंगे?देश की संसद ने धारा 370 और अनुच्छेद 35 ए का अधिकार दिया है। देश की संसद से यह धारा समाप्त हो सकती है। धारा 370 को समाप्त कर हम कश्मीर में पाकिस्तान परस्त आतंकवाद को समाप्त कर सकते हैं। महबूबा मुफ्ती और उमर अब्दुल्ला के बोलों पर राष्ट्र की संहिताओं का बुलडोजर चलना चाहिए।-विष्णु गुप्त

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