मोदी ने हमेशा किया ‘गठबंधन धर्म’ का पालन,  सुखबीर के आरोप निराधार

Edited By ,Updated: 01 Oct, 2020 02:43 AM

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एन.डी.ए. यानी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन से अलग होने के बाद शिरोमणि अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल ने अब प्रधानमंत्री मोदी पर आरोपों की झड़ी लगा दी है। उनका आरोप है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गठबंधन धर्म को नहीं निभाया है और अपने...

एन.डी.ए. यानी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन से अलग होने के बाद शिरोमणि अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल ने अब प्रधानमंत्री मोदी पर आरोपों की झड़ी लगा दी है। उनका आरोप है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गठबंधन धर्म को नहीं निभाया है और अपने कार्यकाल में एन.डी.ए. के सहयोगी दलों की कोई भी बैठक आहूत नहीं की है। पहली नजर में इन आरोपों को सुनने के बाद ऐसा लग सकता है कि पूर्ण बहुमत मिलने के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने अपने सहयोगी दलों को दर-किनार कर दिया है, लेकिन जब आप पुराने तथ्यों को टटोलते हैं तो तस्वीर कुछ और ही नजर आती है। 

नियमित अंतराल पर होती रही हैं एन.डी.ए. की बैठकें
सबसे पहले एन.डी.ए. की बैठकों की ही बात करते हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने हर महत्वपूर्ण मौके पर और अहम फैसला लेने से पहले गठबंधन के सहयोगियों के साथ बैठक की परंपरा निभाई है। चुनाव से पहले और चुनाव परिणाम के तुरंत बाद, साथ ही नेता चुनने के लिए एन.डी.ए. की बैठकें बुलाई जाती रही हैं। इतना ही नहीं हमेशा संसद सत्र शुरू होने से पहले एनडीए की बैठक आयोजित की जाती रही है।  इसी साल कोरोना महामारी फैलने से पूर्व बजट सत्र से पहले 31 जनवरी, 2020 को चर्चा के लिए एन.डी.ए. की बैठक बुलाई गई थी। यही नहीं हमने पिछले साल का ही डाटा खंगाला तो एन.डी.ए. की कई बैठकों की तस्वीरें सामने आ गईं। 

17 नवंबर, 2019-एन.डी.ए. की आखिरी बैठक से ठीक अढ़ाई महीने पहले पिछले वर्ष नवंबर के महीने में भी एन.डी.ए. की मीटिंग बुलाई गई थी। 
16 जून, 2019-संसद सत्र से पहले एनडीए की बैठक बुलाई गई थी।
25 मई, 2019-पिछले वर्ष चुनाव जीतने के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने नई सरकार के गठन पर चर्चा के लिए एन.डी.ए. की बैठक बुलाई थी।
21 मई, 2019 - लोकसभा चुनाव के नतीजे घोषित होने के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने रात्रि भोज पर एन.डी.ए. नेताओं के साथ मुलाकात की थी। 

बुरे वक्त में भी अकाली दल का दिया साथ
यह सबको पता है कि इस समय अकाली दल अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रहा है। खुद अपने राज्य पंजाब में पार्टी की इमेज बहुत खराब हो चुकी है। लेकिन इसके बाद भी कभी प्रधानमंत्री मोदी ने उनका साथ नहीं छोड़ा। साल 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी लहर की वजह से ही अकाली दल को 4 सीटें हासिल हुई थीं। खास बात यह है कि राज्य के लोग अकाली दल से खासे नाराज थे और इसका खामियाजा पार्टी को 2017 के विधानसभा चुनाव में भी भुगतना पड़ा। और बादल की सरकार चली गई। 

इसके बाद भी भाजपा ने मित्र धर्म निभाते हुए 2019 का चुनाव अकाली दल के साथ मिलकर लड़ा। 2019 के चुनाव में अकाली दल को सिर्फ 2 सीटों पर जीत मिली। फिर भी मित्र धर्म को निभाते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने उसे कैबिनेट में शामिल किया। सुखबीर सिंह बादल की पत्नी और बङ्क्षठडा से सांसद हरसिमरत कौर बादल को कैबिनेट मंत्री बनाया और उन्हें खाद्य एवं प्रसंस्करण उद्योग जैसा महत्वपूर्ण मंत्रालय दिया। प्रधानमंत्री मोदी की एक खासियत यह भी है कि उन्होंने सहयोगी दलों का बुरे वक्त में भी भरपूर साथ दिया। यही वजह है कि पंजाब का विधानसभा चुनाव हो या फिर लोकसभा चुनाव, प्रधानमंत्री मोदी ने हमेशा शिरोमणि अकाली दल के प्रत्याशियों के समर्थन में भी प्रचार किया है। 

पी.एम. मोदी करते हैं प्रकाश सिंह  बादल का बहुत सम्मान
राजनीति गतिविधियों से इतर भी प्रधानमंत्री मोदी व्यक्तिगत रूप से बादल परिवार का बहुत सम्मान करते हैं। अप्रैल, 2019 की वो तस्वीर आज भी सभी को याद है, जब उनके नामांकन के समय एन.डी.ए. के सभी नेता वाराणसी पहुंचे थे और प्रधानमंत्री मोदी ने प्रकाश सिंह बादल को पिता तुल्य सम्मान दिया और सबके सामने उनके पैर छुए थे। यही नहीं उन्होंने प्रकाश सिंह बादल का सम्मान करते हुए उन्हें भारत का नेल्सन मंडेला तक कहा। 

दिसंबर 2019 में प्रधानमंत्री मोदी ने शिरोमणि अकाली दल के 99वें स्थापना दिवस के अवसर पर भी उन्हें अपनी शुभकामनाएं दी थीं। खास बात यह है कि 2007 का पंजाब विधानसभा चुनाव हो या फिर 2012 का, किसी भी चुनाव में शिरोमणि अकाली दल को बहुमत हासिल नहीं हुआ था। दस साल तक शिरोमणि अकाली दल ने भाजपा के सहयोग से ही पंजाब में सरकार चलाई। कायदे से उन्हें भाजपा को उप मुख्यमंत्री का पद देना चाहिए था। कुल मिलाकर देखें तो भारत की राजनीति में नए दोस्त बनना और छूट जाना, कोई नई बात नहीं है।
(लेखक पंजाब भाजपा उपाध्यक्ष एवं सिख स्कॉलर हैं)-इकबाल सिंह लालपुरा

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