मोदी-करुणानिधि मुलाकात ने छेड़ा ‘ततैयों का छत्ता’

Edited By Punjab Kesari,Updated: 15 Nov, 2017 02:34 AM

modi karunanidhi meeting kicks off dacoits

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के गत सप्ताह तमिलनाडु के पूर्व मुख्यमंत्री मुथुवेल करुणानिधि के गोपालपुरम स्थित आवास पर अचानक पहुंच जाने का क्या मतलब निकाला जा सकता है? क्या वह करुणानिधि के द्रमुक के साथ एक नए गठबंधन की आशा कर रहे हैं? या फिर क्या वह...

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के गत सप्ताह तमिलनाडु के पूर्व मुख्यमंत्री मुथुवेल करुणानिधि के गोपालपुरम स्थित आवास पर अचानक पहुंच जाने का क्या मतलब निकाला जा सकता है? क्या वह करुणानिधि के द्रमुक के साथ एक नए गठबंधन की आशा कर रहे हैं? या फिर क्या वह तमिलनाडु के राजनीतिक दलों को उलझन में डालना चाहते हैं? क्या वह द्रमुक की सहयोगी कांग्रेस को झटके देना चाहते हैं? या फिर क्या वह द्रविडिय़न पार्टी के साथ भविष्य में गठबंधन के लिए निवेश कर रहे हैं? 

मजे की बात यह है कि इस मुलाकात के लिए कदम मोदी की ओर से ही उठाया गया है। उनके इरादे जो भी हों, उन्होंने निश्चित तौर पर अपने दौरे से ततैयों के छत्ते को छेड़ दिया है तथा बुजुर्ग नेता को आराम करने के लिए 7 रेस कोर्स रोड आमंत्रित करके उलझन को और भी बढ़ा दिया है। अपनी 20 मिनट की मुलाकात के दौरान मोटरचालित व्हीलचेयर पर बैठे 93 वर्षीय करुणानिधि का हाथ पकड़ कर मोदी ने ‘वणक्कम सर’ कह कर उनका अभिवादन किया। इसे 13 वर्षों से अधिक समय तक विरोधी खेमों में रही दो पार्टियों के रिश्तों में गर्माहट लाने की ओर एक कदम के तौर पर देखा जा सकता है। नि:संदेह मोदी ने उम्मीद के साथ एक अतिरिक्त कदम आगे बढ़ाया है। 

यद्यपि इसे एक ‘सद्भावना मुलाकात’ बताया गया है, मोदी द्वारा अंतिम समय पर इसे अपने एजैंडे में शामिल करना बड़ा और स्पष्ट ‘राजनीतिक संदेश’ देता है कि राजनीति में कोई स्थायी दुश्मन अथवा स्थायी मित्र नहीं होता। भाजपा तथा द्रमुक जैसी कुछ पार्टियों ने एक खेमे से दूसरे खेमे तक छलांग लगाने का अपना कौशल भी दिखाया है। यह मुलाकात इसलिए भी महत्वपूर्ण बन जाती है क्योंकि 2004 में द्रमुक के राजग से बाहर निकलने के बाद ऐसा पहली बार था कि एक शीर्ष भाजपा नेता ने इस द्रविडिय़न पार्टी तक पहुंच की। दूसरे, यह भाजपा की तमिलनाडु में रणनीति में एक महत्वपूर्ण परिवर्तन दर्शाता है। इसका परिणाम भी तुरंत देखने को मिला क्योंकि द्रमुक ने 8 जिलों में मूसलाधार बारिश को कारण बताते हुए नोटबंदी के खिलाफ 8 नवम्बर को अपने प्रदर्शन रद्द करने का निर्णय किया। 

अपनी ओर से केन्द्र ने अन्नाद्रमुक नेता शशिकला व उनके भतीजे टी.टी.वी. दिनाकरण के आवासीय परिसरों में जारी आयकर छापों के रूप में उन्हें संकेत भेजा। यह ई. पलानीस्वामी तथा ओ. पन्नीरसेल्वम नीत परस्पर विरोधी सत्ताधारी अन्नाद्रमुक धड़ों के लिए भी एक चेतावनी थी। दिसम्बर 2016 में जयललिता के निधन के बाद दोनों धड़े इकट्ठे हुए और तीसरे धड़े को पार्टी से निष्कासित कर दिया। भाजपा की दुविधा यह है कि क्या वह नेताविहीन अन्नाद्रमुक के साथ जाए, जो सत्ता विरोधी लहर का सामना कर रही है या काडर आधारित द्रमुक के साथ। इस वक्त द्रमुक के अवसर काफी अच्छे हैं और यह राजनीतिक रूप से घाघ भाजपा की नजरों से बचा नहीं है। 

भाजपा ने तमिलनाडु में अपनी रणनीति क्यों बदली। यह कोई बड़ा रहस्य नहीं है कि पार्टी दक्षिण, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, उत्तर-पूर्व में विस्तार पर नजरें गढ़ाए हुए है। 39 सांसदों के साथ तमिलनाडु भाजपा के लिए एक महत्वपूर्ण राज्य है, जो यहां एक निम्र खिलाड़ी होने के नाते एक ही पार्टी पर दाव लगाने का जोखिम उठा रही है। जहां भाजपा को केरल तथा कर्नाटक में कांग्रेस का सामना है, वहीं तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश तथा तेलंगाना में क्षेत्रीय दलों का प्रभुत्व है। अन्नाद्रमुक सुप्रीमो जे. जयललिता के निधन के बाद तमिलनाडु में एक खालीपन आ गया है। यद्यपि भाजपा ने पन्नीरसेल्वम तथा पलानीस्वामी धड़ों में सुलह करवा दी है मगर स्थिरता का कोई भरोसा नहीं है। एक विभाजित अन्नाद्रमुक सम्भवत: संसद में एक लाभदायक सहयोगी हो सकती है मगर चुनावों में सफलता की गारंटी नहीं। 

भाजपा के वर्तमान आकलन के अनुसार 2019 के चुनावों के लिए द्रमुक विश्वसनीय सहयोगी दिखाई देती है। आखिरकार द्रमुक पहले राजग में थी और कोई मांग न करने वाली सहयोगी साबित हुई थी। इससे भी बढ़कर कमल हासन तथा विजयकांत जैसे मैटिनी सुपरस्टार्स के प्रवेश से राज्य की राजनीति में एक नया रंग आएगा। सबसे बड़ा कारण कांग्रेस-द्रमुक एकता को तोड़ कर यू.पी.ए. सहयोगियों को अपने पाले में लाना हो सकता है। यहां तक कि 2 महीने पहले तक भाजपा ने द्रमुक को लुभाने की इस सम्भावना को नहीं देखा था।

भाजपा को द्रविडिय़न पार्टियों की जरूरत है क्योंकि अपनी ब्राह्मणवादी प्रवृत्ति के कारण यह दशकों से तमिलनाडु में अपने पांव जमाने में सक्षम नहीं हो सकी है। भाजपा को एक उत्तर भारतीय पार्टी के तौर पर देखा जाता है और इसकी मुख्य समस्या भाषा होगी क्योंकि वाजपेयी जैसे प्रखर वक्ता भी राज्य में अपना प्रभाव नहीं दिखा पाए थे। राम मंदिर राज्य में कोई भावनात्मक मुद्दा नहीं, जबकि हिन्दी को लागू करना एक बड़ा मुद्दा है। यद्यपि जातीय हिंसा यहां सामान्य है, धार्मिक हिंसा राज्य में देखने को नहीं मिलती। 

भाजपा 2019 के चुनावों के लिए अपनी युद्ध योजना तैयार कर रही है और मध्य तथा उत्तरी भारत, जहां 2014 में इसने झाड़ू फेरा था, में किसी भी कमी की आशंका के मद्देनजर इसकी नजर दक्षिण भारत पर है। भाजपा के प्रबंधकों ने पार्टी को मजबूत बनाने के लिए एक तीन स्तरीय रणनीति तैयार की है। पहली है राजग के अधिक से अधिक सहयोगी बनाना और वह भी यू.पी.ए. को कमजोर करके। नीतीश कुमार नीत जद (यू) पहले ही राजग के खेमे में आ चुकी है। द्रमुक भी इस श्रेणी में आती है। 

दूसरी है देश में अधिक पार्टी कार्यकत्र्ता तथा अधिक मत हिस्सेदारी हासिल करके अपना आधार बढ़ाना। पार्टी के अब 11 करोड़ सदस्य हैं जो इसे विश्व में सबसे बड़ी पार्टी बनाते हैं। तीसरी है अन्य पार्टियों से महत्वपूर्ण नेताओं का ‘आयात’ करना, जैसा कि इसने असम, उत्तर प्रदेश, गोवा, मणिपुर, महाराष्ट्र तथा अन्य राज्यों में किया है। भाजपा पहले ही 19 राज्यों में सत्तासीन है, चाहे खुद या गठबंधन सांझीदारों के साथ। स्पष्ट तौर पर प्रधानमंत्री पार्टी के ‘मिशन साऊथ’ के व्यापक हितों के तहत पानी की गहराई नाप रहे थे।-कल्याणी शंकर

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