मोदी का ‘वन मैन शो’ था राफेल विमान सौदा

Edited By ,Updated: 17 Feb, 2019 03:47 AM

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राफेल सौदे की परतें भाजपा की आशा से कहीं अधिक तेजी से खुल रही हैं। यदि सरकार तथा सत्ताधारी पार्टी यह सोचती थीं कि वे हाल ही के समय दौरान की गई अपारदर्शी रक्षा खरीद को ढके रख सकेंगी तो वे गलत थीं और उन्हें बहुत बुरी तरह से उनके सहज क्षेत्र से बाहर...

राफेल सौदे की परतें भाजपा की आशा से कहीं अधिक तेजी से खुल रही हैं। यदि सरकार तथा सत्ताधारी पार्टी यह सोचती थीं कि वे हाल ही के समय दौरान की गई अपारदर्शी रक्षा खरीद को ढके रख सकेंगी तो वे गलत थीं और उन्हें बहुत बुरी तरह से उनके सहज क्षेत्र से बाहर खींच लिया गया है। इसका श्रेय मुख्य तौर पर समाचार पत्र ‘द हिंदू’ तथा प्रकाशन समूह के बोर्ड के चेयरमैन एन. राम को जाता है। हालांकि कई अन्य महत्वपूर्ण व्यक्ति भी थे और हैं जो सरकार तथा इसके नेताओं के अत्यंत दबाव के सामने खड़े होने के लिए प्रशंसा के पात्र हैं। नया तथा दोषपूर्ण सौदा पहले वे तथ्य जो गोपनीयता से बाहर निकल आए हैं : 

1. अब यह निश्चित है कि राफेल सौदा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का ‘वन मैन शो’ था। मोदी इसके रचयिता थे, इसे बहुत सावधानीपूर्वक तैयार किया गया था और सभी महत्वपूर्ण निर्णय प्रधानमंत्री कार्यालय (पी.एम.ओ.) द्वारा लिए गए थे। 
2. यू.पी.ए. काल में किए गए समझौते को ठोस कारणों से पहले रद्द नहीं किया गया था। नए सौदे का निर्णय पहले लिया गया था और चूंकि पहला समझौता आड़े आ रहा था इसलिए उसे रद्द कर दिया गया। 
3. महत्वपूर्ण हिस्सेदारों को घेरे से बाहर रखा गया-रक्षा मंत्री, विदेश मंत्री, वित्त मंत्री, वायुसेना, रक्षा अधिग्रहण परिषद (डी.ए.सी.) तथा रक्षा पर मंत्रिमंडलीय समिति (सी.सी.एस.)। 

4. विदेश सचिव ने 8 अप्रैल 2015 को पैरिस में मीडिया को बताया था कि राफेल बारे बातचीत 2 सरकारों, दसाल्ट तथा ङ्क्षहदोस्तान एयरोनाटिक्स लि. (एच.ए.एल.) के बीच अग्रिम चरण में है तथा भारत के प्रधानमंत्री व फ्रांस के राष्ट्रपति के बीच वार्ता के एजैंडे में राफेल शामिल नहीं था। दो दिन बाद 10 अप्रैल को मोदी तथा होलांदे के बीच आमने-सामने की बैठक के बाद नए सौदे की घोषणा कर दी गई। 
5. नया सौदा वास्तव में एक नया सौदा था। 126 विमान नहीं, केवल 36 विमान। पहले वाली सहमति की कीमत पर नहीं बल्कि एक नई कीमत पर। पहले पहचान किया गया आफसैट पार्टनर (एच.ए.एल.) नहीं बल्कि एक नया आफसैट पार्टनर (एक निजी कम्पनी जिसके पास विमान अथवा विमानों के कलपुर्जे बनाने का कोई अनुभव नहीं था)। ये निर्णय 10 अप्रैल को दोनों नेताओं के बीच बैठक में लिए गए, न कि 2 वार्ताकार टीमों के बीच वार्ता के बाद। 

छूटों तथा चूकों की भरमार
6. भारत द्वारा दो आपूर्तिकत्र्ताओं, दसाल्ट तथा एम.बी.डी.ए., को दिए जाने वाले 60,000 करोड़ रुपयों के लिए ‘पेमैंट सिक्योरिटी मैकेनिज्म’ को यूं ही समाप्त कर दिया गया। इसके लिए कोई सावरेन गारंटी या बैंक गारंटी  नहीं थी और यहां तक कि कोई एसक्रो अकाऊंट भी नहीं था। इन सभी छूटों के लिए पी.एम.ओ. से निर्देश दिए गए। 
7. आवश्यक भ्रष्टाचार रोधी धाराओं को समाप्त कर दिया गया। कमीशन देने के खिलाफ कोई धारा नहीं होगी, न ही एजैंटों से काम लेने के खिलाफ, ईमानदारी को लेकर कोई अनुबंध नहीं और न ही आपूर्तिकर्ताओं की अकाऊंट बुक्स तक पहुंच। ये निर्णय भी पी.एम.ओ. द्वारा लिए गए थे। 
8. भारतीय वार्ताकार टीम (आई.एन.टी.) में शामिल इस क्षेत्र के तीन विशेषज्ञों-एम.पी. सिंह, सलाहकार (लागत); ए.आर. सुले, एफ.एम. (एयर) तथा राजीव वेलमा, संयुक्त सचिव एवं ए.एम.(एयर) द्वारा इस पर कड़ी असहमति जताई गई। 8 पृष्ठों के असहमति पत्र द्वारा आई.एन.टी. के अन्य चार सदस्यों द्वारा प्रस्तावित सुझावों को चुनौती दी गई तथा उनके द्वारा आगे बढ़ाई गई कई छूटों तथा चूकोंं का विरोध किया गया। 

‘सुप्रीम’ आडिट को लेकर समझौता 
जैसे-जैसे प्रत्येक तथ्य सामने आया, सरकार ने उस पर पर्दा डालने का प्रयास किया। पहले सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के नीचे शरण लेने का प्रयास किया लेकिन वह दाव असफल हो गया क्योंकि खुद निर्णय में यह स्पष्ट किया गया था कि सुप्रीम कोर्ट ने कीमत तथा विमानों की संख्या घटाने के मामलों की समीक्षा करने से इंकार किया है। जब संसद ने विरोध किया तो सरकार ने उसे चुप कराने का प्रयास किया, लोकसभा में अपने बहुमत के माध्यम से तथा राज्यसभा में बार-बार स्थगन करवाने को उकसाने के माध्यम से। 

सरकार ने शायद आशा की होगी कि कैग की रिपोर्ट उसे बचा लेगी। रिपोर्ट संसद सत्र के अंतिम दिन पेश की गई। सरकार को बचाने की बजाय रिपोर्ट ने इस तथ्य का पर्दाफाश किया कि सरकार ने देश के सर्वोच्च आडिट  संस्थान कैग की स्वतंत्र आवाज को दबाने का प्रयास किया और इसमें सफल रही। रिपोर्ट ने सरकार के कम कीमत तथा शीघ्र आपूर्ति के दावों को भी धूल में मिला दिया। ऐसा दिखाई देता है कि कैग ने प्रारम्भ में वाणिज्यिक ब्यौरों में संशोधन की मांग का विरोध किया था जैसा पहले नहीं हुआ था, लेकिन सरकार की ओर से एक कड़े पत्र के बाद उसका विरोध समाप्त हो गया। रिपोर्ट में दिखाए गए टेबल्स के कोई मायने नहीं हैं और रिपोर्ट उतनी ही अपारदर्शी है जितना कि सौदा, जिसकी कैग ने समीक्षा करनी थी। रिपोर्ट इसलिए ध्यान देने योग्य नहीं है कि इसने क्या कहा लेकिन इसलिए कि इसने क्या नहीं कहा। कैग ने इन विषयों पर टिप्पणी नहीं की : 

-विमानों की कम संख्या (126 की बजाय 36) के चलते परिशोधन के कारण आपूर्तिकत्र्ताओं को होने वाला अनावश्यक मौद्रिक लाभ;
-किसी पेमैैंट सिक्योरिटी मैकेनिज्म के न होने से भारत के लिए मौद्रिक जोखिम;
-राफेल विमानों के पूरे न हो सके अनुबंधों के कारण बैकलॉग को देखते हुए दसाल्ट तथा एम.बी.डी.ए. द्वारा डिलीवरी शैड्यूल का पालन;
-भ्रष्टाचार रोधी धाराओं को दूर करना और विशेषकर आपूर्तिकत्र्ताओं की अकाऊंट बुक्स तक पहुंच न होना;
-वायुसेना की संचालन क्षमता पर असर, जिसे कम विमान मिलेंगे तथा 
-आई.एन.टी. के तीन सदस्यों द्वारा दर्ज करवाई गई जोरदार असहमति। 
राफेल सौदे पर घिरी धुंध के बीच एक चीज स्पष्ट है कि अभी तक इस विषय पर अंतिम शब्द नहीं कहा गया है।-पी. चिदम्बरम  

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