‘मील का पत्थर’ सिद्ध हुआ मोदी का वर्तमान अमरीका दौरा

Edited By ,Updated: 27 Sep, 2019 02:25 AM

modi s present visit to america proved to be  milestone

हाल ही में अमरीका में जो कुछ हुआ वह किसी चमत्कार से कम नहीं। यूं तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अपने कार्यकाल में कई बार अमरीका की राजकीय यात्रा कर चुके हैं, किंतु उनका वर्तमान दौरा भारत-अमरीका संबंधों में मील का पत्थर सिद्ध हुआ है। इस संदर्भ में 3...

हाल ही में अमरीका में जो कुछ हुआ वह किसी चमत्कार से कम नहीं। यूं तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अपने कार्यकाल में कई बार अमरीका की राजकीय यात्रा कर चुके हैं, किंतु उनका वर्तमान दौरा भारत-अमरीका संबंधों में मील का पत्थर सिद्ध हुआ है। इस संदर्भ में 3 घटनाएं महत्वपूर्ण हैं। पहली, ह्यूस्टन स्थित ‘हाउडी मोदी’ कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प सहित वहां के 22 सांसदों (पक्ष-विपक्ष) का मंच सांझा करना। 

दूसरी, न्यूयार्क स्थित जलवायु परिवर्तन संबंधी संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन में प्रधानमंत्री मोदी को सुनने के लिए ट्रम्प का बिना किसी पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के वहां पहुंचना और तीसरी, पाकिस्तान में मौजूद 30-40 हजार आतंकी और सीमापार से जारी जेहादी गतिविधियों पर पूछे गए एक प्रश्न पर ट्रम्प का यह कहना कि प्रधानमंत्री मोदी इससे निपटने में पूरी तरह सक्षम हैं। ये  सभी घटनाएं साधारण नहीं हैं, अपितु कई मायनों में ऐतिहासिक और अमरीका सहित शेष विश्व में भारत के बढ़ते कद और उसकी सशक्त छवि का जीवंत प्रमाण हैं। 

मुझे स्मरण है कि वर्ष 2012-13 में औपचारिक घोषणा से पूर्व विभिन्न मीडिया संस्थाओं और समाचार पत्रों में गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी को भारतीय जनता पार्टी का प्रधानमंत्री प्रत्याशी बनाने की चर्चा जोरों पर थी। अधिकतर विरोधी नेता नरेंद्र मोदी की उम्मीदवारी पर प्रश्नचिन्ह खड़ा करते हुए दावा करते थे कि जिस व्यक्ति को अमरीका वर्षों से वीजा तक जारी नहीं कर रहा है उसे आप देश का नेतृत्व संभालने का अवसर देना चाहते हैं। 

‘मोदी वीजा’ मामला 
वास्तव में मई 2014 से पहले देश में ‘मोदी वीजा’ संबंधी मामला तत्कालीन यू.पी.ए. सरकार के उस षड्यंत्र के गर्भ से निकला था, जिसमें कांग्रेस नेतृत्व के निर्देश पर तथाकथित ‘हिंदू आतंकवाद’ का हौवा खड़ा किया गया। इसी मिथक शब्दावली के माध्यम से इस राष्ट्र की कालजयी सनातन और बहुलतावादी परम्परा में विश्वास रखने वाले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, भारतीय जनता पार्टी सहित समान विचारधारा के अन्य संगठनों को न केवल देश में अपितु शेष विश्व में कलंकित करने और इस्लामी आतंकवाद के खतरे से लोगों का ध्यान भटकाने के लिए विकृत ताना-बाना बुना गया। यह प्रपंच तथाकथित सैकुलरवाद के पुरोधाओं की रुग्ण सोच का परिणाम था। इसी में अमरीकी वीजा घटनाक्रम को हवा देकर गुजरात के तत्कालीन और उस समय देश में सबसे लोकप्रिय मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी को तथाकथित ‘भगवा आतंकवाद’ के प्रतीक के रूप में स्थापित करने की पटकथा भी लिखी जा रही थी। 

जिस अमरीकी प्रशासन ने 2014 से पहले यू.पी.ए. सरकार के प्रपंचों के आधार पर नरेन्द्र मोदी को वीजा देने से इंकार किया था, वह आज पलक बिछा उसी व्यक्ति का न केवल स्वागत कर रहा है अपितु उनमें भावी भारत का राष्ट्रपिता भी देख रहा है। मोदी की बढ़ती वैश्विक लोकप्रियता और उनके नेतृत्व में मिल रही कूटनीतिक सफलता से देश का वामपंथ प्रेरित वर्ग (कांग्रेस सहित) स्वाभाविक रूप से हतप्रभ है। क्या यह सत्य नहीं कि विश्व में देश की सशक्त छवि बनाने और पाकिस्तान की दुर्दशा के लिए वर्तमान भारतीय नेतृत्व की वृहद कूटनीति ने मुख्य भूमिका निभाई है? 

सच तो यह है कि 2014 से पहले अधिकांश भारतीय प्रधानमंत्री विदेशों से संबंध बनाने में अनेक बार राष्ट्रहित से अधिक देश में विशेष वोट बैंक के कट्टरपंथी वर्ग को तुष्ट करने में व्यस्त रहते थे, जिसमें प्रत्येक मामले को वामपंथी चश्मे से देखा जाता था। सच तो यह है कि स्वतंत्र भारत में इसी आचरण ने आतंकवाद विरोधी अभियान को सदैव कमजोर बनाए रखा किंतु विगत 65 माह में उपरोक्त नीति में आमूल-चूल परिवर्तन आया है। वर्तमान भारतीय नेतृत्व विदेशों में केवल राष्ट्रहित (सुरक्षा सहित) और वसुधैव कुटुम्बकम् के सनातन चिंतन को ही प्राथमिकता दे रहा है, जिसका प्रतिपादन स्वामी विवेकानंद, महर्षि अरविंद, गांधीजी, डा. हेडगेवार, गुरु गोलवलकर, सरदार पटेल और वीर सावरकर आदि भी अपने जीवनकाल में कर चुके थे। 

अनुच्छेद 370 व 35ए
किसी ने कल्पना भी नहीं की थी कि भारत कभी कश्मीर को अनुच्छेद 370 और धारा 35ए के नागपाश से मुक्त करवा पाएगा किंतु मोदी नेतृत्व ने इसे करके दिखा दिया। आज जम्मू-कश्मीर के 1.25 करोड़ लोग शेष भारत के नागरिकों की भांति समान संवैधानिक अधिकारों का लाभ उठा रहे हैं। यह ठीक है कि सुरक्षात्मक दृष्टि से घाटी में कुछ प्रतिबंध अब भी जारी हैं, किंतु इस दौरान किसी भी इक्का-दुक्का विरोध-प्रदर्शन में सुरक्षाबलों द्वारा एक भी गोली चलने की कोई खबर सामने नहीं आई है, जो चमत्कार ही है। मैं ऐसा इसलिए कह रहा हूं, क्योंकि जब 8 जुलाई, 2016 में आतंकी बुरहान वानी मुठभेड़ में मारा गया था, तब विरोध में 3 माह चले हिंसक प्रदर्शन में सुरक्षाबलों की कार्रवाई से 90 से अधिक आतंकियों के स्थानीय मददगारों (पत्थरबाज सहित) की मौत हो गई थी। 

अमरीका दौरे में व्यापारिक हित के साथ आतंकवाद सबसे बड़ा मुद्दा रहा। ‘हाउडी मोदी’ कार्यक्रम में आतंकवाद और सीमा सुरक्षा पर बोलते हुए अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने कहा था, ‘‘हम लोगों को कट्टरपंथी इस्लामी आतंकवाद के खतरे से बचाने के लिए गर्व से साथ खड़े हैं।’’ वहीं प्रधानमंत्री मोदी ने अपने संबोधन में कहा, ‘‘अमरीका में 9/11 हो या मुम्बई में 26/11, उसके साजिशकत्र्ता कहां पाए जाते हैं, पूरी दुनिया उन्हें जानती है। समय आ गया है कि आतंकवाद और उसे बढ़ावा देने वालों के खिलाफ निर्णायक लड़ाई हो, जिसमें राष्ट्रपति ट्रम्प पूरी मजबूती के साथ आतंक के खिलाफ खड़े हैं।’’ 

यक्ष प्रश्न है कि क्या अमरीका का ट्रम्प प्रशासन वाकई आतंकवाद के खिलाफ मजबूती से खड़ा है? विगत 900 वर्षों से भारत जिस इस्लामी आतंकवाद के दर्शन से त्रस्त रहा है, उसी विषाक्त चिंतन की कोख से पाकिस्तान भी 1947 में जन्मा है। स्थिति आज यह हो गई है कि जेहाद का ‘वायरस’ विश्व के विभिन्न क्षेत्रों को भी अपनी चपेट में ले चुका है। इस मानसिकता के मुख्य शिकार गैर-इस्लामी तो हैं ही, मुस्लिम समाज भी इससे अछूते नहीं रहते। वर्ष 2018 में पाकिस्तान 584 इस्लामी आतंकवाद/हिंसक घटनाओं का साक्षी बना, जिसमें 500 से अधिक लोग मारे गए। वहीं अफगानिस्तान में अकेले 2017 में 1400 से अधिक आतंकी हमले हुए, जिनमें 6000 लोग मारे गए। 

अमरीका व पश्चिमी देशों का दृष्टिकोण
इस पृष्ठभूमि में अमरीका सहित शक्तिशाली पश्चिमी देशों का दृष्टिकोण क्या है? एक तरफ  अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प का सार्वजनिक रूप से इस्लामी आतंकवाद पर मुखर होना और उन्हीं के नेतृत्व में जेहादी तालिबानियों से वार्ता का प्रयास आतंकवाद के खिलाफ वैश्विक लड़ाई को कमजोर बना रहा है। बीते 5 सितम्बर को अफगानिस्तान की राजधानी काबुल में तालिबान द्वारा किए एक हमले में 12 लोग मारे गए, जिसमें एक अमरीकी सैनिक भी शामिल था। अब ट्रम्प प्रशासन ने इस प्रस्तावित वार्ता को केवल इसलिए स्थगित कर दिया, क्योंकि तालिबानी हमले में उनका एक सैनिक शहीद हो गया था। क्या कश्मीर में सैंकड़ों भारतीय जवान पाकिस्तान समर्थित जेहादियों के आतंक का शिकार नहीं हुए हैं? 

स्वाभाविक है कि तेजी से बदलते वैश्विक घटनाक्रमों को भारत और अमरीका अपने-अपने दीर्घकालिक हितों के चश्मे से देखेंगे इसलिए मतभिन्नता होना स्वाभाविक है परंतु कुछ जीवन मूल्य ऐसे हैं, जो भारत-अमरीका को बांधे रखते हैं। अमरीका विश्व का सबसे शक्तिशाली लोकतंत्र है, जिसमें दुनिया भर से आकर बसे प्रवासियों ने पिछले 300 वर्षों में अमरीका को विकसित, सम्पन्न और उन्नतशील देश के रूप में स्थापित कर दिया है। 

वहीं भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है, जहां लगभग 1800 वर्ष पहले अपने उद्गम स्थानों पर रोमन कैथोलिक चर्च द्वारा प्रताडऩा के बाद ईरानी और सीरियाई ईसाइयों ने भारत में शरण ली। इसके अतिरिक्त वर्ष 629 में केरल के तत्कालीन हिंदू सम्राट चेरामन पेरुमल ने अरब व्यापारियों के सहयोग से कोडुंगल्लूर के मेथला गांव में चेरामन जुमा मस्जिद का निर्माण करवाया। यह मस्जिद अब भी मौजूद है। इस सुखद पृष्ठभूमि में भारत और अमरीका आतंकवाद के निर्णायक उन्मूलन हेतु क्या कार्ययोजना बनाते हैं, वह आने वाला समय ही बताएगा।-बलबीर पुंज
 

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