मोदी ‘मन की बात’ में बेरोजगारी व नौकरियों के मुद्दे पर बात करें

Edited By ,Updated: 03 Oct, 2021 03:26 AM

modi talks on the issue of unemployment and jobs in mann ki baat

क्या ऐसी भारतीय फर्मों, जो 10 अथवा अधिक लोगों को रोजगार देती हैं, में 1947 के बाद से नौकरियों की संख्या में वृद्धि हुई है? उत्तर हां है। संदर्भ वर्ष में सुधार करके 2013-14 करें। उत्तर अभी भी हां होगा यदि अर्थव्यवस्था का युद्ध अथवा अकाल या प्राकृतिक...

क्या ऐसी भारतीय फर्मों, जो 10 अथवा अधिक लोगों को रोजगार देती हैं, में 1947 के बाद से नौकरियों की संख्या में वृद्धि हुई है? उत्तर हां है। संदर्भ वर्ष में सुधार करके 2013-14 करें। उत्तर अभी भी हां होगा यदि अर्थव्यवस्था का युद्ध अथवा अकाल या प्राकृतिक आपदाओं के कारण नुक्सान न हुआ हो। सामान्य परिस्थितियों में कोई भी जहाज पहिए पर बिना किसी मजबूत पकड़ के भी आगे बढ़ता रहता है। वास्तविक प्रश्र यह नहीं है कि क्या 2013-14, जो यू.पी.ए. सरकार का अंतिम वर्ष था, के बाद से कुल रोजगार में वृद्धि हुई है अथवा नहीं। भाजपा ने एक वर्ष में 2 करोड़ नौकरियां पैदा करने का वायदा किया था। 7 वर्षों में अर्थव्यवस्था के उनके चतुर प्रबंधन से औपचारिक तथा अनौपचारिक क्षेत्रों में 14 करोड़ नई नौकरियां पैदा होनी थीं लेकिन ऐसा नहीं हुआ। 

कितनी नौकरियां
कुछ दिन पहले कार्मिक तथा रोजगार मंत्रालय ने ऐसी फर्मों पर एक सर्वेक्षण रिपोर्ट जारी की जो 9 सैक्टरों में 10 अथवा अधिक कर्मचारियों को रोजगार देती हैं जो कुल रोजगार (औपचारिक क्षेत्र) का 85 प्रतिशत बनता है। रिपोर्ट में निष्कर्ष निकाला गया है कि 2013-14 में 2.37 करोड़ (छठा आॢथक सर्वेक्षण) के मुकाबले कुल रोजगार 3.08 करोड़ थे, यानी 7 वर्षों में नौकरियों में 71 लाख की बढ़ौतरी। अन्य क्षेत्रों को शामिल करने से संख्या में अधिक से अधिक 84 लाख नौकरियों की वृद्धि होगी। ऐसा दिखाई देता है कि रिपोर्ट में अनौपचारिक क्षेत्र अथवा कृषि सैक्टर को शामिल नहीं किया गया। रिपोर्ट में ‘सर्वाधिक प्रभावशाली वृद्धि’ का दावा किया गया है जो 22 प्रतिशत (निर्माण) से 68 प्रतिशत (परिवहन) से 152 प्रतिशत (आई.टी./बी.पी.ओ.) है लेकिन याद रखें इन सबमें केवल 71 लाख नौकरियां शामिल की गई हैं। 

अन्य विश्वसनीय आंकड़ा 
रोजगार-बेरोजगारी को लेकर सबसे विश्वसनीय आंकड़ा सैंटर फॉर मॉनीटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सी.एम.आई.ई.) द्वारा एकत्र तथा प्रकाशित है। थोड़े ही समय में महेश व्यास ने सितम्बर 2021 के तीसरे सप्ताह के आखिर तक डाटा के महत्वपूर्ण निष्कर्षों को संक्षेप में प्रस्तुत किया है। मैंने इन्हें एक तालिका (लेख के अंत में देखें) में पेश करने का प्रयास किया है। सी.एम.आई.ई. सही है जब उसने कहा कि ‘कोविड-19 के लॉकडाऊन से भारत की रिकवरी तीव्र, आंशिक, कमजोर रही है...’। यहां शब्द कमजोर पर ध्यान दें। किसी भी तरह की रिकवरी-शब्द वी अथवा किसी भी तथा किसी भी अक्षर, के दावों में यह महत्वपूर्ण बिंदू गायब है कि जब तक हम 2019-20 में प्राप्त कुल रोजगार के स्तर पर नहीं पहुंच जाते तथा उस स्तर को पार कर नहीं लेते , तथाकथित ‘रिकवरी’ भ्रामक है। 

लोगों के पास आवश्यक तौर पर नौकरी होनी चाहिए तथा आय नौकरियों से ही होती है। कोई भी आर्थिक ‘रिकवरी’ जो नौकरियों के पुराने स्तर को बहाल नहीं करती और उस स्तर को पार नहीं करती, लोगों के लिए किसी काम की नहीं। तकनीक, नई मशीनें, नई प्रक्रियाएं तथा कृत्रिम समझ (आर्टीफिशियल इंटैलीजैंस) विकास ला सकती हैं लेकिन यदि वह विकास पुरानी नौकरियां बहाल नहीं कर सकता अथवा नई नौकरियां पैदा नहीं कर सकता तो हमारे सामने एक बहुत बड़ी समस्या खड़ी हो जाएगी। सरकार इस बात को अडिय़ल तौर पर स्वीकार नहीं कर रही कि भारत के सामने सचमुच समस्या है और उस समस्या से निपटने के लिए उपायों की इच्छुक नहीं है। 

सिकुड़ता कार्यबल, फिसलती दरें
कार्यबल की सिकुडऩ एक अन्य गंभीर समस्या की ओर संकेत करती है। अगस्त 2021 में कार्यबल प्रतिभागिता दर (एल.एफ.पी.आर. तथा रोजगार दर दोनों ही फरवरी 2020 में दरों के मुकाबले उल्लेखनीय रूप से कम हैं (तालिका देखें)।

तिथि        कुल                 बेरोजगारी              कार्यबल              रोजगार 
              रोजगार             दर                       प्रतिभागिता           दर
               दर

फरवरी    40.59 करोड़      7.76 '                   42.6 '                39.29 '
2020                
अप्रैल       28.22 करोड़      23.52 '                 35.57 '              27.21 '
2020                
जुलाई       39.24 करोड़      7.4 '                     40.61 '              37.6 '
2020                
अगस्त       39.78 करोड़      8.32 '                  40.52 '              37.15 '
2021

तार्किक निष्कर्ष यह है कि कार्यबल बाजार से उल्लेखनीय संख्या में लोग निकल गए। (अर्थात नौकरियों की तलाश नहीं कर रहे) तथा कार्य कर रहे लोगों (नौकरीपेशा) की संख्या में भी गिरावट आई है। जब तक इन दो दरों को वापस पटरी पर नहीं लाया जाता तो जी.डी.पी. के आकार को तेजी से दोगुना करने का अथवा जर्मनी या जापान जैसी बड़ी अर्थव्यवस्थाओं से आगे निकलने का कोई रास्ता नहीं है। 

सी.एम.आई.ई. ने सितम्बर 2020 तथा सितम्बर 2021 के बीच कुल रोजगार में शुद्ध संचयी वृद्धि की भी गणना की है : यह महज 44483 है। नौकरियां थीं और हैं, गंवा दी गईं, नई नौकरियां पैदा की जा रही हैं लेकिन यदि 12 महीनों के दौरान कुल वृद्धि मात्र 44483 है तो यह अर्थव्यवस्था के प्रबंधन और मंत्रियों व आॢथक सलाहकारों के बड़े-बड़े दावों के बारे क्या कहता है? श्री व्यास ने सही आकलन किया है कि यह रिकवरी प्रक्रिया के समय से पूर्व कमजोर पडऩे का संकेत है। यह गंभीर है क्योंकि जहां अधिक नौकरियां पैदा होना रुक गया है, काम करने वाले लोगों की संख्या के स्टॉक में वृद्धि जारी है। 

यदि हम लिंग के आधार पर या ग्रामीण बनाम शहरी नजरिए से अथवा नौकरियों की गुणवत्ता के आधार पर आंकड़ों की समीक्षा करें तो और अधिक निराशाजनक निष्कर्ष सामने आते हैं। बचाने वाला कृषि क्षेत्र है। इसने मार्च 2020 तथा अगस्त 2021 के बीच लगभग 46 लाख अतिरिक्त मजदूरों को समाहित किया है लेकिन इसी समय के दौरान ग्रामीण भारत ने 50 लाख गैर-कृषि नौकरियां गंवा दीं। लोग गैर-कृषि से कृषि नौकरियों की ओर स्थानांतरित हो गए लेकिन इससे संभवत: बेरोजगारी पर केवल पर्दा ही पड़ा है। मेरी इच्छा है कि अपनी आगामी ‘मन की बात’ में प्रधानमंत्री बेरोजगारी तथा नौकरियों के मुद्दे पर बात करें। उन्हें वित्त मंत्रालय की संक्षिप्त रिपोर्टों को परे रख कर उन वास्तविक लोगों के साथ बात करनी चाहिए जो नौकरियां गंवा चुके हैं तथा युवाओं के साथ जो बहुत बेताबी के साथ नौकरियों की तलाश में हैं, वे उन्हें कुछ कड़वी सच्चाइयां बताएंगे।-पी. चिदम्बरम 


    

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