‘कार्य शुरू होने से पहले मोदी नतीजे चाहते हैं’

Edited By ,Updated: 25 Feb, 2021 04:25 AM

modi wants results before work starts

पिछले सप्ताह एक मौके पर राष्ट्र के यकीनन सबसे निर्णायक प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को गुस्सा आया। उन्होंने बाबूशाही जोकि आई.ए.एस. अधिकारियों की बिरादरी है और सरकार की नीतियों को आगे बढ़ाती है, पर सीधा हमला बोला। मैंने एक अंग्रेजी टी.वी. चैनल

पिछले सप्ताह एक मौके पर राष्ट्र के यकीनन सबसे निर्णायक प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को गुस्सा आया। उन्होंने बाबूशाही जोकि आई.ए.एस. अधिकारियों की बिरादरी है और सरकार की नीतियों को आगे बढ़ाती है, पर सीधा हमला बोला। मैंने एक अंग्रेजी टी.वी. चैनल पर 2 उच्च सम्मानित पूर्व आई.ए.एस. अधिकारियों को बोलते देखा जिन्हें टी.वी. चैनलों द्वारा विशेष तौर पर चुना गया था। इन अधिकारियों ने सेवानिवृत्ति के बाद अपने राजनीतिक आकाओं से कोई भी पद स्वीकार नहीं किया था। इन दो लोगों में एक थे सुभाष चंद्र गर्ग जोकि पूर्व वित्त सचिव थे और उन्होंने एक सफल करियर के बाद समय से पहले सेवानिवृत्ति ले ली थी। दूसरा नाम एक पूर्व कोयला सचिव अनिल स्वरूप हैं जो सम्मान रूप से प्रतिष्ठित व्यक्ति हैं। 

पूर्व कोयला सचिव पूर्व वित्त सचिव की तुलना में अधिक आगामी थे जो मेरे हिसाब से उन्होंने आध्यात्मिक पथ को चुना है। अनिल स्वरूप एक ऐसे व्यक्ति हैं जिन्हें मैं निजी तौर पर जानता हूं और मैं प्रशंसा करता हूं कि वह प्रधानमंत्री के बहुत समर्थक थे। प्रशंसा में सुभाष गर्ग ज्यादा संजीदा नहीं थे। वह मानते थे कि मोदी के साथ कार्य करना ज्यादा सुखद था। 

एक आई.ए.एस. अधिकारी के पास शीर्ष राजनेताओं के साथ बातचीत करने के कई अवसर होते हैं। यह उनकी नौकरी की प्रकृति होती है। कई मंत्री बोलने के ढंग में सचमुच ही नौकरशाहों के हाथों से बाहर निकलते हैं। यदि मंत्री को एक मंत्रालय का प्रभार दिया जाता है जिसमें उसके पास कोई विशेषज्ञता नहीं है लेकिन उम्मीद की जाती है कि वह काम के दौरान सभी बातें सीख लेंगे। आई.ए.एस. अधिकारी विशेषज्ञ नहीं हैं। उन्हें सरकार के किसी भी विभाग को लेने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है। उसकी श्रेष्ठ बुद्धि, विशाल ज्ञान और अनुभव उसका साथ देता है। 

एक नियमित आधार पर जिस प्रधानमंत्री से मुझे बातचीत करने का मौका मिला वह राजीव गांधी थे। पंजाब के पूर्व गवर्नर एस.एस. रे तथा मैंने चंडीगढ़ से दिल्ली की उड़ान एक सरकारी विमान द्वारा की ताकि राजीव गांधी को मैं राज्य में आतंकी खतरे को उठाने के लिए उन्हें बता सकूं। वह ग्रहणशील और तर्कसंगत थे। जब मैंने उनको 1984 के सिख दंगों के दोषी कांग्रेसियों के बारे में बात की तो वह नाराज हो गए। इस अवसर का उल्लेख करते समय इससे मुझे कोई फर्क नहीं पड़ा। 

जिस राज्य (महाराष्ट्र) को मुझे सौंपा गया था वहां मैं छोटे-बड़े सभी राजनेताओं से मिला। पहले मुख्यमंत्री जिनसे मेरी मुलाकात हुई वह मोरारजी देसाई थे। सी.एम. के तौर पर उन्होंने माऊंटआबू की यात्रा की जहां पर आई.पी.एस. अधिकारियों को प्रशिक्षित किया जा रहा था। मुझे तीन अन्य अधिकारियों के साथ उनसे मिलवाया गया जिनको बाम्बे स्टेट सौंपा गया था। जब उन्होंने मेरा नाम सुना तो उन्होंने मुझ पर विशेष ध्यान दिया। उन्होंने मुझसे पूछा कि क्या मेरे पिता ने डाकसेवा में काम किया था? जब मैंने इसका जवाब ‘हां’ में दिया तो उन्होंने मुझे बताया कि जब मैं 8 वर्ष का लड़का था तब मेरे पिता की मृत्यु हुई और वह बाम्बे में उसी समय विल्सन कालेज के शोध छात्र थे और मेरे पिता आर्ट विभाग तथा मोरारजी देसाई साइंस स्ट्रीम में थे। उस वार्तालाप में मेरे सहयोगियों ने मुझे नियमित रूप से एक मामूली हस्ती बना दिया। 

अपनी ड्यूटी के दौरान मैं यशवंत राव चव्हाण, वसंत राव नाइक, शरद पवार तथा वसंत दादा पाटिल जैसे मुख्यमंत्रियों से मिला। वह निश्चित रूप से अपनी ही पार्टी कांग्रेस में राजनेताओं से ऊपर थे। आप आसानी से अंदाजा लगा सकते हैं कि उन्हें इस शीर्ष पद के लिए क्यों चुना गया? बतौर डी.जी.पी. गुजरात में 1985 के साम्प्रदायिक दंगों के दौरान मैं ज्यादातर आई.पी.एस.अधिकारियों के सम्पर्क में रहा। 1985 में गुजरात में कांग्रेस की सरकार थी। एक दशक बाद मोदी वहां के सी.एम. बने। उस समय जूनियर आई.पी.एस. अधिकारी सीनियर हो गए थे। कार्यालय में मुझे मोदी जी के बारे में उन्होंने बताया। 

उन्होंने जल्दी निर्णय लिया और वह एक निर्णायक के रूप में था। लोग अक्सर उस राजनेता (या फिर एक अधिकारी) की प्रशंसा करते हैं जो गलत या सही निर्णय लेता है। यह विशेषता मोदी में थी। उनके पास  पक्षपात करने वालों के साथ क्रूरता की प्रवृत्ति थी जो उनके रास्ते को काट देते थे। फिर चाहे यह अनजाने में किया हो। यदि मोदी कुछ कहना चाहते थे तो वह कर दिया जाता था। फिर ऐसा करने में चाहे अधिकारी की अंतर्रात्मा सहज न हो। एक विवेक वाले अधिकारी को कार्य करना मुश्किल होता है। 

आज पी.एम.ओ. में अन्य महत्वपूर्ण पदों के लिए गुजरात कैडर के अधिकारियों को भरा गया है। शेष स्लॉट अन्य राज्यों के अधिकारियों से भरे गए हैं जिन्होंने अपना नाम ए.सी.आर. के आधार पर अप्रूव्ड लिस्ट में पाया। अनौपचारिक रूप से विचारधारा के बारे में संदेह को दूर करने के लिए इंटैलीजैंस ब्यूरो से मंजूरी ली जाती है। कभी-कभी विशेष नौकरियों के लिए उच्च वैल्यू वाले विशेषज्ञों को आई.ए.एस. अधिकारियों द्वारा बदल दिया जाता है।

ऐसा ही एक उदाहरण आई.ए.एस. शक्तिकांत दास की नियुक्ति की है जिन्हें अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त अर्थशास्त्री रघुराम राजन के स्थान पर आर.बी.आई. का गवर्नर बनाया गया। उच्च सरकारी पदों पर पाश्र्व प्रवेश कांग्रेस कार्यकाल के दौरान भी हुआ है। डा. मनमोहन सिंह, प्रख्यात अर्थशास्त्री मोंटेक सिंह आहलूवालिया तथा बिमल जालान जैसे सभी लोगों को एक ही शिक्षाविद् से लाया गया। 

वर्तमान सरकार प्रयोग करती जा रही है और यहां तक कि संयुक्त सचिवों की भर्ती भी ओपन मार्कीट से की जा रही है। तो मोदी जी क्यों निराश हैं?वह जल्दबाजी में हैं। वह नतीजे चाहते हैं इससे पहले कि कार्य शुरू हो जाए।-जूलियो रिबैरो (पूर्व डी.जी.पी. पंजाब व पूर्व आई.पी.एस. अधिकारी) 
 

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