जीवन चलने का नाम

Edited By Updated: 28 Oct, 2025 05:45 AM

name of life

72 वर्षीय नैन्सी मिम्स सैन फ्रांसिस्को में रहती हैं। उन्हें नृत्य करने का बहुत शौक है। वह जिम में लोगों को ट्रेनिंग देती हैं। ग्रुप एक्सरसाइज सिखाती हैं। फिर एक और क्लब में जाकर व्यायाम करवाती हैं। फिर लौटकर अपने सबसे प्रिय शौक बागवानी को पूरा करती...

72 वर्षीय नैन्सी मिम्स सैन फ्रांसिस्को में रहती हैं। उन्हें नृत्य करने का बहुत शौक है। वह जिम में लोगों को ट्रेनिंग देती हैं। ग्रुप एक्सरसाइज सिखाती हैं। फिर एक और क्लब में जाकर व्यायाम करवाती हैं। फिर लौटकर अपने सबसे प्रिय शौक बागवानी को पूरा करती हैं। लम्बा घूमने जाती हैं। जिस समय वे ये सब नहीं कर रही होतीं तो वह डागीज को ट्रेंड करती हैं कि कैसे वे अपने मालिकों की बात मानें। 

वे लोग जो अब किसी कारणवश अपने काम खुद नहीं कर पाते, मिम्स उऩ एथलीटस के लिए ऐसे मददगार कुत्ते तैयार करती हैं  जो समय-समय पर उनकी सहायता कर सकें।  मिम्स का कहना है कि दिन के 8 से लेकर10 घंटे वह लगातार किसी न किसी एक्टिविटी में बिताती हैं। इस दौरान वह बैठती नहीं हैं। लगातार चलती रहती हैं या खड़ी रहती हैं। वह खान-पान के व्यवसाय से भी जुड़ी रही हैं, मगर अपने भोजन में वह नियमित रूप से ऐसा खाना खाती हैं  जो शरीर के लिए आवश्यक है। उसमें भरपूर पोषक तत्व होने चाहिएं। मिम्स का कहना है कि स्वस्थ रहने में उम्र कोई बाधा नहीं है। हां हर रोज का अनुशासन खाने-पीने और हर तरह की गतिविधि में जरूर होना चाहिए।

72 साल की उम्र में इस तरह की ऊर्जा सब को चकित करती है। जब मिम्स के बारे में पढ़ रही थी तो लग रहा था कि अपने देश में अक्सर 50 के बाद लोगों को सलाह दी जाने लगती है कि अब तो बस बहुत कर लिया। कब तक काम करते रहोगे। आराम करो। खास तौर से नौकरीपेशा स्त्रियों को तो 30 7द्यह्यके बाद ही कहा जाने लगता है कि उम्र तो बीत चली। हालांकि बदले वक्त ने अब इस तरह के विचारों में कुछ बदलाव किया है। भारत में भी बहुत-सी स्त्रियां ऐसी हैं जो 80-90 के पार हैं  लेकिन काम करते रहना और पैसा कमाना चाहती हैं। 
89 साल की एक महिला कलकत्ता की सड़कों पर सैंडविच बेचती हैं। उनका कहना है कि काम करने से कोई नहीं थकता। हां जीवन-यापन के लिए दूसरों के सामने हाथ फैलाना पड़े तो थकान महसूस होती है।  गुजरात की एक महिला के पति का निधन हो गया था। उन्होंने मेहनत करके अपनी दो बेटियों को पाला। फिर उन्हें नया कुछ करने की सूझी तो ऐसे व्यंजन बनाने शुरू किए जिनमें कम कैलोरी होती है। 

उन्हें बनाने में मैदे का प्रयोग नहीं किया जाता। यह व्यवसाय इतना बढ़ा कि अब वह बहुत सी स्त्रियों को नौकरी देती हैं। 85 साल की एक अम्मा अपने आसपास के गरीब बच्चों को पढ़ाती हैं। उनके पढ़ाए कुछ बच्चे प्रतियोगी परीक्षाओं में भी सफल रहे हैं। हाल ही में 91 वर्ष की एक डाक्टर का निधन हुआ था।  वह आखिरी वक्त तक मरीजों की मुफ्त देखभाल करती रहीं। एक अन्य 79 साल की महिला साडिय़ों पर बेहतरीन कढ़ाई करती हैं। उनकी बनाई साडिय़ां बहुत महंगे दामों पर बिकती हैं। इन सभी के उदाहरणों से एक बात स्पष्ट है कि इनमें से कोई उम्र से भय नहीं खाती। यों भी अपने पुराने आख्यान कहते हैं कि चलते रहो, चलते रहो। जब तक यह जीवन है, कभी मत रुको। एक पुराना गाना भी इस संदर्भ में याद आता है- ‘जीवन चलने का नाम। चलते रहो, सुबह और शाम।’ 

यों भी यह सोच कि 60 के बाद आप बूढ़े हो गए। किसी काम के लायक नहीं रहे ,यह वास्तव में नौकरीपेशा वर्ग की सोच है क्योंकि वहां नौकरी की एक उम्र निर्धारित है। यदि किसानी के जीवन को देखा जाए  तो जब तक शरीर में दम है, किसान अपने खेतों में काम करते रहते हैं। वे कभी खाली नहीं बैठते। इसी तरह असंगठित क्षेत्र में काम करने वालों के लिए भी शायद ही कभी रिटायरमैंट आती है क्योंकि उन्हें तो रोज कुआं खोदना है और रोज पानी पीना है। इनमें भी सबसे आगे रहती हैं स्त्रियां। अपने-अपने घरों की बूढ़ी दादी, नानी के हाथ का खाना तो हम में से सभी ने कभी न कभी खाया ही होगा। उन्हें हमेशा खाना पकाते और घर के अन्य काम करते देखा होगा। उनके हाथों की बनाई कढ़ी, खीर, बाजरे-मक्के की रोटी, मिठाई, अचार, पापड़, बडिय़ां, नमकीन कोई न कोई पकवान ऐसा जरूर रहा होगा, जिसका स्वाद कभी न भूला होगा। वे तो कभी रिटायर नहीं होती थीं। और काम न कर रही हों तो गोद में अपने नाती-पोतों को लिए कभी लोरियां गा रही हैं  तो कभी किसी परी, भूत और राक्षस की कहानी सुना रही हैं। आसपास बैठे, गोद में पड़े बच्चे कभी परीलोक की यात्रा कर रहे हैं  तो कभी भूतों के पीछे दौड़ रहे हैं। 

इन स्त्रियों के जीवन में अंत समय तक भी कितनी तरह के काम होते थे, जिन्हें आज गिनाना तो मुश्किल है ही, आज की लड़की या स्त्री को यह भरोसा करना भी कठिन होगा कि ये महिलाएं अपने बलबूते कितनी तरह के काम करती थीं। किसी चुनौती से हार भी नहीं मानती थीं। सच में तो कभी न रुकने वाला महामंत्र, इन्हीं के जीवन का वास्तविक हिस्सा था। इसीलिए मिम्स के बारे में जब पढ़ा तो, यह भी सोचती रही कि काश, इन्हें हमारी पिछली पीढ़ी की स्त्रियों के जीवन के बारे में भी कुछ पता होता।-क्षमा शर्मा   
 

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