भारत की विदेश नीति के नए आयाम

Edited By ,Updated: 08 Oct, 2021 03:46 AM

new dimensions of india s foreign policy

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अमरीकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के साथ हालिया मुलाकात भारत की विदेश नीति में एक मील पत्थर थी। इतनी ही महत्वपूर्ण थी चौपक्षीय सुरक्षा वार्ता क्योंकि यह कोविड-19 संकटकाल के बाद भारत की आॢथक तथा रणनीतिक भूमिका को पुनर्जीवित...

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अमरीकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के साथ हालिया मुलाकात भारत की विदेश नीति में एक मील पत्थर थी। इतनी ही महत्वपूर्ण थी चौपक्षीय सुरक्षा वार्ता क्योंकि यह कोविड-19 संकटकाल के बाद भारत की आॢथक तथा रणनीतिक भूमिका को पुनर्जीवित करने के उद्देश्य से थी। 

भारत विश्व का सबसे बड़ा वैक्सीन निर्माता है। ‘वैक्सीन मैत्री’ कार्यक्रम के अंतर्गत यह वैश्विक स्तर पर गरीब देशों को कोविड वैक्सीन उपलब्ध करवाता है। इसमें घरेलू स्तर पर तीव्र विरोध के चलते रुकावट आई कि कोविड-19 की दूसरी लहर के मद्देनजर घरेलू आपूॢत में बाधा आ रही थी। व्हाइट हाऊस के ओवल कार्यालय में राष्ट्रपति बाइडेन के साथ प्रधानमंत्री मोदी की बातचीत के दौरान कोविड-19 वैक्सीन से संबंधित सभी मुद्दों को सुलझा लिया गया। 

इतनी ही उल्लेखनीय है दोनों नेताओं के बीच पाकिस्तान की अफगानिस्तान में संदिग्ध भूमिका को लेकर चर्चा। इन्होंने इसे भारत-अमरीका लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए एक बड़ी चुनौती के रूप में देखा। भारत के विदेश सचिव  हर्षवर्धन शृंगला ने स्पष्ट किया कि व्हाइट हाऊस में द्विपक्षीय चर्चा के दौरान अमरीका तथा भारतीय दोनों नेताओं ने अफगानिस्तान में पाकिस्तान की भूमिका को खारिज किया जो क्षेत्र में आतंकवादी गतिविधियों को अतिरिक्त बढ़ावा देती है। इस संदर्भ में उन्होंने आतंकवादी समूहों को सामान, वित्तीय तथा सैन्य सहायता रोकने की जरूरत  को महत्व दिया। 

क्या इस्लामाबाद अपनी आतंकवाद समॢथत नीतियों में बदलाव करेगा? मुझे इसमें संदेह है। यह कोई रहस्य नहीं कि भारत को मद्देनजर रखते हुए पाकिस्तान खुद को आतंकवाद को भड़काने वाले के तौर पर पेश कर रहा है। दिलचस्प बात यह है कि पाकिस्तान खुद को ‘आतंकवाद के शिकार’ के तौर पर भी पेश कर रहा है मगर कड़वी सच्चाई यह है कि इस्लामाबाद आग बुझाने वाले के भेस में एक आग लगाने वाला है। मगर अब सारी दुनिया पाकिस्तान के ‘असली चेहरे’ से वाकिफ है जो अपने पिछवाड़े में आतंकवाद को इस आशा में पोषित करता है कि आतंकवादी गतिविधियां भारत जैसे इसके पड़ोसी देशों को चोट पहुंचाएंगी। हालांकि अफगानिस्तान भारत तथा अमरीका दोनों के लिए गंभीर चिंता का क्षेत्र बना हुआ है। इसके साथ ही वे भारत-प्रशांत में उभर रही बड़ी चुनौतियों को भी देख रहे हैं जो क्षेत्र में चीन की गतिविधियों से उत्पन्न हुई हैं। एक विशेषज्ञ के अनुसार प्रधानमंत्री मोदी की ‘एक्ट ईस्ट’ नीति उनकी सबसे बड़ी विदेश नीति पहल है। 

यह दर्शाती है कि कैसे भारत स्वतंत्र समुद्री नौवहन तथा समुद्री सुरक्षा के लिए नियम आधारित व्यवस्था, विशेषकर दक्षिण चीन सागर के बारे में मुखर हो गया है। पूर्वी तथा दक्षिणी पूर्वी एशिया के अस्थिर क्षेत्र में बेहतर आॢथक संबंधों तथा सैन्य हितों के लिए प्रधानमंत्री मोदी की ‘लुक ईस्ट’ पहल से कुछ महत्वपूर्ण परिणाम प्राप्त किए जा सकते हैं। दरअसल इन दिनों प्रधानमंत्री मोदी राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर अधिक निश्चयात्मक बन गए हैं। कुआलालम्पुर स्थित एशिया-यूरोप इंस्टीच्यूट के विशेषज्ञ राहुल मिश्रा के अनुसार, ‘जहां भारत का मानना है कि अंतर्राष्ट्रीय संबंध नियमों के आधार पर होने चाहिएं, चीन ने भारत की चिंताओं पर ध्यान नहीं दिया है। यह इस देश के प्रति चीन के नकारात्मक व्यवहार का एक विशिष्ट मामला है। कोई हैरानी की बात नहीं कि चीन ने भारत के परमाणु आपूर्ति समूह (एन.एस.जी.) में प्रवेश को बाधित किया है। इसने प्रधानमंत्री मोदी के अरुणाचल प्रदेश के दौरों की भी आलोचना की है जिसे चीन अपने क्षेत्र के एक हिस्से के तौर पर दक्षिणी तिब्बत कहता है। यह बेतुकी बात है।’ 

प्रधानमंत्री मोदी ने इस बात पर जोर दिया कि अगला दशक भारत-अमरीका संबंधों में ‘परिवर्तनशील काल’ होगा। आगे की ओर नजर दौड़ाते हुए मैं अवश्य कहूंगा कि नई दिल्ली तथा वाशिंगटन अब अधिक महत्वाकांक्षी मायनों में अपने द्विपक्षीय संबंध बनाने में स्वतंत्र जैसे कि क्षेत्रीय स्थिरता तथा वैश्विक अच्छाई के लिए एक सांझेदारी। इससे भी अधिक द्विपक्षीय रक्षा सहयोग, भारत प्रशांत क्षेत्रीय संतुलन, वैक्सीन विकास में सहयोग तथा जलवायु परिवर्तन को कम करना व व्यापार बढ़ाना प्रमुख क्षेत्र हैं जो भारत-अमरीका संबंधों को एक नया आयाम दे सकते हैं। रणनीतिक विशेषज्ञ मार्क ग्रीन का कहना है कि भारत की रक्षा प्रणालियों को उन्नत करने में मदद के साथ अमरीका भारत को अपनी खुद की रक्षा करने तथा हिंद महासागर व पश्चिम प्रशांत क्षेत्र में रक्षा उपलब्ध करवाने के लिए सशक्त बना सकता है। अफगानिस्तान के तालिबानियों के हाथ में जाने के बाद से यह और भी महत्वपूर्ण हो गया है। 

यहां यह याद रखा जाना चाहिए कि गत 15 वर्षों के दौरान अमरीका तथा भारत के बीच 20 अरब डालर के रक्षा सौदे हुए हैं। अब जरूरत है भारत के सैन्य ढांचे के आधुनिकीकरण की। अमरीका को भारत को 30 सशस्त्र एम.क्यू-9 रीपर ड्रोन तथा पी-81 समुद्री जासूसी विमान उपलब्ध करवाने की जरूरत है।-हरि जयसिंह

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