चाहे कोई भी हो दौर रेडियो की बात ही कुछ और

Edited By ,Updated: 13 Feb, 2024 05:41 AM

no matter what the time there is something different about radio

तकनीक बल्कि आर्टीफीशियल इंटैलीजैंस के इस दौर में, जब हर हाथ में मोबाइल या दूसरे इलैक्ट्रॉनिक गैजेट्स हैं जिनसे, वॉयस, ऑडियो-वीडियो संदेशों के तुरंत आदान-प्रदान के साथ लाइव स्ट्रीमिंग की सुविधाएं होने के बावजूद रेडियो के प्रति लोगों का लगाव, जुनून और...

तकनीक बल्कि आर्टीफीशियल इंटैलीजैंस के इस दौर में, जब हर हाथ में मोबाइल या दूसरे इलैक्ट्रॉनिक गैजेट्स हैं जिनसे, वॉयस, ऑडियो-वीडियो संदेशों के तुरंत आदान-प्रदान के साथ लाइव स्ट्रीमिंग की सुविधाएं होने के बावजूद रेडियो के प्रति लोगों का लगाव, जुनून और भरोसा कायम रहना संचार के इस सबसे पुराने माध्यम की विश्वनीयता है। भले ही दुनिया हाथों में रखी स्क्रीन में सिमटती जा रही हो लेकिन गांव या शहर में रेडियो की बात ही कुछ और है। चाहे लांग ड्राइव पर हों या बस, ट्रेन में-रेडियो हर जगह आसानी से जुड़ जाता है। आज भी लाखों घरों की सुबह यूरोपियन वाल्टर कॉफमैन की बनाई उस सिग्नेचर ट्यून से होती है जो काफी हद तक राग शिवरंजिनी पर आधारित है। इसके बाद भक्ति गीत बजते हैं। 

जहां टैलीविजन या मोबाइल नैटवर्क भले न हो लेकिन रेडियो तरंगें आसानी से मौजूद रहती हैं। यही दुनिया का सबसे सस्ता, उपयोगी और सहज सुलभ संचार माध्यम है जो सबसे ज्यादा लोगों तक पहुंचा है। इसने तकनीक के साथ खुद को अपग्रेड भी किया। आज दुनिया भर में 2,000 से अधिक विभिन्न भाषाओं में रेडियो प्रसारण होता है। 

हर साल 13 फरवरी को विश्व रेडियो दिवस मनाने का फैसला संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन यानी यूनैस्को द्वारा 3 नवम्बर 2011 को अपने 36वें सम्मेलन के दौरान किया गया। यही रेडियो के महत्व व जरूरत को दर्शाता है। हर साल एक नया थीम, इसकी उपयोगिता और प्रभाव को तरो-ताजा कर देता है। अब की बार थीम है ‘ए सैन्चुरी इन्फॉॄमग, एंटरटेनिंग एंड एजुकेटिंग’  यानी सूचना देने, मनोरंजन करने और शिक्षा देने वाली एक सदी। यकीनन किसी आयोजन की थीम ही उसकी जान होती है। रोचक व प्रेरक प्रसंगों की थीम से रेडियो का महत्व और भी बढ़ता है। आज दुनिया भर में ए.एम., एफ.एम., सैटेलाइट, हैम, वॉकी-टॉकी, इंटरनैट यानी कई प्रकार के रेडियो की मौजूदगी ही इसके महत्व बताने खातिर काफी है। 

भारत में रेडियो प्रसारण सन् 1923 में शुरू हुआ। इंडियन ब्रॉडकास्टिंग कंपनी (IBC) 23 जुलाई, 1927 को अस्तित्व में आई। 1937  में इसे ऑल इंडिया रेडियो (ए.आई.आर.) नाम दिया गया। महज पांच माह बाद कलकत्ता रेडियो क्लब की स्थापना हुई। करीब साल भर बाद मद्रास प्रैजीडैंसी रेडियो क्लब के साथ इसकी पहुंच मद्रास तक जा पहुंची। 1930 में उद्योग और श्रम मंत्रालय के अधीन भारतीय राज्य प्रसारण सेवा यानी आई.एस.बी.एस. की शुरूआत हुई जो 8 जून 1936 को आल इंडिया रेडियो बन गया। सन् 1939 में कलकत्ता शॉर्टवेव सेवा के उद्घाटन के लिए महाकवि रबीन्द्र नाथ टैगोर आए जिन्होंने अपनी कविता आल इंडिया रेडियो को आकाशवाणी से संबोधित किया था। 1937 में यह संचार विभाग के अधीन आया। 

भारत में रेडियो के शुरूआती दिनों में पोस्ट ऑफिस से एक लाइसैंस लेना पड़ता था। इसकी कीमत 10 रुपए थी। सन् 1960 के दशक में लाइसैंस को ब्रॉडकास्ट रिसीवर्स लाइसैंस यानी बी.आर.एल. कहते थे। सन् 1970 में इसकी फीस बढ़ाकर 15 रुपए कर दी गई। हर साल रिन्यू जरूरी था वर्ना जुर्माना भरना पड़ता था। सन् 1991 में भारत में रेडियो रखना लाइसैंस मुक्त हुआ। इसके ठीक चार साल बाद यानी सन् 1994 में रेडियो डिजिटल हो गया। इंटरनैट के माध्यम से लाइव स्ट्रीमिंग होने लगी और इंटरनैट ओनली 24 आवर्स रेडियो स्टेशन की शुरूआत हुई। उस दौर की यादें आज भी भारत में बड़े-बुजुर्गों के दिलो दिमाग में तरोताजा हैं।-ऋतुपर्ण दवे

Trending Topics

IPL
Chennai Super Kings

176/4

18.4

Royal Challengers Bangalore

173/6

20.0

Chennai Super Kings win by 6 wickets

RR 9.57
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!