खालिस्तानियों के लिए पंजाब में कोई स्थान नहीं

Edited By ,Updated: 25 Mar, 2023 04:21 AM

no place for khalistanis in punjab

पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने खालिस्तानी नेता अमृतपाल सिंह के लापता होने पर 80,000 के मजबूत पुलिस बल के साथ पंजाब सरकार की भी खिंचाई की है। राजनीतिक और प्रशासनिक स्तर पर राज्य की विफलता के अलावा यह गंभीर खुफिया विफलता को भी दर्शाता है।

पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने खालिस्तानी नेता अमृतपाल सिंह के लापता होने पर 80,000 के मजबूत पुलिस बल के साथ पंजाब सरकार की भी खिंचाई की है। राजनीतिक और प्रशासनिक स्तर पर राज्य की विफलता के अलावा यह गंभीर खुफिया विफलता को भी दर्शाता है। यह कोई रहस्य नहीं है कि अमृतपाल सिंह राज्य के खिलाफ युद्ध छेडऩे के लिए सक्रिय रूप से उकसाने, भड़काने और साजिश रचने तथा पंजाब की सुरक्षा व सार्वजनिक व्यवस्था के रख-रखाव के लिए प्रतिकूल तरीके से कार्य करना जारी रखे था। उसने कथित तौर पर यह बयान भी दिया था कि वह भारतीय संविधान में विश्वास नहीं करता। 

कहा जाता है कि 18 मार्च 2023 को अमृतपाल सिंह और उसके अनुयायियों को गिरफ्तार करने और हिरासत में लेने के लिए एक आप्रेशन शुरू किया गया था। हालांकि वह 3 और वाहनों के कारवां के साथ एक मॢसडीज कार में यात्रा करने में कामयाब रहा लेकिन उसका काफिला भागने में सफल रहा। यह राज्य पुलिस और उसकी खुफिया एजैंसी की नाकामी का परिचायक है। इसका मतलब यह नहीं है कि लोगों और पंजाब राज्य के बीच आतंकवाद की प्रकृति और आयाम की समझ का अभाव है। यहां समस्या पंजाब के सीमावर्ती राज्य में प्रभावी ढंग से आतंकवाद से निपटने के लिए सही उत्तर खोजने में अधिकारियों की विफलता है। वैसे भी आतंकवाद का राज दंड काफी समय से देश के घरेलू मैदान पर छाया हुआ है। 

इस संदर्भ में हम अपने नेताओं के प्रति सहानुभूति रख सकते हैं जो सार्वजनिक मंचों पर बयानबाजी करने के लिए तैयार हो जाते हैं क्योंकि वे अक्सर व्हाइट हाऊस की हरी झंडी के बिना अपने दम पर कार्रवाई करने में विफल रहते हैं। इसे आज के सामाजिक वैश्वीकरण के कठोर तथ्य के रूप में देखने की जरूरत है। 

बेशक वैश्विक आतंकवाद से लडऩे के लिए अमरीका का अपना एक एजैंडा है। सच्चाई यह है कि यह देश भी इस वैश्विक अभियान का हिस्सा है। फिर भी हम अमरीका की रणनीतियों के साथ आतंकवाद पर भारतीय दृष्टिकोण का शायद ही कोई एकीकरण देखते हैं। इसके विपरीत रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने इस देश के विरुद्ध निर्देशित पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद के हाथों भारत की पीड़ाओं के बारे में कहीं अधिक समझ दिखाई है। 

यह कहने की जरूरत है कि भारत का वैश्विक दृष्टिकोण अमरीकी गणनाओं और रणनीतियों से अलग है। भारत वर्षों से जम्मू-कश्मीर और देश के अन्य हिस्सों में इस्लामाबाद प्रायोजित आतंकवाद के हाथों पीड़ित रहा है। जाहिर है कि यह भारतीय दृष्टिकोण को पाकिस्तान केंद्रित बनाता है। इसलिए नई दिल्ली इस्लामाबाद में सैन्य शासकों को मुख्य खलनायक के रूप में देखती है। यही कारण है कि भारतीयों को वाशिंगटन की नीतियों और तेवरों में पाकिस्तान समर्थक झुकाव का कोई स्पष्ट संकेत पसंद नहीं आया है। 

हालांकि यह झुकाव कुछ हद तक ठीक हो गया है लेकिन यह अभी भी भारत के सामरिक हितों के लिए पर्याप्त नहीं है। वास्तव में यह अमरीका के मुकाबले भारत की वास्तविक समस्या थी। इसके अलावा नई दिल्ली इस बुनियादी तथ्यों को नहीं भूल सकती है कि वर्षों से पाकिस्तान की खुफिया एजैंसी आई.एस.आई. इस देश को अस्थिर करने के आप्रेशन का हिस्सा रही है। वाशिंगटन पाकिस्तान की नापाक योजना का मुंह नहीं देखना चाहता था। न्यूयार्क में ट्विन टावर और वाशिंगटन के पास पैंटागन परिसर में इस्लामिक आतंकवादियों के हमले के बाद अमरीका जागा। 

इस संदर्भ में मैं इस्लामाबाद के संदिग्ध चालों पर संघर्ष प्रबंधन संस्थान के डाक्टर अजय साहनी की बात कर सकता हूं जिनके अनुसार पाकिस्तान की पूरी मुद्रा आतंकवाद को उसके समर्थन की अस्वीकृति पर आधारित है। इस प्रकार पाकिस्तान अपनी अभूतपूर्व शक्ति के साथ आतंकवाद को वित्त पोषित, समर्थन और उसे प्रोत्साहित करता है। यह दोहराना इसलिए संभव हो पाया है क्योंकि पश्चिमी देशों ने अपने स्वयं के गलत रणनीतिक लक्ष्यों के लिए यह दिखावा करना उचित समझा है कि अतीत में पाकिस्तान की भागीदारी के पर्याप्त सबूत हैं। वास्तव में यह रवैया बहुत कुछ वैसा ही है जैसा हाल तक तालिबान अमरीकियों के साथ कर रहा था। 

यह बड़े अफसोस की बात है कि अमरीका ने कभी भी भारत की जमीनी हकीकत को पूरी तरह से नहीं समझा। इस मामले में अमरीकी नीति निर्माता यह महसूस करने में विफल रहे हैं कि वह इस देश के साथ-साथ अफगान-पाकिस्तान बैल्ट में वही गलतियां दोहरा रहे थे। 

निश्चित रूप से भारत अपने दम पर आतंकवाद से लडऩे में सक्षम है। यहां यह बताना जरूरी है कि भारत का एक निर्णायक आक्रमण पाक अधिकृत कश्मीर (पी.ओ.के.) और पाकिस्तान के क्षेत्रों में स्थापित आतंकवादी शिविरों को नष्ट करने में सक्षम है। लेकिन इस तरह के कदम से अमरीका के बड़े सामरिक हितों के अनुकूल होने की संभावना नहीं है। 

किसी भी मामले में हमारी प्राथमिकता हमारे लोगों के सामने आने वाली सामाजिक और आॢथक समस्याओं से निपटने और उनकी बुनियादी जरूरतों को पूरा करने और उनके जीवन स्तर को ऊपर उठाने की होनी चाहिए। इस प्रकार आइए हम बदलाव के लिए ‘धर्म कार्ड’ खेलने के बजाय प्रभावी ढंग से ‘विकास कार्ड’ खेलें और भारतीय मुसलमानों के दृष्टिकोण और प्रतिक्रिया में अंतर देखें।-हरि जयसिंह
    

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