उत्तर व दक्षिण भारत की  ‘अलग-अलग राय’

Edited By ,Updated: 14 Apr, 2019 04:13 AM

north and south india s different opinions

ऐसी उम्मीद है कि इन चुनावों में देश के लोग दो भागों में बंटे होंगे, पहले वे जो पूरी मजबूती से सत्ताधारी दल का समर्थन करेंगे और दूसरे वे जो विपक्ष के प्रति वफादार होंगे। हालांकि सैंटर फॉर द स्टडी ऑफ डिवैङ्क्षल्पग सोसायटीज (सी.एस.डी.एस.) का हालिया...

ऐसी उम्मीद है कि इन चुनावों में देश के लोग दो भागों में बंटे होंगे, पहले वे जो पूरी मजबूती से सत्ताधारी दल का समर्थन करेंगे और दूसरे वे जो विपक्ष के प्रति वफादार होंगे। हालांकि सैंटर फॉर द स्टडी ऑफ डिवैल्पनिंग सोसायटीज (सी.एस.डी.एस.) का हालिया सर्वे इस बात की ओर इशारा करता है कि भारत दो और भागों में ‘बंट’ रहा है जोकि काफी आहत करने वाला है। वह पिछले 5 वर्षों में देश पर इसके प्रभाव के बारे में काफी कुछ दर्शाता है। पहले, इस सर्वे के बारे में कुछ ब्यौरा। यह सर्वे मार्च के अंतिम सप्ताह में 19 राज्यों में स्थित 101 लोकसभा क्षेत्रों में किया गया जिसमें 10,000 लोग शामिल थे इसलिए यह देश की स्थिति के बारे में काफी सटीक आकलन है। दूसरे, सी.एस.डी.एस. एक प्रतिष्ठित संस्था है जिसकी काफी विश्वसनीयता है। 

‘गलत दिशा में बढ़ रहा देश’
सर्वे में एक प्रश्र यह पूछा गया था कि आप क्या मानते हैं कि देश सही दिशा में आगे बढ़ रहा है अथवा गलत दिशा में? हैरानीजनक तौर पर दक्षिणी भारत के 45 प्रतिशत लोगों ने कहा कि देश गलत दिशा में आगे बढ़ रहा है। पूर्व, पश्चिम/केंद्रीय और उत्तर में ऐसा ही जवाब देने वालों का प्रतिशत क्रमश: 21, 23 और 22 था। इस प्रकार प्रतिशत की दृष्टि से देखा जाए तो बाकी देश के मुकाबले दक्षिण के दोगुने लोग ये मानते हैं कि हम गलत दिशा में आगे बढ़ रहे हैं। मुझे लगता है कि यह दर्शाता है कि दक्षिणी राज्यों तथा अन्यों में एक गहरी खाई है। निश्चित तौर पर इससे पता चलता है कि वे लोग मोदी सरकार और देश पर उसके प्रभाव को किस तरह देखते हैं तथा यह उनकी राजनीतिक प्राथमिकता को भी दर्शाता है। नर्मदा के उत्तर और दक्षिणी में स्थित राज्यों के बीच की यह खाई काफी कुछ दर्शाती है। इससे पता चलता है कि हम दो देश बन गए हैं। 

मोदी के समर्थक हैं अधिकतर हिंदू
सी.एस.डी.एस. सर्वे द्वारा पूछा गया दूसरा प्रश्र और भी खराब तस्वीर की ओर इशारा करता है। ङ्क्षहदुओं, मुसलमानों, ईसाइयों और सिखों को पूछा गया कि क्या मोदी सरकार को एक और मौका दिया जाना चाहिए या नहीं। 51 प्रतिशत हिंदू दूसरा मौका देने के पक्ष में थे जबकि 56 प्रतिशत मुसलमान, 62 प्रतिशत ईसाई और 68 प्रतिशत सिख इसके खिलाफ थे। इससे ऐसा प्रतीत होता है कि मोदी सरकार ने धार्मिक आधार पर विभाजन की रेखाएं खींची हैं। चाहे ये थोड़े ही बहुमत से हों लेकिन भारत के हिंदू मोदी समर्थक हैं जबकि भारत के अल्पसंख्यक उनके समर्थक नहीं हैं। एक बार फिर यह दर्शाता है कि हम दो देश बन गए हैं। 

युवा वर्ग भी मोदी के साथ
सी.एस.डी.एस. सर्वे के एक और पहलू ने मेरा ध्यान आकर्षित किया। इसमें कोई परेशान करने वाली बात नहीं है लेकिन यह भी कुछ दर्शाता है। ऐसा लगता है कि पिछले एक वर्ष में, मई 2018 से मार्च 2019 के अंत तक भाजपा को सबसे बड़ा समर्थन 18 से 25 वर्ष के युवा वोटरों से हासिल हुआ है। मई में सी.एस.डी.एस. सर्वे ये दिखा रहा था कि युवा वर्ग के 33 प्रतिशत वोट भाजपा को मिलेंगे जबकि मार्च के अंत में यह आंकड़ा 40 प्रतिशत तक पहुंच गया। अन्य किसी भी आयु वर्ग के समर्थनों में इतना बड़ा अंतर नहीं आया है हालांकि सभी आयुवर्गों के समर्थन में वृद्धि हुई है।

इस प्रकार, स्पष्ट है कि युवा वर्ग भाजपा की ओर आकर्षित है, और मुझे लगता है कि खासतौर पर नरेंद्र मोदी की ओर। क्या उनके और बड़े होने पर भी यह जारी रहेगा? क्या इन नतीजों में उस समर्थन का आधार है जो समय के साथ बड़ा होगा। और क्या यह क्षेत्रीय और धार्मिक विभाजन को और बढ़ाएगा जैसा कि हमने पहले चर्चा की है? ये दिलचस्प प्रश्र हैं। अभी हम इसके उत्तर के बारे में केवल अनुमान ही लगा सकते हैं। यद्यपि, यदि हम इन सभी चिंताओं को अपने दिमाग में रखें तो अगले छ: हफ्तों में जैसे-जैसे चुनाव प्रचार जोर पकड़ेगा, हम इस बात को समझ पाएंगे कि हमारे देश को क्या हो रहा है और हम किस तरह का देश बन रहे हैं।-करण थापर

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