अब ‘छद्म युद्ध’ लड़ेंगी महिला सैनिक

Edited By ,Updated: 13 Aug, 2020 03:56 AM

now women soldiers will fight proxy war

भारतीय सेना के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है जब असम राइफल्स (ए.आर.) से महिला सैनिकों को डैपुटेशन पर उत्तरी कश्मीर के तंगधार सैक्टर में एल.ओ.सी. के निकट जारी छद्म युद्ध में अपनी भूमिका निभाने के लिए तैनात किया गया है। वास्तव में करीब 2 दशकों से...

भारतीय सेना के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है जब असम राइफल्स (ए.आर.) से महिला सैनिकों को डैपुटेशन पर उत्तरी कश्मीर के तंगधार सैक्टर में एल.ओ.सी. के निकट जारी छद्म युद्ध में अपनी भूमिका निभाने के लिए तैनात किया गया है। वास्तव में करीब 2 दशकों से महिला सैनिकों को स्थायी कमिशन प्रदान करने के बारे में उनकी लड़ाकू लश्कर में साझेदारी को लेकर यह बात चर्चा का विषय बनी है। 

वैसे तो महिला जवान तथा अधिकारी लद्दाख स्काऊट में शामिल होकर लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (एल.ए.सी.) तथा देश की सुरक्षा के साथ संबंधित जिम्मेदारी निभा रही हैं। इस तरीके से बी.एस.एफ. की महिलाओं को भी अंदरूनी सुरक्षा से जुड़े कार्य सौंपे गए हैं, पर असम राइफल्स की एक 30 सदस्यीय पलटन महिलाओं वाली नफरी को कश्मीर वादी में आतंकवादियों के साथ जारी युद्ध में शामिल कर उनके लिए युद्ध स्तर पर परीक्षा की घड़ी आ गई है। इससे पहले कि ए.आर. की कार्यशैली के बारे में चर्चा की जाए, यह जरूरी हो जाता है की इसकी पृष्ठभूमि पर नजर दौड़ाई जाए।

पृष्ठभूमि : भारत सरकार ने वर्ष 1992 में महिला वर्ग के लिए विशेष एंट्री स्कीम के तहत लड़ाकू फौज को सहायता प्रदान करने वाली शाखाओं तथा प्रशासन में मददगार के तौर पर जैसे कि शिक्षा, सप्लाई, आर्डीनैंस, सिग्नल, न्याय प्रणाली तथा एयर डिफैंस जैसे विभागों में शार्ट सर्विस कमीशन्ड अधिकारी के तौर पर क्रमवार 14 वर्षों के लिए भर्ती करना शुरू कर दिया है। पिछले कुछ समय से सेना में महिलाओं की भूमिका  बहस का विषय बनी हुई है। विशेष तौर पर जब 2003 में कुछ सेना की महिला अधिकारी यह मामला उच्च न्यायालय में लेकर गईं तथा यह पक्ष रखा कि उन्हेें पुरुष अधिकारियों की तरह स्थायी कमिशन दिया जाए तथा पक्षपात बंद किया जाए। उच्च न्यायालय ने उनकी दलील को मंजूर करते हुए यह केस एडमिट कर लिया। 

उच्च न्यायालय के निर्णय के बाद सेना की ओर से वर्ष 2012 में  सर्वोच्च न्यायालय में एक हल्फिया बयान दायर कर कुछ ऐसे कहा गया, ‘‘सैद्धांतिक रूप में सेना के भीतर महिलाओं की भागीदारी वाली बात अच्छी तो प्रतीत होती है मगर असल रूप में यह प्रयोग भारतीय सेना में अभी सफल नहीं हुआ तथा हमारा समाज भी महिलाओं को युद्ध में लडऩे के लिए अपनी मंजूरी देने के लिए तैयार नहीं।’’ 

उल्लेखनीय है कि 9 मई 2018 को सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय को सूचित किया कि वह महिला एस.एस.आर.सी. अधिकारियों को स्थायी कमिशन देने पर विचार कर रही है। फिर 15 अगस्त 2018 को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने लाल किले की प्राचीर से यह घोषणा की कि महिला अधिकारी अब शिक्षा तथा कानूनी सेवाओं के अतिरिक्त दूसरे विभागों में स्थायी कमिशन हेतु अप्लाई कर सकती हैं।

वर्ष 2018 वाले कैलेंडर के आखिरी दिन में जनरल बिपिन रावत (अब सी.डी.एस.) ने एक चैनल के साथ इंटरव्यू के दौरान 15 दिसम्बर को सेना में महिलाओं को लड़ाकू लश्कर में शामिल करने के बारे में कुछ संकेत दिए थे। फिर 23 दिसम्बर को सैन्य महिला के कथित छेडख़ानी वाले मामले में एक मेजर जनरल रैंक के उच्चाधिकारी का आर्मी एक्ट के तहत उसका जनरल कोर्ट मार्शल करके उसे बर्खास्त कर दिया गया था। 

सर्वोच्च न्यायालय में सेना की ओर से बहस के दौरान वरिष्ठ वकील आर. बालासुब्रमण्यन ने महिलाओं को स्थायी कमिशन के संबंध में अनेकों समस्याओं तथा कठिनाइयों का जिक्र करते हुए यह दलील पेश की कि महिलाओं को गर्भावस्था, मातृत्व, बच्चों का पालन-पोषण, पारिवारिक जिम्मेदारियां, पुरुषों के मुकाबले शारीरिक सामथ्र्य की कमी, भौतिक विभिन्नताएं जैसे पहलुओं के कारण लड़ाकू लश्करों की कमांड समय अनेकों चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। जस्टिस धनंजय वाई. चंद्रचूड़ तथा अजय रस्तोगी की पीठ ने सरकार की इस दलील को परेशान करने वाली तथा बराबरी के सिद्धांत के उलट कहा। पीठ ने 17 वर्ष वाली कानूनी लड़ाई उपरांत 17 मार्च 2020 को लिंग भेदभाव को खत्म करने के नजरिए से हथियारबंद सेनाओं में स्थायी कमिशन उपलब्ध करने के साथ कमांड संभालने का कदम स्पष्ट करते हुए सरकार को निर्देश दिया कि वह 3 माह के अंदर फैसले को लागू करे। 

कोविड-19 महामारी के कारण सर्वोच्च न्यायालय ने 4 अगस्त को सरकार को आदेश जारी किया कि जब तक 17 मार्च के फैसले पर कोई कार्रवाई नहीं होती तब तक एस.एस.आर.सी. अधिकारियों को सेवामुक्त न किया जाए।  यहां यह भी बताना उचित होगा कि गत वर्ष सेना ने कोर ऑफ मिलिट्री पुलिस (सी.एम.पी.) में 50 महिला जवानों की भर्ती की है तथा वह सिखलाई प्राप्त कर रही हैं। 

कार्यशैली : भारतीय सेना ने 30 महिला अधिकारियों की पलटन जिसका नेतृत्व आर्मी सर्विस काप्र्स (ए.एस.सी.) की कैप्टन गुरसिमरन कौर कर रही हैं, को पहली बार पाकिस्तान के साथ लगती एल.ओ.सी. के निकट अंदरूनी सुरक्षा तथा छद्म युद्ध में भाग लेने की खातिर तैनात किया है। ए.आर. की महिला विंग को ज्यादातर अंदरूनी सुरक्षा के लिए इस्तेमाल किया जाता है, जैसे कि महिला आंदोलनकारियों के समूह को नियंत्रित करना, भीड़ की घेराबंदी करना, विद्रोहियों को हिरासत में लेकर उनकी जांच-पड़ताल करना, साधारण आवाजाही के लिए रास्ते खोलना, मुसीबत में घिरे लोगों की सहायता करनी, प्राकृतिक आपदा के समय कार्य तथा कुछ अन्य जिम्मेदारियां भी सौंपी जाती हैं तथा आप्रेशन दौरान 2 महिलाओं की जोड़ी में तैनात किया जाता है। 

बाज वाली नजर : महिला फौजियों को युद्ध के मैदान में उतारने के बारे में ङ्क्षहद समाचार ग्रुप के समाचार पत्रों में 29 दिसम्बर 2018 को प्रकाशित लेख में इस कलम के द्वारा एक सुझाव दर्ज किया गया था। ‘‘जब भी कभी सेना प्रमुख तथा सरकार महिलाओं को लड़ाकू लश्कर में शामिल करने के बारे में निर्णय लेती है तो सबसे पहले ट्रायल के तौर पर सिर्फ एक अद्भुत महिला पलटन ही खड़ी की जाए, जिसमें सभी रैंक महिला वर्ग के लिए ही हों तथा इनका प्रशिक्षण जम्मू-कश्मीर में किया जाए। ऐसा प्रतीत हो रहा है कि जैसे कि ङ्क्षहद समाचार ग्रुप की बदौलत सरकार को इस लेख में दर्ज सुझाव की भनक पड़ गई हो।’’ 

इसका पहलू यह भी है कि इस किस्म के लड़ाकू युद्ध के दौरान या छद्म युद्ध के दौरान यह महसूस किया जाता है कि यदि महिलाओं को गोली से मारा जाएगा तो उनको हूरें नसीब नहीं होंगी। इसलिए शुद्ध महिला पलटन विशेष तौर पर जम्मू-कश्मीर क्षेत्र में कारगर सिद्ध होगी। हम महसूस करते हैं कि सैन्य महिलाओं को पाकिस्तान के सरप्रस्ती वाले आतंकियों के साथ युद्ध के दौरान सफलता के साथ अनुभव हासिल होगा। अब महिलाओं को छद्म युद्ध में शामिल करने से बहुत कुछ सीखने को मिलेगा।-ब्रिगे. कुलदीप सिंह काहलों (रिटा.)
 

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