बुढ़ापा : अभिशाप भी वरदान भी

Edited By ,Updated: 15 Feb, 2023 06:05 AM

old age curse as well as boon

मनोविश्लेषक की नजर में बुढ़ापा न ही अभिशाप है न ही वरदान है अपितु एक अभिशप्त वरदान है जो दुखों व सुखों का अद्भुत मिश्रण है। इंसानी जीवन काल को शास्त्रों के अनुसार मुख्यतया चार भागों में बांटा गया है बचपन, जवानी, अधेड़ावस्था एवं बुढ़ापा परन्तु बारीकी...

मनोविश्लेषक की नजर में बुढ़ापा न ही अभिशाप है न ही वरदान है अपितु एक अभिशप्त वरदान है जो दुखों व सुखों का अद्भुत मिश्रण है। इंसानी जीवन काल को शास्त्रों के अनुसार मुख्यतया चार भागों में बांटा गया है बचपन, जवानी, अधेड़ावस्था एवं बुढ़ापा परन्तु बारीकी से नजरसानी करें तो शैशव, बचपन, अवयस्कावस्था, यौवन, अधेड़ावस्था, वृद्धावस्था, वयोवृद्धता भी जीवन दर्शन की ही अवस्थाएं हैं। शैशवकाल तो ज्यादातर मां-बाप की गोद में ही व्यतीत हो जाता है। बचपन शिक्षाकाल में ही गुजर जाता है अवयस्क सुखद कल्पनाओं व दिवा स्वप्नों में कट जाता है। यौवन गृहस्थ के उतार-चढ़ाव व रोजी-रोटी कमाने में व्यस्त रहता है अधेड़ावस्था बच्चों को सैटल करने में गुजरती है। रह जाता है बुढ़ापा एवं वयोवृद्धता जो आज का मुख्य विषय है। 

प्राचीनकाल में यह वानप्रस्थ अवस्था कहलाती थी जब मनुष्य अपनी जिम्मेदारियों को समेटकर संतों, ऋषियों-मुनियों के आश्रम में जाकर प्रभु भक्ति में बाकी की जीवनयात्रा का समापन करता था जो आज के परिदृश्य में बदल गई है। आज उसे वृद्धावस्था भी परिवार व समाज में काटने की यातना अथवा सुखद अनुभव सहित ही गुजारनी पड़ती है जहां उसे जीवन के खट्टे-मीठे अनुभव होते हैं। अपवाद के तौर पर कइयों को वृद्धाश्रम भी नसीब होते हैं जहां असहाय, बेबस, अकेलेपन अपनों की नजरन्दाजी की यातना से भी दो-चार होना पड़ता है और अंत में बेमौत मरना ही भाग्य में लिखा होता है। अंग्रेजी में कहावत है जिसका मतलब है हरेक काले घने बादलों में बिजली की चमक होती है दूसरी कहावत का अर्थ है दुख भरे अनुभवों में कभी-कभी मीठे फल छिपे रहते हैं ऐसा अनुभव परिवार में रह रहे वृद्धों के साथ ही होते हैं। 

जीवनभर एक-एक तिनका इकट्ठा करके कठिनाई भरे जीवन में जो आशियाना बनाया होता है उसी आशियाने में बनाया कुनबा ही उसे उपेक्षित कर देता है। उसके अनुभवों से फायदा उठाने की बजाय उसकी कोई सुनता ही नहीं। उसकी आधारभूत जरूरतें भी पूरी करने में किसी को कोई रूचि नहीं होती, उसे उसी के हाल पर छोड़कर सभी अपनी निजी जिंदगी में मस्त हो जाते हैं। अपने अकेलेपन, बेबसी व असहायपन में जब वह आत्म चिंतन करता है तो सिवाय तनाव, अवसाद, कुन्ठा निराशा पछतावे के कुछ स्मरण नहीं रहता यदि पति-पत्नी में से कोई एक मृत्यु को प्राप्त हो गया जो शाश्वत सत्य है तो कोढ़ में खाज वाली कहावत चरितार्थ हो जाती है। 

पीछे अकेला बचा शख्स दुख-सुख सांझे करके मन की बात भी कहने को तरस जाता है। बेटे बहुआें के दामन से लिपटे जीवन का आनंद मना रहे होते हैं बहुएं मायके वालों से ज्यादा सम्पर्क में रहकर वृद्ध व्यक्ति को बेकार-सी वस्तु समझ उपेक्षित कर देती हैं। पोते-पोतियों को भी उसके पास भटकने नहीं देतीं, जीवन के आखिरी चरण  में अकेले नारकीय जीवन जीना ही उसकी नियति बन कर रह जाती है। बाहरी दुनिया से संपर्क कट-सा जाता है। उसके बाहरी मित्रों के साथ मेल-जोल पर भी बंधन लगने लगते हैं ताकि कहीं वह अपनी व्यथा किसी को सुना कर घरवालों का समाज में इम्प्रैशन खराब न करे। 

आखिर एक दिन ऊपर वाला ही उसे अपनी आगोश में लेकर उसकी सभी व्यथाओं का अंत कर देता है। पीछे बचे उसके अपने दुनिया के समक्ष दिखावे हेतु कुछ रोना-धोना करके दिवगंत व्यक्ति की बची-खुुची संपत्ति के बंटवारे में व्यस्त हो जाते हैं। नकली फूलमाला डालकर उसकी तस्वीर दीवार पर टांग दी जाती है जिसकी ओर कोई देखता भी नहीं। कभी-कभार तो उसकी तस्वीर को किसी कोने में रखकर कत्र्तव्यों की इतिश्री कर ली जाती है जिसे घर की पुन: साज-सज्जा करते समय कूड़े में फैंक दिया जाता है और इस तरह उसका अस्तित्व ही समाप्त कर दिया जाता है यद्यपि अपवाद आज भी है जहां बुजुर्गों व दिवगंत आत्माआें का बड़ी आत्मीयता से सम्मान कर उन्हें ईश्वर का दर्जा दिया जाता है और प्रात: प्रणाम से लेकर प्रत्येक खुशी के अवसर पर स्मरण किया जाता है। बच्चों को उनकी अच्छाइयों व कत्र्तव्य परायणता की कहानियां सुनाई जाती हैं परन्तु ऐसे अपवाद गौण ही हैं। 

यदि परिवार ने साथ दिया हो तो बेटे बहुओं को जिंदगी का सलीका समझाना, पोते पोतियों को धार्मिक प्रसंग सुनाकर उन्हें धर्म की आस्था के प्रति सजग करना, पौराणिक कहानियां सुनाकर उनकी ज्ञान वृद्धि करना एवं ऐसे ही सकारात्मक कार्यों से परिवार का पूर्णतया संरक्षण करना, सामाजिक भलाई के कामों में व्यस्त रहकर बुढ़ापे को सुखद बनाना, प्रभु भक्ति में लीन रहकर मोक्ष प्राप्ति के मार्ग को सशक्त बनाना अंतकाल में परिवार के स्नेह व सामाजिक प्रतिष्ठा सहित अपने पीछे सुखद स्मृतियां छोड़ कर विदा लेना बुढ़ापे को  अभिशाप नहीं वरदान स्वरूप व्यतीत करना अपनी जीवनभर की उपलब्धियों व अनुभवों को क्रियात्मक रूप देना एवं प्रभु के स्वरूप में अपनी आत्मा को विलीन कर देना ही श्रेष्ठतम जीवनदर्शन है।-जे.पी. शर्मा 
 

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