Edited By ,Updated: 21 Jan, 2024 03:25 AM
हमारे भारत का इतिहास पिछले करीब 1500 वर्षों से हमलावरों के साथ लगातार जद्दोजहद से भरा रहा है। आरंभिक आक्रमणों का उद्देश्य विजय प्राप्त करना और कभी-कभी (महान सिकंदर के आक्रमण की तरह) राज स्थापित करना होता था। लेकिन इस्लाम के नाम पर पश्चिम के हमलों ने...
हमारे भारत का इतिहास पिछले करीब 1500 वर्षों से हमलावरों के साथ लगातार जद्दोजहद से भरा रहा है। आरंभिक आक्रमणों का उद्देश्य विजय प्राप्त करना और कभी-कभी (महान सिकंदर के आक्रमण की तरह) राज स्थापित करना होता था। लेकिन इस्लाम के नाम पर पश्चिम के हमलों ने इस समाज का पूर्ण विनाश किया और अलगाववाद प्रफुल्लित हुआ। समाज को हतोत्साहित करने के लिए समाज के धार्मिक स्थलों को नष्ट करना आवश्यक था। इसीलिए विदेशी आक्रमणकारियों ने भारत के मंदिरों को भी नष्ट कर दिया। ऐसा उन्होंने एक बार नहीं बल्कि कई बार किया। उनका उद्देश्य भारतीय समाज को हतोत्साहित करना था ताकि भारतीय स्थायी रूप से कमजोर हो जाएं और वे उन पर निर्बाध रूप से शासन कर सकें। अयोध्या में श्रीराम मंदिर का विध्वंस भी इसी मंशा से किया गया था।
आक्रमणकारियों की यह नीति केवल अयोध्या या किसी एक मंदिर तक ही सीमित नहीं थी, बल्कि संपूर्ण विश्व तक सीमित थी। भारतीय शासकों ने कभी किसी पर आक्रमण नहीं किया लेकिन विश्व के शासकों ने अपने राज्य के विस्तार के लिए आक्रामक होकर ऐसे कुकृत्य किए हैं। लेकिन भारत में उन्हें वह परिणाम नहीं मिला जिसकी उन्हें उम्मीद थी। इसके विपरीत भारत में समाज की आस्था, निष्ठा और मनोबल कभी कम नहीं हुआ और समाज झुका नहीं। समाज की ओर से जवाबी जद्दोजहद निरंतर चलती रही इस कारण श्रीराम जन्म स्थान पर बार-बार कब्जा कर वहां मंदिर बनाने का लगातार यत्न किया गया।
1857 में जब विदेशियों यानी ब्रिटिश सरकार के खिलाफ युद्ध की योजना बनाई गई तो हिंदुओं और मुसलमानों ने मिलकर उनके खिलाफ लडऩे की तैयारी दिखाई और तभी से उनके बीच बातचीत शुरू हो गई। उस समय गौहत्या बंद हो गई और श्रीराम जन्मभूमि का समाधान होगा ऐसी स्थिति थी। अंतिम मुगल सम्राट बहादुर शाह जफर ने अपनी उद्घोषणा में गौहत्या पर प्रतिबंध भी शामिल किया। इसलिए पूरे समाज ने एकजुट होकर संघर्ष किया। उस युद्ध में भारतीयों ने वीरता दिखाई लेकिन दुर्भाग्य से युद्ध असफल रहा और भारत को आजादी नहीं मिली। ब्रिटिश शासन निर्बाध रूप से चलता रहा लेकिन श्री राम मंदिर के लिए संघर्ष नहीं रुका। तब से चली आ रही अंग्रेजों की ‘फूट डालो और शासन करो’ की नीति इस देश की प्रकृति के अनुसार और भी सख्त हो गई। एकता को तोडऩे के लिए अंग्रेजों ने संघर्ष के नायकों को अयोध्या में फांसी दे दी और श्रीराम जन्मभूमि की मुक्ति का प्रश्न वहीं का वहीं रह गया। श्री राम मंदिर संघर्ष जारी रहा।
1947 में देश के राष्ट्रीयकरण के बाद जब सर्वसम्मति से सोमनाथ मंदिर का पुर्ननर्माण किया गया तो ऐसे मंदिरों की चर्चा शुरू हो गई। श्रीराम जन्मभूमि की मुक्ति के लिए ऐसी सर्वसम्मति पर विचार किया जा सकता था लेकिन राजनीति की दिशा बदल गई। जैसे-जैसे तुष्टीकरण जैसी स्वार्थी राजनीति प्रबल होने लगी, प्रश्न बना रहा। सरकारों ने इस मुद्दे पर हिंदू समाज की इच्छा और मन की बात मानी है, इसके विपरीत उन्होंने समाज द्वारा की गई पहल को धूमिल करने का प्रयास किया है। श्रीराम जन्म भूमि मुक्ति के लिए जन आंदोलन 1980 के दशक में शुरू हुआ और 30 वर्षों तक जारी रहा। वर्ष 1949 में श्रीराम जन्मभूमि पर भगवान श्रीराम चंद्रजी की प्रतिमा प्रकट हुई। 1986 में कोर्ट के आदेश पर मंदिर का ताला खोला गया। कारसेवा के माध्यम से हिन्दू समाज का संघर्ष जारी रहा।
2010 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय का निर्णय स्पष्ट रूप से समाज के सामने आया। जल्द से जल्द अंतिम निर्णय के माध्यम से समस्या का समाधान करने का अनुरोध जारी रखना पड़ा। 134 साल की कानूनी लड़ाई के बाद 9 नवंबर 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने सत्य और तथ्यों को परखने के बाद संतुलित फैसला लिया। इस फैसले में दोनों पक्षों की भावनाओं और तथ्यों को भी ध्यान में रखा गया। सुप्रीम कोर्ट में सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद यह फैसला सुनाया गया है। इस निर्णय के अनुसार मंदिर निर्माण के लिए एक ट्रस्ट की स्थापना की गई। मंदिर का भूमि पूजन 5 अगस्त, 2020 को हुआ था और अब श्री राम लला की मूर्ति स्थापना और प्राण-प्रतिष्ठा समारोह 22 जनवरी, 2024 को कलयुग संवत 5125, ईस्वी सन, पौष माह के प्रकाश पक्ष के बाहर आयोजित किया जा रहा है। धार्मिक दृष्टि से श्रीराम बहुसंख्यक समाज के आराध्य देव हैं और श्रीरामचन्द्र जी का जीवन समाज द्वारा स्वीकृत आचरण का उदाहरण है। अत: पक्ष-विपक्ष में जो अनावश्यक विवाद उत्पन्न हुआ है, उसे समाप्त करना चाहिए। इस समय पैदा हुई कड़वाहट को समाप्त करना चाहिए।
समाज के समझदार लोगों को यह देखना चाहिए कि यह विवाद हमेशा के लिए खत्म हो जाए। अयोध्या का अर्थ है ‘जहां युद्ध न हो’ ‘संघर्ष से मुक्त स्थान’। इस लक्ष्य को ध्यान में रखकर एक आदर्श देश में अयोध्या का पुनर्निर्माण करना आज की आवश्यकता है और यह हम सभी का कत्र्र्तव्य है। अयोध्या में श्रीराम मंदिर के निर्माण का अवसर राष्ट्रीय गौरव के पुनर्जागरण का प्रतीक है। यह समकालीन भारतीय समाज द्वारा भारत की आचार संहिता जीवन दृष्टि की एक और स्वीकृति है। मन्दिर में श्रीराम की पूजा करने के साथ-साथ श्रीराम के दर्शन को अपने मन मन्दिर में स्थापित करके उनके प्रकाश में आदर्श आचरण का अभ्यास करना चाहिए।
श्रीराम के गुणों का पालन करते हुए सभी को अपने जीवन में और अपने परिवार में सभी के जीवन में लाने का प्रयास करना चाहिए। ईमानदारी के साथ लगन और मेहनत करनी होगी। साथ ही हमें अपने राष्ट्रीय जीवन को देखते हुए अपने सामाजिक जीवन में भी अनुशासन बनाना होगा। हम जानते हैं कि श्रीराम-लक्ष्मण ने अपना 14 वर्ष का वनवास और शक्तिशाली रावण के साथ संघर्ष इसी अनुशासन शक्ति से पूरा किया था।
श्रीराम के चरित्र में झलकने वाले न्याय, दया, सद्भावना, निष्पक्षता, सामाजिक गुणों को समाज में फैलाना, शोषण रहित, समान न्याय पर आधारित, शक्ति के साथ-साथ करुणा से परिपूर्ण समाज का निर्माण करना, यही श्रीराम की पूजा है। अहंकार, स्वार्थ और भेदभाव के कारण यह संसार विनाश की चपेट में है और अपने ऊपर अनंत संकट ला रहा है। विश्व का सौंदर्य सद्भाव, एकता, प्रगति और शांति का मार्ग दिखाता है, भारतवर्ष का पुनॢनर्माण करता है, सबका सर्व-कल्याणकारी और निर्विरोध अभियान दिखाता है। श्रीराम जन्मभूमि में श्रीरामलला के प्रवेश और उनकी प्राण-प्रतिष्ठा के साथ शोभा भारतवर्ष के पुनर्निर्माण का सर्व-कल्याणकारी और गैर टकराव रहित अभियान शुरू होने जा रहा है। हम इस अभियान को क्रियान्वित करने वाले कार्यकत्र्ता हैं।-डा.मोहन भागवत(सरसंघ चालक राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ)